Hame tumse pyar kitna... - 4 in Hindi Fiction Stories by Poonam Sharma books and stories PDF | हमे तुमसे प्यार कितना... - 4 - चाय और गपशप

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हमे तुमसे प्यार कितना... - 4 - चाय और गपशप

विराज अपने कमरे में आ चुका था सोने से पहले उसे नहाने की आदत थी। नहाने के बाद उसने लोअर और टीशर्ट डाल ली लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी... तो वो अपने कमरे से जुड़ी बड़ी सी बालकनी में आ गया। वहां एक झूला लगा हुआ था जिसपर बैठना विराज को बहुत पसंद था। कुछ देर झूले पे बैठ के वोह अल्पक आसमान की तरफ देखता रहा।

उधर दिल्ली में मायरा भी अपनी कमरे की खिड़की से आसमान में चांद को निहार रही थी। और कायरा वोह तो अपने कमरे में घोड़े बेच के सो रही थी।

थोड़ी देर बाद दोनो ही अपने अपने बेड पे आके सो गए थे।

_____________

अगली सुभा

ऑस्ट्रेलिया

महेश का घर

रूपाली जी हमारी भोली दादी यानी अपनी सास सुनंदा जी का हाथ पकड़ के धीरे धीरे कदमों से चल के उनके कमरे से उन्हे लेकर बाहर गार्डन में ले जा रही थी....जहां महेश जी एक कुर्सी पे बैठे अपने फोन में बिज़नेस न्यूज पढ़ रहे थे और साथ ही सुभा की चाय का इंतजार कर रहे थे।

पीछे आहट हुई तो उन्होंने पलट के देखा तो उन्हें अपनी मां और पत्नी साथ आती दिखाई दी। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।

आईए मां....गुड मॉर्निंग....महेश जी ने अपनी मां का हाथ पकड़ के उन्हे दूसरी कुर्सी पर बैठाते हुए कहा।

गुड मॉर्निंग बेटा....सुनंदा जी ने भी बड़े प्यार से कहा....

बहु ज़रा देख तो म्हारे लाडेसवर और चिड़िया उठे की नही।

हां मां अभी देखती हूं। रूपाली जी जाने के लिए जैसे ही पलटती हैं महेश जी तपाक से बोले....

और मेरी चाय....

हां वो भी लाती हूं....

लेकिन आपके हाथों की...

रूपाली चेहरे पे मुस्कुराहट लिए चली जाती है। विराज के कमरे में जाके देखती है तो कोई नही होता तो समझ जाती है विराज ऊपर वाले जिम रूम में होगा उसे सुभा उठते ही जिम में पसीना बहाने की आदत जो थी ये उसका रोज़ का दिनचर्ये था। किसी नौकर से कहलवा के वोह विराज के लिए जूस भिजवाती है और सब उसका बाहर गार्डन में इंतज़ार कर रहे है ये भी कहने को कहती है। उसके बाद वो कोयल के कमरे में जाती है....कमरे को देख के दंग रह जाती है सब चीज़े बिखरी हुई थी। कल जो कपड़े पहन के गई थी वो भी सोफे पे फेक रखा था। ये लड़की भी ना....ऐसे कौन अपना कमरा रखता है इससे अच्छा तो विराज का कमरा था एकदम व्यवस्थित।

कोयल उठ बेटा....समय तो देख...दादी कब से बुला रही है तुझे.....उठ जा बेटा....तुझे अपने पापा और भईया से अपने एडमिशन की भी तो बात करनी थी....सोती रहेगी तो कब बात करेगी....फिर दोनो ऑफिस चले जायेंगे तो मुझे मत बोलना।

हां मम्मी उठ रही हूं....

में जा रही हूं जल्दी आना नीचे....रूपाली जी ने उसके कमरे को कुछ हद तक ठीक कर दिया था और अब वो नीचे चली गई थी चाय बनाने।

उधर शेखर जी ने भी अपने तीनो बच्चों को उठा दिया था और खुद अपने हाथों से चाय बना के लाए थे अपनी पत्नी और तीनों बच्चों के लिए...

वाह....! क्या बात है पापा क्या चाय बनाई है मज़ा आ गया....मायरा ने चाय का घूट भरते हुए कहा।

हां पापा चाय तो एकदम मस्त है.... किंशू ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी।

मुझे भी बहुत अच्छी लगी....कायरा भी तपाक से बोली....अब सब तारीफ कर रहे थे तो वो कैसे पीछे रहती।

अजी सुनिए....

जी कहिए....

आपने कुछ नही कहा....

मुझे भी कहने की ज़रूरत है....

वैसे तो आपकी आंखे ही सब कह देती हैं लेकिन फिर भी कुछ तो कहिए।

पहली बार थोड़ी ना बनाई है जो तारीफ करूं।

आपके लिए तो में रोज़ बनाने को तैयार हूं...

तो रोका किसने है... बनाइए रोज़...

शायद आप लोग भूल रहे हैं की आपके बच्चे भी यहीं बैठे हैं.... किंशू ने मौका देख के चौका मारा ।

हाय.....! कितना प्यार है आप दोनो में...मायरा भी मुस्कुरारा रही थी।

आप लोगों का रोमांस खतम हो गया हो तो में कुछ कहूं....कायरा कहां चुप रहने वालो में से थी।

बोल ले तू भी बोल ले....शेखर जी का सारा मज़ा किरकिरा हो गया था....
और मेघना जी बस मुस्कुरा के रह गई।

मुझे अपने गिफ्ट्स दिखाने हैं...कायरा ने उकसुकता से कहा और अपने सभी गिफ्ट्स लेने अपने कमरे की ओर बढ़ गई।

पापा हमे भी कुछ कहना है....

बोलो मायरा....

वोह पापा अगले महीने से 3 महीने की ट्रेनिंग करनी है प्रोजेक्ट से रिलेटेड कॉलेज से कुछ कंपनीस की लिस्ट मिली है उनमें से जो ठीक लगे उसमे अप्लाई करना है....

तो इसमें पूछना क्या है जो आपको ठीक लगे वो कीजिए....

पापा कौनसी कंपनी के लिए अप्लाई करूं यही तो समझ नही आ रहा....में आपको लिस्ट देती हूं आप सिलेक्ट कर दीजिए....

ठीक है.....शेखर जी ने शांत भाव से कहा।



विराज बनियान और लोअर में अपने फिट कट्स दिखाता हुआ चला आ रहा था और उसके साथ ही चहेकती हुई फुदकती हुई कोयल भी बढ़ रही थी गार्डन की तरफ जहां सुनंदा जी और महेश जी अपनी चाय का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे वैसे चाय का इंतजार तो सिर्फ महेश जी को था सुनंदा जी तो अपने पोते और पोती की एक झलक देखने ही तो बैठी थी यही तो समय था जब सब लोग एक साथ होते थे कभी सुभा की चाय के वक्त कभी नाश्ते के वक्त वरना तो सब अपने अपने काम के लिए निकल जाते थे तो सीधा रात में ही घर आते थे। कोयल की जब से स्कूलिंग खतम हुई है तब से ही सारा दिन फ्रेंड्स के घर या बाहर घूमने में ही समय बिता ती है और विराज का तो आप लोगों को पता ही है अपने डैड का बिजनेस ऐसे संभाला की खुद के खाने पीने का होश ही नहीं रहता था उसका दिन शुरू होता था सुभा जिम में पसीना बहा के और खतम होता था रात में खाने खाते खाते अपनी मां की मीठी डांट सुनने में। विराज जितना ही शांत और सुलझा हुआ था कोयल उतनी ही चंचल।
सुनंदा जी ने जैसे ही दोनो को देखा वोह मुस्कुराने लगी और बोली आ गया मेरा लल्ला और चिड़िया। दोनो ने सबको गुडमॉर्निंग किया और पास में रखी हुई कुर्सी पर बैठ गए।

क्या दादी आप मुझे चिड़िया क्यों बुलाती हैं....मेरा नाम कोयल है....

लेकिन कोयल तो चिड़िया ही होती है....दादी ने भी बड़े प्यार से कहा...

ये सुन के कोयल ने मुंह बना लिया।

रे म्हारा राम जी, ये नाम तेरे बाप ने रखा है जब तू पैदा हुई थी तो बहुत रोती थी तो तेरा ये डैड तुझे चिड़िया बुलाने लगा क्योंकि तू सारा दिन चिड़िया की तरह चूं चूं करती रहती थी फिर मैंने तेरा नाम कोयल रख दिया....बस वोही सब याद करके में तुझे कभी कभी चिड़िया बोल देती हूं।

ये क्या मां ने तो मुझ पर ही निशाना साध दिया....सबके नाम खुद बिगाड़ ती हैं मुझे फसा दिया....अपनी मां की बातों को सुन महेश जी मन ही मन बोल रहे थे और मुस्कुरा रहे थे।

क्या दादी क्यों परेशान कर रही हैं मेरी प्यारी बहन को....

तू तोह मत ही बोल....में तुझसे बात नही कर रही हूं।

तब तक रूपाली जी भी अपनी सेप्शियल चाय लेकर आ चुकी थी और सब को एक एक कर के सर्व कर रही थी।

मॉम आप क्यों बना कर लाईं....हैरी कहां है(घर का कुक)। विराज ने अपनी मॉम को चाय लाता देख हल्के गुस्से से पूछा। अगर आप ऐसे ही इधर उधर घूमती रहेंगी और काम करती रहेंगी तो आपके पैरों का दर्द ठीक कैसे होगा।

अरे चीकू में बिल्कुल ठीक हूं....अब तो दर्द बिल्कुल नही है। तू मेरी चिंता मत कर....वैसे भी तेरे डैड को मेरे हाथों की बनी चाय न मिले तो उनकी सुभा ही नही होती। रूपाली जी ने भी महेश जी को कटघड़े में खड़ा कर दिया था।

अब तो महेश जी परेशान उन्हे समझ ही नही आ रहा था क्या कहे उनकी अपनी मां और पत्नी उनकी ही बैंड बजाने पर तुले थे। एक तो विराज अपनी दादी और मां का लाडला ऊपर से महेश जी को अपनी आखें छोटी कर घूर रहा था। अब तो उन्हे अपनी प्यारी मां के लाडले की डांट सुननी पड़ेगी।

अरे भई....महेश जी जैसे ही बोलने शुरू किए विराज की आवाज़ सुन के रुक गए।

रिलैक्स डैड....मां मज़ाक कर रही है।

इतना कहते ही सब हसने लगे फिर तो क्या था हसी मज़ाक का सिलसिला शुरू।

विराज अपने परिवार के सामने तो बहुत आज्ञाकारी, संस्कारी और समझदार बेटा था जो अपने मां बाप का कहा बिलकुल नहीं टालता था लेकिन अपनी पर्सनल जिंदगी में वो कैसा था ये तो आपको बाद में ही पता चलेगा। लंबे कद काठी, जिम फिट बॉडी, हल्का भूरा रंग और हल्की दाढ़ी ऐसे शरीर का वोह मालिक था। सबसे आकर्षक उसकी आखें एकदम नशीली कोई भी गौर से उसकी आखों में देखे तो डूब ही जाए।

महेश जी बहुत देर से कुछ सोच रहे थे उनके मन में बहुत कुछ चल रहा था।

उनको सोच में डूबा हुआ देख के सुनंदा जी ने उनके कंधे पे हाथ रख दिया। अपनी तंद्रा से टूट के उन्होंने जैसे इधर उधर देखा तो पाया सब ही उन्हे बहुत शांत होक देख रहे थे।

क्या हुआ...सब मुझे क्यों ऐसे देख रहे हो।

ये तो हमे पूछना चाहिए... सुनंदा जी ने कहा।

आपको कुछ परेशानी है.....रूपाली चिंतित हो उठी थी।

डैड क्या हुआ है.....बताइए। विराज ने शांत भाव से कहा।

तभी कोयल का फोन बज पड़ा और वो एक मिनट में आई कह के दूसरी तरफ चली गई। और कॉल पर बात करने लगी।

महेश जी ने बिना किसी एक्सप्रेशन के शांत भाव से कहा मुझे आप सब से कुछ बात करनी है।





कहानी अभी जारी है.....


क्रमर्श: