एक महीने की छुट्टी पर अर्जुन अपने गृह शहर पटना आया था। भारतीय सेना का वह एक जांबाज सिपाही था और उसकी पोस्टिंग लेह लद्दाख में थी। संयुक्त परिवार वाला उसका घर, जिसमें पत्नी, दो बेटियां, बूढ़ी माँ और छोटे भाई का परिवार रहता था। पिछले ही साल पिता की मृत्यु हो गयी थी जो अपने पीछे भरा-पूरा परिवार, एक बड़ा आलीशान मकान और कुछ जमीन-जायदाद छोड़ कर गए थें। सभी उन्हीं के बनाए मकान में रहते थें। छोटा भाई विरेंद्र पटना मे ही एक सरकारी स्कूल का शिक्षक था और उसे एक बेटा और एक बेटी थी। विमला, अर्जुन की बड़ी बहन -उसका ससुराल पटना से थोड़ी ही दूरी पर स्थित था।
घर आए अभी कुछ ही दिन हुए थे कि छोटे भाई ने माँ के माध्यम से बँटवारे की खबर भिजवायी। पहले तो अर्जुन ने छोटे भाई को समझाने-बुझाने का प्रयास किया कि अभी बँटवारा न करे, पर जब वह न माना तो कोई चारा न बचा। फिर अर्जुन भी ठहरा हमेशा बाहर रहने वाला और बार-बार घर नहीं आ सकता था। पीछे में उसके बीवी-बच्चो को कोई दंश न झेलना पड़े। यह सब सोचते हुए बँटवारे के लिए तैयार हो गया।
अगले ही दिन, बड़ी बहन विमला और उसका पति एक वकील को लेकर घर आ पहुंचे।
सबकुछ पहले से ही तय था। वकील ने पूरे परिवार के सामने माँ के द्वारा तैयार कराया हुआ वसियतनामा पढा, जो कुछ इस प्रकार था:
“चूँकि अर्जुन की केवल दो बेटियाँ है, वो भी अच्छी-खासी पढ़ी-लिखी। कई सरकारी नौकरी की परीक्षा दे चुकी है और जल्द ही कही न कहीं चुन ली जाएंगी। फिर अर्जुन के ऊपर बेटियों की शादी के अलावा और कोई महत्वपूर्ण दायित्व नहीं हैं। इसलिए खाली पड़ी एक हज़ार स्क्वायर फीट की ज़मीन बड़े बेटे-अर्जुन के नाम की जाती है।”
“छोटे बेटे वीरेन्द्र के नाम यह पंद्रह सौ स्क्वायर का मकान किया जाता है। कारण उसका एक बेटा है, जो परिवार का वंश आगे बढ़ाएगा। फिर अपनी माँ की बीमारी, अर्जुन के बीवी-बच्चों सहित पूरे परिवार में कुछ भी ऊँच-नीच होने पर इस शहर में वीरेन्द्र के अलावा उनका देखभाल करने वाला और कोई नहीं।”
“माँ सुशीला देवी के नाम पाँच सौ स्क़्वायर फीट की जमीन की जाती है, जिसे उन्होने अपनी स्वेच्छा से अपने छोटे बेटे वीरेन्द्र के नाम कर दिया है।”
इस अन्यायपूर्ण बँटवारे को सुन अर्जुन की भौवें तन गयीं। पर, उसकी पत्नी आशा ने अपने पति को धैर्य न खोकर शांत रहने का इशारा किया।
पास बैठी अर्जुन की बड़ी बहन विमला ने उसके भीतर चल रहे द्वंद को भांप लिया। सबों के सामने तनकर वह बोली- “अगर इस वसियत से किसी को कोई शिकायत है तो मायके में हो रहे इस बँटवारे में मैं भी बराबर की कानूनन हक़दार हूँ।”
विमला की बातों पर हाँ में हाँ मिलाते हुए उसके पति ने अपने दोनों सालों - वीरेन्द्र और अर्जुन से उनकी राय मांगी। माँ के समीप बैठे वीरेन्द्र ने तो तपाक से अपनी सहमति दे डाली। पर, जब अर्जुन से उसकी सहमति मांगी गई तो उससे न तो कुछ बोलते बन पड रहा था और न ही यह बात मन में दबा कर रखने वाली थी। उसने कुछ समय माँगा और उठकर अपने कमरे में आ गया।
एक तरफ परिवार और दूसरी तरफ उसी परिवार में हो रहा यह अन्यायपूर्ण बंटवारा। सब तो अपने थे, अर्जुन को कुछ समझ न आ रहा था कि क्या करे, क्या न करें। अगले कुछ दिनों तक अर्जुन के दिमाग में ये सारी बातें घुमती रही। पत्नी आशा ने कोई भी क़दम बहुत सम्भालकर उठाने की सलाह दी क्यूँकि सामने अपना ही परिवार खड़ा था। अर्जुन भारी उधेडबून में था, कभी तो मन करता कि इस अन्यायपूर्ण बँटवारे के खिलाफ कोर्ट की शरण में चला जाए।
इसी उपापोह में छुट्टी भी खत्म होने को आयी। अपनी छूट्टी कुछ दिन और बढ़ाने का फैसला कर अर्जुन ने अपने कमांडिंग अफसर को फोन लगाकर छुट्टी बढ़ाने की बात बतायी।
अर्जुन का अपने कमांडिंग अफसर के साथ बड़ा आत्मीय सम्बन्ध था। अर्जुन की आवाज़ सुनकर ही उन्होने भांप लिया कि कुछ तो गड़बड़ है। थोड़ा जोर देकर पुछने पर अर्जुन ने फोन पर सारी बात बतायी तो कमांडिंग अफसर ने उसे समझाया कि कोर्ट जाने से कोई फायदा नहीं होने वाला और अगर संपत्ति किसी तरीके से मिल भी गई तो रिश्ते वापस न मिलेंगे। इसलिए बँटवारे में जो भी मिल रहा है, उसे माँ का प्रसाद समझकर ग्रहण करो।
कमांडिंग अफसर की बातें अर्जुन के दिमाग में छप गयीं और उसने वैसा ही किया। थोड़ा सा कम लेकर भी उसने जिस सबूरी और संतुष्टि को पाया था वो किसी दौलत से कम न था।
आज। अर्जुन रिटायर हो चुका है। बँटवारे में मिले उसी एक हज़ार स्क्वायर फीट की जमीन के टुकड़े पर घर बनाकर, अपनी पत्नी के संग बाकी बची ज़िंदगी गुजर-बसर कर रहा है। दोनो बेटियाँ भी सिविल सेवा पास कर बिहार कैडर की IAS अधिकारी है।
छोटे भाई वीरेन्द्र का बेटा अब विदेश में रहता है और शादी करके उसने वहीं की नागरिकता हासिल कर ली। वहीं बेटी के हाथ पीले होने के बाद वह भी अपने पति के साथ दूसरे शहर में जा बसी और कभी-कभार ही मिलना हो पाता है।
माँ अब अर्जुन के ही साथ रहती है। बड़ी बहन विमला का वीरेन्द्र के साथ कहा-सुनी होने के बाद से आना-जान बंद है और मायके के नाम पर केवल अर्जुन और उसका परिवार ही रह गया है। अर्जुन की पत्नी आशा अब भी पूरे परिवार को एकसूत्र में पिरोए रखने का कोई भी प्रयास अपने हाथों से जाने नहीं देती।
खाली समय में अर्जुन अब भी यही सोचा करता है कि यह जो कुछ भी है - वह माँ का प्रसाद ही तो है।
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