अगले दिन सुबह पोस्टमार्टम के बाद मेरी ज़िंदगी सफ़ेद कफ़न में लिपटी हुई मेरी आँखों के सामने ज़मीन पर लेटी हुई थी और मैं बदहवास सी उसके करीब अपनी मौत की आस लगाए बैठी हुई थी।ठहरना जैसा कोई शब्द समय की किताब में नहीं लिखा है और इसीलिए समय कभी भी नहीं ठहरता,किसी के लिए भी नहीं।तो फिर भला वो मेरे लिए कैसे ठहरता!!
मेरी ज़िंदगी के खत्म होने के बाद भी मेरी साँसें अनवरत चलती रहीं और इनके चलते हुए कुछ ही समय में मुझे ये एहसास भी हो गया कि अब इनको चलाने के लिए मेरा चलना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि मेरे साथ-साथ किसी और की आवश्यकताओं की जिम्मेदारी भी अब सिर्फ और सिर्फ मेरी थी और वो थीं समीर की माँ...ऊषा देवी।
किसी नें सच ही कहा है कि समय बदलते देर नहीं लगती जो ऊषा देवी किसी समय मेरे घर से बाहर जाकर नौकरी करने को चरित्र-हनन की श्रेणी में गिना करती थीं आज वो ही ऊषा देवी स्वयं ही मुझसे रोज बाहर जाकर कुछ काम करने के लिए प्रोत्साहित कर रही थीं।दरअसल कुछ दिनों से समीर की कंपनी में छंटनी चल रही थी जिसका शिकार उसके कई दोस्त हो चुके थे और शायद उस दिन उसकी बारी थी मगर मुझे फिर भी ये समझ में नहीं आता कि अब जबकि मेरी इतनी अच्छी नौकरी लगने वाली थी,अगले दिन ही मेरी ज्वाइनिंग भी थी तो फिर समीर नें अपनी नौकरी के जाने का इतना तनाव क्यों किया कि बेखयाली में उसका स्कूटर ही डिवाइडर से जा भिड़ा और फिर वो डीटीसी की बस उसे बड़ी ही बेरहमी से कुचलकर आगे बढ़ गई जैसा कि मुझे उन पुलिसकर्मियों ने बताया था।
मैं रात भर नहीं सो पाती बस अपने गालों पर कभी आँसुओं की गर्माहट तो कभी उनकी ठंडक महसूस करते हुए सारी रात गुज़ार देती हूँ।आखिर कैसे भूलूँ मैं उसे जिसनें मुझे मेरी बेदर्द सी ज़िंदगी को भुलाने का खूबसूरत मौका दिया था।समीर के साथ बिताया हर एक लम्हा, हर पल मेरी आँखों के सामने नाचता रहता है और रात के सन्नाटे में तो इन सभी जज़्बातों की पकड़ मुझपर और भी ज्यादा सख्त हो जाती है।
इंश्योरेंस के पैसे मिलने में अभी लम्बे इंतज़ार की ज़रूरत थी और इस बीच जैसे-तैसे अपनी सेविंग्स से घर चलाते हुए मेरे सामने अब एक बड़ा खर्चा आ गया था जिसनें मुझे मायूसी और तन्हाई से अब जल्दी ही बाहर निकलने का कठोर एहसास करवाया।दरअसल ऊषा देवी को काला-मोतिया की शिकायत हो गई और उनका इलाज व ऑपरेशन बहुत ज़रूरी था तो बस मैंने उनका इलाज करवाना शुरू किया और स्मिता मैम से अपनी नौकरी के सिलसिले में बात की।हालांकि वो जगह जिसपर मेरा सिलेक्शन हुआ था वो तो भर चुकी थी मगर उसी स्कूल में मुझे असिस्टेंट-टीचर की जगह पर सत्ताइस हज़ार रुपये मासिक वेतन पर रख लिया गया।मैंने स्कूल में अपनी छुट्टी की बात पहले ही कर ली थी जो कि मैं आने वाले दिनों में ऊषा देवी के ऑपरेशन के वक्त लेने वाली थी।समय अपनी सामान्य गति से बढ़ता जा रहा था मगर मेरे लिए तो अब कुछ भी सामान्य नहीं था।समय बेशक अपनी गति से बढ़ रहा था मगर मैं बस एक जगह ठहरकर ही रह गई थी।मेरे अरमान,मेरी ख्वाहिशें और मेरे सारे सपने तो जैसे समीर के साथ ही चले गए बची रह गई तो बस मैं....सुमन!
ऊषा देवी का ऑपरेशन हो गया और उनके स्वस्थ्य हो जाने पर मैंने अपना स्कूल भी फिर से ज्वाइन कर लिया।समीर के जाने के बाद मेरे पैर ही नहीं पड़ना चाहते थे घर से बाहर मगर अब सोचती हूँ कि क्या मैं घर के अंदर रहकर अभी तक ज़िंदा भी रह पाती??यहाँ स्कूल में इन बच्चों के बीच मेरा वक्त कुछ आसानी से कट जाता है।इनके सवालों और जवाबों के बीच उलझकर मैं भी वक्त के साथ कुछ आसानी से गुज़रने लगी हूँ।घर पर तो मैं जितने भी वक्त रहती हूँ ऊषा देवी के तानों और विषभरे तीरों की बौछार वो मुझपर कभी सामने से सीधे तो कभी फोन पर किसी रिश्तेदार से बात करते हुए तो कभी किसी मोहल्ले-पड़ोस वाले से बतियाते हुए वो करती ही रहती हैं।अब मैं सिर्फ भिखमंगों की बेटी ही न रहकर उनके लिए मनहूस,अपशकुनी और करमजली तक बन चुकी हूँ और हाँ उनके बेटे की मौत का कारण भी!!
आज पूरे एक साल के बाद पूजा भारत आ रही है,उसके सास-ससुर जी की पचासवीं सालगिरह यानि कि उनकी गोल्डेनजुब्ली मनाने के लिए और वो समीर की बरसी में भी शामिल होना चाहती है इसलिए वो इस बार यहाँ पूरे दो महीने रुकने का इरादा लेकर आ रही है।
क्रमशः...
लेखिका...
💐निशा शर्मा💐