Buniyaad - 1 in Hindi Adventure Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | बुनियाद (पार्ट 1)

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बुनियाद (पार्ट 1)

बीसवीं सदी की शुरुआत का एक दिन।एक समुद्री जहाज इंग्लैंड से अमेरिका के लिए रवाना हुआ।इस जहाज में सौ लोग सवार थे।जिनमें डेविड और उसकी पत्नी मारिया भी थी।जहाज रास्ते मे पड़ने वाले बंदरगाहों पर रुकता हुआ अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ रहा था।एक ढलती शाम को यात्री डेक पर बैठे ठंडी ठंडी समुद्री लहरों का आनद ले रहे थे।जहाज पर रोबर्ट भी था।उसे गिटार बजाने का शौक था।वह रोज शाम को गिटार बजाता।मधुर संगीत सुनकर लोग मस्त हो उठते।
आज रॉबर्ट के हाथ मे गिटार नही था।वह जब शाम को डेक पर आता उसके हाथ मे गिटार होता।आज उसे खाली। हाथ देखकर सब चोंक थे।उसे खाली हाथ देखकर डेविड बोला,"आज ब्रदर का मूड उखड़ा लग रहा है।क्या बात है?"
रोबर्ट ने डेविड की बात का कोई जवाब नही दिया।उसे देखकर मारिया बोली,"लगता है आज रोबर्ट को किसी की याद आ रही है।"
"यह तुम कैसे कह सकती हो?"मारिया की बात सुनकर डेविड ने पूछा। था।
"मैने आज रोबर्ट को बाथरूम में दर्द भरा गीत गुन गुनाते हुए सुना था,"मारिया बोली,"रोबर्ट का चेहरा भी बता रहा है आज कोई इसे याद आ रहा है।"
"रोबर्ट तुम आज वो ही गीत सुना दो जो बाथरूम में गुनगुना रहे थे।"
डेविड के साथ अन्य यात्रियों ने भी रोबर्ट से गीत सुनाने का अनुरोध किया था।और अपने साथी यात्रियों के अनुरोध पर उसे गीत सुनाना पड़ा था।और इस तरह हंसते गाते खिलखिलाते लोग अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ रहे थे।
शाम ढल रही थी।मौसम बेहद सुहाना था।अचानक मौसम में परिवर्तन आया।समुद्र में उठे भयंकर तूफान ने जहाज को आ घेरा।तूफान की गति दो सौ किलो मीटर से कम नही रही होगी।तूफानी तेज हवा से जहाज हिचकोले खाने लगा।चालक दल ने जहाज को संभालने का भरपूर प्रयास किया था लेकिन व्यर्थ
जहाज तूफान के थपेड़े झेल नही पाया और पलट गया।जहाज में सवार लोग समुद्र में जा गिरे।जहाज के पलटते ही लोगो की चीख पुकार के साथ एक दूसरे का नाम लेकर पुकारने की आवाजें सुनाई देने लगी।
"मारिया तुम कहां हो?"डेविड चिल्ला रहा था।और मारिया डेविड को पुकार रही थी।लेकिन अंधेरे की वजह से दोनों एक दूसरे को देख नही पा रहे थे।लोगो के चीखने चिल्लाने की आवाजें धीरे धीरे कम होती गयी और फिर थम गयी।तूफान के साथ ही बरसात होने लगी थी।
रात ज्यो ज्यो गुज़र रही थी।तूफान की गति धीमी पड़ रही थी।तूफान मारिया को बहाकर एक निर्जन टापू पर ले गया था।उस टापू पर मारिया एक चट्टान से टकराकर बेहोश हो गयी।
रात गुज़रती रही।सवेरा हुआ।आकाश में सूरज निकल आया.सूरज की किरणें समुद्र के किनारे पड़ी मारिया के चेहरे पर पड़ी।सूरज की तपिस ने मारिया की बेहोसी तोड़ी थी।वह हड़बड़ाकर उठी और उसने आश्चर्य से चारो तरफ देखा था।वह खान आ गयी।उसने खड़े होकर चारो तरफ नज़र डाली।पर उसे कोई नज़र नही आया।
वह कहाँ आ गयी।यह जानने के लिए वह आगे बढ़ी।वह ज्यों ज्यों आगे बढ़ती गयी।एक दहसत,सिहरन,डर।चारो तरफ जंगल और तरह तरह के जंगली जानवरों के अलावा कुछ भी नज़र नही आ रहा था।न कोई घर,न कोई बस्ती,न कोई मानव।कुछ देर बाद वह जहां से चली थी।उसी जगह वापस आ गयी।
मारिया समझ गयी।रात के तूफान ने उसे मानव विहीन निर्जीव टापू पर ला पटका था।