[नोट – यह एक हास्य कहानी है, इसका उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। (स्वयं लेखक कई प्रतियोगी परीक्षाओं में असफल हो चुके हैं।)]
आज संवाददाता विकास, झेलम कस्बे की बड़ी खबर को कवर करने आए थे।
रिपोर्टर विकास – ” आज झेलम कस्बे के सेलिब्रिटी, श्री डफली कश्यप जी ने 34 साल की उम्र में अपने साढ़े 13 साल के प्रतियोगी परीक्षा के करियर से सन्यास की घोषणा की। डेढ़ साल पहले ही डफली जी ने अपने कस्बे और आस-पास के गाँवों में सबसे ज़्यादा प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने का रिकॉर्ड बनाया था। उनके संन्यास लेने के बयान से उनके परिजनों और दोस्तों में खुशी की लहर दौड़ गई है और उनकी सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठी उनकी गर्लफ़्रेंड भी दूसरे बैकअप प्रेमी की और दौड़ गई है। आइए डफली जी से जानते हैं कि कब और कैसे उनकी ऐसी डफली बजी…”
रिपोर्टर विकास – आप अब तक कितनी प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा ले चुके हैं?
डफली – मैं 197 बार अलग-अलग भर्तियों के लिए लिखित परीक्षाओं में बैठ चुका हूं।
रिपोर्टर विकास – ओह! बेहतरीन! तो क्या आपके मन में नहीं आया कि दोहरे शतक का जादुई आंकड़ा छुआ जाए?
डफली – हा-हा…अब 99 के फेर में जितना घुसा जाए, उतना कम है। ऐसे तो मेरे दो-चार सीनियर ने 300 का आंकड़ा पार करने के बाद संन्यास लिया था। हां, मैंने करीब 250 फ़ॉर्म भरे होंगे। यह संख्या देखकर लगता है कि मैं दोहरा शतक आसानी से मार सकता था।
रिपोर्टर विकास – तो कहाँ चूक रह गई?
डफली – दरअसल, लगभग सभी प्रतियोगी परीक्षाएं रविवार के दिन होती हैं, इस वजह से कभी-कभी ऐसा हुआ कि एक ही दिन दो परीक्षा पड़ गईं। इसके अलावा कभी अपने आलस्य और लापरवाही, तो कभी परीक्षास्थल बहुत दूर के शहर होने की वजह से कुछ परीक्षाएं नहीं दे पाया।
रिपोर्टर विकास – तेरह साल से ज़्यादा के करियर में अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या मानते हैं?
डफली – देखिए, सरकारी नौकरी में चयन होने या न होने के अलावा एक और उपलब्धि होती है जो सालों तक तैयारी करने वाला हर अभ्यर्थी बताता है, लेकिन यह बहुत कम के हिस्से आती है। ज़्यादातर लोग इस बारे में गप्प मारते हैं। वह उपलब्धि है, परीक्षा या साक्षात्कार में चयन होने से सिर्फ़ एक नंबर से रह जाना। मेरा सौभाग्य है कि आम लोगों का गप्प…ऐसा मेरे तैयारी के करियर में एक नहीं दो बार हुआ। पहला शुरुआती दौर में जब मैं 22-23 साल का था, तो बैंक मैनेजर की लिखित परीक्षा में कट ऑफ़ से 1 अंक कम आया। यह परिणाम देखकर सिर्फ़ मैं ही नहीं, मेरा परिवार और दोस्त भी आश्वस्त हुए कि कोई न कोई सरकारी नौकरी मेरे हिस्से ज़रूर आएगी। दूसरा तीन साल पहले बीमा क्लर्क की परीक्षा में ऐसा हुआ था।
रिपोर्टर विकास – …और सबसे खराब प्रदर्शन कब रहा?
डफली – दो बार, एक बार हवा में दी गई परीक्षा में 150 में से 17 सवाल सही हुए थे और एक बार मुझसे ओएमआर शीट का क्रम गड़बड़ा गया था, तो 120 में से 9 अंक आए होंगे।
रिपोर्टर विकास – आपके प्रदर्शन पर और किन बातों का असर पड़ा?
डफली – जिओ मोबाइल क्रांति का मेरे जैसे करोड़ों युवाओं पर भारी असर पड़ा। सभी कंपनियों ने अपने डेटा और कॉल प्लान सस्ते कर दिए। बस उसके बाद तो गर्ल फ्रेंड से बात करने और दिन में 36 तरीके के ठुमके देखने में ही साल बीत गए। अब बेरोज़गारों को कोई दिनभर का काम मिलेगा, तो वो तो करेंगे ही न? पहले कहाँ सिर्फ़ फ़ोन पर बात करना ही खर्चीला शौक था। कुछ छोटी वजहें भी रहीं, लेकिन उनकी क्या बात करना….
रिपोर्टर विकास – अब बात छिड़ी ही है तो कर लीजिए।
डफली – छोटी मतलब एक परीक्षा पर असर डालने वाली। जैसे, कभी एग्ज़ाम के दिन तेज़ बारिश, बुखार होना या कभी तो खड़ूस परीक्षक द्वारा सू-सू जाने की अनुमति न देना। दो बार सू-सू रोकने के दबाव में आसान पेपर होते हुए भी अच्छे अंक नहीं आए। एक दफ़े तेज़ पहुंचने के चक्कर में टेबल का कोना पेट में लग गया बस पूरा पेपर अपने गुलगुले पेट तो थपथपाता रहा। वैसे ‘सेक्सी लेडीज़ इन दी एग्ज़ाम सेंटर’ को नक़ल कराने के चक्कर में भी कभी-कभी पेपर छूटे। हालांकि, बाद में न पेपर रहा, न ही वो लेडीज़।
रिपोर्टर विकास – इस दौरान आप कितने साक्षात्कारों वाले चरण तक पहुंचे?
डफली – हर लिखित परीक्षा के साथ साक्षात्कार नहीं होता, कई बार तो लिखित परीक्षा के साथ शैक्षिक डिग्रीयों के अंक जोड़े जाते हैं। फिर में मैंने करीब 2 दर्जन से ज़्यादा साक्षात्कार दिए। सरकारी नौकरी में सालों से सोए कुछ थकेले चेहरे देखने के अलावा इन इंटरव्यू में कुछ खास अनुभव नहीं रहा।
रिपोर्टर विकास – आपको नहीं लगता कि तैयारी करियर के शुरुआती दौर में 1 नंबर से रह जाने से जो लालच की लॉलीपॉप आपने चूसी वह कब की खत्म होने के बाद भी चूसी जाती रही।
डफली – निसंदेह! आपने कैसे जाना?
रिपोर्टर विकास – अरे, हम खुद भुक्तभोगी हैं। वैसे इस दौरान आपने कितने पैसों में आग लगाई?
डफली – जी, फ़ॉर्म भरने का पैसा, परीक्षा केंद्र जाना, कई बार दूसरे शहर ठहरना, कोचिंग, किताबें, नोट्स, प्रिंट आउट फलाने का कोई हिसाब नहीं। इस चक्कर में खैनी-सिगरेट की लत लगी सो अलग। दुनिया तो कहती है कि “टाइम इज़ मनी” और वह तो मैंने थोक के भाव उड़ाया है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि मेरे पड़ोसी के पापा ने बारहवीं के बाद उसका ट्रैक्टर का शोरूम खुलवाया था, अगर मैं तैयारी न करता तो आज मेरे पापा के पास ऐसे तीन शोरूम खुलवाने के पैसे होते।
रिपोर्टर विकास – अब आपके पापा किस चीज़ का शोरूम खुलवाएंगे?
डफली – उनके अरमानों और सब्र का शोरूम में उड़ा चुका हूं, अब वे मन में गाली दिए बिना मेरा चेहरा देख लिया करें इतना ही काफ़ी है।
रिपोर्टर विकास – डफली जी, अब आप क्या करेंगे?
डफली – सिस्टम को गाली देंगे, कहीं कोई कुत्ते-गाय-सांड सोते हुए मिलेंगे, तो बिना बात का गुस्सा उन्हें लात मारके निकालेंगे। 8-10 हज़ार महीना वाली कोई एंट्री लेवल प्राइवेट नौकरी करेंगे और सोचेंगे कि यह नौकरी अगर 14 साल पहले शुरू कर देता, तो अभी 80 हज़ार कमा रहा होता और कितना जमा कर लिया होता फलाना …
रिपोर्टर विकास – क्या कभी आपकी वापसी भी हो सकती है?
डफली – हो तो दुनिया में कुछ भी सकता है। अगर कोई आसान एग्ज़ाम हुआ जिसमें मेरी उम्र के लोग शामिल हो सकते हैं, तो देख लेंगे।
रिपोर्टर विकास – “हमारी टीम आपको सुखद रिटायरमेंट विश करती है, आशा है आप जीवन के अन्य क्षेत्रों में ऐसे ही कीर्तिमान बनाएं।”
डफली – “@#!$%&@”
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#ज़हन