Gyarah Amavas - 11 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 11

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ग्यारह अमावस - 11



(11)

पुलिस जीप पालमगढ़ में रेड रोज़वैली हायर सेकंडरी स्कूल के सामने आकर रुकी। गुरुनूर और इंस्पेक्टर कैलाश जोशी नीचे उतरे। साथ में सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे भी था। इंस्पेक्टर कैलाश जोशी ने कहा,
"स्कूल की प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान स्कूल के ही एक हिस्से में रहती हैं। मैंने बात की है उनसे। फिलहाल तो वह प्रिंसिपल ऑफिस में ही मिलेंगी।"
इंस्पेक्टर कैलाश जोशी यह कहकर स्कूल के गेट की तरफ बढ़ गया। गुरुनूर और सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे उसके साथ चल दिए। उन्हें देखकर गार्ड ने गेट खोल दिया। गेट के अंदर घुसे तो एक आदमी उन्हें प्रिंसिपल ऑफिस में ले गया। प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान ने उनका स्वागत किया। बैठने के बाद इंस्पेक्टर कैलाश जोशी ने कहा,
"आपके स्कूल के लापता छात्र अमन पाहुजा की लाश मिली है। एसपी गुरुनूर कौर उसी संबंध में आपसे बात करना चाहती हैं।"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान ने कहा,
"उस बच्चे के साथ जो हुआ सुनकर बहुत अफसोस हुआ।"
उसके बाद गुरुनूर की तरफ देखकर बोली,
"मैं पुलिस को पहले ही सारी बातें बता चुकी हूँ। नया तो कुछ नहीं है मेरे पास बताने के लिए।"
गुरुनूर ने शांत गंभीर स्वर में कहा,
"आपका स्कूल इस इलाके के माने हुए स्कूलों में से एक है। उसके बाद भी आपने सीसीटीवी कैमरा नहीं लगवाया है। आपको नहीं लगता कि बच्चों की सुरक्षा के साथ यह एक खिलवाड़ है।"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान ने बचाव करते हुए कहा,
"स्कूल के अंदर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। उस दिन छुट्टी के बाद अमन की उसके क्लासरूम के बाहर कोरीडोर में और स्कूल ग्राउंड में सीसीटीवी फुटेज भी है।"
"इंस्पेक्टर कैलाश जोशी ने बताया था। पर मैं स्कूल के गेट की बात कर रही हूंँ। गेट पर एक भी सीसीटीवी कैमरा नहीं है। आप जानती हैं ना कि ऐसा आवश्यक है।"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान चुप हो गई। फिर बात बनाते हुए बोली,
"हम बस गेट पर कैमरा लगवाने ही वाले थे....."
गुरुनूर ने टोकते हुए कहा,
"गेट पर अभी भी सीसीटीवी कैमरा नहीं है। इतना बड़ा हादसा हो गया और आप अभी तक सोच ही रही हैं।"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान खिसिया गई। वह बोली,
"मैं तो स्कूल प्रबंधन के अंतर्गत काम करती हूँ। मैंने उनसे कहा था पर अभी तक कार्यवाही नहीं हुई।"
गुरुनूर ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा,
"जब अमन की मम्मी ने आपको बताया कि उसका पता नहीं चल रहा है तो आपने क्या मदद की ?"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान ने कहा,
"मैडम मैं जो कर सकती थी वही किया। अपने स्टॉफ से कहा था कि उसे स्कूल में देख ले। सीसीटीवी कैमरे में चेक किया तो वह ग्राउंड से गेट की तरफ जाता हुआ दिखाई दिया था। मैंने ज्योत्स्ना जी से कहा कि वह जाकर देखें। हो सकता है अमन किसी के साथ घर चला गया हो। अब अमन ग्यारहवीं कक्षा में था। ऐसा होना कोई बड़ी बात तो नहीं थी।"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान की बात सही थी। इस उम्र में बच्चे अधिकतर अपने आप ही स्कूल आते जाते हैं। गुरुनूर ने कहा,
"फिर भी आप जानती थीं कि एक्सीडेंट के बाद अमन वैन से स्कूल आता था। आपने अपनी तरफ से इसके अतिरिक्त कुछ नहीं किया।"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान को यह बात अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,
"मैडम आप बताइए मैं क्या कर सकती थी। मैं स्कूल के गेट पर खड़ी होकर हर बच्चे पर नज़र तो नहीं रख सकती हूँ।"
फिर खुद को संयत करके बोली,
"हमारा स्कूल नर्सरी से बारहवीं तक एक ही शिफ्ट में चलता है। छुट्टी के समय में पैंतालीस मिनट का फर्क है। हम नर्सरी से छठी तक के बच्चों के लिए दूसरा गेट इस्तेमाल करते हैं। वहाँ छुट्टी के समय नज़र रखते हैं। पर बड़े बच्चों के लिए नहीं। वो उसी गेट से आते जाते हैं जहाँ से आप लोग आए हैं। अमन भी रोज़ वहीं से अपनी वैन लेता था। अब मैं कैसे जान पाती कि उस दिन वैन वाला नहीं आया।"
अंतिम बात कहते हुए प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान का स्वर बहुत नर्म पड़ गया था। गुरुनूर ने कहा,
"गेट पर जो गार्ड था उसने बयान दिया था कि उसने रोज़ की तरह अमन को गेट से निकलते देखा था। उसके बाद उसने ऐसा कुछ ऐसा नहीं देखा जिस पर ध्यान जाता।"
"मैडम छुट्टी के वक्त स्कूल गेट पर बहुत हलचल होती है। लोग अपने बच्चों को लेकर जा रहे होते हैं। जो बच्चे अपने साधन से आते हैं उसी समय निकलते हैं। उस सबके बीच जब तक कुछ खास ना हो ध्यान नहीं जाता है।"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान की यह बात भी गुरुनूर को सही लगी। उसने कहा,
"फिर भी मैं उससे एकबार बात करना चाहती हूँ। पर वह गार्ड नौकरी से रिटायर हो चुका है। आप मुझे उसका पता दे दीजिए।"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान ने अपने सहायक से कहा कि वह गेट पर खड़े गार्ड को बुला लाए। फिर गुरुनूर से बोली,
"पुराना गार्ड दिनेश आजकल अपने गांव में है। नया गार्ड उसकी पहचान का है। वह आपको उसका पता दे देगा।"
सहायक गार्ड को लेकर आ गया। प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान ने उससे कहा कि वह गुरुनूर को दिनेश का पता बता दे। गार्ड ने पता बता दिया। उसके बाद बोला,
"मैडम मेरी ड्यूटी का समय खत्म हो रहा है। मैं घर जाऊँ।"
प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान ने कहा,
"मैडम के जाने के बाद गेट बंद करके चले जाना।"
गार्ड चला गया। प्रिंसिपल राजेश्वरी सचान ने कहा,
"इसकी ड्यूटी शाम छह बजे तक रहती है। उसके बाद यह गेट बंद करके चला जाता है।"
गुरुनूर ने उठते हुए कहा,
"धन्यवाद अब आगे कोई सहयोग चाहिए होगा तो बताएंगे।"
गुरुनूर जाते हुए पलट कर बोली,
"मैनेजमेंट से कहिए कि बच्चों की सुरक्षा के लिए गेट पर सीसीटीवी कैमरा लगवा लें। अगर सीसीटीवी कैमरा होता तो सारी हलचल के बीच भी वह अपना काम कर लेता।"
यह कहकर वह अपने साथियों के साथ निकल गई।

जीप अभी कुछ आगे गई होगी कि गुरुनूर को भेलपुरी का एक ठेला दिखाई पड़ा। उसने जीप उसके पास रोकने को कहा। इंस्पेक्टर कैलाश जोशी ने कहा,
"मैडम मैं एक जगह ले चलता हूँ। वहांँ लाजवाब भेलपुरी मिलेगी।"
गुरुनूर ने उतरते हुए कहा,
"इस ठेले की भेलपुरी मेरे लिए अच्छी होगी।"
सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे समझ गया था कि गुरुनूर को भेलपुरी नहीं खाना है। पर करना क्या चाहती है समझ नहीं पा रहा था। पुलिस को अपनी तरफ आते देखकर भेलपुरी वाला घबरा गया था। उसने कहा,
"आइए मैडम हमारी भेलपुरी मुंबई का मज़ा देती है। बताइए कितनी प्लेट बनाना है।"
गुरुनूर ने कहा,
"पास में एक स्कूल है। तुम उसके सामने भी ठेला लगाते हो ?"
इस पूछताछ से भेलपुरी वाला और अधिक घबरा गया। सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे गुरुनूर का मक़सद समझ गया था। ठेले पर रामेश्वर लिखा था। उसने उसे तसल्ली देते हुए कहा,
"रामेश्वर भइया घबराने की बात नहीं है। बस एक केस के सिलसिले में थोड़ा पूछताछ कर रहे हैं। और भी लोगों से पूछा है।"
रामेश्वर अपना नाम सुनकर शांत हुआ। उसने कहा,
"आप हमें जानते हैं।"
"सुना था कि रेड रोज़वैली स्कूल के बाहर आप बच्चों में बहुत मशहूर हैं। एक लड़का अमन पाहुजा था उसने बताया था कि अक्सर आपके ठेले पर आता था।"
रामेश्वर भी बात समझ गया। वह बोला,
"अमन अक्सर नहीं आता था। पर अच्छा लड़का था। एकबार उसने भेलपुरी खाई तो बड़ा नोट पकड़ा दिया। हमारे पास छुट्टा था नहीं। हमने छुट्टा लाने को कहा। वह बोला कि नोट रख लो। आप तो रोज़ ही यहांँ खड़े होते हो। कल बाकी के पैसे वापस कर दीजिएगा। उसके बाद दो दिन छुट्टी थी। तीसरे दिन हम बाकी पैसे लेकर उसका इंतज़ार कर रहे थे। छुट्टी में अपने एक दोस्त को लेकर आया था। उन लोगों ने एक एक भेलपुरी खाई। मैंने उसके पैसे काटकर बाकी वापस कर दिए। तब उसने अपना नाम बताया था। याद रह गया क्योंकी आज के जमाने में हम गरीब लोगों पर इतना विश्वास कौन करता है।"
गुरुनूर ने कहा,
"आपको अमन के बारे में पता है।"
"जी सुना है कि स्कूल आया था पर घर नहीं गया। उसके बाद कुछ दिन हम भी बीमार रहे। कोई और खबर नहीं मिली।"
गुरुनूर ने कहा,
"जिस दिन अमन गायब हुआ था उस दिन तो आपने ठेला लगाया था। कुछ देखा था आपने ?"
रामेश्वर कुछ सोचकर बोला,
"कुछ खास नहीं। उसको गेट पर खड़े गार्ड से कुछ बात करते देखा था।"
यह बात नई थी। गार्ड ने अपने बयान में ऐसा कुछ नहीं कहा था कि उसकी अमन से कुछ बात हुई थी। गुरुनूर ने कहा,
"बहुत बहुत धन्यवाद रामेश्वर जी। आप तीन प्लेट बनाकर बांध दीजिए।"
रामेश्वर ने खुशी खुशी तीन प्लेट भेलपुरी पैक कर दी।

गगन उस बस के पीछे अपनी बाइक लेकर चल रहा था जिसमें निशांत अपने परिवार के साथ था। बंसीलाल की दुकान से उठकर वह बस स्टैंड पर आकर खड़ा हो गया था। कुछ देर बाद उसे निशांत अपने परिवार के साथ बस में चढ़ता दिखाई पड़ा। जैसे ही बस पालमगढ़ के लिए आगे बढ़ी गगन ने अपनी बाइक बस के पीछे लगा दी। निशांत की बेटी किशोर उम्र की थी। गगन को देखते ही लगा था कि ज़ेबूल की सहचरी हब्बाली को प्रसन्न करने के लिए उसकी भेंट अच्छी रहेगी। उसने निशांत को पालमगढ़ की बस के बारे में पूछते हुए सुना था। इससे स्पष्ट था कि वह पालमगढ़ का रहने वाला तो नहीं है। लेकिन शायद वहांँ ठहरने की कोई व्यवस्था है। गगन जानना चाहता था कि वह कहाँ ठहरेगा।
पालमगढ़ के बस अड्डे पर निशांत अपनी पत्नी और बच्ची के साथ उतरा। गगन कुछ दूर खड़ा देख रहा था कि वह आगे किधर जाता है। तभी किसी ने उसे आवाज़ दी,
"गगन भइया बस अड्डे पर क्या कर रहे हो ?"
गगन ने देखा कि जिस जगह वह किराए का कमरा लेकर रहता है उसी जगह पर रहने वाला जगत उसे आवाज़ दे रहा था। वह कुछ कहता तब तक जगत उसके पास आ गया। उसने वही सवाल दोहराया। गगन ने टालने के लिए कहा,
"एक दोस्त को लेने आया था।"
यह कहकर उसने बस की तरफ देखा। निशांत और उसके परिवार का कोई पता नहीं था। इतनी ही देर में तीनों जाने कहांँ चले गए थे। गगन को जगत पर बहुत गुस्सा आया पर वह बोला कुछ नहीं। बाइक स्टार्ट करके वह बस अड्डे के आसपास उन्हें तलाशने लगा। लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली।