अध्याय 11
पुलिस इंस्पेक्टर जोसेफ को देखकर सुधाकर से बोले "सर यह आपके... दोस्त.. है?"
"हां क्यों ?"
"कुछ नहीं.. जाइए। इन्हें कहीं देखा हो ऐसा लगा।"
कार को सुधाकर ने आगे बढ़ाया। थोड़ी देर चलने के बाद धीरे से कार के पीछे कांच के द्वारा मुड़कर देखा - वह इंस्पेक्टर कार को घूर कर देखता हुआ खड़ा था।
"सुधाकर"
"हां..."
"इंस्पेक्टर को मुझ पर संदेह हो गया लगता है।"
"कैसे कह रहे हो ?"
"कार को ही बार-बार मुड़-मुड़ कर देख रहे हैं ?"
"इसलिए तुम्हारे ऊपर संदेह है कैसे कह सकते हो ?"
"उनकी निगाहें ठीक नहीं।"
"यह देखो जोसेफ ! अपनी मद्रास पुलिस तो क्या स्कॉटलैंड पुलिस आए तो भी सही ..... तुम्हें बचाने के लिए मैं और मेरे अप्पा हैं... तुम हिम्मत से रहो... कोई भी खाकी यूनिफार्म हमारे आज्ञा के बिना कुछ नहीं कर सकती।"
कार इचमपाक्म की ओर तेजी से दौड़ रही थी। शहर की सीमा थोड़ी-थोड़ी खत्म हो रही थी - चीड़ के पेड़ दिखने शुरू हो गए।
"सुधाकर।"
"हां बोलो।"
"मुझे कितने दिनों इचमपाक्म के घर में रहना होगा ?"
"पुलिस जब तुम्हें ढूंढना बंद कर दें तब तक।"
"उस घर में मैं अकेला कैसे रह पाऊंगा ?"
"क्यों... साथ के लिए कोई छोटी नायिका चाहिए क्या ? बोलो अपने कुमार से बोलकर पहुंचा देता हूं।"
"सुधाकर ! मैं सीरियसली बात कर रहा हूं। तुम मुझसे खेल मत करो; पुलिस के हाथों किसी भी क्षण मैं फंस सकता हूं ऐसी मुझे बहुत घबराहट हो रही है।"
सुधाकर हंसा।
"फिर से डरना शुरू कर दिया ? साहस से रहो।" कहते हुए मेन रोड से अलग होकर - मिट्टी के पगडंडी में सुधाकर ने कार को घुमाया।
चारों तरफ घने चीड़ के पेड़ थे। पास ही समुद्र में लहरें नीले रंग में डूबे साड़ी जैसे हिल रही थी ।
सुधाकर हंसा।
"ऐसा सुरक्षित स्थान तुम्हें और कहीं नहीं मिलेगा जोसेफ।"
"मैं खाने के लिए क्या करूंगा सुधाकर ?"
"फ्रिज में अंडा, रोटी, फल सब कुछ रखा है। गेस्ट हाउस में किराना का पूरा सामान रखा हुआ है। तुम्हें खुद बना कर खाना पड़ेगा। क्यों... तुम्हें तो खाना बनाने की आदत है ?"
"फिर भी अकेले रहना बहुत मुश्किल है।"
कार मिट्टी के सड़क पर कई जगह घूमती हुई आखिर में एक छोटे से पुताई की हुई खपरेल नुमा घर के आखिर में जाकर खड़ी हुई।
दोनों उतरे।
सुधाकर घर को खोल के अंदर गया -
जोसेफ उसके पीछे गया।
"जोसेफ !"
“हां...."
"और एक महीने के लिए यह तुम्हारे लिए महल जैसे हैं। खाना खाना और सोना यही तुम्हारा काम है। मैं हफ्ते में एक दो बार आकर तुम्हें देखूंगा।"
अंदर जाकर सोफे पर बैठे।
"क्या... कोई ड्रिंक लें।
"हां..."
सुधाकर जाकर फ्रिज में से स्कॉट की बोतल लेकर आया। बोतल के ढक्कन को खोल कर गिलास में डाला।
"मुझे नहीं चाहिए सुधाकर।"
"चुपचाप पी लो।"
सुधाकर ने ‘चीयर्स’ बोलकर गिलास को आगे किया । जोसेफ बिना मन के ले लिया। गिलास में जो सुनहरा द्रव्य था उसे थोड़ा-थोड़ा पेट के अंदर उतारा।
कुछ समय बाद दोनों को नशा चढ़ गया -
सुधाकर उठा।
"जोसेफ, मैं फिर आऊं ?"
"क्यों उठ गया ? बैंठ चले जाना।"
"बहुत देर हो गई मैं चलता हूं।"
"फिर कब आओगे ?"
"दो दिन बाद आऊंगा। तुम गेस्ट हाउस के अंदर से बाहर मत जाना अंदर ही रहो।"
"हां..."
सुधाकर बाहर के दरवाजे के पास जाते समय लड़खड़ाने लगा। दरवाजे के पास जाकर खड़ा होकर वापस सुधाकर ने उसे देखा।
"क्या देख रहा है रे ?"
"मेरे अप्पा ने एक काम बताया था। उसको भूल कर मैं वैसे ही वापस जा रहा हूं देखा ?"
जोसेफ आश्चर्य से उसकी तरफ देखा।
"तुम्हारे अप्पा ने क्या काम बताया ?”
"यमदेव का काम।"
"यमदेव का काम ?"
"हां प्राण लेने का काम। तुम्हारे प्राण को लेने का काम।" सुधाकर हंसते हुए पेंट के जेब में से रिवाल्वर को निकाला।
जोसेफ नशे में भी पसीने से तरबतर हो गया और उठा।
"सु... सु.... सुधाकर....."
"घोड़ा लंगड़ा हो जाए, कुत्ता पागल हो जाए तो उन पर दया न करके उन्हें शूट कर देना चाहिए। ऐसे ही तुम पर पुलिस को शक हो गया। अब तुम्हें इचमपाक्म गेस्ट हाउस में रखकर शूट करना पड़ेगा यह अप्पा का हुकुम है।"
"सु.... सुधाकर।"
"सॉरी दोस्त ! अप्पा के हुकुम को मैं टाल नहीं सकता। तुम्हें शूट करके यहीं पर तुम्हें दफनाना मेरा कर्तव्य है।"
"सुधाकर।"
"बोलो।"
"मैं, तुम्हें और तुम्हारी अप्पा के बारे में कभी नहीं बताऊंगा।"
"पुलिस के मार के डर से कह दोगे।"
"मैं कहीं.. किसी को पता ना चले ऐसी जगह चला जाऊंगा।"
"कहीं भी जाओ पुलिस तुम्हें नहीं छोड़ेगी। मद्रास के सीमा को छोड़ने के पहले ही तुझे पकड़ लेगी। पुलिस के डर से तुम क्यों गांव-गांव घूमो ? चुपचाप इस समुद्र के किनारे ही मर जाओ। एक अच्छी जगह देखकर तुझे दफना दूंगा।"
"सुधाकर ! धोखेबाज!"
जोसेफ ने आवेश के साथ झपटने की कोशिश की -
सुधाकर के हाथ में जो रिवाल्वर था उसे दिखा कर उसे वही खड़ा कर दिया। "एक कदम आगे बढ़ाया तो.... यह रिवाल्वर में छ: की छ: गोलियां तुम्हारे शरीर में चली जाएगी।"
जोसेफ बिना हिले खड़ा रहा।
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