काम तत्व के साथ, धर्म की मर्यादा को जोड़ा जाए ।
तभी मोक्ष का साधन बनता,वरना भवबंधन बन जाए।।
धर्म हीन जो काम,शोक,संताप,रोग लाए शैतानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
जीवन वीणा के झंकृत स्वर,जब गूंजें अंतर आंगन में ।
प्रेम प्रवाह बहे अंतर्मन, सिमट जायं सब अपनेपन में।।
अनगढ़ लहरें हृदय सिंधु कीं, खुद उच्चारें प्रेम कहानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
यह अमूल्य उपहार प्रकृति का,परिवर्तनकारी हरगति का।
सीख लिया यदि इसे बजाना,मिल जाए रस्ता सद्गति का।।
वीणा की उत्ताल तरंगें,लगतीं सबको बहुत सुहानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
शौक शौक में लेकर आए, यहां एक कौने में डाला ।
आए थे संसार सजाने, पर खुद को भी नहीं संभाला।।
कैसी ये विडम्बना भारी, खुद ही दिखे न खुद की हानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
पहले अति उत्साह पूर्वक, इस वीणा को उससे चाहा।
इस वीणा की मधुर तान को,समझा,सीखा और सराहा।।
लेकिन भूल गया रस्ते में, वीणा की झंकार सुहानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
सद्गुरु मिले बजाना सीखा, पिछली भी कुछ यादें आईं।
ढीले ढाले तार कस लिए, सद्गुरु ने ध्वनियां समझाईं ।।
कुछ कुछ लगा बजाने अब तो, आगे नहीं करूं नादानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
गुरु बिन ज्ञान नहीं जन पाता,जीवन में हमने यह जाना।
गुरु की गुरुता में रस जितना,उसका एक अंश पहचाना।।
सद्गुरु ज्ञान सिंधु अति गहरा, उसकी थाह न कोऊ जानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
क्षमता और पात्रता का मैं, जितना भी विकास कर पाया।
ज्ञान सिंधु में से उतना जल, भरकर अपना पात्र सजाया।।
यद्यपि गुरु अनुकम्पा भारी, पर मुझमें अब भी नादानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
मुझे पता है मुझ अनगढ़ को,गुरुवर ने सब भांति संवारा।
ज्ञान सुधा भरकर अंतर्मन,कीन्ह प्रवाहित लेखन धारा ।।
बंद नहीं होगी जीते जी,सतत् लिखूं सद्गुरु की वानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
गंधयुक्त कीचड़ से लथपथ, मैं कौनें में खड़ा हुआ था।
इसी तरह के ही परिकर में, धीरे धीरे बड़ा हुआ था ।।
गुरुवर ने देखा बुलवाकर,डाला कृपा दृष्टि का पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
पहले कीचड़ साफ कराई, फिर पावन जल से नहलाया।
ज्ञान सुधा पिलवाई थोड़ी,हाथ सीस पर फिर सहलाया।।
एक तरंग उठी उर अंतर,लेखन की विधि हृदय समानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
हम जैसे ही सभी यहां पर,अपनी अपनी वीणा लाए ।
एक तरफ रख दीन्ही लाकर,भूल गए फिर बजा न पाए।।
इसीलिए हमने थोड़े में,लिख दी अपनी आत्म कहानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
जिसके पास समय हो जितना,उतना सीखो वीणा वादन।
जितना सम्भव हो जीवन में,लेन देन करिए अभिवादन ।।
कसलो तार उठालो वीणा, और ढूंढ लो सद्गुरु ज्ञानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
अपने में सुधार करने का,अवसर मिला इसे मत खोओ।
भूमि बनालो अंतर्मन की,बीज सुघड़, शुभता के बोओ।।
बीज अंकुरित हो जाएं तो,देते रहना उसमें पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
जीवन वीणा नाम दिया है, वैसे यह अपना जीवन है ।
परमेश्वर ने हमें दिया जो, अनुपम है, अमूल्य ये धन है।।
करिए सदुपयोग मनभावन, व्यर्थ जिंदगी नहीं गवानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
जीवन तो साधन है केवल,साध्य सिर्फ व्यापक को जानो।
एक बूंद तुम क्षीर सिन्धु की,अपनी क्षमताएं पहचानो ।।
एकरूपता इसमें उसमें, पर है छोटी बड़ी कहानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
ये तो सच है हम उस जैसे, पर वह विस्तृत और बड़ा है।
हम लघुतम हैं,शक्तिहीन हैं,पर वह शक्तिवान तगड़ा है।।
लघुता विभुता में मिल जाए, तो फिर हो जाए आसानी।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।१०२।
लगातार.............