अध्याय 2
माणिकराज के मन में डर से घबराहट होने लगी। उनके माथे पर पसीने की बूंदे छलक आई। कंधे पर पड़े हुए तौलिए से पसीने को जल्दी-जल्दी पोंछा और 'परमानंद' को आवाज लगाई।
"सर..."
"एक गिलास ठंडा बरफ का पानी लेकर आओ..."
परमानंद ने वाटर कूलर से एक गिलास पानी भरकर लाकर दिया। खाली गिलास को वापस देकर फिर पसीना पोछने लगे।
परमानंद ने पूछा "सर आप क्यों परेशान लग रहे हो।"
"छी... इस पत्र को पढ़ कर देख।" पढ़ कर देख कर परमानंद को आश्चर्य हुआ।
"क्या है सर... ऐसा लिखा है ? पुलिस को फोन करके बता दूं?"
"नहीं.... हम इसके बारे में पुलिस में जाएं तो इस पत्र को भी उन्हें देना पड़ेगा। लेटर यदि न्यूज पेपर में पब्लिश हो जाएं तो गंदा लगेगा। फिर प्रधान जी मुझे मंत्री पद देने के लिए भी सोचेंगे.... इस विषय को ऐसे ही छोड़ देते हैं।"
"कल आपके ऊपर कोई विपत्ति आए तो ?"
"मंत्री बनाते ही घर के चारों ओर पुलिस वाले आ जाएंगे। जहां भी जाएं पुलिस साथ में जाएगी। कोई भी डर मुझे छू नहीं सकेगा ?"
"फिर इस पत्र को क्या करें ?"
"फाड़ कर फेंक दो भाई।"
माणिकराज के बोलते समय ही घर के बाहर से - अनुयायिओं का नारा सुनाई दे रहा था ।
"प्रधान माणिकराज"
"जिंदाबाद !"
"जीतने वाला !"
"जिंदाबाद !"
माणिकराज बाहर आए। घर के आगे और बाहर अनुयायियों की भीड़ बढी जा रही थी। अनुयायियों का नारा जबरदस्त लग रहा था। बहुत लोगों के हाथों में मालाएं थीं।
"हमारे प्रधान माणिकराज।" "जिंदाबाद"
कोई कह रहा था।"प्रधान जी! अब तो न्यूज़ में भी आ गया। आप साठ हजार वोटों से जीत गए। आपके विरोध में जो खड़े थे उनमें सात में से छ: जनों की डिपॉजिट भी चली गई।
सब लोगों ने ताली बजाई।
बहुत लोग भीड़ में से फूल माला को लेकर दौड़ कर आए।
"अरे ! तुम लोग लाइन से आकर फूल माला पहनाओ ! प्रधान जी को धक्का मत दो।" जो बोल रहा था उसको धक्का देकर सब लोगों ने फूल-मालाओं को पहनाया।
पत्रकार लोग चारों तरफ से उन्हें घेरकर प्रश्न पूछ रहे थे।
"आपकी पार्टी ने जीत हासिल की उसका क्या कारण है ?"
"जनता ही है..."
"इसी जनता ने पिछली बार आपको हराया था ना।"
"उस समय वे जागृत नहीं थे।"
"अब वे जागृत अवस्था में आ गए कह रहे हो क्या ?"
"बिल्कुल...."
"आप को मंत्री पद मिलेगा क्या ?"
"मैं पद के लिए चुनाव में नहीं खड़ा हुआ। अपने जनता की सेवा के लिए चुनाव में खड़ा हुआ हूँ ।"
"मंत्री पद मिले तो आप ले लोगे ?"
"यदि जनता चाहे तो जरूर स्वीकार कर लूंगा।"
"चुनाव के समय आपने जो-जो वादें किये थे उसे अब पूरा करोगे ?"
"जरूर.... इसीलिए तो हम अपने बात के पक्के हैं ऐसे अपने जनता को बताएंगे।"
"विरोधी पार्टी पर भ्रष्टाचार का केस चलाओगे क्या ?"
"बदला लेने की प्रवृत्ति हम में नहीं है।"
"आपको कौन सा इलाका देंगे ?"
"प्रतीक्षा करके देखो।"
"आपके मंत्रिमंडल में औरतों के लिए जगह है क्या ?"
"प्रतीक्षा करिए।"
"चेन्नई कब जा रहे हो ?"
"आज रात को ही रवाना हो रहा हूं। कल प्रधान जी से मिलकर उन्हें माला पहनाकर उनका आशीर्वाद लूंगा।"
सब अनुयायियों ने तालियां बजाई।
दूसरे दिन सुबह 6:00 बजे।
चेन्नई सेंट्रल स्टेशन के पांचवे प्लेटफार्म पर सब जगह पार्टी का झंडा लहरा रहा था। नीलगिरी एक्सप्रेस के अंदर जाते ही - लोगों की आवाज से एस्बेस्टस शीट कांपने लगी।
"अन्ना माणिकराज"
"जिंदाबाद।"
"कुक्कू मंडलम माणिकराज।"
"जिंदाबाद...."
फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट से - माणिकराज एक रेडीमेड हंसी के साथ, हाथ जोड़कर उतरे। सुबह के समय - सफेद कुर्ता - सफेद धोती साफ चमक रही थी। कीमती सेंट की खुशबू चारों ओर महक रही थी।
अपने पार्टी के झंडे के साथ अनुयायियों की भीड़ उनको चारों तरफ से घेर लिया। बाजे बज रहे थे।
"अन्ना... के लिए रास्ता छोड़ो..."
"अरे हटो... बाद में, अभी सर को।"
"माला को बाद में पहनना।"
"मैं सेंगलपेट की तरफ का कार्यकर्ता हूं।"
"तू दिल्ली का ही आदमी हो तो क्या है सर को यहां से।"
"क्या मुझे हटने को कह रहे हो ? मैं अपनी पार्टी का पहला मेंबर हूं....." वह उनके शर्ट को पकड़ा एक छोटे हाथ ने जल्दी से उसको हटाया।
"ओ भैया छोड़...."
भाई छोड़ने वाला नहीं था। झपट-झपट कर आने पर वे सब माणिकराज के बचाव में झुंड बनाकर रहे।
वे दस कदम चले होंगे।
अचानक -
"हक ऐसा एक आवाज उनके तरफ से आई। वे एक तरफ गिर गए।
भीड़ जल्दी-जल्दी एक तरफ हो गई।
माणिकराज एक तरफ प्लेटफार्म में गिर पड़े। कुर्ते और धोती खून से सन गया -
लोगों ने डर के मारे चिल्लाया।
एक चाकू उनके पेट के अंदर घुसा था।