how rich is this in Hindi Short Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | कितने अमीर हैं यह 

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कितने अमीर हैं यह 

राकेश मेहरा अपनी पत्नी शेफाली को अस्पताल लेकर आए। जहाँ शेफाली ने जुड़वां बेटियों को जन्म दिया। दिखने में बड़ी सुंदर,  प्यारी-सी बेटियों को देखकर पति पत्नी दोनों ही बेहद ख़ुश थे। दोनों बेटियों निशा और आशा को वह हमेशा एक जैसे कपड़े पहनाते और एक जैसा ही तैयार करते। उन्हें देखकर कोई दोनों में अंतर ही नहीं कर पाता था। दोनों बहनों में बहुत ज़्यादा प्यार था,  एक दूसरे के बिना कभी कुछ भी नहीं करती थीं।


धीरे-धीरे दोनों जवान हो गईं,  पढ़ाई भी दोनों की ख़त्म हो गई। अब माता-पिता को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। राकेश और शेफाली की इच्छा थी कि दोनों बहनों की शादी एक ही परिवार में हो जाए तो उनका साथ ना छूटे। किंतु वह कहते हैं ना,  जोड़े तो भगवान के घर से ही बनकर आते हैं। निशा की शादी एक बहुत ही धनवान लड़के के साथ हो गई। लड़के की हैसियत के मुताबिक ही राकेश को शादी में ख़र्चा करना पड़ा। बारातियों का स्वागत खान-पान सभी मिलाकर राकेश की जेब काफ़ी खाली हो गई।


एक वर्ष के बाद आशा का रिश्ता भी पक्का हो गया। उसकी शादी सामान्य वर्ग के परिवार में तय हुई। उसकी शादी में भी राकेश ने ख़ूब ख़र्चा किया, अपने बुढ़ापे का ख़्याल ना रखते हुए राकेश ने अपनी सारी दौलत बेटियों की पढ़ाई व शादी में लगा दी।


दोनों बहने अपने-अपने परिवार में सुखी थीं। आशा का पति चरण स्वभाव से बहुत ही सरल व शांत था। जबकि निशा का पति सिद्धार्थ व उसका पूरा परिवार अपनी ही दुनिया में मस्त रहने वाले और पैसा कमाने के पीछे पागल थे।


गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं,  तब आशा अपने बेटे को लेकर तीन-चार दिनों के लिए निशा से मिलने उसकी ससुराल चली आई।


एक दिन दोनों बहने बैठी थी तभी उनके पिता राकेश का फ़ोन आया निशा के पास, " निशा बेटा,  तुम्हारी माँ की तबीयत बहुत ख़राब है। इलाज़ काफ़ी महंगा है,  कुछ पैसों की ज़रूरत पड़ेगी।"


निशा थोड़ी सकपकाई और पूछी, " क्या हुआ पापा,  माँ को?"


"बेटा तुम्हारी माँ की किडनी ख़राब हो गई है,  तुम पैसे भेज सकती हो क्या?"


"पापा मैं अभी सिद्धार्थ से बात करती हूँ।"


"ठीक है,  बेटा पर जल्दी बताना।"


आशा ने पूछा, "निशा क्या हुआ माँ को ?  पापा क्या कह रहे थे?"


"आशा माँ की किडनी ख़राब हो गई है और पापा के पास अब इतने पैसे नहीं हैं कि वह माँ का इलाज़ करवा सकें । उन्हें पैसों की ज़रूरत है,  तो मांग रहे थे। मैं सिद्धार्थ से बात करती हूँ।"


इतना कहकर निशा अपनी कमरे में गई जहाँ सिद्धार्थ पहले से ही मौजूद था।


“सिद्धार्थ पापा का फ़ोन आया था,  माँ की तबीयत बहुत ख़राब है। इलाज़ के लिए पैसे कम हो रहे हैं।


बीच में ही सिद्धार्थ ने बात काटी, " हाँ तो पैसे कम हो रहे हैं,  तो हम क्या करें। किडनी के इलाज़ में बहुत पैसा लगता है। मुझसे इसकी उम्मीद मत रखना।"


सिद्धार्थ की बात सुनकर निशा निराश हो गई। वह जानती थी इन लोगों के लिए पैसा ही सब कुछ है। किंतु ऐसा व्यवहार एकदम से ना कह देना निशा का मन बैठ गया,  उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह पापा से क्या कहे आशा को किस तरह से बताए।


आशा बेचैनी में निशा के कमरे के बाहर आकर खड़ी हो गई थी। उसने सब सुन लिया था,  उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपने पति चरण से किस तरह से बात करे क्योंकि उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी। किसी तरह से हिम्मत जुटा कर उसने दूसरे कमरे में जाकर चरण को फ़ोन लगा कर सारी बात बताई।


"चरण माँ को बचा लो प्लीज़,  हमें पापा की मदद करनी होगी"


“अरे निशा,  तुम चिंता ना करो अपने बैंक के अकाउंट में कुछ पैसे हैं और यदि कम पड़े तो मैं लोन ले लूंगा। तुम जल्दी से वापस आ जाओ,  फ़िर हम तुम्हारे घर चलेंगे,  माँ की तबीयत भी देख लेंगे और पैसे भी दे देंगे।"


अपने पति से यह शब्द सुनकर आशा को बहुत ही आनंद की अनुभूति हुई।


जब वह निशा के घर आई थी तब उनकी शान और शौकत देखकर उसे लगा था,  कितने अमीर हैं यह लोग। निशा कितनी ख़ुश क़िस्मत है,  हम दोनों एक साथ,  एक ही वक़्त पैदा हुए पर दोनों का भाग्य इतना अलग-अलग क्यों ?


लेकिन आज उसे समझ आ गया था कि भाग्य तो भगवान ने दोनों का एक ही साथ में लिखा। दोनों को ही भरपूर दिया था,  एक को दौलत से भरपूर परिवार और एक को प्यार और संस्कार वाला परिवार।


आज उसे निशा पर तरस आ रहा था कि इतनी अमीर होते हुए भी वह कितनी गरीब है।



रत्ना पांडे,  वडोदरा (गुजरात)