Meena Kumari...a painful story - 8 - last part in Hindi Moral Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | मीना कुमारी...एक दर्द भरी दास्तां - 8 - अंतिम भाग

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मीना कुमारी...एक दर्द भरी दास्तां - 8 - अंतिम भाग

पाक़ीज़ा फिल्म में एक गाना है जिसकी शूटिंग के दौरान मीना कुमारी की हालत इतनी खराब हो गई कि वह खड़ी भी नहीं हो सकती थी, इसलिए उनकी बॉडी डबल का इस्तेमाल किया गया, फिल्म को इस बखूबी से डायरेक्ट किया गया कि पता ही नहीं चला कि उस गाने में मीना कुमारी नहीं है |

फिल्म की शूटिंग पूरी हुई और फिल्म रिलीज हुई 3 फरवरी 1972 को पाक़ीज़ा का पहला शो मराठा मंदिर मुंबई में रिलीज हुआ, पहले दिन की कमाई ने मीना कुमारी और कमाल अमरोही को काफी निराश किया, मीना को भी गहरा सदमा लगा अब धीरे-धीरे और बीमार होने लगी अपने अकेलेपन और शराब की लत के कारण फिर उनका लीवर धीरे-धीरे खराब हो गया और उन्हें लीवर का कैंसर हो गया |

वो अस्पताल में काफी घंटों तक बेहोश रहते हैं और जब होश में आती है तो कमाल को ही पुकारती, पाक़ीज़ा की असफलता देखकर उन्होंने कमाल अमरोही से कहा था कि परेशान मत हो मैं इस फिल्म के लिए सिर्फ तुम से ₹1 लूंगी |

इतनी महान थी मीनाकुमारी, वैसे तो मीना कुमारी ने पूरी जिंदगी बहुत कमाई की लेकिन उनकी आखिरी वक्त में हालत ऐसी थी कि इलाज तक के लिए पैसे नहीं बचे, बचपन से जवानी तक अपने पिता और परिवार के लिए कमाया उसके बाद पति के लिए और उन्होंने न जाने कितने जरूरतमंदों को हजारों लाखों रुपए दान किए, मीना कुमारी का दिल किसी भी गरीब लाचार बेसहारा को देखकर पसीज जाता और वह कहती हैं जो दर्द मैंने सहा है, मैं दूसरे को वह दर्द सहते हुए कैसे देख सकती हूं |


31 मार्च 1972 को मीना कुमारी ने लंबी बीमारी के बाद इस दुनिया को अलविदा कह दिया और कुदरत का करिश्मा देखिए मीना कुमारी के जाते ही पाकीजा को देखने भीड़ इस कदर उमड़ी की फिल्म सुपर डुपर हिट साबित हुई, काश मीना कुमारी यह दिन देखने के लिए जिंदा होतीं | मीना कुमारी ने अपने आखिरी वक्त में अपनी लिखी हुई शायरी, नज्में, कहानियां अपनी सभी डायरिया अपने दोस्त गुलजार साहब को देने के लिए कहा जो उन्होंने बाद में पब्लिश भी करवाएं |

मीना कुमारी की एक आखिरी ख्वाहिश और भी थी वह यह कि उनके पति कमाल अमरोही की जब भी मौत हो तो उनको भी उन्हीं के पास दफनाया जाए और लोगों ने ऐसा ही किया मुंबई के रहमताबाद के कब्रिस्तान में मीना कुमारी आज भी चुपचाप खामोशी से सो रहीं हैं जिनके पास में ही कमाल अमरोही की भी मजार बनी हुई है, तो यह थी एक महान कलाकार मीना कुमारी की कहानी जो फिल्मों से लेकर असल जिंदगी तक में प्यार के लिए तरसती और तड़पती रहीं |

मीना कुमारी और कमाल अमरोही की मौत के काफी सालों बाद सुनने में यह भी आया कि मीना कुमारी की एक बेटी भी थी, जी हां यह सुनने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन यह अफवाह थी या सच यह मीना कुमारी ही जानती होंगी |

बताया जाता है कि मीना कुमारी की बेटी को कमाल अमरोही अपना नाम नहीं देना चाहते थे और कमाल अमरोही और मीना कुमारी के बीच बढ़ते झगड़े के बीच मीना कुमारी नहीं चाहती थी कि इस बच्चे की परवरिश उनके पास हो, उनके पास ना पति का प्यार था और ना ही इतना समय इस वजह से उन्होंने अपनी एक सहेली को अपनी यह बेटी सौंप दी थी और उससे वादा लिया कि मरते दम तक इस राज को राज ही रहने देगी, उनकी यह सहेली उनकी बेटी को लेकर पाकिस्तान चली गई और उसकी परवरिश अपनी बेटी की तरह की लेकिन बहुत सालों बाद यह राज पाकिस्तान में खुला हालांकि इस पर कई लोगों की बहुत सारी राय हैं |

ऐसा सच भी हो सकता है क्योंकि मीना कुमारी जिस कदर फिल्म के किरदार निभाती थी उसको जीती थी उनको देखकर तो यही लगता था कि वह अपने अंदर के छुपे दर्द को फिल्मों में दिखा रही हो तो यह की कहानी मीना कुमारी की उर्फ मेहजबीन बानो की |

पेश हैं उनकी कुछ शायरी जो उनके अंदर के दर्द को बखूबी बयां करती हैं |

"ना हाथ थाम सके.. ना पकड़ सके दामन.. बड़े करीब से उठकर, चला गया कोई"

"आगाज तो होता है.. अंजाम नहीं होता.. जब मेरी कहानी में.. वो नाम नहीं होता.."