ओ...कौशल्या जीजी! शाम के हमार घरे आ जइओ,न्यौता है तुम्हार!माल्ती ने अपनी पड़ोसन कौशल्या से कहा...
काहे! का बात है? कौशल्या ने पूछा।।
हमार बहु की गोद भराई है,माल्ती बोली।।
बधाई हो मालती! जल्द ही नन्हे मुन्ने की किलकारियांँ गूँजेंगीं तुम्हारे आँगन में,कौशल्या बोली।।
हाँ! जीजी! सब भगवान की कृपा है और जीजी बुरा ना मानो तो एक बात कहें,मालती बोली।।
हाँ! बोल! का कहना चाहती है,कौशल्या ने पूछा।।
अपनी बहु को मत लाना हमारे घर ,नौ साल होने को आए और अभी भी उसकी गोद खाली है,हम नहीं चाहते कि किसी बाँझ औरत की छाया भी हमारी बहु पर पड़े,अपशगुन नहीं होना चाहिए,मालती बोली।।
ठीक है मालती! तू जा सलोनी तेरे घर नहीं आएगी,कौशल्या भारी मन से बोली।।
मालती तो चली गई लेकिन कौशल्या के मन को घाव दे गई,जो कि हर रिश्तेदार या पास-पड़ोसी देकर जाते हैं,इतने साल हो गए प्रदीप के ब्याह को लेकिन बच्चे की किलकारियाँ ना गूँजीं उसके घर में,उसने इतने बार प्रदीप से दूसरा ब्याह करने को कहा लेकिन वो सुनता ही नहीं है,गाँव के स्कूल में सरकारी मास्टर है,
जब प्रदीप पाँच साल का था तो उसके पिता जी चल बसे,कौशल्या ने जैसे तैसे उसे पढ़ालिखा कर बड़ा किया,उसने सोचा था कि उसके तो केवल एक ही सन्तान है लेकिन जब वो अपने बेटे का ब्याह कर बहु लाएंगी तो उससे कहेंगी कि कम से कम पाँच बच्चे पैदा कर जिससे घर बच्चों से भरा भरा लगे लेकिन अब उसका ये सपना उसे टूटता नज़र आ रहा है इसलिए दूसरो के नाती पोतों की खबर सुनकर दुखी हो जाती है।।
मालती और कौशल्या की बातें सलोनी ने भी सुन लीं और वो भी अपना मन मसोसकर रह गई,आखिर कर भी क्या सकती है? कितने डाक्टरों को तो दिखा चुकी है लेकिन कारण समझ ही नहीं आया,उसके तन में कोई भी ख़ामियाँ नहीं बताईं आज तक किसी डाक्टर ने फिर पता नहीं क्यो वो इस सुख से वंचित है?
तभी कौशल्या ने सलोनी को आवाज़ दी और कहा.....
अब क्या अपनी कोठरिया में घुसी रहेंगी?पानी खतम हो गया है जा कुएंँ से भर ला॥
हाँ! जाती हूँ अम्मा! और इतना कहकर सलोनी ने मटके और पानी भरने की रस्सी उठाई और चल पड़ी कुँए की ओर....
ए...सुन मालती के घर की ओर झाँकना भी नहीं ,उसके यहाँ उसकी बहु की गोद भराई की रस्म है शाम को, तैयारियाँ चल रही हैं,घूँघट ओढ़ ले ,कोई तेरा चेहरा ना देख ले,नहीं तो लोंग कहेंगें कि शुभ काम में बाँझ का मुँ देख लिया...समझी...,कौशल्या बोली।।।
कौशल्या की बात सुनकर सलोनी को लगा कि जैसे उसके कानों में किसी ने पिघला हूआ लोहा डाल दिया हो और दो आँसू भी टपक गए लेकिन उसने अपनेआप को सम्भाला ,चेहरे पर लम्बा सा घूँघट लिया और पानी लेने चल पड़ी।।
भारी मन से कुएंँ पर पहुँची उसने एक तरफ अपने घड़े और रस्सी रखी फिर कुएँ के पास पीपल के पेड़ के नीचे एक बिल्कुल छोटी सी देवी माँ की मढ़िया बनी थी,वो उन्हीं के चबूतरें पर सिर रखकर फूट फूटकर रो पड़ी,तभी अचानक उसके सिर पर किसी ने हाथ फेरा.....
उसने मुड़कर देखा कि कोई बूढ़ी औरत थी,उसने कहा....
पानी मिलेगा बेटी!
हाँ! माँ! अभी पिलाती हूँ ।
इतना कहकर सलोनी ने कुएंँ से पानी निकाला और अपनी अंजुली मे भर भरकर ,बूढ़ी औरत की अंंजुली मे डालती जाती और बूढ़ी औरत पानी पीती जाती,जब बूढ़ी औरत की प्यास बुझ गई तो बोली ....
बस कर बेटी! मेरी प्यास बुझ चुकी है,भगवान तेरा भला करें,तू दूधो नहाय और पूतो फले।।
ये सुनकर सलोनी रो पड़ी....
रोती क्यों है बेटी? मुझे बता।।
यही तो रोना है माँ कि सब मुझे बाँझ कहकर पुकारते हैं,सलोनी बोली।।
मैने तुझे जो आशीर्वाद दिया है वो जरूर सफल होगा,तेरे घर के भण्डारग्रह में एक मधुमक्खी का छत्ता लगा है उसे मत निकालना क्योंकि कहा जाता है की मधुमक्खी माता का रूप होती है,अब तू खुशी मन से घर जा और आज से सब चिन्ताएं छोड़ दे,सब ठीक होगा।
बूढ़ी औरत की बात पर सलोनी को विश्वास तो नहीं था लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है और उसने घर जाकर देखा तो भण्डारग्रह सच में मधुमक्खी का छत्ता था,उसने उसे नहीं हटाया।।
फिर वो रोज कुएंँ पर जाकर उस बूढ़ी औरत को ढूढ़ती थी लेकिन उसे वो बूढ़ी औरत फिर कभी नहीं दिखी.....
लेकिन अगले दो ही महीनों के अन्दर सलोनी ने सबको खुशखबरी दी और कुछ महीनों बाद उसने एक सुन्दर ,स्वस्थ कन्या को जन्म दिया....
सलोनी को अब भी लगता है कि ये सब उस बूढ़ी औरत का आशीर्वाद है जो वो माँ बन पाई।।
समाप्त...
सरोज वर्मा....