"क्या करोगे नाम जानकर"
"जिसके साथ सोना हो उसका नाम तो पता होना चाहिए"
"शबनम,"हल्की सी मुस्कराहट उसके होठो पर छलकी थी।
"बुरा न मानो तो एक बात---
"क्या?'
"कब से यह पेशा कर रही हो?"
"खानदानी पेशा है।लेकिन जब से कॉलेज की लड़कियां भी इस धंधे में आने लगी।इधर मन्दा हो गया है।आज कल कोई कोई रात तो बिल्कुल खाली चली जाती है।"
"अकेली हो?"
"पति है पर निकम्मा तभी तो यह धंधा करती हूँ।कमाता कुछ नही।लेकिन दारू रोज चाहिए।ग्राहकों के साथ सोओ।फिर निठल्ले पति से भी शरीर नुचवाओ।"
वह उससे बाते कर रहा था।तभी एक लड़के ने कमरे में प्रवेश किया था।वह उस लड़के से बोली,"दारू मेज पर रख दे और खाना कमरे में रख आ"
पहाड़ी लड़के ने पेंट की जेब से बोतल निकाल कर मेज पर रख दी और थाली लेकर चला गया।शबनम उठी।उसने अलमारी में से दो गिलास निकाल कर मेज पर रखे।मेज से बोतल उठाकर ढक्कन खोला और दोनों गिलासों में शराब उंडेली थी।एक गिलास उठाते हुए उससे बोली,"अपना गिलास उठाओ।"
"माफ करना।मैं शराब नही पीता".
"शराब नही पीते,"एकटक आश्चर्य से उसे देखते हुए बोली,"शराब नही पीते।आखिर क्यों?'
शबनम के चेहरे पर उत्सुकता के भाब और आंखों में जानने की जिज्ञासा।
वह लापरवाही से शायराना अंदाज में बोला
शराब में क्या रखा है साकी
तेरे पास आकर पीते हैं शराब
जो नही जानते शराब से ज्यादा नशा है
तेरे शबाब में
"वाह।क्या खूब।
पहले हम शराब पीते है
फिर तुम हमारा शबाब पीना"।
यह कहकर शबनम ने गिलास उठा कर अपने लिपस्टिक लगे सुर्ख लाल होठो से लगा लिया था।उसने गटागट शराब को ऐसे पिया था मानो शराब नही पानी पी रही हो।वह एक घूंट में शराब पी गयी।शराब पीने के बाद जीभ निकाल कर होठो पर फेरी थी।अपना गिलास खत्म करके बोली,"तुम नही पी रहे तो मुझे ही पीनी पड़ेगी।और उसने दूसरा गिलास भी उठा लिया और एक। ही घूंट में खाली भी कर दिया।फिर वह खड़ी हो गयी।फिर फुर्ती से उसने अपने शरीर से सारे कपड़े अलग किये और बिस्तर पर लेटते हुए बोली,"कपड़े उतार कर आ जाओ।"
वह खड़ा होकर शबनम की गोरी पिंडलियों को निहारने लगा।सुडौल पांवो में चांदी की पायजेब सूंदर लग रही थी।टांगो से नज़र फिसलती हुई उसकी दोनो टांगों के बीच आकर ठहर गयी।मर्द की जननी सृष्टि की उतपति के सोत्र को निहारते समय पुरुष होकर भी वह शर्मा जाता है।उसकी निगाहें शबनम के उरोजों को निहारते हुए उसके चेहरे पर आकर ठहर जाती है।
करीने। से कड़े बाल,मांग में सिंदूर,माथे पर झिलमिलाती लाल बिंदी,नाक में सोने की लांग
"क्या देख रहे हो?क्या कभी ऐसे औरत नही देखी?इतनी ठंड में भी तुमने शराब नही पी।अब तो गर्मी ले लो।शराब नही अब शबाब तुम्हारे सामने पड़ा है"उसके होठो पर कुटिल मुस्कराहत थी।
शबनम का खुला निमंत्रण पाकर वह सोचता है।
वह अब तक नारी के तीन रूप देख रहा था।एक रूप शबनम का है जिसका पेशा है देह व्यापार।नारी सुलभ लज्जा,शर्म,हया छोड़कर वह उसके सामने निर्वस्त्र पड़ी है।दूसरा रूप राम बाबू की पत्नी विभा।जिसका धर्म था पति के प्रति वफादारी लेकिन वह अपनी देह उसे देती रही।तीसरी उसकी पत्नी जिसके। तन मन पर उसका अधिकार है।अगर। उसे पता चल गया कि वह। उसके जाने के बाद वह दूसरी औरत के पास तो क्या वह भी शबनम या विभा की तरह
यह विचार मन मे आते ही वासना को जोश ठंडा पड़ गया। नंगीऔरत को देखकर भी बदन शरद हो गया।नारी के निर्लज रूप से वितृष्णा हो गयी और वह कमरे से बाहर आ गया।
"क्या हुआ?वह बोली,"बिना किये कहा चल दिये
वह तेजी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ा
जोरदार। हंसी का ठहाका
साला नामर्द औरत से खेलेगा। दम चाहिए बिस्तर में औरत को
वह तेजी से निकल जाना चाहता था