Gyarah Amavas - 1 in Hindi Thriller by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | ग्यारह अमावस - 1

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ग्यारह अमावस - 1



(1)


हरिया ने एक नज़र जंगल में चरती अपनी भेड़ों पर डाली। सभी आराम से चर रही थीं। वह अपने खाने की पोटली लेकर चश्मे के पास चला गया। वहाँ एक पत्थर पर बैठकर उसने पोटली खोली। आज भी उसकी पत्नी ने रोटी और लहसुन की चटनी ही बांधी थी। यह देखकर वह बड़बड़ाने लगा,
"हर रोज़ वही। यह नहीं कि कभी कुछ और बना दिया करे। पर करें क्या जो भी है खाना पड़ेगा।"
यह कहकर वह चुपचाप खाने लगा। कुछ देर तो मन खिन्न रहा। फिर मन दूसरी तरफ चला गया। वह सोचने लगा कि उसकी पत्नी की भी क्या गलती है। वह जितना कमाता है उसी में वह घर चलाती है। उसकी कमाई बहुत अधिक नहीं है। भेड़ें उसकी अपनी तो हैं नहीं। दिनभर उन्हें चराने के बदले थोड़ी सी मजदूरी मिलती है। उसमें दो वक्त पेट भर जाए वही बहुत है। कुछ देर पहले उसके मन में अपनी पत्नी के लिए जो गुस्सा था, वह गायब हो गया था। अब वह अपनी किस्मत को कोसने लगा।
वह सोच रहा था कि कैसी फूटी किस्मत है। दिनभर की मजदूरी के बाद इतना भी नहीं मिलता है कि ठीक से खा सके। घर के नाम पर टूटी सी झोपड़ी है। वह भी उसका बाप छोड़कर गया था। उसकी मरम्मत करा सकने लायक पैसा भी नहीं बचता है। लगता है ज़िंदगी ऐसे ही बीत जाएगी।
खाना खाकर उसने चश्मे से पानी पिया। कुछ देर आराम करने के इरादे से पास ही एक पत्थर पर लेट गया। उसके दिमाग में अपने चचेरे भाई का खयाल आया। उसके चचेरे भाई की हैसियत उससे बहुत अच्छी थी। एक बार फिर उसे अपनी किस्मत पर गुस्सा आया। उसके दादा के पास जो था वह उसके बाप और चाचा के बीच बराबरी से बंट गया था। उसके बाप ने अपनी मनमानी के चक्कर में सब बर्बाद कर दिया। जाते हुए बस एक टूटी झोपड़ी देकर गया था। चाचा ने जो मिला था उसे संजोया। उसके भाई को दस जमात तक पढ़ाया भी। जो दादा से मिला था उसमें अपना भी जोड़कर दे गया था।
उसका चचेरा भाई खुशहाल था। अपनी भेड़ें थीं। खेती भी करता था। अच्छी पत्नी थी। एक बेटा भी था। जबकी उसकी शादी को पाँच साल हो गए थे पर वह निसंतान था। उसने आसमान की तरफ देखकर कहा,
"कौन सी कलम से हमारा भाग लिखा था तुमने। हर तरह से खाली हैं। एक बेटा ही दे दिया होता तो कम से कम कुछ दिनों में हाथ बंटाने लायक हो जाता। दो जन होते कमाने वाले।"
वह अक्सर भेड़ें चराते हुए आसमान की तरफ देखकर ऐसी ही बातें करता था। पत्थर पर लेटे हुए शरीर को कुछ अच्छा लग रहा था। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। उसे नींद आ गई।
कुछ देर बाद उसकी आँख खुली। आराम कर लेने से मन और शरीर दोनों ही हल्के हो गए थे। वह उठकर खड़ा हो गया। अंगड़ाई ली और अपनी भेड़ों के पास चला गया। उसने उनकी गिनती की। उसे कुछ गड़बड़ लगी। वह उनके पास जाकर एक एक को गिनने लगा। एक भेड़ कम थी। वह परेशान हो गया। अपना सर पकड़ कर बैठ गया। अब उस भेड़ की कीमत उसके सर जाती। उसके बस का नहीं था कि वह भेड़ की कीमत चुका पाता।
कुछ पलों तक वह अपना सर पकड़े बैठा रहा। वह पछता रहा था कि वह आराम करने के लिए क्यों लेटा था। खाना खाकर सीधे भेड़ों के पास क्यों नहीं आ गया था। फिर उसे लगा कि ऐसे ही बैठे रहने से काम नहीं चलेगा। उसे भेड़ तलाशनी पड़ेगी। वह भटक गई होगी। भेड़ों को लेकर आज वह जंगल में कुछ अंदर आ गया था। वह उठा और भेड़ को बुलाने के लिए आवाज़ लगाते हुए उसे तलाश करने लगा।
कुछ और अंदर जाने के बाद उसे भेड़ की आवाज़ सुनाई पड़ी। उसकी जान में जान आई। वह आवाज़ की तरफ भागकर गया। उसकी भेड़ एक गड्ढे में गिरी हुई थी। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी भेड़ को बाहर निकाला। जब भेड़ गड्ढे से निकल आई तो वह कुछ देर सुस्ताने के लिए बैठ गया। अब उसे अजीब सी दुर्गंध आनी शुरू हो गई थी। इससे पहले अपनी परेशानी में उसने ध्यान नहीं दिया था। वह उठकर इधर उधर देखने लगा। कुछ दूर झाड़ियों के पीछे एक लाश थी। लाश का सर कटा हुआ था। लाश की हालत खराब थी। वह घबरा गया। अपनी भेड़ को लेकर वह फौरन वहांँ से निकल गया। उस जगह आया जहाँ बाकी की भेड़ें थीं। उन सबको झुंड में किया और हांकते हुए अपने घर की तरफ चल दिया।
हरिया लाश को देखकर डर गया था। इसलिए अपनी भेड़ों को लेकर वह समय से पहले घर लौट गया था। रात भर वह लाश के बारे में सोचता रहा। सुबह उठकर वह पुलिस स्टेशन गया और सारी बात बताई।
थाना प्रभारी विलायत खान अपनी टीम के साथ उस जगह जा रहे थे जहाँ हरिया ने कल लाश देखने की बात कही थी। इस समय हरिया भी उनके साथ था। उस जगह पहुँचने पर सबने दस्ताने पहन लिए और मुंह पर रुमाल बांध लिया। विलायत खान के साथ सब इंस्पेक्टर आकाश दुबे था। उसने कहा,
"सर किसी ने सर काटकर हत्या की है‌। हो सकता है कि सर आसपास में कहीं पड़ा हो।"
पुलिस टीम ने आसपास छान मारा पर सर नहीं मिला। लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया।
बसरपुर एक पहाड़ी कस्बा था। उसके आसपास छोटे छोटे गांव थे। चारों तरफ पहाड़ थे जिनमें घने जंगल थे। बसरपुर कस्बे में अधिकांश नौकरी करने वाले लोग थे। कुछ छोटे व्यापारी थे। कुछ लोग कस्बे से कुछ दूर शहर में नौकरी के लिए भी जाते थे। बसरपुर के लोग बड़े शांत और संतुष्ट लोग थे। तीज त्यौहार पर कस्बे में खूब धूम रहती थी।
कस्बे में एक लोकल अखबार आता था। इस अखबार का नाम था रोज़ाना। रोज़ाना में बसरपुर और उसके पास के शहर की ख़बरें छपती थीं। रोज़ाना में जब लोगों ने पूरब के पहाड़ के जंगल में सरकटी लाश मिलने की खबर पढ़ी तो सब परेशान हो गए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक लाश किसी किशोरवय के लड़के की थी। लोग चर्चा कर रहे थे कि आखिर किस ने उसकी हत्या की होगी और क्यों ? किसी के पास भी इसका जवाब नहीं था। पुलिस भी कुछ पता नहीं कर पाई थी‌।
अभी लोग पहली लाश मिलने के बारे में ही बात कर रहे थे कि उसके कुछ दिनों के बाद पश्चिमी पहाड़ के जंगल से एक और लाश मिलने की खबर रोज़ाना में छपी‌। लोग फिर परेशान हो गए। अटकलें लगाने लगे। जब पूरब वाले पहाड़ के जंगल से तीसरी लाश मिली तब तो हड़कंप मच गया। अब लोग डर गए थे। सूरज ढलने के बाद घर से बाहर निकलने में डरते थे। जिन्हे शहर से लौटने में देर हो जाती थी वो कोशिश करते थे कि लौटते समय एकसाथ रहें।
लोगों में डर भी था और उन्हें इस माहौल से परेशानी भी हो रही थी। कुछ लोगों ने पुलिस स्टेशन जाकर थाना प्रभारी विलायत खान से इस केस के दोषी को पकड़ने की प्रार्थना की।

एसपी गुरुनूर कौर ने कुछ समय पहले ही एक किडनैपिंग रैकेट का पर्दाफाश किया था। प्रेस और मीडिया में उसकी खूब तारीफें हो रही थीं। वह बहुत खुश थी। अभी कुछ समय पहले ही वह पुलिस स्टेशन पहुँची थी। उसे सूचना मिली कि पुलिस कमिश्नर उससे मिलना चाहते हैं। वह उनसे मिलने के लिए उनके ऑफिस चली गई।
पुलिस कमिश्नर ने अपने ऑफिस में उसका स्वागत किया। उसकी तारीफ करते हुए बोले,
"एसपी गुरुनूर कौर तुमने बहुत बहादुरी के साथ उस किडनैपिंग रैकेट का भंडाफोड़ किया। प्रेस और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सभी जगह तुम्हारी तारीफ हो रही है।"
गुरुनूर कौर ने बड़े अदब के साथ कहा,
"थैंक्यू सर यह आपकी ट्रेनिंग का नतीजा है। मैं और मेरे बैचमेट बहुत खुशकिस्मत थे कि आपके अंडर ट्रेनिंग करने का अवसर मिला।"
पुलिस कमिश्नर ने कहा,
"गुरु की शिक्षा को ‌सही तरह से प्रयोग करना भी एक गुण है। वह तुम्हारे अंदर है।"
यह कहकर वह गंभीर हो गए। गुरुनूर इंतज़ार कर रही थी कि वह आगे कुछ कहें। कुछ देर बाद पुलिस कमिश्नर बोले,
"तुम्हें यहाँ बुलाने का एक खास कारण है।"
"कहिए सर क्या बात है ?"
पुलिस कमिश्नर ने कहा,
"पालमगढ़ हिल स्टेशन के पास बसरपुर नाम का एक कस्बा है। चारों तरफ पहाड़ों से घिरा है। जिन पर घने जंगल हैं। वैसे तो बसरपुर एक शांत कस्बा है पर पिछले कुछ समय से वहाँ खौफ का माहौल है।"
गुरुनूर ने पूछा,
"ऐसा क्या हुआ है सर ?"
पुलिस कमिश्नर ने उसे सारी बात बताकर कहा,
"तुमको वहाँ स्पेशल इन्वेस्टिगेशन अधिकारी के तौर पर भेजा जा रहा है। एक और पेचीदा केस है। डिपार्टमेंट ने तुम पर भरोसा जताया है। यह बड़ी बात है।"
सुनकर गुरुनूर सोच में पड़ गई। पुलिस कमिश्नर ने कहा,
"क्या बात है गुरुनूर ? तुम तो चुनौतियों से पीछे नहीं हटती हो।"
"सर अभी भी पीछे नहीं हट रही हूँ। बस अभी कुछ दिन पहले ही मेरे डैडी और मम्मी मेरे साथ रहने आए थे। डैडी कुछ बीमार रहते हैं।"
पुलिस कमिश्नर ने कहा,
"तुम उनकी फिक्र मत करो। उनके रहने और देखभाल की व्यवस्था हो जाएगी। फिर इस केस के लिए विशेष तौर पर भेजी जा रही हो। केस सॉल्व होते ही वापस आ जाना।"
गुरुनूर कौर उस जटिल केस की जांच करने के लिए जाने को तैयार हो गई। घर जाकर उसने अपने डैडी मम्मी को सारी बात बताई। उसके डैडी ने कहा,
"फौजी की बेटी हो तुम। तुम्हारे लिए हर रिश्ते से ऊपर फर्ज़ है। हमारी फिक्र मत करो। जो ज़िम्मेदारी मिली है उसे जाकर पूरा करो।"
अपने डैडी से हौसला पाकर गुरुनूर बसरपुर जाने की तैयारी करने लगी।