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कमरे में गुरुनूर, विलायत खान और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे मौजूद थे। उनके सामने बंसीलाल और मनसुखा बैठे थे। विलायत खान ने बंसीलाल से कहा,
"इनका बेटा मंगलू तुम्हारी दुकान पर काम करता था। कहांँ है वह ?"
"सर हमने बताया इसको कि मंगलू को रानीगंज की बस में बैठा दिया था। उसने कहा था कि बस अड्डे से वह आराम से अपने घर चला जाएगा। अब ना जाने कहाँ चला गया। इसमें हमारी क्या गलती है।"
मनसुखा ने कहा,
"गलती कैसे नहीं है। जब अपना काम था तब तो घर से लेकर आए थे। अब उसको ऐसे ही बस में बैठा दिया।"
बंसीलाल ने कहा,
"ऐसे ही का क्या मतलब है ? बस का टिकट खरीद कर दिया। बस अड्डे जाकर बस में चढ़ाकर आए थे। रस्ते में खर्चे के पैसे भी दिए थे। अब और क्या करते।"
विलायत खान ने डांट लगाई,
"एक तो गैर ज़िम्मेदारी की हरकत की है ऊपर से चिल्ला रहे हो। एक बच्चे को इस तरह भेजना चाहिए था।"
बंसीलाल डांट खाकर थोड़ा शांत हुआ। अपनी बात रखते हुए बोला,
"सर अच्छी तरह सब कुछ समझा दिया था। उसने भी कह दिया था कि वह चला जाएगा। अब धंधा छोड़कर उसको भेजने तो जा नहीं सकता था।"
गुरुनूर ने कहा,
"तुम्हें उस बच्चे की ज़रा सी भी परवाह नहीं थी। अपने धंधे के लिए उसे अकेले भेज दिया। अगर तुम नहीं जा सकते थे तो मनसुखा जी को फोन कर देते। वह आकर अपने बेटे को ले जाते।"
बंसीलाल ने कहा,
"मैडम हमें भी परवाह थी तभी तो उसे यहाँ लाए थे कि काम करके चार पैसे कमा सके। पर आप लोग गरीबी को क्या समझेंगे। आप पीछे पड़ गईं कि इससे काम ना कराओ। अब हमारे पास भी इतना नहीं है कि उसको बैठाकर खिला सकते। इसलिए मजबूरी में भेजना पड़ा।"
यह सुनकर विलायत खान ने पहले से भी अधिक ज़ोर से डांटा,
"बकवास बंद करो.... एक तो गलती की ऊपर से मैडम को दोष दे रहे हो। अगर मंगलू की जगह तुम्हारी औलाद होती तो क्या ऐसे लापरवाही से उसे बस में बैठाकर चले आए होते। तुमने गलती की है। अब बेवजह बातें मत करो।"
गुरुनूर को भी बंसीलाल की बात पर गुस्सा आ गया था। उसने कहा,
"मैंने तुमसे ये कहा था कि उस बच्चे को अकेला भेज दो। गरीबी की बात करके अपनी गलती छिपाने की कोशिश कर रहे हो। पर एक बात अच्छी तरह से दिमाग में डाल लो। अगर मंगलू नहीं मिला या उसके साथ कुछ बुरा हुआ तो तुम्हारी खैर नहीं है।"
मनसुखा ने कहा,
"मैडम इसे ऐसे मत छोड़िएगा। थाने में बैठाकर रखिएगा जब तक हमें हमारा बेटा नहीं मिलता है। इसे हमारा बच्चा लौटाना होगा। यह मंगलू को लेने हमारे पास आया था। इस पर भरोसा करके हमने अपनी औलाद इसको सौंपी थी।"
यह कहकर मनसुखा रोने लगा। विलायत खान ने उसे समझाया,
"पुलिस मंगलू को तलाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। लेकिन एकदम से तो कुछ हो नहीं सकता है। तुम अब लौट जाओ।"
मनसुखा बिना मंगलू को लिए जाने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। उसका कहना था कि वह चला गया तो उसके बेटे को खोजने का काम ढीला पड़ जाएगा। गुरुनूर और विलायत खान ने बड़ी मुश्किल से समझा बुझाकर उसे उसके गांव भेजा। जाने से पहले मनसुखा ने उन्हें अपने पड़ोसी का मोबाइल नंबर दे दिया जिससे ज़रूरत पड़ने पर उसके साथ संपर्क हो सके। विलायत खान ने बंसीलाल को भी हिदायत दी कि वह पुलिस से इजाज़त लिए बिना कहीं नहीं जाएगा।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे गुरुनूर के साथ उसके केबिन में मंगलू के गायब होने के केस पर बातचीत कर रहा था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने गुरुनूर से कहा,
"मैडम यह तो बहुत बुरा है। एक और बच्चा गायब हो गया। ईश्वर करे कि मंगलू के साथ वह ना हो जो अमन के साथ हुआ था।"
गुरुनूर के मन में उस कातिल के लिए बहुत गुस्सा भरा हुआ था। उसने अपना गुस्सा दिखाते हुए मेज़ पर हाथ मारा और उठकर खड़ी हो गई। उसने कहा,
"मेरे लिए यह बहुत शर्म की बात है। लोगों के विश्वास पर मैं खरी नहीं उतर पा रही हूँ।"
यह कहते हुए वह कुछ भावुक हो गई। केबिन की खिड़की पर जाकर खड़ी हो गई। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे उसके मन की स्थिति को समझ रहा था। उसकी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी। गुरुनूर ने खुद को काबू किया और वापस अपनी जगह पर आकर बैठ गई। उसने सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे से कहा,
"मन ही मन मना तो मैं भी यही रही हूँ कि मंगलू सही सलामत हमें मिल जाए। लेकिन मन में यह बात आ रही है कि मंगलू को भी उसी कातिल ने अगवा किया है।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम मुझे लगता है कि यह कातिल अकेला नहीं है। यह एक गैंग लगता है। एक आदमी के लिए किशोर लड़कों को अगवा करना। उनकी लाशों को अलग अलग जगह ठिकाने लगाना संभव नहीं लगता है। लेकिन उन लोगों का इन हत्याओं के पीछे मकसद क्या हो सकता है।"
गुरुनूर को उसकी बात सही लगी। वह जिस बलि वाली बात के बारे में सोच रही थी उसके लिए एक गैंग की ही ज़रूरत थी। उसने सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे से कहा,
"आकाश मेरे मन में भी एक बात है। तुम जो कह रहे हो वह सही है। मुझे लगता है कि यह काम कुछ लोगों का है। वो लोग एक टीम की तरह काम कर रहे हैं। तुम मकसद की बात कह रहे थे। मुझे लगता है कि यह सब किसी तांत्रिक क्रिया का हिस्सा है। जिन बच्चों को अगवा किया गया है उनकी किसी मकसद के लिए बलि चढ़ाई गई है।"
गुरुनूर की बात सुनकर सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे गंभीर हो गया। कुछ देर सोचने के बाद वह बोला,
"मैडम आप जो कह रही हैं हमें उसी बिंदु की तरफ बढ़ना चाहिए। हत्या का तरीका वैसा ही है जैसे किसी जानवर की बलि दी जाती है। जो लोग भी इस कृत्य में शामिल हैं वो सभी मानसिक रूप से बीमार लोग हैं। उन्हें ढूंढ़कर सज़ा देना बहुत ज़रूरी है।"
गुरुनूर ने कहा,
"बिल्कुल आकाश ये जो लोग भी हैं उन्हें इन बच्चों की हत्या करने का दंड भुगतना होगा। अब कमर कस लो। अब हमें उन्हें पताल से भी ढूंढ़कर लाना होगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैं पूरी तरह से तैयार हूँ मैडम। अब उन्हें छोड़ना नहीं है।"
गुरुनूर ने कुछ सोचकर कहा,
"हमें बहुत सावधानी से काम करना होगा। मुझे लग रहा है कि ये लोग आसपास ही रहते हैं। इसलिए ज़रा सी भी चूक खतरनाक हो सकती है। सबसे पहले यह सोचना होगा कि शुरुआत कहाँ से करें। यह एक गैंग है तो इसमें कई लोग सक्रिय होंगे। जो भीड़ में आसानी से खुद को छुपा सकते हैं। हमें उन्हें पता लगे बिना उन पर नज़र रखनी है।"
"मैडम ये लोग आसपास के हैं तो इनको पहचानना और मुश्किल होगा। इस भीड़ में किस पर नज़र रखें और किसे छोड़ें बड़ा मुश्किल होगा।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने अपनी बात कहकर गुरुनूर को देखा। गुरुनूर ने कहा,
"मैं इसी सावधानी की बात कर रही थी आकाश। हमें इस भीड़ में अपने चेहरे इस तरह ढूंढ़ने होंगे कि उन्हें इस बात का शक ना हो।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने कहा,
"मैडम आपको क्या लगता है मंगलू के गायब होने में बंसीलाल का हाथ हो सकता है ?"
गुरुनूर कुछ सोचकर बोली,
"मंगलू बंसीलाल की दुकान पर काम करता था यह बात बसरपुर में बहुत से लोगों को पता थी। मैंने खुद बंसीलाल से कहा था कि उस बच्चे से काम ना कराए। ऐसे में बंसीलाल मंगलू को गायब करने का काम नहीं करेगा। फिर भी हमें शुरुआत में किसी को भी छोड़ना नहीं है। यह भी हो सकता है कि बंसीलाल सीधे ना जुड़ा हो। लेकिन उससे जुड़ा हुआ कोई हो जो इसमें शामिल हो। इसलिए अभी सावधानी से अपने आसपास नज़र रखो।"
"जी मैडम मैं एक टीम बनाता हूँ। उस टीम के साथ आपसे मिलता हूँ। यह काम आज से ही शुरू करता हूँ।"
गुरुनूर ने कहा,
"इस सिलसिले में दीपंकर दास एक ऐसा चेहरा है जो स्पष्ट है। उस पर बड़ी सावधानी से नज़र रखनी होगी। उसके लिए मैं हेडक्वार्टर से कोई विशेष व्यवस्था करवाती हूँ।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को उसकी बात पसंद आई। वह उससे इजाज़त लेकर अपनी टीम बनाने के लिए चला गया।
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे ने अपनी टीम बना ली थी। गुरुनूर ने उन्हें समझाया था कि किस तरह से उन्हें काम करना है। इस टीम में एक ऐसा सदस्य था जो पुलिस डिपार्टमेंट में नहीं था। उसका नाम नज़ीर था। नज़ीर बंसीलाल की दुकान पर अक्सर जाकर बैठता था। वह बहुत सी खबरें सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को दिया करता था। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे को उस पर यकीन था। इसलिए उसने विशेष रुप से बंसीलाल और उसकी दुकान पर आने वाले लोगों पर नज़र रखने का काम नज़ीर को दिया था।
गगन और संजीव पालमगढ़ लौट गए थे। संजीव को तो उसके मालिक ने काम कर रख लिया था पर गगन अपने रेस्टोरेंट वापस गया ही नहीं था। उसे पता था कि मालिक उसे दोबारा नौकरी पर नहीं रखेगा। वह मन बनाकर गया था कि वह पालमगढ़ में कोई नया काम ढूंढ़ेगा। अगर नहीं मिला तो वापस बसरपुर चला जाएगा। वह पालमगढ़ में एक दो जगह नौकरी के सिलसिले में गया था पर काम नहीं बना था। वह अभी एक जगह से लौटकर आया था। अपने बिस्तर पर लेटा था। उसके मन में गुस्सा था। जिस आदमी के पास वह काम मांगने गया था उसने काम तो दिया नहीं था ऊपर से उससे उल्टी सीधी बातें की थीं। बिस्तर पर लेटा वह सोच रहा था कि जांबूर ने छठी अमावस के अनुष्ठान के बाद कहा था कि अब उनका आधा काम हो गया है। उन्हें आधी शक्तियां प्राप्त हो गईं हैं। किंतु अभी वह शक्तियां अपना प्रभाव नहीं दिखाएंगी। उसके लिए ग्यारह अनुष्ठान पूरे करने होंगे।
उसके मन में खयाल आ रहा था कि अगर शक्तियों का कुछ हिस्सा भी प्रभाव दिखाता तो वह आज उस आदमी को सबक सिखाता। वह एक जनरल स्टोर में काम मांगने गया था। उस आदमी ने कहा कि उसके लायक कोई काम नहीं है। गगन ने कहा कि वह जो भी काम कहेगा वह कर देगा। इस पर उस आदमी ने हंसते हुए कहा कि बात ऐसे कर रहे हो जैसे कि बड़े तुर्रम खां हो। शक्ल से एकदम बेवकूफ लगते हो। यह कहकर वह और उसके साथ बैठा आदमी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे थे। एक बार फिर उसे उपहास सहना पड़ा था जो उसके लिए असहनीय था। लेकिन हमेशा की तरह वह चुपचाप चला आया था।
वह सोच रहा था कि बस कुछ और समय बाकी है। उसके बाद उसका उपहास करने वालों को उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।