एक ही घर में पल रहे स्वाति और अभय एक दूसरे से बहुत अलग थे, जबकि गर्भ में दोनों एक साथ ही विकसित हुए थे। एक जैसे संस्कार पाकर भी एक ही घर के दो बच्चे इतने अलग हो सकते हैं, स्वाति और अभय उसके जीते जागते उदाहरण थे।
जहाँ स्वाति मेहनत और लगन से पढ़ाई करने वाली थी, वहीं बुद्धिशाली होने के बावजूद भी अभय का मन पढ़ाई में कम ही लगता था। स्वाति शांत और शर्मीली थी तो अभय चंचलता और मस्ती का प्रतीक था। स्वाति विनम्र स्वभाव के साथ आज्ञाकारी थी किंतु अभय को बात-बात पर गुस्सा आ जाता और कई बार वह बड़ों की आज्ञा का पालन भी नहीं करता था।
श्रद्धा और अजय हमेशा यह कोशिश करते कि अभय भी उनकी बेटी स्वाति की तरह मेहनत से पढ़ाई करे। वह स्वाति से अधिक ध्यान अभय की तरफ़ देते थे ताकि वह कभी ग़लत रास्ते पर ना चला जाए। बेटियों को बड़ा करने से ज़्यादा मुश्किल होता है, बेटों को बड़ा करना। माता-पिता के लिए यह एक अग्निपरीक्षा ही तो होती है कि उनके बच्चे कैसे निकलेंगे।
स्वाति और अभय जवानी की दहलीज़ पर क़दम रख चुके थे। बाली उम्र में जब परिपक्वता बहुत दूर होती है, लड़के लड़कियों को एक दूसरे के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक ही होता है। सही ग़लत का फ़र्क उन्हें नहीं पता होता। इस उम्र में बच्चों को सही मार्ग दिखाना माता-पिता के लिए चुनौतियों से भरा हुआ कठिन समय होता है। अजय और श्रद्धा भी इसी कोशिश में थे कि उनके दोनों बच्चे इस उम्र में कोई भी ग़लती ना करें और ग़लत संगत में ना पड़ जायें।
स्वाति हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम या द्वितीय आती थी, जबकि अभय केवल पास हो जाया करता था। अभय के साथ के लड़के भी उसी की तरह पढ़ाई में कम ध्यान देते और मस्ती में अधिक व्यस्त रहते थे।
कुछ दिनों से अभय और उसके दोस्तों ने लड़कियों को लगातार देखते रहना, उन्हें कुछ ना कुछ कमेंट कर परेशान करना शुरू कर दिया था। अपनी कक्षा की लड़कियों को वह कभी कुछ नहीं कहते, डरते थे कि कहीं स्वाति को पता ना चल जाए। स्वाति इन सब बातों से बेख़बर थी, उसके साथ की लड़कियाँ भी उसी की तरह पढ़ाई में अधिक रुचि रखती थीं।
कक्षा की शिक्षिका हमेशा अभय को समझातीं, "अभय तुम भी तुम्हारी बहन स्वाति की तरह अच्छे से पढ़ाई क्यों नहीं करते? तुम्हारे अंदर भी उतनी ही योग्यता है सिर्फ़ मेहनत की कमी है।"
अभय नीचे सर झुका कर यस मैडम के सिवा कुछ भी नहीं कह पाता। कक्षा की सारी टीचर जानती थीं कि अभय में स्वाति से भी ज़्यादा क्षमता है लेकिन वह उसका लाभ नहीं उठा पा रहा है। घर पर भी श्रद्धा हमेशा अभय को समझाती लेकिन उस पर असर कम ही होता था। उसके इस तरह के व्यवहार से उसके माता-पिता बेहद चिंतित रहते थे।
आजकल अभय का उसके मित्रो के साथ बाहर आना-जाना भी शुरु हो गया था। अजय और श्रद्धा यह सोच कर कि बच्चे बड़े हो रहे हैं, ज़रूरत से ज़्यादा पाबंदी भी ठीक नहीं, अभय को जाने के लिए मना नहीं करते। वह दोनों तो यह सोच भी नहीं सकते थे कि अभय ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर अब लड़कियों को छेड़ना भी शुरू कर दिया है।
अभय और उसके मित्रो का यह रोज़ का सिलसिला हो गया था। वह स्कूल से बाहर निकल कर राह में आती-जाती लड़कियों को अक्सर परेशान करने लगे। ऐसा करके उन्हें बहुत ख़ुशी मिलती थी और शायद स्वयं के ऊपर गर्व भी होता था।
ऐसे ही कुछ लड़कों ने स्वाति और उसके साथ वाली लड़कियों को छेड़ना शुरू कर दिया। वह रोज़ स्वाति को देखते ही वहाँ आ जाते और उसे देख कर उसके पास से गुजर कर कमेंट करते रहते।
स्वाति और उसकी सहेलियाँ इस घटना से बहुत डर गईं, डर की वज़ह से यह बात किसी से भी वह कह नहीं पाती थीं। धीरे-धीरे उन लड़कों की हिम्मत और अधिक बढ़ती जा रही थी। स्वाति अपनी सहेलियों के साथ बाहर जाती तब भी वह उनका पीछा करते हुए आ जाते। अब इन घटनाओं का स्वाति के दिमाग़ पर गहरा असर हो रहा था। आजकल टीवी और समाचार पत्रों में बलात्कार की घटनाएँ आए दिन आती ही रहती हैं, जो बच्चे भी देखते और सुनते हैं। स्वाति स्कूल जाने में भी अब डरने लगी।
स्वाति का बदला हुआ व्यवहार अभय को दिखाई दे रहा था लेकिन वह कारण नहीं जानता था।
एक दिन अभय ने स्वाति से पूछा, "स्वाति क्या बात है आजकल ऐसे उदास, डरी-डरी सी क्यों रहती है, क्या परेशानी है मुझे बता?"
स्वाति ने कुछ नहीं अभय, यह कह कर बात को टाल दिया। वह जानती थी कि यदि अभय को वह बता देगी तो बहुत बड़ा झगड़ा हो जाएगा। इसलिए वह इस बात को किसी को भी नहीं बता पा रही थी।
एक दिन स्वाति अपनी सहेलियों के साथ बगीचे में घूमने गई थी। वह लड़के शायद ताक लगाकर ही बैठे थे, वह भी उस बगीचे में पहुँच गए और उनके आगे पीछे घूम कर उन्हें तंग करने लगे। एक ने तो स्वाति का हाथ तक पकड़ लिया, स्वाति ने डरकर अपना हाथ छुड़ा लिया और हिम्मत एकत्र करके उसे डांटने लगी। किंतु उस लड़के पर कोई असर नहीं हुआ, अकेले में मिल, फिर देख, कहकर वह वहाँ से भाग गए।
स्वाति आज तो बहुत ज़्यादा डर गई और अब उसने अपने पापा-मम्मी को यह बता देना ही उचित समझा। घर पहुँच कर वह अपने पापा-मम्मी को सब कुछ बता रही थी, उसे नहीं पता था कि कमरे के बाहर अभय भी सब सुन रहा है।
स्वाति ने अपने पापा से कहा, "पापा मैं अब कल से स्कूल भी नहीं जाऊंगी वह लोग मुझे और मेरी सहेलियों को बहुत परेशान करते हैं, वह बहुत बुरे हैं । शायद उनकी कोई बहन नहीं होगी वरना वह ऐसा कभी नहीं करते। मुझे उन लोगों से बहुत डर लगता है पापा। मैंने अभी तक अभय को यह बात नहीं बताई वरना स्कूल में झगड़ा हो जाता। हमारा अभय कितना अच्छा है, वह मेरी सहेलियों से भी कितनी इज्ज़त से बात करता है । काश वह लड़के मेरे अभय जैसे होते तो कभी ऐसी गंदी हरकत नहीं करते।"
अजय ने स्वाति को समझाया, "स्वाति बेटा कल हम तुम्हारे स्कूल चलकर प्रिंसिपल से बात कर लेंगे। उन लड़कों को भी समझा देंगे और उनके पिता से भी बात करेंगे, तुम बिल्कुल मत डरो सब ठीक हो जाएगा।"
अभय को काटो तो खून नहीं उसकी ऐसी हालत हो रही थी । उसे स्वयं पर शर्म आ रही थी, जिस बात पर शायद वह स्वयं पर गर्व महसूस करता था, आज उसी बात पर वह बहुत शर्मिंदा था। उसे आज समझ आ रहा था कि ऐसे लड़कों की, जो लड़कियों को परेशान करते हैं, उनका अपमान करते हैं लड़कियों की नज़रों में उनकी क्या इज्ज़त होती है। अपनी बहन की मनोदशा देखकर अभय को इस बात का भी एहसास हो गया कि लड़कियों को इस तरह परेशान करके हम तो ख़ुश होते हैं, मजे लेते हैं लेकिन उन लड़कियों की मानसिक स्थिति कितनी दर्दनाक होती है और हमारी ऐसी हरकतों से उनका परिवार कितना डरा हुआ और दुखी होता है। आज अभय मन ही मन अपनी बहन को धन्यवाद कह रहा था, जिसकी वज़ह से उसके डगमगाते क़दम जो ग़लत राह पर जा रहे थे, उन्हें सही रास्ता मिल गया।
यह समय था अभय के लिए बदलाव का, ऐसा बदलाव जिसने अभय की ज़िंदगी ही बदल कर रख दी। स्वाति के उसके प्रति इस विश्वास ने, अभय की आत्मा को झकझोंर कर रख दिया था। अभय ने आज लड़कियों की इज्ज़त करना सीख लिया और अपने मित्रो में उसने यह परिवर्तन लाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। इस बदलाव के उपरांत अभय अब अपने अंदर एक नेक इंसान को जन्म दे चुका था। एक ऐसा इंसान जो सच में हर लड़की की इज्ज़त करता था और अपनी बहन स्वाति की ही तरह अब वह अपनी कक्षा के सबसे मेहनती और लगन से पढ़ाई करके उच्च श्रेणी में आने वाले विद्यार्थियों की कतार में आकर खड़ा हो चुका था।
यह एक अच्छे परिवार के संस्कारों का ही असर था कि अभय ग़लत मार्ग पर बहुत दूर जाने से बच गया और एक बड़े बदलाव के साथ जल्द ही वापस लौट आया। अभय में यह बदलाव क्यों आया यह तो अजय और श्रद्धा नहीं जानते थे पर अब उन्हें स्वाति की ही तरह अभय पर भी गर्व हो रहा था।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक