तब निभता कर्तव्य सही से,जब दस गुण अंदर आ जाते ।
हम ईमान और निष्ठा से,निज स्वधर्म पथ कदम बढ़ाते ।।
धन सम्पदा प्राप्त करने में, ध्यान धर्म का रखते ज्ञानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
क्या है उचित और क्या अनुचित,नैतिक और अनैतिक सारे।
इच्छा और कामनाओं के, पथ पर धर्म करे उजियारे ।।
इच्छा पूर्ति हेतु शुभता का, ध्यान कराए धर्म कहानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
अनुचित और अनैतिकता से, हमको धर्म बचाता रहता ।
धर्म दृष्टि से काम होय तो,शांति,सरसता वा सुख बहता।।
हो जाता जब व्यक्ति धर्ममय,बने नहीं जग का व्यवधानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
बने मोक्ष अधिकारी मानव,चित जब पावन हो जाता है ।
मोह छूट जाते हैं सारे, खुद को वह स्वतंत्र पाता है ।।
भव बंधन सारे कट जाते, मुक्ति हेतु दे डाल रबानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
लाभ लेय लौकिक,परलौकिक,भौतिक और आत्मिक सारे।
इस जग में जीवन जीने के,सब आनंद लेय नित न्यारे ।।
अतः धर्म पथ पर चलने से,होती जीवन में आसानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
जितना धर्म सशक्त जहां है, उतना सुख आनंद वहां है।
उतना ही समर्थ होगा वह,यह सुख सोचो और कहां है।।
धारण करलो धर्म,सुपथ पर, होगी नहीं कभी हैरानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
जीवन वीणा की झंकारें , जब गूंजें उन्नत परिकर में ।
प्रफुल्लता छा जाती बाहर,प्रसन्नता भर जाती घर में।।
अभी समय है लिख सकते हो,अपनेपन की नई कहानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
विषम परिस्थितियां जब आतीं,तब अंदर अतृप्ति आती है।
उस अतृप्ति से बाहर भीतर,नियति हमें दुख पहुंचाती है ।।
अंत:करण सूखने लगता, मानवीयता अगर न मानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
श्रद्धा वा विश्वास भरा हो, यदि अंतर्मन में मनमाना ।
तो अभाव हो,या विपदा हो,कभी नहीं पड़ता घबड़ाना।।
धर्म बदलता दृष्टि कोण को,जिससे हो जीवन आसानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
दृष्टि कोण के परिवर्तन से, जीवन में उल्लास उमगता ।
लेते खोज राह जीवन की,धर्म दीप जिनके उर जगता।।
त्रसित न होते वह अतृप्ति से,और न सहते खींचातानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
अंदर का आनंद अलग है,भोग विलास सिर्फ आभासी।
अलग अलग राहें दोनों की,सिर्फ चाहिए समझ जरासी।।
जो सुख साधन पीछे दौड़ें, वह करते अपनी ही हानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
भौतिक साधन अगर न मिलते,तो अंतृप्ति रहजाती मन में।
मिल जाते तब भी दुखदाई, विपदा ही लाते जीवन में ।।
यदि आनंद चाहते छोड़ो, भौतिकता प्रति दौड़ लगानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
निज व्यक्तित्व परिष्कृत करके,पवित्रता उर भर लेते हैं।
अंदर से आनंद उमगता, उसे बांट सबमें देते हैं ।।
करे रसास्वादन सुख रस का,सबको बांटे अमृत पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
जो सौंदर्य और पावनता, अंदर से मानव पाता है ।
उसका अमित मिठास नहीं फिर,उसके अंतस् से जाता है।।
कोई चीज नहीं संसारी, जो तुलना हित जाय बखानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
बाहर अंधकार दौड़ाता, और अतृप्ति,विपति लाता है।
दृष्टि कोण गरिमामय बनता,वह अंदर सुख उपजाता है।।
अंदर का आनंद चमकता, जैसे हो मोती का पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
अंतर्मन की गहराई में, जो उतरे वह मोती पाए ।
साहस हो, जिज्ञासा हो तो,अंदर सुख समुद्र लहराए।।
दृढ़ता से जो चले धर्म पथ, उसे नहीं होती हैरानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।
स्वाद,काम बस दो विषयों पर,तुम अपना अधिकार जमालो।
इनके क्षणिक सुखों के आगे,मत हथियार स्वयं के डालो ।।
स्वाद, काम कीचड़ से बचकर,भरो हृदय गंगाजल पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
बनो न इनके हाथ खिलौना,पतन,पराभव, दुर्गति होगी ।
अगर नहीं इनको रोका तो,भोगी से हो सकते रोगी ।।
पूजनीय है कामतत्व पर, नहीं वासना हितकर मानी।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी।।
लगातार............