उस अंधेरे कमरे में , एक ए•सी• ,एक फूटा हुआ बल्ब और एक बेड..... बेड पर एक आदमी लेटा था। बाहर से दरवाजा खुलने की आवाज आई जैसे की रोज आती थी। हाॅल-वे से कइ लोगों के चलने की आवाज आने लगी। अचानक से कमरे का दरवाजा खुला..... बेड पर लेटे आदमी की आँखें चौंधियाॅने लगीं। "मिस्टर संजय, आपके दोस्त आपको यहाँ से घर ले जाने आए हैं।" डॉक्टर ने कहा।
संजय ने पूछा "क्या मेरी चिकित्सा पूर्ण हो गई है?" "हाँ" डॉक्टर ने कहा।
"ओह! समय का तो पता ही नहीं चला।" संजय ने कहा।
संजय को उसका गहरा दोस्त अक्षय और उसकी पत्नी अनुराधा लेने आए थे। वे तीनों आकर कार में बैठ गए। संजय और अक्षय बातें करने लगे-
अक्षय : मैंने और अनुराधा ने पास के जंगल में पिकनिक करने का प्लान बनाया है। तुम्हारा क्या ख्याल है?
संजय : पिकनिक प्लान करने के लिए तुम्हारा धन्यवाद पर.....
उसके कुछ कहने से पहले ही अनुराधा ने उसकी बात काटते हुए कहा "घूमने-फिरने से स्वास्थ्य बेहतर होता है।जो मनुष्य ....." "अच्छा ठीक है मैं वहाँ जाने के लिए तैयार हूँ" संजय ने कहा।
गाड़ी लगभग एक मील तक सीधे चलती रही। अक्षय ने अनुराधा को नक्शा थमाते हुए कहा " जरा यह देखो आगे किस ओर जाना है ।" "मुझे तो इस मैप में कुछ भी समझ नहीं आ रहा... जरा तुम देखो"अनुराधा ने नक्शा पीछे की सीट पर बैठे संजय को पकड़ा दिया। "इसमें तो यह सड़क है ही नहीं।लगता है कि यह मानचित्र बहुत पुराना है।"
"अरे तुम लोग चिंता न करो मुझे जंगल सामने दिखाई दे रहा है" अक्षय ने कहा।
जंगल कोई बहुत घना तो नहीं था पर फिर भी सूरज की ज्यादातर रौशनी जंगल के अंदर तक नहीं पहुँच रही थी। वे लोग गाड़ी लेकर जंगल के कुछ अंदर तक पहुंच गए। अक्षय जंगल के और अंदर जाना चाहता था परंतु संजय और अनुराधा के कारण गाड़ी जंगल के बाहरी हिस्से में रोकनी पड़ी। उन्होंने गाड़ी से बीस फुट की दूरी पर प्लास्टिक की चादर बिछाई और उसके ऊपर एक साधारण कपड़े की चादर बिछाकर बैठ गए। अनुराधा और अक्षय पिकनिक की सारी व्यवस्था की थी। उन्होंने तो जंगल में कैंपिंग करने का सोच रखा था। संजय को भी उन्होंने आखिर में इस बात के लिए मना ही लिया।
"तुम ज़रा कैंप लगाओ, तबतक मैं और संजय आग के लिए लकड़ियाँ ढूंढने जा रहें हैं" अक्षय ने अनुराधा से कहा और वह और संजय लकड़ी ढूढने चले गए। जब वे वापस आए तबतक लगभग आठ बज गए थे। टेंट तो तैयार था पर अनुराधा गायब थी। उन्होंने उसे हर जगह ढूंढा, पर वह आस-पास कहीं नहीं थी। उन्होंने पुलिस को फोन करने का फैसला किया। संजय ने अपनी जेब टटोली पर उसके पास कोई फोन नहीं था। अक्षय के पास फोन तो था पर उसमें नेटवर्क नहीं था। उसने अपने कार की चाबी संजय को दी और खुद पेड़ पर चढ़ने लगा।
"अक्षय!!!..." पीछे से अनुराधा की आवाज आई। अक्षय यह सुन कर चौक गया,और उसकी पकड़ पेड़ से छूट गई। जब तक अनुराधा उन लोगों के पास आई,तब तक अक्षय पेड़ से गिर चुका था। "अरे!तुम ठीक तो हो?" संजय ने पूछा। अक्षय कुछ बोलने में असर्मथ था। संजय और अनुराधा की मदद से वह कैंप के पास पहुँचा। सूखी पत्तियों के ढेर पर गिरने के कारण, उसे ज्यादा चोट नहीं आई। संजय ने कैंप के सामने आग जलाई, और वह तीनों आग के पास बैठ गए।"तुम कहाँ गायब हो गई थी? " संजय ने अनुराधा ने पूछा " जब तुम लोग समय से नहीं आए तो मुझे...." "तुम लोग यहीं बैठो, मैं पास ही में पेसाब करने जा रहा हूँ।" अक्षय ने कहा।
बहुत देर हो गई पर अक्षय नहीं आया।संजय डर गया और अनुराधा को ठहरने का संकेत देकर गाड़ी की ओर बढ़ गया। उसने वहाँ अक्षय को नहीं पाया। जब पीछे मुड़ कर देखा, तो अनुराधा भी गायब थी। वह बहुत डर गया। वह जल्दी से आग के पास गया, और एक जलती हुई लकडी सुरक्षा के लिए उठा ली। और कार की तरफ चाबी लेकर बढ़ने लगा। पर उसे अपने सर पर कुछ टपकने का आभास हुआ। ऊपर देखा तो..... उसके हाथ से चाबी और मशाल गिर गई।एक पेड़ की साखा पर उसके दोनों दोस्त खून से लतपथ पडे थे और उनके सर गायब थे। पीछे से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा।जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक आठ फुट का लंबा चौड़ा राक्षस जैसा जीव हवा में तैरता दिखाई दिया। संजय को अब उसकी मौत निश्चित लग रही थी।
"तुमने मेरे दोस्तों की हत्या क्यों की?"
"यह तो सच है कि मैंने तुम्हारे को मारा पर तुम तो यहाँ अकेले आए थे।"
"मतलब?"
"जरा आस-पास देखो।तुम्हारे हाथ से तो एक मशाल गिरी थी।कहाँ है वो? कहाँ है तुम्हारा कैंप?कहाँ है तुम्हारे दोस्तों की लाशें?"
संजय ने आस-पास नजर दौड़ाई उसे केवल कार और वह राक्षस दिखा।
"मैं कुछ समझ नहीं पाया।"
"तुम्हें पता है तुम कौन से अस्पताल में भर्ती थे?"
"नहीं।"
"तुम एक मेंटल हाॅस्पिटल में भर्ती थे, तुम्हें मल्टीपल पर्लालिटी डिसऑर्डर है। और......मैं तुम हूँ ।जानना चाहोगे कि अक्षय और अनुराधा असल में कौन हैं?"
"हाँ......"
"कभी वे सचमुच में तुम्हारे दोस्त थे।क्या तुम्हें याद नहीं, तुम तीनों मिलकर ऐसे एंटीवेनम पर काम कर रहे जो दिमाग में ऐसे म्यूटेसन करता था कि दिमाग पर ज्यादातर न्यूरोटॅक्सिन ( मस्तिष्क पर असर करने वाले विष ) का असर नहीं होता। उस प्रोजेक्ट में तुम्हारी मदद सर्प विष पर रीसर्च के लिए पूरी दुनिया में मशहूर ड़ाँक्टर अक्षय और उसकी पत्नी अनुराधा कर रहे थे। .....अब तुम्हें कुछ यद आया ?"
"नहीं..." संजय सोच में पड़ गया
"कुछ धुँधला-सा भी याद नहीं आया?"
"मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.....क्या तुम मुझे मारना चाहते हो...?"
" हा!हा!ह!ह!हा!ह......." वह जीव हँसने लगा।
संजय निःशब्द वहीं सहमा हुआ खड़ा रहा।
उस राक्षस ने फिर से उस कथा को सुनाना आरंभ किया "अक्षय और अनुराधा ने सोचा की इस एंटीवेनम से बहुत पैसे मिलनें वाले थे। पर तुम्हारे कारण इन पैसों के तीन हिस्से करने पडते। सह सोचकर इनकी नीयत गिर गई। उन्होंने तुम्हें मारने के लिए तुम्हें कैम्पिंग करने के बहाने तुम्हें यहाँ लाया और तुम्हारे खाना में जहर मिलाकर तुम्हें मारनें की कोशिश की। पर उन्हें यह नहीं पता था की तुमने उस दवाई की टेस्टिंग तुमनें खुद पर भी कर रखी थी।तुम्हें कुछ शक हूआ और तुम्हारा शक यकीन में तब बदल गया जब तुमने जहर की बोतल देखी। तुमने मरने की एक्टिंग की। उन्हे यह शंका हुई की कहीं तुम बच न जाओ। इसलिए अक्षय एक चाकू लेकर तुम्हारी तरफ बढा। तुमनें सही समय पर उससे चाकू लेकर उसे ही घोप दिया। यह देखकर अनुराधा भागने लगी पर तुमनें उसे भी पकड़कर उसका सिर चट्टान से पीस दिया। और तुमने इनकी लाश यहाँ पर जला दी। और तुम भाग गए , या फिर कहों की हम भाग गए। तुम्हें ऐसा कुछ भी नहीं याद क्योंकि तुमने असल में अपने दोस्तों को नहीं मारा है तुम ऐसा कभी नहीं कर सकते थे इस कारण तुमने मुझे जन्म दिया मैं तुमसे ज्यादा शक्तिशाली हूं जो तुम नहीं कर सकोगे वह मैं करूंगा। मैं कोई जीव जंतु नहीं तुम्हारे मस्तिष्क की ऐसी कल्पना हूं जिसके पास तुम्हारे शरीर का उतना ही वश है जितना तुम्हारे पास।
इतना कहकर संजय की आँखों के सामने से वह जीव ऐसे गायब हो गया जैसे सूर्य के उदय होने पर कोहरा गायब हो जाता है। सूरज का सिर में बहुत तीव्र दर्द होने लगा। उसकी साँसें रुक गईं और पैर ढीले होने लगे। वह लड़खड़ा कर पास की ही चट्टान पर गिर पड़ा।
समाप्त ?
@@कौस्तुभ श्रीवास्तव 'उज्जवल'