उजाले की ओर ----संस्मरण
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नमस्कार मित्रों !
हमारी पीढ़ी वह पीढ़ी है जिसने न जाने कितने बदलाव देखे हैं |हमारे घरों में बिजली भी तब आई थी जब हमारा जन्म हुआ था |पानी के टैप लगे थे ,इससे पहले तो पानी खींचकर पीना पड़ता था |हमारे बचपन में जब टैप लगने शुरू हुए तब भी हाथ के नल लगे ही रहे जिनसे थोड़ा खींचने पर इतना ठंडा और मीठा पानी निकलता था कि वास्तव में प्यासा तृप्त हो जाता था जितनी रेफ्रीजेरेटर के पानी से तृप्ति नहीं होती |
मेरे जन्म के लगभग 27/28 वर्ष बाद मध्यमवर्गीय परिवारों में रेफ्रीजेरेटर आने शुरू हुए थे| मैं अपने छोटे बच्चों को लेकर अपने मामा जी के यहाँ गई थी |उससे पहले हमारे घर में रेफ्रीजेटर आ गया था और शौक -शौक में बच्चे पानी की बॉट्ल्स भरकर रखने लगे थे लेकिन जैसे ही साल भर हुआ नहीं कि पानी भरकर रखने का शौक खतम हो गया और फिर तू-तू ,मैं-मैं होने लगी|फिर डाटकर उनसे पानी भरवाया जाता ,फिर एक-दूसरे पर आक्षेप लगा करते कि मैंने नहीं ,उसने पानी खाली किया है | बाद में तो यह निश्चित किया गया कि अपनी-अपनी बॉटल अलग-अलग भरकर रखें | इसके लिए उन्हें उनकी पसंद के रंगों की बॉट्ल्स दिलवानी ज़रूरी थीं |
मैं बता रही थी कि मैं बच्चों को लेकर मामा जी के पास बुलंदशहर गई | मामा जी को मेरे वहाँ आने का पता चला तो उन्होंने तुरंत ही एक रेफरीजेरेटर बुक करवा दिया | इससे पहले सोचा कई बार गया था लेकिन आ जाएगा ---बस,यही होता रहा |मामा जी के बच्चे भी खूब शोर मचा रहे थे लेकिन बात पैडिंग में थी | अब दीदी आने वाली थीं ,वो भी अपने बच्चों के साथ तो मामा जी को समझाया गया कि दीदी के बच्चे कैसे बिना ठंडे पानी के रह सकेंगे ?और मामा जी को ऊपर से कुछ अधिक पैसे देकर जल्दी ही रेफ्रीजरेटर का इंतज़ाम करना पड़ा |
मामा जी का एक बच्चा बड़ा था जिसका विवाह उसी वर्ष हुआ था लेकिन तीन बच्चे काफी छोटे थे उनके | अभी कॉलेज,स्कूल में पढ़ रहे थे | गर्ज़ यह कि मामा जी के बच्चों से और मामा जी से , दोनों से मेरी ख़ासी पटती | मामा जी को बच्चों को कुछ समझाना होता और यदि मैं वहाँ होती तो वे उन्हें समझाने को मुझसे ही कहते|
मैं गुजरात में थी और मामा जी उत्तर -प्रदेश में सो इतनी जल्दी तो आना-जाना संभव नहीं होता था लेकिन जब भी मैं जाती मामा जी का मन होता कि वे मेरे लिए न जाने क्या कर दें | इस बार उन्होंने रेफ्रीजरेटर खरीद लिया और मामी जी से कहा कि जब मैं वहाँ जाऊँगी ,मुझसे आइसक्रीम बनाना सीख लें |
जब हम पहुँचे ,पूरे घर में रेफ्रीजेरेटर का खुमार फैला हुआ था और प्रतीक्षा हो रही थी कि कब मैं वहाँ पहुचूँ और कब मुझसे आइसक्रीम ,फ़ालूदा व और पुडिंग सीखी जाएँ | दो-चार दिन शांति से कटे ,ठंडे पानी का स्वाद सबको आनंदित कर रहा था | पाँचवे दिन मामी जी ने मुझसे आइसक्रीम बनाने के लिए कहा | मैंने भी खुशी-खुशी गाँव से उस दिन अधिक दूध मंगवाया | मामा जी का आमों का बहुत बड़ा बगीचा था गाँव में |मामा जी लगभग हर दिन जीप से नौकर के साथ गाँव जाते थे और लौटते हुए अपनी गाय-भैंसों का दूध लाते थे| उनके बाग का पहरेदार कम माली ही उन मवेशियों का दूध निकलता था |
जिस दिन आइसक्रीम बनाने का प्रोग्राम रखा गया उसके पहले दिन मामा जी बाग से बहुत सारे मीठे आम तुड़वाकर ले आए थे | यूँ तो उस मौसम में हर दिन बाग से आम आते थे लेकिन उस दिन कुछ विशेष आम आए थे कि मैं आम की आइसक्रीम भी बनाऊंगी |
वो आम विशेष रूप से आइसक्रीम के लिए रखे गए थे ,जिन्हें काटा गया और मिक्सर की सहायता से मैंने उनका पल्प बना लिया गया| दूध काढ़ा गया ,ठंडा होने पर उसमें आम का पल्प मिलाया गया, चीनी डाली गई और ट्रे में जमने के लिए रख दिया गया|
अचानक उस दिन दोपहर में ही बिजली चली गई | उन दिनों उत्तर-प्रदेश में बिजली 'कट' होती थी लेकिन उसका समय निर्धारित था ,शाम को लगभग 7 बजे बिजली जाती थी | मैंने मामी जी की सूचना के अनुसार लगभग दस बजे आइसक्रीम जमाने रख दी थी ,सोच यह थी कि टेम्परेचर हाई पर कर दिया जाएगा और आराम से 3/4 घंटे में आइसक्रीम का स्वाद लिया जा सकेगा|लेकिन उस दिन तो लगभग बारह बजे ही बत्ती गुल हो गई |
सबने सोचा ,आ जाएगी बिजली | बच्चे बार-बार फ्रिज खोलकर देखते जिससे टेम्परेचर फिर गरम हो जाता |सब मुँह लटकाकर बैठ जाते | आइसक्रीम तो दूर की बात पंखे भी नहीं थे और हाथ के पंखों से पसीना सुखाने की कोशिश की जा रही थी जो बेकार ही था| मामा जी ने सारे बरामदों में ख़स के पर्दे लगवा रखे थे जो पंखे चलने से जीएचआर के भीतर का मौसम ठंडा कर देते थे | उन पर्दों पर बार-बार पानी डालकर गीला करता रहता था जिससे टेम्परेचर में फ़र्क पड़ता था लेकिन अब पंखे न चलने से वे पर्दे भी घुटन का एहसास करवा रहे थे सो उन्हें भी ऊपर खींच दिया गया जिससे कम से कम बाहर की कुछ हवा तो आ सके |
सब बड़े परेशान ! कहाँ तो मीठी -मीठी आम की आइसक्रीम खाने का सपना था कहाँ लूएँ खानी पड़ीं | बच्चों को लग रहा था कि जब से फ्रिज आया था तब से ठीक-ठाक चला रहा था ,मेरा हाथ लगते ही बिजली भी गुल हो गई |
कमाल यह हुआ कि उस बार दो दिनों तक लगातार बिजली नहीं आई और जब बिजली आई और फ़्रीज़र खोला गया तो कमरे में भयंकर बदबू फैल गई और सब इधर-उधर भागे |
अब मेरे वहाँ रहते हुए किसी बच्चे ने आइसक्रीम बनाने की ज़िद नहीं की थी |दुर्गंध हटाने के लिए कई घंटे फ्रिज खोलकर रखना पड़ा था और आइसक्रीम पहले की तरह ही बाज़ार से खाई जा रही थी |
अब जब भी वह दिन याद आता है ,मुझे पूरी कहानी याद आ जाती है |
चलिए मित्रों, अगली बार एक नए संस्मरण /कहानी के साथ मिलते हैं |
स्वस्थ'सुरक्षित,आनंदित रहें |
आप सबकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती