Gyarah Amavas - 18 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 18

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ग्यारह अमावस - 18



(18)

अहाना उस अंधेरी तहखाने जैसी जगह में बंद थी। दिन में दो बार एक आदमी खाना रखकर चला जाता था। शुरू में तो अहाना ने खाया नहीं। पर बाद में उसके लिए भूख बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया तो वह खाने लगी। उसे पूरे दिन में एक बार नित्यकर्म के लिए ले जाया जाता था। वह भी अंधेरा होने के बाद। उसने गिनती की थी। अब तक बारह बार खाना आया था और पाँच बार नित्यकर्म के लिए ले जाया गया था। उसने अंदाज़ा लगाया कि इस हिसाब से उसे यहाँ छह दिन हो गए थे।
आरंभ में जब वह आदमी खाना लेकर आया था तो उसने डरकर चीखना शुरू कर दिया था। उस आदमी ने गुस्से में उसे थप्पड़ जड़ दिया था। वह भौचक्की रह गई थी। सामने थाली रखते हुए उसने कहा था कि चीखने चिल्लाने से कुछ नहीं होगा। कोई सुनने वाला नहीं है। वह आदेश के अनुसार उसकी मदद के लिए आता है। वह किसके आदेश पर आता है ना तो उसने बताया था और ना ही अहाना की पूछने की हिम्मत हुई थी। लेकिन अहाना ने चीखना चिल्लाना बंद कर खुद को नियति के हवाले कर दिया था। नियति पर उसे यकीन नहीं था। क्योंकी नियति ने उसके साथ अच्छा नहीं किया था। पर नियति के हवाले खुद को छोड़ने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था।
उस जगह बहुत ही हल्की रौशनी थी। इतनी हल्की कि सामने किसी चीज़ के होने का एहसास भर होता था। जब वह आदमी यहाँ आता था तो अपने साथ एक मशाल लेकर ‌आता था। उसकी रौशनी में उसने आसपास की चीज़ों को देखा था। उससे उसे इस जगह का कुछ अनुमान हो गया था। बाकी सारा वक्त अंधेरे में रहते हुए उसे लगने लगा था कि शायद उसकी आँखें देख सकने के लायक ही ना रह जाएं। वैसे उस घटना के बाद से उसके मन में अंधेरा ही था। उसकी आँखों में रह रहकर वह चेहरा उभरता था जो उस घटना के बाद से हमेशा उसके ज़ेहन में छाया रहता था।
वह घर में अकेली थी। उसके मम्मी पापा किसी काम से गए थे। दरवाज़े पर दस्तक हुई। उसने दरवाज़े के पास लगी खिड़की से झांककर देखा। उसका पहचाना हुआ चेहरा था। उसने दरवाज़ा खोल दिया। उसे अंदर ले गई। कुछ देर बातचीत हुई। वैसे ही जैसे उसके साथ अक्सर होती थी। उसने पानी पीने की इच्छा जताई। जब वह लौटकर आई तो उसने गिलास छोड़ उसका हाथ पकड़ लिया। गिलास आवाज़ के साथ फर्श पर गिर गया। स्टील का गिलास तो नहीं टूटा पर विश्वास चूर चूर हो गया। वह उसे घसीट कर अंदर के कमरे में ले गया। उसके रोने चिल्लाने किसी भी चीज़ का कोई फर्क नहीं पड़ा। विश्वास का गला दबाकर उसने रिश्ते को नंगा कर दिया।
उसके पापा गुस्से में उसके पास गए थे। कुछ देर में पिटकर वापस आ गए। एक दो और लोगों से मदद मांगी। पर कोई उनका साथ देने को तैयार नहीं था। अब गुस्सा और अपमान भय में बदल गया था। उन्होंने चुप रहना ही सही समझा। इन सबके बीच वह अंधेरे में डूब गई थी। मम्मी पापा की कोशिश के बाद भी कुछ नहीं बोलती थी। उसके पापा उसे लेकर उस आश्रम में गए थे। पर कुछ नहीं हुआ। उस दिन सराय में उसने खाना खाया था। खाना खाने के बाद उसे गहरी नींद आ गई। जब वह जागी थी तो एक अनजान जगह थी। कुछ अनजान लोगों के बीच। वह डर गई। उन्होंने उसे एक इंजेक्शन दिया। वह फिर सो गई।
जब दोबारा जागी तो खुद को अंधेरे में पाया। कुछ देर चुपचाप बैठी रही। जब उसे उम्मीद हो गई कि वह एकदम अकेली है तो अपने मम्मी पापा को याद करके रोने लगी। तभी किसी आदमी ने आवाज़ दी कि वह कौन है। उस आवाज़ को सुनकर वह डर गई। उसने रोना बंद कर दिया। वह आदमी बार बार अपना सवाल कर रहा था। फिर उसने उसके अपनी तरफ बढ़ने की आहट सुनी। वह बहुत ज़ोर से डरी हुई थी। अचानक वह उसके सामने गिर पड़ा। वह डरकर चीखने लगी। वह कुछ कह रहा था। पर उसने उसकी बात सुनी ही नहीं। वह डरकर बेहोश हो गई थी।
दोबारा कुछ आवाज़ें सुनकर उसकी बेहोशी टूटी‌। एक आदमी खाना लेकर आया था। वह फिर चिल्लाने लगी थी। उस आदमी ने उसे थप्पड़ मारकर चुप करा दिया था। उसकी मशाल की रौशनी में उसने देखा कि आसपास कोई दूसरा नहीं है। शायद उस आदमी को कहीं ले जाया गया था।
अहाना को फिर कुछ आवाज़ें सुनाई पड़ीं। सीढ़ियों के पास रौशनी दिखी। कुछ देर में दो लोग एक लड़के को घसीटते हुए अंदर ले आए। मशाल की रौशनी में अहाना ने देखा कि उसके हाथ पैर बंधे थे। मुंह खुला था। पर चेहरे पर डर था। आँखों से आंसू बह रहे थे। उसने गौर किया कि वह लड़का लगभग उसकी उम्र का ही था। एक आदमी ने उसके हाथ पैर खोल दिए। एक नज़र अहाना पर डाली। फिर अपने साथियों के साथ चला गया। वहाँ फिर अंधेरा हो गया।
जब उस लड़के को एहसास हो गया कि वह लोग जा चुके हैं तो वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। अहाना को भी रोना आ रहा था। उसके साथ किसी और की ज़िंदगी भी अंधेरे में थी। वह सोच रही थी कि आखिर ये लोग करना क्या चाहते हैं। कुछ देर तक वह चुप बैठी उस लड़के का रोना सुनती रही। पहले रोने की आवाज़ तेज़ थी। अब सिर्फ सिसकियां सुनाई पड़ रही थीं। अहाना जानना चाहती थी कि वह कौन है। उसने धीरे से कहा,
"क्या नाम है तुम्हारा ?"
उ‌स लड़के ने सिसकना बंद कर दिया। अहाना ने फिर पूछा,
"क्या नाम है तुम्हारा ? इनके चंगुल में कैसे फंस गए ?"
उस लड़के ने कहा,
"मेरा नाम मंगलू है। अपने गांव जा रहा था। रास्ते में एक आदमी ने प्रसाद खिलाया। मैं बेहोश हो गया। होश आया तो इन लोगों के कब्जे में था। इन्होंने यहाँ लाकर बंद कर दिया।"
मंगलू एकबार फिर रोने लगा। अहाना ने फिर पूछा,
"तुम्हारे घरवाले साथ रहे होंगे ?"
मंगलू ने कहा,
"मैं चाय की दुकान पर काम करता था। मालिक ने पैसे देकर बस में बैठा दिया था। मैं गांव पहुँच कर अपने आप घर चला जाता। उसी बस में एक आदमी था। मुझसे बातें कर रहा था। उसने प्रसाद कहकर खाने के लिए पेड़ा दिया। मैंने खा लिया। वही मुझे इन लोगों के पास लेकर आया होगा। पर वह मुझे यहाँ दिखा नहीं।"
अपनी बात कहकर मंगलू ने पूछा,
"तुम कैसे आई यहाँ ?"
अहाना ने अपना नाम बताकर उसे सराय और उसके बाद की कहानी बताई। अपनी बात कहने के बाद वह बोली,
"पता नहीं मेरे मम्मी पापा का क्या हाल होगा। हो सकता है उन्होंने पुलिस को मेरे गायब होने की खबर दी हो। पुलिस हमें तलाशती हुई आ जाए।"
मंगलू ने कहा,
"कोई फायदा नहीं है। मैंने इन लोगों को कहते सुना था कि कल अमावस की रात है। कल मेरी बलि दे देंगे। हो सकता है तुम्हारी भी बलि दे दें।"
मंगलू की बात सुनकर अहाना अंदर तक कांप गई। उसके बाद दोनों एकदम चुप हो गए।

दूर पहाड़ी पर बना खंडहरनुमा मकान अमावस के काले अंधेरे में और भी अधिक भयावह दिख रहा था। आसपास के वातावरण में एक अजीब सी शैतानी खामोशी थी। मकान के मुख्य द्वार पर काबूर खड़ा था। वह वहाँ आने वाले लोगों की बाईं बाज़ू को टॉर्च की रौशनी में देख रहा था। हर एक आने वाले के हाथ में शैतान का टैटू देखने के बाद ही अंदर जाने दे रहा था।
मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही एक बड़ा सा आहता था। उस आहते के एक तरफ एक कुआं था। आने वाला हर व्यक्ति उस हाड़ कंपा देने वाली सर्दी में भी अपने सारे कपड़े उतार कर कुएं से पानी निकालकर स्नान करता था। उसके बाद पास में रस्सी पर लटके काले रंग के एक चोंगे को उठाकर पहन लेता था। उसे पहनने के बाद मकान के अंदर बने एक कमरे में चला जाता था।
गगन संजीव के साथ तेज़ कदमों से पहाड़ी पर चढ़ रहा था। दोनों चढ़ते हुए हांफ रहे थे पर रुककर सुस्ता नहीं रहे थे। उन्हें देर हो गई थी। दोनों यह सोचकर सोए थे कि जल्दी उठ जाएंगे। पर उठने में देर हो गई थी।
संजीव और गगन हांफते हुए बढ़ते जा रहे थे। आपस में बात कर रहे थे कि अब तक सब पहुँच गए होंगे। उनका इंतज़ार हो रहा होगा। आज छठी अमावस थी। इसका महत्व अधिक था। आज ही उन्हें देर हो गई। कुछ देर में उन्हें अपने सामने वह खंडहरनुमा मकान दिखाई पड़ा। उस अंधेरे में वह मकान किसी प्रेत की तरह दिख रहा था। पर उनके चेहरे पर खौंफ़ की जगह मुस्कान आ गई।
दोनों भागकर मुख्य द्वार पर पहुंँचे। काबूर को अपनी बाईं बाज़ू पर बना टैटू दिखाया। उसके बाद जल्दी से अंदर चले गए। कुएं के पास जाकर उन्होंने भी अपने कपड़े उतारे और सबकी तरह स्नान किया। फिर रस्सी पर टंगे आखिरी बचे दोनों चोंगे पहन कर कमरे में चले गए।
यह एक बड़ा सा कमरा था। इसमें मशालों के द्वारा रौशनी की गई थी। मशालो की रौशनी में वह कमरा किसी आदिम युग की गुफा जैसा दिख रहा था। दोनों चुपचाप जाकर अपनी जगह पर बैठ गए। सभी ने अपने काले चोंगे पर लगे हुड से अपना सर ढक रखा था। अपना सर झुकाए सभी कोई मंत्र पढ़ रहे थे। संजीव और गगन भी उनकी तरह मंत्र पढ़ने लगे।
सभी पूरी तन्मयता से मंत्र का जाप कर रहे थे। धीरे धीरे मंत्रोच्चार की आवाज़ बढ़ती जा रही थी। उन सभी नवयुवकों के सामने एक चौकी पर उनका नेता जांबूर बैठा था। वह भी सबके साथ मंत्र का जाप कर रहा था।
इस समय मंत्रोच्चार की आवाज़ बहुत बढ़ गई थी। ऐसा लग रहा था कि सभी के ऊपर किसी शैतानी शक्ति का साया हो चुका है। सब अपने अपने स्थान पर बैठे ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ते हुए हिल रहे थे। अचानक जांबूर ने अपना मुंह छत की तरफ उठाया। वह एक अजीब सी आवाज़ निकालने लगा। वैसी आवाज़ जैसी कोई भेड़िया निकालता है। कमरे में उपस्थित बाकी सब भी अपना सर उठाकर उसी प्रकार आवाज़ करने लगे।
बाहर मकान से उठती उन विचित्र आवाज़ों ने वातावरण को और अधिक भयावह बना दिया था। किसी कमज़ोर ह्रदय वाले व्यक्ति के लिए उस स्थान पर टिक पाना भी मुश्किल था। पूरे माहौल में अजीब सी हैवानियत महसूस हो रही थी।