Wah Stree Thi Yaa Zinn - last part in Hindi Horror Stories by Shwet Kumar Sinha books and stories PDF | वह स्त्री थी या जिन्न - अंतिम भाग

Featured Books
Categories
Share

वह स्त्री थी या जिन्न - अंतिम भाग

……और फिर मुझे थका हुआ देख कर ज्यादा कुछ न बोली।

अगली सुबह जब उठा तो मेरा सिर भारी लग रहा था । सो, बिछावन पर लेटा ही रह गया।

बच्चों को आज स्कूल भी नहीं पहुंचा पाया। निर्मला को ही उन्हे स्कूल छोड़ने को जाना पड़ा।

अपने रसोई के कुछ काम खत्म करके वह मेरे सिराहने आकर बैठी, और पुछी- “क्या बात है, इतना चिंतित क्यूँ हैं ? कल रात भी आप बहुत परेशान दिख रहें थें।”

तब मैंने उसे बीते दो दिनों से उस गली में मेरे साथ घट रही सारी घटना के बारे में बताया।

मेरी बातों को सुनकर उसने मुझे भरोसा दिलाया कि चिंता मत करो, कुछ नही होगा, सब ठीक हो जाएगा।

फिर वो अपने गृह कार्य मे तल्लीन हो गयी।

मैं भी आँखें बंद कर बिछावन पर ही लेटा रहा।

थोड़ी देर बाद, निर्मला आवाज लगायी कि नहा धोकर तैयार हो जाओ, घर पर किसी को बुलाया है।

मैंने पूछा – किसे ? उधर से आवाज आयी, जब आएंगे तो खुद ही देख लेना।

एक घंटे बाद हमारे परिवार के पुरोहित जी की दरवाजे पर दस्तक हुई।

हम दोनों ने उन्हे चरणस्पर्श किया । पत्नी उन्हे बैठने के लिए कुर्सी दी।

पुरोहित जी बड़े ही ध्यान से मुझे देख रहें थें।

निर्मला, पुरोहित जी के लिए कुछ जलपान लेकर लायी।

जलपान करने के पश्चात थोड़ी देर तक इधर-उधर की बात करने के बाद पुरोहित जी ने मुझे अपने पास बुलाया और सिर पर हाथ रख कर अपनी आँखें बंद की।

फिर पिछले दो दिनों में मेरे साथ जो भी घटित हुआ, उसके बारे में विस्तार से पूछा।

मैंने उन्हे सारी बातें बतायी । पुरोहित जी का चेहरे पर तनाव मैं साफ–साफ देख सकता था।

पुरोहित जी ने अपने थैले से भभूत निकाला और मेरे ललाट पर लगाया।

वही बैठी पत्नी ये सब बहुत ध्यान से देख रही थी।

“तुम्हारी मुलाक़ात एक जिन्न से हुई थी” – पुरोहित जी ने बताया।

गली के उस आखिरी छोर तक ही उसका दायरा था । इसीलिए वह उससे आगे नहीं बढ़ी।

अचानक से हवा में फैला वो तेज़ सुगंध, ठंड का एहसास और कुछ नही - उसी ज़िन्न की उपस्थिति का प्रमाण है।

उस अंगूठी के माध्यम से वह तुम्हें अपनी दुनिया में ले जाना चाहती थी। जिसे अगर तुम पहनने की गलती कर लेते, तो बहुत बड़ा अनिष्ट हो जाता।

यह सुनकर मैं तो भीतर तक काँप गया । निर्मला ने मेरा हाथ थामकर मुझे शांत किया।

पुरोहित जी ने कहा कि अब भयभीत होने की कोई बात नहीं है । अब कोई खतरा नहीं है।

पर हाँ....एक बात हमेशा ध्यान रखना कि चाहे कुछ भी हो जाए, रात्रि मे भूलवश भी उस गली से मत जाना।

क्यूकि अभी तक वह ज़िन्न तुम्हें अपनी सुंदरता और प्यार से आकर्षित करके और केवल मात्र अंगूठी के सहारे ही अपने साथ ले जाने की कोशिश कर रही थी। और, तुम खुशकिस्मत हो कि तुम गली की आखिरी छोर यानि उसका दायरा जहां खत्म होता है – वहाँ पहुँच गए थे । इसीलिए वह ज्यादा कुछ न कर सकी और उसे वापस लौटना पड़ा।

तभी मैंने पुरोहित जी को टोका –“पर, पंडित जी उस गली में तो इतने सारे लोग रहते हैं। उन सबका क्या ?

पुरोहित जी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया – “अच्छा ये बताओ, उस वक़्त.....क्या तुमने किसी और इंसान को देखा था उस गली में, उस ज़िन्न के सिवा ? नहीं न ! लोगों को इस बात की जानकारी होने के वजह से रात्रि के वक़्त कोई नहीं निकलता । केवल कुत्ते ही दिखते है।

मैंने पुरोहित जी को रोकते हुये बोले – “मुझे एक बात बहुत अजीब सी लगी । पहले दिन जब मैं उस गली में प्रवेश किया तो ढेर सारे कुत्ते थें, जो मुझे गली में आते देखकर ही भौकने लगे। पर, जब अगले दिन मैं फिर से उसे गली में घुसा तो एक भी कुत्ते नहीं थें ।” तो क्या.....?

और बोलते – बोलते मैं चुप हो गया । मुझे स्वयं ही उसका मतलब समझ में आ गया था।

“जी हाँ, तुम सही समझे। उसी ज़िन्न का ही प्रभाव था यह । ज़िन्न बहुत शक्तिशाली होते हैं। वह किसी पर भी अपना प्रभाव आसानी से छोड़ सकते हैं। और बहुत ही आसानी से किसी को भी अपने वश में कर सकते हैं । तुम बहुत भाग्यशाली हो कि बच गए”- पुरोहित जी ने मुझे बताया।

“और हो सके तो कुछ दिन के लिए अपनी शिफ्ट ड्यूटी सुबह की लगा लो ताकि शाम होने से पहले घर आ सको” – पुरोहित जी ने कहा।

मैं तुम्हें यह ताबीज़ दे रहा हूँ । इसे हमेशा पहनकर रखना, चाहे कुछ भी हो जाए, इसे उतारना मत – यह कहकर, उन्होने अपने थैले से एक ताबीज़ निकाली और मन ही मन मंत्र पढ़कर मुझे पहना दिया।

हम दोनों को सदा सुखी रहने का आशीर्वाद देकर पुरोहित जी चले गए।

मैं एक पढ़ा-लिखा इंसान था और ऐसी बातों पर आजतक कभी भरोसा नहीं किया। जैसा कि मैंने उस गली में मिली उस स्त्री या तथाकथिक ज़िन्न को भी बताया था कि इन दक़ियानूसी बातों पर मैं यकीन नहीं करता।

मेरा दिमाग पुरोहित जी के द्वारा कही बातों पर भी प्रश्नचिन्ह भी खड़ा कर रहा था। पर, उस गली में मैंने जो भी अनुभव किया, उसे भी सामान्य नहीं कहा जा सकता।

परिस्थिति को देखने के नजरिया हर किसी का अलग-अलग होता है। हर इंसान, अपने हिसाब से परिस्थिति का आंकलन करता है – यह जरूरी भी नहीं कि वह आंकलन हर बार सच्चाई से हमेशा मेल खाता ही हो। अब सच क्या है ? – यह न तो मैं जानता था, और न ही पुरोहित जी ! यह तो भगवान को ही पता होगा!

हाँ...एक बात तो थी कि मेरे दिमाग में जो बहुत सारे सवाल उठ रहें थें, उस गली में घटी घटनाओं को लेकर और उस स्त्री के बारे में । पुरोहित जी की कही बातों से मुझे उसका उत्तर तो मिला।

पर, अब मैं बहुत डर गया था । जिसके कारण भूलकर भी अब उस गली के भीतर तो नहीं जाने वाला था मैं!

...आज उस घटना के करीब 10 साल होने को हैं । उस गली के पास से मैं अनेक बार गुजरता हूँ, पर अब भी भीतर जाने की हिम्मत नहीं होती।

मन-मस्तिस्क मे अब भी बस यही एक सवाल घूमा करता है कि सच में “वह स्त्री थी या ज़िन्न” ?

। । समाप्त । ।

धन्यवाद ।


© श्वेत कुमार सिन्हा