Last Wish (Part 1) in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | अंतिम इच्छा (पार्ट 1)

Featured Books
Categories
Share

अंतिम इच्छा (पार्ट 1)

"क्या मेरी अंतिम इच्छा पूरी करोगी?"
राजेश,दिनेश और कविता कॉलेज में साथ पढ़ते थे।राजेश और कविता के पिता सरकारी अफसर थे।जबकि दिनेश के पिता किसी प्राइवेट कंपनी में काम करते थे।कविता,राजेश और दिनेश पक्के दोस्त थे।
कविता गोरे रंग की सुंदर युवती थी।साथ पढ़ते पढ़ते राजेश ,कविता को चाहने लगा।प्यार करने लगा।जबकि कविता दिल ही दिल मे दिनेश को चाहती थी।
समय गुज़रने के साथ तीनो ने बी ए पास कर लिया।स्नातक होने के बाद तीनों ही दोस्त एन डी एस की परीक्षा में बैठे थे।लेकिन सफलता राजेश को ही मिली थी।जब राजेश ट्रेनिंग में जाने लगा तब कविता और दिनेश उसे सी ऑफ करने स्टेशन तक गए थे।कुछ क्षण के लिए राजेश को अकेले में बात करने का मौका मिला तो वह कविता से बोला," मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुम्हे अपनी बनाना चाहता हूँ।"
"राजेश के प्रस्ताव को सुनकर वह चुप रह गयी।कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही कर पायी थी।कविता ,दिनेश को चाहती थी।उसका ख्याल था।दिनेश भी उसे चाहता है और। एक दिन अपने प्यार का इजहार कर देगा लेकिन वो दिन नही आया।
समय गुज़रते देर नही लगती।राजेश ट्रेनिंग करके लौट आया वह कविता जे पिता से मिला और कविता से शादी का प्रस्ताव रखा था।कविता के पिता को क्या ऐतराज हो सकता था।उन्हें घर बैठे ही रिश्ता मिल रहा था।कविता ,राजेश को जीवन साथी के रूप में नही चाहती थी।लेकिन उसकी शादी राजेश से कर दी गयी।न चाहते हुए भी उसे राजेश की पत्नी बनना पड़ा।
कविता,दुनिया कज नज़रो में राजेश की पत्नी बन गयी लेकिन दिल से वह यह स्वीकार नही कर पायी।औरत को मनपसंद जीवन साथी मिले तो उसकी खुशी का ठिकाना नही रहता।और अगर मनपसंद जीवन साथी न मिले तो भी पत्नी के सभी कर्तव्यों का निर्वाह करती है।मन से खुश न हो लेकिन कभी इसे जाहिर नही होने देती।
दो साल बाद राजेश की पोस्टिंग श्रीनगर में हुई थी।उसे सरकारी आवास मिल गया था।वह कविता को अपने साथ ले गया।
दिनेश ने बी ए करने के बाद जॉर्नलिज्म का कोर्स कर लिया और वह दिल्ली में ही एक अखबार में काम करने लगा।समाचारों के लिए उसे देश के अलग अलग हिस्सों में जाना पड़ता था।
कश्मीर के हालात काफी खराब थे।आये दिन आतंकवादी घटनाये,हड़ताल,तोड़फोड़,पत्थरबाजी होती रहती थी।पड़ोसी देश से अलगावादियों के सम्पर्क थे।अलगाववादी नेता पड़ोसी देश मे जाते रहते थे।वहां उनका खूब आदर सत्कार होता था।घाटी के सत्ताधारी दलों के भी कुछ नेताओं के पड़ोसी देश से अच्छे सम्बन्ध थे और वे उन्ही के सुर में सुर मिलाकर बोलते थे।
जब भी कोई आतंकवादी सुरक्षा बलों के हाथों मारा जाता तो ये लोग मानव अधिकार की बात करने लगते।लेकिन सुरक्षा बल के जवान के मारे जाने पर ये लोग खुश होते थे।केंद्र सरकार से आने वाले पैसे की बन्दरबांट से कुछ लोग फलफूल रहे थे।अलगाववादी दुसरो के बच्चों को तो पत्थरबाज बना रहे थे और अपने बेटों को विदेशों में पढ़ा रहे थे।ये हालात वर्षो से थे।कश्मीरी पंडितों को घाटी से भागने के लिए मजबूर कर दिया था।
केंद्र की सत्ता में परिवर्तन के साथ विदेश नीति में परिवर्तन के साथ कश्मीर नीति में भी परिवर्तन आया।अलगाव वादियों, पत्थेरबाजो पर नकेल कसने के साथ आतंकवादियों का भी सफाया किया जाने लगा।