Dani ki kahani - 17 in Hindi Children Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दानी की कहानी - 17

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दानी की कहानी - 17

दानी की कहानी

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दानी बहुत दिनों बाद बच्चों से मिल सकीं | दानी कुछ दिनों के लिए अपनी सहेलियों के साथ पर्यटन पर चली गईं थीं |

जैसे ही वे वापिस आईं ,बच्चों ने उन्हें अपने झुरमुट में घेर लिया |
सबकी आँखों में कई अन्य सवालों के साथ एक बड़ा सवाल भरा हुआ था |

दानी हमारे लिए क्या लाई होंगी ? लेकिन यह नहीं पूछा ,उन्होंने कहा ;

"दानी ! आप नहीं थीं तो हमें किसी ने कहानी भी नहीं सुनाई --"

" अब मैं आ गई हूँ न ! अब ससुनाउंगी न कहानी---"

दानी व उनकी पुत्र -वधु मुस्कुरा रहे थे | बच्चों की आँखों में ललक देखकर वे समझ रही थीं कि बच्चे उनसे क्या पूछना चाहते हैं |

"दानी को फ़्रेश तो होने दो --जो लाई होंगी ,मिल जाएगा न !"

"हमने तो कुछ कहा नहीं ,आप क्यों ऐसा बोल रही हैं --" टीनू जी ने बड़ी स्मार्टली कहा |

"अच्छा ! जैसे तुम्हारी शरारत मैं समझती ही नहीं ---"मुस्कुराकर वे दानी के लिए चाय-नाश्ते का इंतज़ाम करने रसोईघर में चली गईं जहाँ महाराज खाना बनाने की तैयारी में थे |

लेकिन बच्चे तो बच्चे ठहरे ,उन्हें कहाँ चैन था |दानी के वॉशरूम जाने के बाद वे उनके पीछे -पीछे दरवाज़े तक गए |

बड़े भैया के पुकारने से वे वापिस आए |

"ये क्या पागलपना है ?दानी को चैन तो लेने दो ----"

थोड़ी देर में दानी फ़्रेश होकर लौटीं तो मन ही मन मुस्कुरा रहीं थीं | सबके लिए कुछ न कुछ तो लाना ही था ,लाईं भीं|

छुटकी रूठकर बैठी थी ,उसे लगता था कि दानी उसके लिए मोबाइल लाएँगी लेकिन वो तो उसके लिए चित्रात्मक पुस्तकें और गुड़िया लेकर आईं थीं |

"कितनी गुड़िया हैं मेरे पास ,आप फिर से गुड़िया ले आईं | मुझे नहीं खेलना इससे --" उसकी आँखों में आँसू भर उठे |

दानी को बड़ा खराब लगा ,अभी केवल पाँच बरस की थी छुटकी फिर अभी से मोबाइल देने कि क्या तुक थी ?

ये कैसा ज़माना आ गया है ,बच्चे पुस्तकों की जगह मोबाइल में सिर घुसे बैठे रहते हैं |

उन्होंने छुटकी को समझाने की काफ़ी कोशिश की लेकिन वह तो नाराज़ ही बैठी रही |

महाराज की बेटी भी छुटकी के बराबर ही थी | दानी बोलीं ;

"ठीक है ,मैं सोना को दे देती हूँ तुम्हारी गुड़िया ,तुम्हारे पास तो बहुत हैं ---हमें शेयर करना आना चाहिए "

छुटकी चौंक उठी ,सोना दूर से ललचाई नज़रों से उसकी खूबसूरत गुड़िया को देख रही थी |

" नहीं दानी ,अब जब आप ले ही आई हैं तो मैं इसे रख लेती हूँ ---" उसने बड़े नखरे से दानी से कहा |

"नहीं ,अब तो मैं तुमसे लेकर सोना को दे ही दूँगी ,देखो वह कैसे देख रही है !

छुटकी घबरा गई मोबाइल तो अभी मिलेगा नहीं और गुड़िया भी हाथ से जाएगी | उसने नई गुड़िया अपनी बाहों में समेट लिया |

न जाने अचानक उसे क्या हुआ ,उसे लगा कि उसके पास तो बहुत गुड़िया हैं | उसे सोना को भी एक गुड़िया दे देनी चाहिए |

दानी बच्चों को बहुत समझाती थीं कि चीज़ों को बाँटना सीखें | कुछ चमत्कार ही हुआ कि छुटकी ने सोना को अपनी दूसरी एक गुड़िया दे दी |

सोना के चेहरे पर खुशी की चमक देखकर छुटकी को भी अच्छा लगा और दानी को तो अच्छा लगा ही | उनकी छुटकी शेयर करना सीख रही थी |

उन्होंने छुटकी से वायदा किया कि वे उसे मोबाइल दिलवा देंगी अगर दसवीं कक्षा तक वह प्रथम आती रही |

"ओह! इतने दिनों बाद ?" फिर थोड़ी देर में बोली ;

"आप ठीक कह रही हैं दानी ---हमारी पढ़ाई में इससे विघ्न पड़ता है न !?"

दानी प्रसन्न हो गईं ,उनकी छुटकी बड़ी समझदारी की बातें करने लगी थी |

डॉ. प्रणव भारती