"क्या बात है यार , मतलब शिकारी खुद ही शिकार बन गया ? साला, अपनी पत्नी की बलि चढ़ाने चला था, पत्नी के आशिक ने उसकी ही बलि चढ़ा दी।"
कहते हुए मैं ठहाके लगाकर हंसने लगा। उसने दुबारा मेरी तरफ देखते हुए गंभीरता से कहा।
" तब से लेकर अब तक शरिर का आधा नीचला हिस्सा रात के अंधेरे में कुएं से बाहर निकलने की कोशिश करता है और उपर का हिस्सा पुरे घर के भीतर हाथोंंके सहारे घसिटकर घुमाता रहता है । लेकिन चंद्र ग्रहण से कुछ दिन पहले वो आत्मा उस औरत को परेशान कर अपनी मौजूदगी का अहसास दिलाती है और चंद्र ग्रहण पर बली मिलने के बाद बलि दीये गये शरिर में प्रवेश कर उस औरत के शरीर को अगले चंद्र ग्रहण तक एक साल के लिए छोड़ देता है।"
" कैसी कैसी बकवास बातों पर तुम यकीन करते हो यार। गर्दन कांटों बलि दो, साला भुत भी नॉनव्हेजिटेरीयन लगता है।"
" ना। बलि तो दी जाती है, पर गर्दन काटकर नहीं बल्कि उसी घर की किसी आलमारी में रखी एक तेज धार वाली कुल्हाड़ी से। "
" कुल्हाड़ी से ?"
" हां वही कुल्हाड़ी जिससे दस साल पहले उस घर के मालिक के दो टुकड़े किए गए थे। उसी कुल्हाड़ी से वार कर के पेट से काटकर दो हिस्से किये जाते हैं। एक हिस्सा कुंऐ में फेंका जाता है तो दुसरा इसी घर में एक कमरे के भीतर अलमारी में रखा जाता है।"
"उस बेजान टुकड़े को अलमारी में रखने की क्या वजह है "
" बेजान नहीं । बल्कि कुछ शैतानी मंत्रों की वजह से वह शरीर अगले दिन सुबह तक जिंदा रहता है, और फिर उस शरीर पर शैतानी आत्मा कब्जा कर लेती है। अगले चंद्र ग्रहण तक शरिर के दोनों हिस्से रात के वक्त घर में घुसते रहते हैं।"
कहते हुए उसने एक पुराना न्युज पेपर मेरे हाथ में दिया। उपर शीर्षक लिखा था 'रात' और उसके नीचे पुरी कहानी लिखी थी जो मेरे दोस्त ने मुझे अब तक सुनाई थी। मैंने भाभी जी और मेरे दोस्त की तरफ देखते हुए कहां ।
" आप लोग भी ऐसी कहानियों पर यकीन कर बेवकूफ बनते हो। अरे यार ये सिर्फ एक कहानी है एक निकम््मे रायटर के खाली दिमाग की उपज। देखो नीचे लिखा भी है ये काल्पनिक कहानी है।"
" नीचे काल्पनिक इसलिए लिखा गया है की कोई रायटर पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने का केस ना ठोके।"
" ठीक है, मैं उस घर के भीतर जाऊंगा, रातभर रहूंगा, और सब कुछ देखूंगा, और ये सब बकवास है यह साबित करूंगा। वह भी इस आने वाले चंद्र ग्रहण की रात को।"
मेरा दोस्त मुझे समझाता रहा पर मैं अपनी बात पर अड़ा था।
शर्त के मुताबिक मैं रात करीब 10:00 या 10:30 बजे मैं इस घर में आया था। शुरू शुरू में कुछ भी अजीब नहीं लगा पर जैसे-जैसे रात होती गई वैसे वैसे कुछ अजीब सी घटनाएं मेरे साथ घटने लगी। जब घर का मेन डोअर खोलकर घर के भीतर आया और दरवाजा बंद कर लिया। सब कुछ शांत लग रहा था। घर के भीतर अंधेरा होने के कारण मैंने मोबाइल की टॉर्च ऑन कर दी। चलते चलते पुरा घर निहारने लगा। तभी मेरे साथ किसी और के कदमों की भी आवाज मुझे आ रही थी। पहले लगा शायद घर काफी दिनों से बंद होने की वजह से आवाज गूंज रही है पर कुछ ही देर में मेरा वहम दूर हो गया । क्योंकि एक जगह रुकने के बाद भी वह कदमों की आवाज आती रही और दरवाजा खुलने की आवाज के साथ बंद हो गई। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो घर का मेन डोर खुला हुआ था । मैं हैरान हो गया क्योंकि अंदर आते वक्त मैंने दरवाजा बंद कर लिया था। मुझे लगा कोई चोर या लुटेरा पुलिस से बचने के लिए यहां दुबक कर बैठा है। मैंने दुबारा दरवाजा बंद कर लिया और टॉर्च की सफेद रोशनी में घर को ठीक से देखने लगा। घर का सामान काफी पुराना हो चुका था। सोफ़ा, टेबल, अलमारी, छत पर लटकने वाला फॅन , दिवार पर टंगी पेंटिंग हर चीज पर धूल , मिट्टी की मोटी परत जमी हुई थी। छत के कोनों के साथ खिड़की पर लगे कांच के टुटे दरवाजों पर मकड़ी के जाले बने थे। टूटे हुए रोशनदान सब कुछ वैसा ही पड़ा था। फिल्मों में दिखाई जाने वाली भूतिया हवेली के जैसा घर का मंजर था। मैं कुछ ही कदम भीतर की ओर चला था कि तभी मेरे पीछे उस मेन डोर पर दस्तक हुई। लगने लगा जैसे कोई मेरे साथ मजाक कर रहा है। मैं गुस्से से दरवाजे की ओर तेजी से गया और दरवाजा खोला पर दरवाजे पर कोई नहीं था। दोनों तरफ ठीक से देखा ।
मैंने दरवाजा खुला ही छोड़ा और घर के भीतर आने लगा और उस वक्त मैने अपने साथ चलने वाले किसी और की आहट भी पूरी तरह से महसूस की। उन कदमों की आवाज सुनकर मैं रुक गया लेकिन वह कदम चलते ही रहे वह आवाज आती रही। आवाज कहां से आ रही हैं यह समझ नहीं आ रहा था, लेकिन वह आवाज दूर दूर जाते हुए साफ साफ सुन रहा था।
मैंने सोचा अंधेरे का फायदा उठाकर कोई मेरे साथ खेल खेल रहा है मतलब कोई और भी इस घर में पहले से ही मौजूद है । या मेरे दोस्त ने कोई प्लान बनाया है मुझे डराने का। और दोबारा सब कुछ जैसे शांत हो गया। ना कदमों की आवाज , ना कोई की आहट , ना किसी की मौजूदगी का एहसास । चारों ओर फैला गहरा सन्नाटा मुझे एहसास दिला रहा था कि मैं इस जगह अकेला हूं। पूरी तरह अकेला। मैं घर के अंदर उन सीढ़ियों से चल कर ऊपर आने लगाा। टॉर्च की सफेद रोशनी में वह लकड़ी की सीढ़ियां काफी कमजोर दिखाई दे रही थी। लग रहा था अगर थोड़ा सा भी ज्यादा वजन पड़ेगा तो वह बीच में से टूटकर मेरा पैर इस वीडियो के अंदर फस जाएगा। मैं संभल कर पैर रख रहा था। पर एक सीडी पर मेरी नजर गई। लग रहा था उस सीडी पर खून जम कर वह सूख चुका है। जैसे कई सालों से वह धब्बे वैसे ही उसी जगह पर है।ना किसी ने उनको देखा, ना किसी ने साफ किया। उन धब्बों पर पैर रखकर मैं ऊपर चला गया ऊपर दो कमरे थे। जिसमें से एक का दरवाजा थोड़ा खुला ही था। मोबाइल का टॉर्च ऑन करके मैंने रोशनी खुले दरवाजे से अंदर डाली। धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए कमरे के भीतर गया। पूरे कमरे में रोशनी डालते हुए सब कुछ ध्यान से देख रहा था।
क्रमशः