Raat - Ek Rahashya - 7 in Hindi Horror Stories by Sanjay Kamble books and stories PDF | रात - एक रहस्य - 7

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रात - एक रहस्य - 7

धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए कमरे के भीतर गया। पूरे कमरे में रोशनी डालते हुए सब कुछ ध्यान से देख रहा था।

कुछ सामान जो काफी पुराना और जर्जर बन चुका था। मैं कमरे की निगरानी कर ही रहा था कि तभी ऐसा लगा जैसे कोई सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आ रहा है। मैं चौकन्ना हो गया और दरवाजे की तरफ देखने लगा। तभी मेरे पीछे खुली खिड़की से एक हवा का झोंका आया और मेरे सामने वाला वह खुला दरवाजा उस हवा की वजह से धीरे-धीरे बंद होने लगा। साथ ही सीढ़ियों से आने वाली आवाजें भी काफी स्पष्ट हो रही थी । मतलब कोई ऊपर आ रहा था। ऐसी अजीब घटनाओं का डर क्या होता है यह मैं जिंदगी में पहली बार महसूस कर रहा था। दरवाजा पूरी तरह से बंद होने से पहले मैंने अपने कदमों की रफ्तार बढ़ाई और दरवाजे को पकड़ लिया। मैंने दरवाजा खोला और तभी एक अजीब सा काला साया मेरे उपर झपटा। ऐसा लग रहा था किसी ने मेरा पूरा शरीर जकड़ रखा है। मेरा मोबाइल भी हाथ से छूट कर कहीं गिर गया , उसकी टॉर्च ऑन जरूर थी पर वो जमीन की ओर होने के कारण पूरे कमरे में काला अंधेरा फैला था। डर के कारण दिल इस तरह से धड़क रहा था मानो छाती फाड़कर बाहर निकल आयेगा। कुछ देर ऐसे ही जुझता रहा पर डर के कारण मैं वही बेहोश हो गया।

होश आया तो मैं जमीन पर पड़ा था। मैं कितनी देर बेहोश था, या कितनी देर से वहां पड़ा था मुझे कोई कल्पना नहीं थी। होश आया जरूर था पर दिमाग पर अजीब सी धुंध चढ़ी थी। जैसे कोई बेहद नशीली चीज हमारे दिमाग से सोचने समझने की शक्ति मिटा देती है कुछ ऐसा ही हाल हुआ था। गर्दन घुमाकर देखा तो मेरा वह दोस्त मेरे पास ही बैठा था। मेरी तो जान में जान आई। मैं काफी खुश था क्योंकि उस घर के मौत के चंगुल से मैं जिंदा वापस आ गया था। मेरे दोस्त ने मेरी तरफ देखा और कहा। मांत्रीक बाबा सब ठीक कर देंगे। मैंने नजरें घुमाकर देखा तो सामने वही मंत्रिक था जिसने कुछ दिन पहले मेरे दोस्त की पत्नी का इलाज किया था। मेरा जिस्म पुरी तरह से जकड़ा हुआ लग रहा था। सामने जलती अग्नी में कुछ आहुतियां डालकर मांत्रिक बाबा ने उपर छत की ओर देखा। टुटे छत से पुनम के चांद की रोशनी मेरे उपर ही पड़ रही थी। उस चांद को देखते हुए मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। तभी मांत्रिक बाबा की आवाज कानों पर पड़ी।
"चलो अब तुम्हें उसका शरीर छोड़ना होगा, तुम्हारे लिए अब एक और शरिर तैयार कीया गया है। तुम उसके जिस्म में प्रवेश करके अपने शौतानी कामों को अंजाम दे सकते हो। पर इस बार भी तुम्हें पैरों के अंगूठे से ही जिस्म में प्रवेश करना होगा।"

मेरे कानों पर पड़ने वाली वह आवाज साफ साफ सुनाई दे रही थी। तभी घर का दरवाजा खुलने की आवाज आई। मैंने गर्दन घुमाकर दरवाजे की तरफ देखा पर काले अंधेरे में एक औरत की आकृति नजर आ रही थी। काली साड़ी पहनी उस औरत का चेहरा बालों से पुरी तरह ढका हुआ था। उस औरत की तरफ देखकर मांत्रिक बाबा के चेहरे पर अजीब सी मुस्कान आई। अपने आसन की दूसरी तरफ रखी एक धार धर कुल्हाड़ी उठाकर उसने मुस्कुराते हुए मेरे दोस्त के हाथ में देकर कहा।
" अगले कुछ मिनटों के भीतर तुम्हें इस काम को अंजाम देना होगा।"
मेरे कानों पर पड़ने वाली वह आवाज धीरे धीरे हल्की होने लगी। आंखों पर अजीब सी धुन छाई हुई थी।
उसके बाद सिर्फ कुल्हाड़ी चलने की आवाज आ रही थी। किसी के जिस्म के टुकड़े किए जा रहे थे लेकिन मैं शांति से पड़ था । दिमाग सुन्न पड़ गया था। पर मैं खुश हूं के मैं जिंदा हूं।
मेरे दोस्त ने मुझे उठाया और यहां लेकर आया.
" संजू। वो बुरी आत्मा अब जा चूकी है। लेकिन फिलहाल तुम यहां से बाहर नहीं निकल सकते। क्योंकि चंद्र ग्रहण की दुषित छाया में वो आत्मा दुबारा तुम्हारे शरीर को अपना घर बना लेगी। अब तुम्हें सुरज निकलने का इंतजार करना होगा। सूरज निकलते ही तुम्हारे शरीर को सारी बुरी शक्तियां छोड़ देंगी। तब तक यहां आराम करो। लेकिन इस बात का ख्याल रखना की तुम्हें अपने जिस्म की जरा भी हलचल नहीं करनी है। वरना वो शैतान तुम्हारे जिस्म की मौजूदगी भांप लेगा। शैतान काफी डरावना है। रात के अंधेरे में उसे देखकर कितना भी हिम्मतवाला इंसान होगा फिर भी उसकी हिम्मत टूट जाएगी। वह चीज ही ऐसी है । क्योंकि उसका शरीर आधा टूट चुका है। पेट के नीचे का हिस्सा है ही नहीं । इसलिए वो घसीटते हुए अपने हाथों के बल पर चलता है। फटे पेट से निकली हुई अंतड़िया उसके पीछे काफी दूर तक जमीन रेंगती रहती है। सड़न की वजह से पूरी तरह से काले पड़े जिस्म से निकलने वाली गंदी बदबू दिमाग को सुन्न कर देती है। वो जमीन पर रेंगते हुए आगे बढ़ता है।"

तब से लेकर अब तक मैं इस जगह चुपचाप लेटा हूं। लेकिन हिल नहीं सकता। मेरी आंखें खुली है। जो सामने वाली दीवार के साथ हर कोने पर नजर रखे हुए हैं। अब मैं सुबह का इंतजार कर रहा हूं। सुबह होने का। पर क्या सुबह होगी ? इस घर के बारे में सब कुछ जान लिया पर कुछ सवाल के जवाब नहीं मिल रहे, दस साल पहले जिस औरत ने या उसके प्रेमी ने उस आदमी के कुल्हड़ी से दो टुकड़े किए वो औरत अब कहां है? और उसे इस काम में मदत करने वाला शख्स कौन था ? और चंद्र ग्रहण से पहले उस औरत को इस घर में कैद आत्मा परेशान करने लगती है तो हर बार वो बलि का इंतजाम कैसे करते होंगे?
आज चंद्र ग्रहण था तो आज किसकी बलि दी जायेंगी ?
जाने दो, इन सब से अब घुटन हो रही है। मुझे इस कमरे से निकलना होगा। लगता है मेरे सामने वाला वह दरवाजा खुल रहा है। मतलब दुसरी तरफ कोई है। मतलब वह अब आ रहा है। भीतर । मुझे खत्म करने। अब क्या करूं ? अब जरा भी हलचल नहीं। एकदम चुपचाप रहता हूं। लाश की तरह। सिर्फ अपनी आंखें खुली रखता हूं ताकि नजर रख सकूं । उसपर। उस शैतान पर। दरवाजा भी धीरे धीरे खुल रहा है। उस दरवाजे से निकलने वाली कर्रर्र करर्र ऐसी आवाज चारों ओर फैले खौफनाक सन्नाटे की वजह से किसी नुकीले औजार की तरह कान के भीतर घुसते हुए मेरे भेजे में उतर गई है। सच कहूं तो अब मेरे भीतर बर्दाश्त करने की ताकत खत्म हो चुकी है। डर के कारण मैंने अपनी आंखें बंद कर ली है। हर इंसान की डर बर्दाश्त करने की एक सीमा होती है । जो मेरी खत्म हो चुकी है। अब उस शैतान को देखने कि मुझ में जरा भी हिम्मत नहीं बची। तो उसका सामना करना दूर की बात है। उस शैतान को जो करना है करें, मेरे टुकड़े करें, चिथड़े करें, मुझे खा जाए अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकता।
पर सब कुछ शांत हो चुका है। हां , शायद दरवाजा पूरी तरह खुल गया है इसलिए उसकी आवाज नहीं आ रही। भले ही मेरी आंखें बंद है से हर छोटी-बड़ी आवाज सुन सकता हूं, किसी भी तरह की हलचल महसूस कर सकता हूं। इस वक्त ना मुझे कोई आवाज सुनाई दे रही है ना किसी की हलचल महसूस हो रही है। क्या वह दरवाजे के बाहर खड़ा है ? क्योंकि मुझे उसके अंदर आने की आहट महसूस नहीं हुई। क्या करूं ? आंखें खोल कर देखुं ? यही ठीक रहेगा। मैं धीरे धीरे अपनी आंखें खोल रहा हूं। दरवाजा खुला हुआ है पर वो कमरे का दरवाजा नहीं बल्कि अलमारी का दरवाजा है। अलमारी के भीतर एक तेज धार वाली कुल्हाड़ी रखी है जिसपर लगे लाल खून की बुंदे धीरे धीरे नीचे आ रही हैं। मतलब फिर से किसी की बली चढ़ाई गयी। और एक बात । अलमारी में एक तस्वीर है जिसमें एक अंजान आदमी नजर आ रहा है। शायद वो इसी घर का मालिक होगा जिसका दस साल पहले खून हुआ था। और उसकी बगल में ये औरत ? ये तो मेरे दोस्त की पत्नी हैं। मेरा दिमाग चकरा रहा है। ये सब क्या है ?
नीचे उतर कर ठीक से देखता हूं। शरीर पर लिपटी कंबल हटाकर नीचे उतरता हूं।
ये क्या ?
मेरे पेट के नीचे का हिस्सा कुल्हाड़ी से काट कर अलग किया गया है, बिल्कुल इस घर के उस मालिक की तरह...

समाप्त