एक गलती और जिंदगी भर पश्चाताप।इसे रूपवती से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता है। सुन्दर, सुशील और बुद्धिमत्ता जैसे अनमोल गुणों के कारण ही उसके माता-पिता ने उसका नाम रूपवती रखा था।
रूपवती अब 18 वर्ष की हो चुकी थी ।उसने 12वीं भी पास कर लिया था।इसीलिए उसके माता-पिता को उसकी शादी की चिंता सताने लगी थी ।वह आगे भी पढ़ना चाहती थी किन्तु उसके माता-पिता ने गरीबी का हवाला देकर उसे आगे ना पढ़ा पाने के कारण उसे शादी करके अपने ससुराल में जाकर पढ़ने के लिए राजी कर लिया।
रूपवती के पिता ने अपने रिश्तेदारों से उसके लिए लड़का ढूंढने को तो पहले से ही कह रखा था।
फिर एक दिन दूर के रिश्तेदार रूपवती के लिए रिश्ता लेकर आ ही जातें हैं।रिश्तेदार लड़के और उसके परिवार के बारे में सब कुछ बता देता है ।किन्तु लड़के के नशा करने के बारे में ये सोंच कर नहीं बताता है कि आजकल के ज़माने में इतना भोला-भाला कौन होगा ,जिसने कभी भी नशा न किया हो। आजकल तो शादी-बारात या अन्य खुशी के मौकों पर तो हर कोई खा-पी लेता है,तो उसमे क्या बुराई है?
लड़का भी पढ़ा- लिखा था। इसीलिए रूपवती के पिता जी ने भी उसी से शादी करने को हामी भर दी। कहते हैं न जब जो किस्मत में लिखा होता है वो दौड़कर मिलता है जो नहीं लिखा होता है वो दौड़कर चला भी जाता है।
लड़के के का नाम सुन्दर लाल था क्योंकि वह बचपन से ही शक़्ल सूरत से सुंदर जो था।शायद इसीलिए उसके माता-पिता ने उसका नाम भी सुन्दर लाल ही रख दिया था।उसने भी बी.ए कर लिया था।
किन्तु कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही गलत संगत में पड़ जाने के कारण नशे की गिरफ्त में पड़ गया था।
जिस कारण आये दिन कोई न कोई नौटंकी करके घरवालों को परेशान करने लगा था। इसी कारण उसके पिता जी ने उसकी शादी ये सोंच कर तय कर दी कि शायद ये शादी करना चाहता है ।किंतु अपने मुँह से कह नहीं पा रहा है।शादी हो जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा। क्योंकि शादी हो जाने के बाद जब बाल -बच्चे हो जातें है तो बुद्धि भी ठिकाने आ जाती है।
समय बीतता गया सब कुछ समयानुसार ही होता गया । वो दिन भी आ गया जिस दिन दोनों की शादी होती है यानी बैसाख पूर्णिमा।
दोनों की खूब धूम धाम से शादी हो जाती है।शादी हो जाने के बाद अगले ही दिन रूपवती अपनी ससुराल आ जाती।
रूपवती को देखने आस- पास की औरतें-बच्चे सब आते हैं तो उसे देखकर सबका मुँह फैला का फैला ही रह जाता है।क्योंकि रूपवती में ऐसा कोई सद्गुण था ही नहीं जो उसके अंदर ना हो।शादी के कुछ ही दिनों में उसने अपना रूपवती होने का परिचय कराना शुरू कर दिया।
सुबह उठकर सबसे पहले अपने सास-ससुर के उसके बाद अपने पति के पैर छूना।फ़िर घर की साफ सफ़ाई करके नहा धोकर पूजा- पाठ करना। उसके बाद खाना बनाना।सारा दिन काम करने के बाबजूद भी अपनी सास के पैर भी दवाने का वक्त निकाल लेती।सुन्दर और उसके माता-पिता भी रूपवती को पाकर काफ़ी खुश थे।कुछ ही दिनों में रूपवती ने उस घर को घर नहीं खुशियों का महल बना दिया।
रूपवती के घर चलाने और अपने सास-ससुर की सेवा करने की प्रशंसा सुन्दर लाल के पड़ोस में फैल गयी।पड़ोसियों से गांव में और फिर गांव से बाहर दूर-दूर तक फैल गई।
जब भी उसके ससुर गांव से बाहर काम पर जाते तो अपनी बहु की प्रशंसा सुनकर काफी खुश हुआ करते।
इसी कारण वो अपनी बहु को भी खुश रखने के लिये हर सम्भव प्रयास करते थे। उसे बिल्कुल भी दुःखी नहीं देखना चाहते थे।क्योंकि उसका का पति यानी सुन्दरलाल अभी कुछ भी नहीं कमाता था।इसलिए रूपवती की रोज मर्रा की ज़रूरतें सुंदर लाल के पिता की आय से ही पूरी होती थीं।
सुन्दरलाल के पिता भी अपनी बहु के गुणों से इतने प्रभावित हो गए कि उसे अपनी पुत्र-वधु ना समझकर खुद की बेटी जैसा ही समझने लगे। जिस कारण दोनों में ऐसा रिश्ता और बोल-चाल का माहौल बन जाता है कि मानों सगे बाप-बेटी ही हों। घर में खुशहाली फैल जाने से घर की हर बात पर रूपवती की राय अवश्य मांगी जाने लगी।
लेकिन ये बात सुंदर की माता को नहीं भाती थी।क्योंकि हर बात पर सुंदर के पिता अपनी बहु की राय जरूर मांगते थे।
जिस कारण सुन्दर की माता को आत्मग्लानि सी होने लगी थी।वह सोंचने लगती है कि कुछ ही दिनों में महारानी ने घर के हर सदस्य पर कब्जा सा कर लिया यहां तक कि मेरे पति पर भी जो कभी भी मेरी बात नहीं टालता था ।वो भी उसकी राय मानने लगा।
रूपवती और अपने पति की गतिविधियों को देख कर ही मन विचार करने लगी थी। काफ़ी दिनों से मैं देख रहीं हूं कि ये मेरी बात ना मानकर उसकी बात पर ज्यादा ही गौर करने लगे हैं।कुछ तो गड़ बड़ है।
लेकिन इसी गड़ बड़ वाली सोंच ने पूरे घर को गड़ बड़ में डाल दिया।जैसा सोचेंगे तो वैसा ही करोगे तो वैसा ही परिणाम भी निकलेगा।
रूपवती की सास अब उस पर पूरी तरह से शक करने लगती है ।वह उससे इतना चिढ़ने लगती है कि रूपवती से आए दिन किसी न किसी बात पर झगड़ा कर बैठती।
रूपवती के बने हुए जिन पकवानों को खाकर कभी वाह! वाह! किया करती थी। आज उन्हीं में कमियां निकाल कर झगड़ना चालू कर दिया। कभी नमक कम हो जाने को लेकर तो कभी ज्यादा हो जाने को लेकर ।कभी रोटी कम पड़ जाती तो भी और ज्यादा हो जाती तो भी ।जिस कारण दोनों के दिलों में अब जहर घुलने लगा था।
रूपवती से सास का झगड़ना और उधर उसके पति का नशे की ओर और बढ़ते जाना उसके लिये किसी अनहोनी से कम संकेत नहीं था।
लेकिन रूपवती को इस बात का बिल्कुल भी आभास नहीं है। क्योंकि वो समझ रही है कि सासों का तो सदियों से बहुओं के ऊपर राज करने का रिवाज रहा है। इसीलिए अपनी सास का तनिक भी बुरा नहीं मानती।
लेकिन रूपवती की सास को उसका अपने ससुर के साथ इस तरह से बातें करना बिल्कुल नहीं सुहाता था ।जब उसे रहा नहीं गया तो एक दिन उसने रूपवती को चेतावनी दे ही दी कि इस तरह भला अपने ससुर से कौन हँस-हँस कर बात करता है कहीं तेरे दिमाग के तार तो ढीले नहीं हैं?
रूपवती उसे चेतावनी ना समझकर मज़ाक में हंसकर टाल देती है और मुस्करा कर अपने कमरे में चली जाती है। उसके मुस्करा देने से उसकी सास को काटे खून नहीं निकलने जैसा लगता है।उसका हँसना सास के अंदर क्रोध की ज्वाला भड़काना सा हो गया।
ये क्रोध की ज्वाला उसे अंदर ही अंदर जलाये जा रही थी।
फिर एक दिन अपने पति से ही पूछ डालती है कि आखिर आप इतने खुश क्यों रहते हो? कुछ दिनों से मैं देख रही हूँ कि उधर रूपवती खुश इधर आप।
सुन्दर के पिता को पत्नी की बातों ने ऐसा आघात पहुंचाया कि उन्हें उसी समय हार्ट-अटैक पड़ गया। आनन-फानन में उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। डॉक्टर ने इमर्जेंसी केस होने की वज़ह से अच्छा उपचार किया जिससे वो बच गए ।कुछ दिन भर्ती रहने के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई। अंत में डॉक्टर ने कहा समय रहते आप लोग इन्हें ले आए तो बच और शायद पहला अटैक भी था। किन्तु भविष्य में अगर दुबारा ऐसा होता है ।तो इनका बचना मुश्किल हो जाएगा।इनका ध्यान रखना।
उसके बाद सुन्दर अपने पिता को घर ले आया। कुछ ही दिनों घर में फिर से वही पुरानी हंसी खुसी का माहौल लौट आया।सुन्दर भी अपनी जिम्मेदारी को कुछ कुछ समझने लगा था। और अपने पिता जी के ही साथ काम पर भी जाने लगा।
दिन बीतते गये और वह दिन भी आ गया कि रूपवती ने अपने प्रेगनेंट होने की ख़बर सुनायी क्योंकि रूपवती की शादी को एक साल होने को आया था।रूपवती के लिए तो ये खुशखबरी थी ।किन्तु उसकी सास के लिए ये ना-खुशखबरी क्योंकि उस के दिमाग में तो और कुछ ही चल रहा था।वह सोंच रही थी कि उसका बेटा तो रात भर इधर-उधर नशे की हालत में दिनों रात तो बाहर ही घूमता रहता था तो फिर ये माँ कैसे बन गयी।ये बात रूपवती की सास को सोने नहीं दे रही थी।
एक दिन रूपवती के ससुर और उसका पति उसके मायके गए हुए थे क्योंकि रूपवती के यहां की परंपरा थी कि उसके यहां की किसी भी लड़की की शादी हो जाती है और जब उसके भी सन्तान होने वाली होती है तो उससे पहले उसके यहां के कुल देवता को आहुति देनी पड़ती है।क्योंकि वहां के लोगों का विश्वास है कि होने वाले बच्चे और उसकी माँ पर कोई विपत्ति नहीं आती है।
वो दिन रूपवती की सास को शायद सबसे अच्छा दिन और रूपवती के लिए सबसे बुरा दिन साबित होने वाला था।
सास ने दोनों के घर से बाहर जाने का फायदा उठाने का विचार बनाया और उसने रूपवती से सवाल जबाव करना चालू कर दिया। रूपवती उसके हर सवाल का जबाव मुस्कराते हुए दे जा रही थी।
किन्तु जैसे ही उसकी सास पूछती है कि सारा दिन-रात मेरा लड़का नशा करके पागलों की तरह इधर उधर भटकता रहता है तो फिर तू उसके बच्चे की माँ कैसे बन गई।
रूपवती को ये बात इतनी आहत कर जाती है कि वह बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली जाती है। और अंदर से दरवाजा बंद कर लेती है। बाहर उसकी सास चिल्ला चिल्ला के पूंछ रही है कि बता ये बच्चा कहाँ से लायी मेरा सुन्दरा चौबीसों घंटे नशे में रहता है तो तू माँ कैसे बन गई।
रूपवती उसकी बातें सुन-सुन कर कमरे के अंदर रोये जा रही है ।उसे कुछ भी नहीं सूज रहा है कि क्या जबाव दे।उसकी सास को चिल्लाते देख पड़ोसी भी आ गए।
जब सास ने फिर अपनी बात दोहराई तो पड़ोसी भी उसी की बात पर विश्वास करने लगे कि हां बात तो सही है ।जब आदमी चौबीसों घण्टे नशे में धुत रहता है। तो उंगली उठना जायज है।
लोगों की बातों ने भी रूपवती के दिमाग को अनियन्त्रित कर दिया ।
फिर उसके दिमाग में आया कि अगर मैंने ये बच्चा जन्मा और मैं भी सही सलामत रहीं तो ये बुढ़िया और समाज मुझे जीने नहीं देगा।इससे अच्छा तो ये है कि जिंदगी भर का कष्ट एक बार ही क्यों न उठा लिया जाए ?
उसने कमरे में चारों तरफ़ देखा तो उसे सामने अलमारी की स्लीप पर केरोसिन से भरी बोतल दिखाई देती है।रूपवती उस केरोसिन को अपने बालों में छिड़क कर आग लगा लेती है।
जब अंदर से रूपवती के चिल्लाने की आवाज आती है तो गांव वाले खिड़की दरवाजा तोड़कर उसे बचाने अंदर घुस जाते हैं ।किंतु तब तक उसके बाल, नाक, कान और आँख सब बुरी तरह से झुलस चुके होते हैं ।किंतु गांव वालो की सूझ-बूझ ने उसे मरने से तो बचा लिया जाता है।उसके बाद उसका अस्पताल में इलाज होता है।
दो दिनों के बाद उसका पति और ससुर लौट आते हैं किन्तु जैसे ही यहां का नज़ारा देखते हैं तो दोनों बेहोश हो जातें हैं। जैसे-तैसे दोनों को होश में लाया जाता है।
रूपवती कुछ ही दिनों में सही तो हो जाती है किन्तु अब पहले जैसी नहीं रही है क्योंकि वह अब देख नहीं सकती है। उसका चेहरा भी अब कुरूप हो गया।
उधर सुन्दर लाल की नशा छुड़ाने की दवा उसके ससुराल वाले दिलवा देतें हैं जिससे सुन्दर के नशे की लत भी कम होने लगती है। जो इलाज की साथ धीरे-धीरे छूटने लगती है।
कुछ दिनों बाद उसकी पत्नी एक सुन्दर हू वा हू अपने ही जैसी बेटी को जन्म देती है।सब लोग उसकी तुलना उसकी माँ से कर रहे हैं। तो रूपवती मन ही मन पश्चाताप कर रही है कि काश उस दिन कमरे के अंदर ना जाकर सास से लड़कर पूछ बैठती कि जब तेरा बेटा नामर्द और नशेड़ी था तो शादी क्यों की।
तो आज मैं भी अपनी बेटी को देख सकती थीं।साथ ही सास और समाज दोनों को जबाव भी मिल जाता ,उसी समय। वो सोंचते जा रही और रोते जा रही थी।
लेकिन अब उसके जीवन में सिवाय पश्चाताप के कुछ नहीं था।
कहानी कैसी लगी रिस्पांस अवश्य दें। अगर पसंद आयी तो आगे भी लिखूँगा 🙏