Meena Kumari...a painful story - 4 in Hindi Moral Stories by Sarvesh Saxena books and stories PDF | मीना कुमारी... दर्द भरी एक दास्तां - 4

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मीना कुमारी... दर्द भरी एक दास्तां - 4

इस हादसे के बाद एक दिन अस्पताल में मीना कुमारी से मिलने के लिए कमाल अमरोही जब आए तो मीना कुमारी की तबीयत उन को देखते ही ठीक हो गई और फिर शुरू हो गया प्यार का सिलसिला जो 2 साल तक ऐसे ही चलता रहा | इसी दौरान मीना कुमारी को दो ऐसी फिल्में मिली जिन्होंने मीना कुमारी को ऊंचाई की बुलंदियों पर बिठा दिया फिल्म थी "बैजू बावरा" और "फुटपाथ" |

"बैजू बावरा" ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए फिल्म का संगीत, कहानी, एक्टिंग सब बहुत पसंद किए गए |

मीना कुमारी को अपनी जिंदगी से अब कोई शिकायत नहीं थी, उन्हें जिंदगी से भी प्यार हो चला था, कुछ दिन बाद कमाल अमरोही के सेक्रेटरी ने मीना कुमारी के पास आकर कहा यह सब इतने दिनों से चल रहा है लेकिन कब तक चलेगा आप लोग शादी क्यों नहीं कर लेते मीना कुमारी ने शादी के लिए हां की लेकिन कमाल अमरोही की पहली बीवी और बच्चे होने की वजह से अड़चन थी |


मीना कुमारी के पिता अली बख्श भी नहीं चाहते थे कि मीना कुमारी अभी शादी करें और एक दिन दोनों ने अपने-अपने परिवारों को बिना बताए निकाह कर लिया | ना ही कमाल अमरोही के घर वालों को पता चला और ना ही मीना कुमारी के पिता को लेकिन अब यह राज कब तक छुपाए रखते और एक दिन जब अलीबक्श को पता लगा कि उनकी बेटी मीना कुमारी अब शादीशुदा है, वह भी अपने से 15 साल बड़े आदमी से तो उन्होंने मीना कुमारी को तुरंत ही तलाक देने के लिए कहा लेकिन मीना कुमारी नहीं मानी |

बाप और बेटी में अब बातचीत होनी बंद हो गई थी, मीना कुमारी को यह बात अंदर ही अंदर खाए जा रही थी लेकिन उनकी कमाल अमरोही के साथ मुलाकातों से यह उलझन सुलझ जाती |

एक दिन अली बख्श ने मीना कुमारी को डायरेक्टर महबूब की फिल्म "अमर" के लिए कहा जिसके हीरो दिलीप कुमार साहब थे लेकिन मीना कुमारी ने इसके लिए मना कर दिया क्योंकि वह कमाल अमरोही की एक फिल्म उस समय कर रही थी, इस पर अली बख्श में मीना कुमारी से कहा कि अगर तुम यह फिल्म नहीं कर सकती तो तुम्हारे लिए इस घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद है |

मीना कुमारी ने दिल पर पत्थर रख कर इस फिल्म के लिए हां कर दिया और फिल्म की शूटिंग करने लगी लेकिन उनसे काम नहीं हो पा रहा था क्योंकि उनका दिल अंदर ही अंदर रो रहा था, आखिरकार उन्होंने इस फिल्म को करने से मना कर दिया और कमाल की फिल्म करने लगी उस रात जब वो वापिस घर आईं तो घर का दरवाजा उनके लिए नहीं खुला, वो समझ गई थी, वो रोती हुई सीधा कमाल के पास चली गई थी और साल था 1953 |

मीना कुमारी के पास फिल्मों की लाइन लगी थी, वह दिन रात काम करने लगी थी फिल्म "दाना पानी", "नौलखा", "दायरा" उस दौरान खूब चली और उसके बाद आई फिल्म "परिणीता" जिसका डायरेक्शन बिमल रॉय के हाथ में था |