छोटी अवस्था में ही पा ली थी , दिन भर माँ तारा की आराधना करती इसी मंदिर में ही मिली थी तभी उसका नाम का अंश मां तारा के नाम से रखा । हर वर्ष माँ के बड़े पूजा
हल बताती जिसे माता आना कहते हैं । उससे कोमल और श्रेष्ठ बाबा शक्तिदानंद को कोई और न मिला तो उसी के पास
दूर खड़े विनय और विशाल के लिए यह बहुत आश्चर्यजनक
था । धीरे धीरे उस लड़की की आंखे लाल होने लगी
बाल धीरे धीरे हवा में उड़ने लगी , चारों ओर के सन्नाटे
के बीच ही एक चलते तूफान को सुनना शायद बहुत
आसान था । यह दृश्य बहुत भयानक लग रहा था
मानों कोई शैतान खुद उस लड़की के अंदर आ गयी
हो । फिर पैर झटक झटक कर वह लड़की मंदिर की
तरफ बढ़ी , अब तक जितना विनय और विशाल ने
उस लड़की को देखा था वह ऐसी नही थी , मंदिर
के सामने आकर वह बदल गयी थी ।
गेट पर पहुँचतें ही गेट अपनेआप खुल गया अंदर
से कई प्रकार के भयानक आवाज एक साथ आने लगी
और फिर कई काली परछाई बाहर आने लगी । यह
बहुत ही भयानक दृश्य था मानो कई शैतानी आत्माएं
इस मंदिर से निकलकर भाग रहीं हो , चारों ओर का
वातावरण एकदम काले कोहरे से घिर आया उस
लड़की के पीछे पीछे विनय और विशाल ने भी उस
मंदिर में प्रवेश किया । अंदर नरमुंड चारों ओर बिखरे
हुए थे और नितिन की आंखे उस लड़की पर टिकी
हुई थी । तभी उस लड़की ने साथ लाये एक पोटली में
से एक सोने की कोई वस्तु निकली और उसे वहीं
प्रवेश कराया तभी एक रोशनी चारों ओर फैल गयी
पूरा मंदिर शैतानों की गूंज से भर उठा और नितिन
वहीं पर गिर तड़पने लगा उसके शरीर से धुआं निकल
रहा था मानो उसका चमड़ा जल रहा हो । तभी एक
तीव्र रोशनी के साथ सारा नरमुंड और पूरा मंदिर
ठीक हो गया और वह लड़की वहीं बेहोश हो गई ।
इस दौरान इतने प्रकाश के बीच विनय और विशाल
ने कुछ नही देखा , जब उन्होंने आंख खोला तो
केवल रजवंतीतारा और नितिन बेहोश अवस्था में
मिले ।
कुछ ही देर बाद दोनों को होश आया रजवंतीतारा
अब एकदम शांत थी , नितिन ,विनय और विशाल
ने एक दूसरे को गले से लगा लिया । और तीनों
ने रजवंतीतारा के पैर छुए ।
बाला के गांव में चारों ओर शोक था। विनय और विशाल
के जाने के बाद भी मौतें हुई थी ।
गांव पहुँच विनय और विशाल ने गांव वालों को सब कुछ
बताया । यहां आने के पहली बार रजवंतीतारा ने
अपने मुख से कुछ कहा " अब यह मंदिर माँ का स्थल है ,
उनका ध्यान रखना ।"
अगले दिन विनय , नितिन और विशाल तीनों रजवंतीतारा
को तारापीठ छोड़ कर आये और उन्होंने एक बार नम
आँखों से मां तारा का दर्शन किया ।आखिर यह सब
उन्ही की कृपा से संभव हुआ था ।
उस शैतानी कहे जाने वाले मंदिर को एकदम
साफ किया गया और एकबार फिर उसमें पूजा आरम्भ
हुई कुछ ही दिन बाद उसमें बाबा शक्तिदानंद के
कहे अनुसार मूर्ति की स्थापना भी हुई , इसमें तीनों
दोस्तों ने भाग लिया ।
नितिन पर उसके भाई की हत्या का भी कोई सबूत
न मिलने के कारण उसे मुक्त कर दिया गया ।
शैतानी मंदिर अब माँ का स्थल बन चुका था आसपास
के भी कई गांव वाले इसी मंदिर में पूजा करने लगे ,
यहां मांगी गई मनोकामना पूरी होती ।
शैतानी साया तो मानो नैनादेवी और बड़ीकाली की
माया से पूरा नैनीताल छोड़ चुकी थी ।।
|| समाप्त ||