Last Question in Hindi Women Focused by Narayan Menariya books and stories PDF | आखरी प्रश्न

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आखरी प्रश्न

आखरी प्रश्न - तुम क्यों अपनी आवाज़ नही उठाती ? मेरी लिखी हुई कविताओं मेसे एक सबसे प्रिय कविता है, जो कि समाज में औरत की स्थिती का वर्णन करती हैं। इस कविता मे मैने एक औरत के जन्म से होकर, उसकी जवानी से लेकर बुढ़ापे तक के पूरे सफर का वर्णन किया है। किस तरह से लोग लड़कियों को झाड़ियों-नालियो मे फ़ेंक देते हैं, दहेज़ के नाम पर किस तरह शादी के मंडप में हि औरत को बेबस बना दिया जाता हैं । यह कविता इन सब स्थितियों का वर्णन करती हैं।

आख़री प्रश्न- तुम क्यों अपनी आवाज़ नहीं उठाती?

तुम भी मुठ्ठी बांध कर दुनिया मे आईं,
ओर में भी मुठ्ठी बांध कर दुनिया मे आया ।
मेरा मुठ्ठी बांधना, समाज मे मेरा डंका बजाने जैसा था
लेकिन...
तुम्हारा मुठ्ठी बांधना, एक कोने मै थिर-थुराती दाढ़ी को गुटनो के बीच छुपाने जैसा लगा मुझे।

सब चाहते थे कि मै आंखे खोलकर उन्हें सबसे पहले देखू,
पापा चाहते थे कि सबसे पहले में दिखु,
तो दादा-दादी, चाचा-चाची चाहते थे कि नही सबसे पहले हम दिखे।

इसलिए मेरी आंखो मे भी रोनक थी,
लेकिन...
तुम्हारी आंखे मुझे डरी-डरी सी लग रही थी,
उनमें रोनक नही थी।
और जब तूने आंखे खोली तो,
तुम्हे या तो झाड़ियों के कांटे दिखे,
या नाली में तुम्हारी तरह जन्म लेते कीड़े दिखे।
फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि उन कीड़ों मकोड़ों के साथ उनकी मां तो थी कम से कम,
लेकिन...
लेकिन तुम्हारे साथ तो तुम्हारी मां भी नही थी।

मै चाहता था कि बड़ा होकर पूरी दुनिया से मिलू,
लेकिन...
तुम तो इस दुनियां के सामने अपनी जिंदगी के लिए जंग लड़ना चाहती थीं।

मै अपनी मां कि गोद में बड़ा हुआ,
उसने मुझे खाना खिलाया- दूध पिलाया,
लेकिन...
तुम,
तुम कैसे बड़ी हुई?
तुम्हारा नाम किसने रखा?

मै शादी करने गया,
तो मेरा मान- समान हुआ, स्वागत हुआ ।
आज तुम्हारी शादी है,
लेकिन...
तुम्हे तो मंडप मे भी बेबस ओर लाचार बना दिया ।
जरुरत तुम्हारी उन्हें थी,तुम्हे उनकी नही
फिर क्यों तुम इतनी बेईज्जत हुई?
तुमने क्यों अपनी आवाज़ नहीं उठाई?


शादी के बाद आज जब तुम पहली बार अपने नए घर मे आईं,
तो तुम्हे, तुम्हारे पति का जूठा खाना, खाना पड़ा।
लेकिन...
तुम जानते हुए भि अनजान बनी रही।

जब बचपन मे तुम्हारा छोटा भाई तुम्हे मारता था,
तो भी तुम ही डांट खाती थी,
ओर आज जब तुम्हारा पति तुम्हे मारता है,
तो ये समाज तुम्हे ही ग़लत क्यों ठहराता है?
इस समाज ने, मुझे(आदमी) को हमेशा अपनाया है,
ओर तुम्हे(औरत) को हमेशा ठुकराया है।
मै पूछता हूं,
आखिर क्यों तुम अपनी आवाज़ नहीं उठाती?


तुमने जिंदगी भर,
अपने पति, पिता, पुत्र, सांस- ससुर सबकी सेवा कि
ओर आज जब तुम बीमार हो, लाचार हो
तो तुम्हे कोई एक लौटा भर कर पानी भी नहीं पीला सकता?


मै तो तुम्हारा सारा ऋण भी भूल चुका हूं,
लेकिन आज जब तुम बीमार हों, लाचार हो,
तो मुझे अपना ऋण याद क्यों नहीं दिलाया?
मै पूछता हूं,
आखिर क्यों तुम अपनी आवाज़ नही उठाती?

तुम्हारा पति आज दूसरी शादी करना चाहता है
तो तुम उसकी तैयारी मे जुट गई।
तुमने हमेशा पीछे रहकर सबको आगे बढ़ाया,
सबको अपनी मंज़िल दिलाई
लेकिन...
तुमने कभी अपनी मंज़िल की पहली सीढ़ी पर भी पांव नहि रखा।

सच कहूं, तुम्हारी ना तो कोई मंज़िल थी, ओर नाही उस तक जाने का कोई रास्ता
क्योंकि, तुम्हारी मंज़िल हमने बनाई थी।

मुझे माफ़ करना,
मे कोशिश तो बहुत करता हूं सबसे लडने कि
लेकिन...हार जाता हूं।
हा, मेरा आखरी प्रश्न है तुमसे,
आखिर क्यों तुम अपनी आवाज़ नहि उठाती?