Stree - 28 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | स्त्री.... - (भाग-28)

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स्त्री.... - (भाग-28)

स्त्री........(भाग-28)

विपिन जी के जाने के बाद मैंने अनिता को समझाया कि तुम अपने काम में परफेक्ट हो तो कोई भी आ जाए, उसके सामने नर्वस होने की जरूरत नहीं है।
बिल्कुल कांफिडेंट हो कर बात किया करो....मैडम वो जो आयीं थी, वो इंग्लिश में बात कर रही थीं तो मैं बोलने में अटक रही थी, पर अब ध्यान रखूँगी......। उसका नर्वस होना ठीक भी था, कोई ऐसे बात करने वाला अभी तक हमारे पास कोई आया भी नहीं था.....विपिन जी के जाने के बाद मैं भी अपने कुछ आर्डर की डिलिवरी के लिए चली गयी....उस दिन मेरे पुराने क्लाइंट और मेरे मकान मालिक ने मुझसे पूछ लिया, "जानकी शादी करने का कुछ सोचा या नहीं? सर अभी सोचा नहीं इस बारे में"! "जानकी उम्र में तुमसे बड़ा हूँ और अनुभव भी तुमसे ज्यादा है। जिंदगी काटना और उसको जीना दोनो अलग बातें होती हैं"। "आप ठीक कह रहे हैं सर, पर एक बार का अनुभव किसी पर भी विश्वास करने से डरती हूँ"। "तुम्हारी इस बात से सहमत हूँ, जल्दबाजी में फैसला मत लेना, अच्छे से सोच विचार कर परख कर ही फैसला लेना...."। "ठीक है सर, मैं इस बात का ध्यान रखूँगी",कहा तो वो बोले," मैं तुम्हारा विचार जानना चाहा रहा था कि तुम दोबारा शादी के बारे में क्या सोचती हो!! अगर तुम शादी करने का सोच रही हो तो क्या तुम मेरे बेटे से शादी करोगी? तुम तो जानती हो मेरे तीन बेटे हैं, बड़े दोनों अपने अपने परिवारों के साथ अलग रहते हैं और उनका काम भी अलग है, पर मेरा सबसे छोटा बेटा सोमेश तुम्हारा ही हमउम्र होगा शायद, 3 साल पहले उसकी शादी की थी परंतु शादी के कुछ महीने बाद बहु मायके गयी थी, वहाँ उसका एक्सीडेंट हुआ और वो नहीं रही।हम उसकी शादी करने का सोच रहे हैं, तो अगर तुम ठीक समझो, तो मिल कर बातचीत करके एक दूसरे को जान लो। तुम्हें हमारा बेटा पसंद आए और उसे तुम तो ठीक है, मुझे तो तुम पसंद हो बहु बनाने के लिए"। मैं उनकी बात सुन कर समझ ही नही पायी कि क्या कहूँ ! "जानकी बेटा आराम स देख परख कर फैसला करना तुम्हारी न भी हो तो भी कोई बात नहीं, तुम्हारे साथ हमारा बिजनेस वैसे का वैसे ही रखना तो किसी दबाव में राय मत बनाना"! उनकी ये बात मेरे दिल को छू गयी, इस दुनिया में अभी भी अच्छे लोगों की कमी नही, ठीक है सर जब सोमेश जी चाहें हम मिल लेंगे, मेरी बात सुन कर इनके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी, ठीक है, मैं उससे बात करके बताता हूँ कि किस दिन उसकी छुट्टी है? क्या करते हैं सोमेश जी?
सोमेश डॉ. है सरकारी हॉस्पिटल में.....
पर सर ये तो गलत होगा, आपके डॉ.बेटे के लिए मैं ठीक नहीं! "मैं तो बहुत कम पढी लिखी हूँ, उनके लिए तो आपको उनके हिसाब से लड़की देखनी चाहिए"। "जानकी जीवन सिर्फ पढाई से नहीं चलता, तुम मुझे समझदार लगती हो, घर की जिम्मेदारी भी निभाओगी और अपना काम भी, सबसे बड़ी बात ये है कि मेरे बेटे को इस बात से कोई ऐतराज नहीं होगा.....तुम पहले उससे मिलो फिर बाकी बातें बाद में करते हैं", उनकी बात सुन कर थोड़ी तसल्ली तो हुई पर अंदेशा तो है ही.....इंसान तो मेरा पहला पति भी ठीक ही था और उसका परिवार भी बहुत अच्छा है...पर जब साथ रहो तब पता चलता है कि कौन कैसा है ! बंसल सर ने मेरी बहुत मदद की है, सबसे पहले काम उन्होंने ही दिया और पैसों के लिए तो कभी परेशान ही नहीं किया, हमेशा पेमेंट साथ ही कर देते थे। शुरू शुरू में तो एडवांस भी देते रहे.....उस दिन सोमेश जी के बारे में जान कर उनके लिए मन दुखी हुआ, शायद भगवान भी उन्हीं लोगो को परेशानी देते हैं, जिनमें झेलने की हिम्मत हो, तभी मैं अपने आप को कमजोर नहीं समझती.......। उसी दिन विपिन जी का रात को फोन आया और रोशनी के बिहेवियर के लिए माफी माँगने लगे.... मैंने भी कह दिया कि कोई बात
नहीं, जो हुआ वो भूल जाइए। वो बोले अगर आप सचमुच नाराज नहीं हैं तो कल लंच हमारे साथ करो... ठीक है तो आप आ जाइए कल और लंच यहीं कीजिएगा। नहीं, लंच करने आप आएँगी, मैं आपको सुबह बता दूँगा कि कब और कहाँ मिलना है.....आपके साथ और कौन कौन आ रहा है ? मैं, माँ कामिनी दीदी और आप..जीजाजी और ताऊ जी बिजी हैं..और आपकी फैशन डिजाइनर रोशनी जी नहीं आएँगी ? मुझे तो लगा ये बिजनेस मीटिंग के लिए लंच है ? नहीं जानकी जी ये फैमिली लंच है और रोशनी को काम पर लगा दिया है, अब वो जो डिजाइम बनाएगी,वो आपको एक्सप्लेन करेगी। ठीक है विपिन जी, आप मुझे बता दिजिएगा मैं पहुँच जाऊँगी, कह कर फोन रख दिया.....मेरे दिमाग में उस दिन की हर बात याद आ रही थी, काफी उठा पटक वाला दिन रहा......सुबह की रोशनी से मुलाकात के बाद मन खराब हो गया था, पर बंसल सर की बातें सुन कर लगा हर कोई किसी न किसी दुख के साथ जी रहा है, और फिर विपिन जी का फोन और लंच का प्रोग्राम बनना समझ नहीं आ रहा था कि उनकी माँ मेरे साथ लंच के लिए आ रही हैं? आखिर क्यों ? फिर अपने आप को समझाया," सुबह पता चल जाएगा जानकी"! सुबह का इंतजार करना भी तो मुश्किल लग रहा था। तारा मेरा चेहरे से पता लगाने लग गयी है कि कुछ बात मुझे परेशान कर रही है या मैं खुश हूँ। क्या बात है? आप रात से ही परेशान हो दीदी कोई बात बताने लायक हो तो आप मुझे बता सकती हैं? तारा ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं तुझे न बता सकूँ। आजकल सब कह रहे हैं कि मुझे शादी कर लेनी चाहिए तो सोच रही हूँ कि क्या करना चाहिए क्योंकि डर लगता है कि दोबारा वही सब न हो!! दीदी डर तो लगता है कि कुछ दोबारा गलत न हो जाए, पर आपको दोबारा शादी करनी चाहिए और आप कोशिश कीजिएगा कि आप का और आपके पति का काम एक जैसा न हो......ऐसा क्यों तारा? क्योंकि दीदी पति दूसरी कामकाजी महिला की तारीफ तो कर सकता है, पर अपनी पत्नी पर हावी रहने की कोशिश करता है और वो आपके काम में भी अपनी टाँग अडाएँगे और बिन माँगे खूब राय देंगे...ऐसा मैंने देखा था, इसलिए बता रही हूँ....बाकी आप जो ठीक समझे। मैं तो तारा को बिल्कुल सीधी सादी सी समझती थी, पर वो तो मुझे कम शब्दों में सचेत कर गयी। विपिन जी ने फोन करके मुझे होटल का नाम बता दिया और 1 बजे तक पहुँचने की हिदायत भी.....। मैंने निकलने से पहले अनिता का विपिन जी का सारा सामान फिनिशिंग वगैरह चैक करके 2 घंटे में तैयार रखने को कह गयी.....जब पहुँची तो 1:15 बज गए थे। बाहर पूछा तो वो मुझे उनकी टेबल तक छोड़ गया......तीनों बैठे कुछ बात कर रहे थे, पर मेरे आने पर चुप हो गए। सबसे पहले मैंने विपिन जी की माँ को नमस्ते की और दोनो को बाद में हैलो कहा... मैं कामिनी के पास बैठ गयी और बच्चों का हालचाल पूछने लगी.....विपिन जी की मम्मी भी बीच बीच में बात कर रहीं थी।
खाने का आर्डर दे कर हम फिर एक दूसरे से बात करने लगे......विपिन जी की माँ को कामिनी चाची जी बोलती है तो मुझे भी वही ठीक लगा बोलना....चाची जी मेरे परिवार में बहुत रूचि ले रही थीं, मैं भी उनको धीरे धीरे सब बताती जा रही थी.....खाना सर्व हुआ तो दूसरी बातें बंद करके खाने के बारे में बातें शुरू हुई, कौन से होटल का क्या अच्छा है क्या नहीं। मुझे ऐसी बातें बिल्कुल पसंद नहीं, जिस होटल में बैठ कर खा रहे हैं, उसी जगह पर दूसरे होटल की तारीफ करना मुझे तो तमीज के दायरे में नहीं लगता, पर मैं किसी को टोक नहीं सकती थी....। खाना खाने के बाद कामिनी की चाची ने मुझसे पूछा, जानकी बातें घुमा कर बेटा मैं बोल नहीं पाऊँगी, सो सीधा ही पूछ रही हूँ, विपिन तुम्हें पसंद करने लगा है, वो तुमसे शादी करना चाहता है, क्या तुम उससे शादी करोगी ? विपिन जी और कामिनी मेरी शक्ल देख रहे थे और मैं उनकी। चाची जी आपने सीधा पूछा है तो मैं भी आपको सीधा ही जवाब दूँगी, विपिन जी के साथ बात जरूर होती है मेरी, पर मैंने इस तरीके से कभी सोचा नहीं। आप तो जानती हैं कि मेरी क्वालीफिकेशन कम है और न ही आपके स्टेटस को मैं मैच करती हूँ.....फिर मैं डिवोर्सी भी हूँ और कामिनी जानती है कि मेरे पति ने मुझे कम पढी लिखी होने के कारण ही छोड़ा, कल को इतिहास रिपीट हो मैं नहीं चाहती....हम बिजनेस के लिए बात कर सकते हैं, दोस्त की तरह बात कर सकते हैं, पर शादी के लिए मैं मानसिक रूप से तैयार नहीं हूँ। तुमने बिल्कुल ठीक कहा जानकी, कामिनी बिल्कुल सच कहती है कि तुम बहुत स्पष्ट हो कि अपने जीवन में तुम्हें क्या चाहिए। विपिन के लिए मैं इस रिश्ते को मानने के लिए तैयार थी, पर मन से नहीं क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हें किसी भी तरीके की एडजस्टमेंट करनी पड़े....फिर मुझे ये भी पता चला कि तुम्हें बच्चे भी नहीं हो सकते, जिसके लिए विपिन को तो कोई दिक्कत नहीं, पर मुझे है, तुम भी मानती हो न कि बच्चे होना कितने जरूरी हैं.....!! जी बिल्कुल चाची जी मैं समझती हूँ । मेरी सास को भी बहुत शौक था अपने पोता पोती और नाती नातिन को खेलने खिलाने का पर उनका ये सपना कुछ कारणों से पूरा नहीं हो सका तो मैं नहीं चाहूँगी कि आपका कोई सपना टूटे.......अगर विपिन जी खुद मुझसे ये बात की होती तो भी इनको यही जवाब देती,बेवजह आप लोगों को एक छोटी सी बात के लिए तकलीफ हुई।
मैं उठ खड़ी हुई तो कामिनी ने बोला अभी रूको ,हम निकल रहे हैं, साथ चलते हैं, चाची जी का सब सामान तैयार हो गया हो तो ले चलते हैं। हाँ कामिनी वो सब रेडी है, आप लोगों को अभी लेना है तो चलिए.....मैंने इतनी बातें की पर बिना विपिन जी की और देखे.....जब चलने को कहा तो वो खामोशी से उठ गए बिना एक शब्द कहे.....मैं तो दिल ही दिल में तारा को धन्यवाद बोलती जा रही थी, जिसकी सीख ने मुझे बचा लिया। पूरे रास्ते हम चारों चुप थे......वर्कशॉप पहुँचे और मैंने उन्हें सब दे कर पेमेंट ले ली। पहले तो लगता था कि ऐसे हाथो हाथ रिश्तेदारों से पैसे ले लेना अच्छा नहीं लगता पर ज्यादा औपचारिकता मुझसे कभी होती ही नहीं.....कामिनी और सुमन दीदी के बच्चों के लिए कुछ न कुछ बनाती रहती हूँ, उस दिन भी कामिनी की गुडिया के लिए एक फ्रॉक तैयार कर रखी थी, वो भी कामिनी को दे दी....। विपिन जी की माँ की बातें दिमाग में चल रही थीं, वो गलत तो नहीं कह रही थी, पर अहसास हुआ कि एक औरत दूसरी औरत की कमी को सबसे पहले उछालती है। अभी तो इन्होंने सुनी सुनायी बात पर यकीन करके मुझे जो कुछ कहा वो बुरा नहीं लगा पर उनके कहने का अँदाज जरूर अच्छा नहीं लगा था.....शायद बड़े और पढे लिखे लोग ऐसे ही बुला कर बेइज्जती करते हों ?
क्रमश:
स्वरचित एवं मौलिक
सीमा बी.