(4)
लाश वाली जगह से लौटते हुए गुरुनूर शांति कुटीर पर रुकी। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह और कांस्टेबल हरीश के साथ अंदर गई। अंदर इमारत किसी आश्रम की तरह लग रही थी। गेट से अंदर की तरफ एक रास्ता जा रहा था। उसके दोनों तरफ लॉन था। उसमें पेड़ पौधे लगे थे। कुछ आगे जाने पर एक कंपाउंड था। उसके सामने एक भवन था। चारों तरफ कुटी के आकार के छोटे छोटे भवन बने थे। एक व्यक्ति उन लोगों के पास आया। नमस्कार करके बोला,
"मेरा शुबेंंदु है। आप लोगों का यहाँ कैसे आना हुआ ?"
कांस्टेबल हरीश ने गुरुनूर का परिचय देते हुए कहा,
"मैडम एसपी गुरुनूर कौर ने आज ही सरकटी लाशों के केस की ज़िम्मेदारी संभाली है। उन्हें शांति कुटीर के बारे में पता चला तो दीपू दा से मिलने आई हैं।"
शुबेंदु ने कहा,
"दीपू दा तो पीछे फार्म में हैं।"
गुरुनूर ने कहा,
"पीछे फार्म है।"
"जी....वहाँ हम फल और सब्जियां उगाते हैं। आश्रम के काम आ जाती हैं। दीपू दा कुछ वक्त वहाँ भी बिताते हैं। आप चाहें तो मैं उधर ले चलूँ।"
शुबेंदु की बात सुनकर गुरुनुर ने कहा,
"आई हूँ तो उनसे मिल लूँ। इन लोगों से बहुत कुछ सुना है उनके बारे में।"
शुबेंदु ने उन्हें साथ आने के लिए कहा। तीनों उसके पीछे चल दिए। शुबेंदु ने भवन की तरफ इशारा करते हुए कहा,
"यह दीपू दा का आवास है। उनके साथ मैं और आश्रम के कुछ और कार्यकर्ता रहते हैं। इसके चारों तरफ बनी कुटियों में मेहमान रहते हैं।"
मुख्य भवन के बगल से एक रास्ता था जो फार्म की तरफ जा रहा था। शुबेंदु उन्हें उस रास्ते पर ले गया। कुछ आगे जाने पर फार्म दिखाई पड़ा। शुबेंदु के साथ चलते हुए तीनों एक जगह पर पहुँचे। वहाँ एक आदमी फार्म में काम करने वालों के साथ कुछ कर रहा था। शुबेंदु उसके पास जाकर बोला,
"दीपू दा एसपी गुरुनूर कौर आपसे मिलने आई हैं।"
दीपांकर दास ने पलट कर देखा। उसने हाथ जोड़कर कहा,
"नमस्कार एसपी साहिबा.... मैंने सुना था कि आपको विशेष जांच अधिकारी के तौर पर यहाँ भेजा गया है। मैं तो खुद आपसे मिलना चाहता था। आप आ गईं तो बहुत अच्छा लगा।"
गुरुनूर ने देखा कि दीपांकर दास लंबा इकहरे बदन का था। उसका रंग सांवला था। दीपांकर दास ने पैंट शर्ट पहन रखा था। ऊपर से गर्म सदरी थी। उसने अपने घुंघराले लंबे बालों को पीछे की तरफ बांध रखा था। देखने से पचास बावन साल का लग रहा था। उसने कहा,
"मैंने आपका आश्रम शांति कुटीर देखा। आपकी विशेष ध्यान तकनीक के बारे में सुना तो कौतुहल हुआ। इसलिए मिलने आ गई थी। पर आप व्यस्त हैं। बाद में कभी बात होगी।"
दीपांकर दास ने कहा,
"ऐसी कोई बात नहीं है। मैं तो बस फार्म पर काम करने वाले भाइयों को कुछ निर्देश दे रहा था। आप जो जानना चाहती हैं पूछ सकती हैं। अच्छा होगा कि हम बैठकर बात करें। आइए मेरे साथ।"
दीपांकर दास उन्हें फार्म में बने एक शेड में ले गया। वहाँ बेंत के बने मोढे़ रखे हुए थे। गुरुनूर को बैठा कर वह खुद भी एक मोढ़े पर बैठ गया। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह और कांस्टेबल हरीश भी बैठ गए। दीपांकर दास ने कहा,
"बताइए क्या जानना चाहती हैं आप ?"
गुरुनूर ने कहा,
"अपनी उस विशेष तकनीक के बारे में बताइए जिससे आप लोगों को मानसिक शांति प्रदान करते हैं।"
दीपांकर दास ने अपनी आँखें गुरुनूर के चेहरे पर टिका दीं। उसकी आँखें बड़ी थीं। उनमें एक गहराई थी। कुछ ही पलों में गुरुनूर को ऐसा लगा जैसे कि उन आँखों में सम्मोहन है। दीपांकर दास ने अपनी आँखें उसके चेहरे से हटाते हुए कहा,
"दरअसल यह ध्यान की ऐसी तकनीक है जिसमें व्यक्ति को कई अवस्थाओं से गुज़रना होता है। अंत में वह ध्यान की उस अवस्था में पहुंँच जाता है जहाँ उसका संबंध स्थाई रूप से अपने अंतर्मन से जुड़ जाता है। इस अवस्था में वह अपने आसपास के दुखों को भूलकर आनंद की स्थिति में रहता है।"
गुरुनूर को उसकी बात दिलचस्प लगी। उसने कहा,
"इसका कोई नाम तो होगा। अंतिम स्थिति में आने से पहले व्यक्ति को किन अवस्थाओं से गुज़रना पड़ता है।"
दीपांकर दास ने कहा,
"अंतिम स्थिति को अतींद्रिय चेतन अवस्था कहते हैं। यहाँ तक पहुँचने के लिए व्यक्ति को चार अवस्थाओं से गुज़रना पड़ता है। हर अवस्था को प्राप्त करने के बाद वह ऊपर की अवस्था की तरफ बढ़ता है।"
दीपांकर दास रुका। एक बार फिर गुरुनूर की तरफ देखा। फिर बोला,
"हमारे मन में बहुत सारे विचार चलते रहते हैं। पहली अवस्था में हम लोगों को सिर्फ अपने विचारों पर ध्यान देने के लिए कहते हैं। उन्हें बस ध्यान पूर्वक यह देखना होता है कि उनके मन में किस तरह के विचार आ रहे हैं। उन्हें ना तो विचारों को रोकने की कोशिश करनी होती है और ना ही उनके अच्छे और बुरे होने का विश्लेषण। सिर्फ यह देखना होता है कि विचारों की श्रृंखला किस प्रकार चल रही है। उसके बाद की अवस्था में हम उन्हें किसी आंतरिक या वाह्य चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने को कहते हैं। जैसे कि शांत कमरे में बैठकर अपने दिल की धड़कन को सुनना, अपनी सांसों की आवाज़ पर ध्यान लगाना। वाह्य रूप से दीपक की लौ, दीवार पर लटके कोई चित्र पर ध्यान केंद्रित करना होता है। यहाँ मन को काबू करने का प्रयास किया जाता है। आरंभ में इस अवस्था में बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है। क्योंकी कोई भी चीज़ आपका ध्यान भटका सकती है।"
गुरुनूर ध्यान से सबकुछ सुन रही थी। उसने कहा,
"बहुत रोचक है। पहले अपने विचारों को परखना है उसके बाद मन को नियंत्रित करने का प्रयास करना है।"
दीपांकर दास ने कहा,
"सही समझा आपने। दूसरी अवस्था में पारंगत होने में समय लगता है। जब हम मन को नियंत्रित करना सीख जाते हैं तो फिर तीसरी अवस्था में अपना ध्यान अपने अंतर्मन की तरफ केंद्रित करने की कोशिश करते हैं। इस अवस्था में अधिकतर लोग मंत्र के ज़रिए ध्यान लगाने का प्रयास करते हैं। इसके अतिरिक्त आप कोई शांत संगीत या प्रार्थना के माध्यम से भी ऐसा कर सकते हैं। समय के साथ साथ आप बाहरी स्थितियों से अपना मन हटाकर अपना ध्यान अपने अंतर्मन की तरफ केंद्रित करना सीख जाते हैं। उसके बाद सबसे महत्वपूर्ण अवस्था आती है।"
इस बार सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह ने कहा,
"दीपू दा वह कौन सी अवस्था है ?"
दीपांकर दास ने कहा,
"अभी तक हम जो कर रहे थे अपने काम से कुछ समय का विश्राम लेकर किसी एकांत स्थान पर कर रहे थे। अब हमको अपने आप को उस स्थिति में लाना होता है जहाँ हम अपने समस्त कार्यों को करते हुए भी अपने अंतर्मन से जुड़े रहते हैं। इसलिए यह सबसे महत्वपूर्ण है। हम चाहे कोई भी काम करें उसे करते हुए हम ध्यान की अवस्था में ही रहेंगे। इस अवस्था को पाने में सबसे अधिक समय लगता है। इस अवस्था में पारंगत होने के बाद ही व्यक्ति अतींद्रिय चेतन अवस्था में पहुँचता है। यह ऐसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति हर परिस्थिति में सम रहता है। यही उसके आनंद का कारण होता है।"
यह कहकर दीपांकर दास शांत हो गया। गुरुनूर ने कहा,
"आपकी यह तकनीक एक एक सीढ़ी चढ़कर ऊपर जाने की तकनीक है। कोई जादू टोना जैसा नहीं है।"
दीपांकर दास हंसकर बोला,
"हमारे मनीषियों ने हमेशा क्रमिक विकास पर बल दिया था। बाद में बहुत सारी इधर उधर की चीज़ें आ गईं। लोगों ने उन्हें अपने हिसाब से अपने स्वार्थ में प्रयोग करना शुरू कर दिया।"
वह रुका। गुरुनूर के चेहरे पर अपनी नज़रें टिकाकर बोला,
"हम अपने मन को एकाग्र कर उसे अंतर्मन से जोड़ना सीख जाएं तो ब्रह्मांड की अच्छी या बुरी किसी भी शक्ति को अपने बस में कर सकते हैं।"
गुरुनूर को एकबार फिर सम्मोहन सा महसूस हुआ। दीपांकर दास ने अपनी नज़रें हटाते हुए कहा,
"आप हमारे आश्रम में आई हैं। क्या सेवा कर सकते हैं आपकी। आप लोगों के लिए दूध मंगवाऊँ। हमारे आश्रम में गाएं भी हैं। ताज़ा शुद्ध दूध मिलेगा।"
गुरुनूर ने घड़ी देखी। यहाँ आए हुए करीब पौन घंटा हो गया था। उसने कहा,
"धन्यवाद....पर अब मुझे जाना होगा। कभी फुर्सत मिली तो आकर और विस्तार से बात करूँगी।"
गुरुनूर उठकर खड़ी हो गई। सब इंस्पेक्टर रंजन सिंह और कांस्टेबल हरीश भी खड़े हो गए। दीपांकर दास ने कहा,
"आप जब चाहें आ सकती हैं। यदि आपको समय मिले तो मैं आपको अपनी तकनीक के बारे में और अधिक बताऊँगा।"
गुरुनूर ने हाथ जोड़कर नमस्ते किया और वहाँ से निकल गई।
शांति कुटीर से निकल कर गुरुनूर कस्बे में एक दो जगहों पर और गई। लोगों से बातचीत की। उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस केस को जल्द से जल्द सॉल्व करने की कोशिश करेगी। दोपहर लंच के समय वह थाने लौटकर आई। लंच के बाद उसने विलायत खान को अपने केबिन में बुलाया। उसने कहा,
"चौथी लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट कब तक आएगी ?"
विलायत खान ने कहा,
"मैडम समय लग जाता है।"
"तो उनसे कहिए कि जल्दी करें।"
"जी मैडम..…."
यह कहकर विलायत खान चला गया। उसके जाने के बाद गुरुनूर एक बार फिर केस की फाइल लेकर बैठ गई। वह कुछ ऐसा खोजने की कोशिश कर रही थी जिससे आगे बढ़ने में मदद मिले। अभी तक सरकटी लाशों के मिलने के केस में किस दिशा में बढ़ा जाए यह समझ नहीं आ रहा था। अब तक जो रिपोर्ट मिली थी उससे थोड़ा सा भी अंदाज़ा नहीं लग पा रहा था कि इन सभी कत्ल की क्या वजह हो सकती है। कातिल कत्ल करने के बाद लाश के सर का क्या करता है। वह लाश को जंगल में खुला फेंक देने की जगह गाड़ क्यों नहीं देता है।
यह सब सोचते हुए उसके मन में दीपांकर दास का खयाल आया। उसने जो कुछ बताया था बहुत दिलचस्प था। लेकिन जितनी भी बार उसने दीपांकर दास की आंँखों में देखा था उसे अजीब सा सम्मोहन महसूस हुआ था।