Pyar ke Indradhanush - 35 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | प्यार के इन्द्रधुनष - 35

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प्यार के इन्द्रधुनष - 35

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संयोग ही कहा जाएगा कि जिस दिन दूसरे प्रसव के लिए रेनु डॉ. वर्मा की देखरेख में अस्पताल में भर्ती थी, उसी दिन यू.पी.एस.सी. द्वारा अखिल भारतीय सिविल सेवाओं के अंतिम परिणाम घोषित किए गए। मनमोहन तो रेनु के साथ अस्पताल में था। डॉ. वर्मा और अनिता लेबररूम में रेनु के साथ थीं। इसलिए इनको तो फ़ुर्सत ही कहाँ थी कि नेट पर आई.ए.एस. के इन्टरव्यू का रिज़ल्ट देखते।

कोई आधेक घंटे बाद मनमोहन के मोबाइल की रिंगटोन बजी। उसने देखा, श्यामल फ़ोन कर रहा था। इधर लेबररूम से बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी, उधर श्यामल ने उसे उसके आई.ए.एस. में चयन की सूचना और बधाई दी। तभी डॉ. वर्मा ने आकर पुत्र-जन्म का शुभ समाचार तथा बधाई दी। श्यामल ने फ़ोन अपनी मम्मी को पकड़ा दिया - ‘भइया, मेरे भतीजे ने तुम्हारे जीवन में नई बुलन्दियों के द्वार खोल दिए हैं; आगे और उन्नति करो, यही मेरी दुआ और आशीर्वाद है। थोड़ा-सा मलाल है तो इस बात का कि श्यामल को अकेला छोड़कर आ नहीं पाई। डॉ. वर्मा पास ही हैं क्या?’ श्यामल ने जब फ़ोन मंजरी को पकड़ाया था तो उसने बीच में डॉ. वर्मा की बधाई वाली बात सुन ली थी।

‘डॉ. वर्मा तो बधाई देते ही वापस रेनु को अटेंड करने के लिए चली गई, बाद में तुम्हारी बात करवा दूँगा।’

‘और गुड्डू कहाँ है? अब तो बहुत बातें करने लग गई होगी?’

‘गुड्डू तो वासु के पास है, अभी उसे लेकर आता हूँ। … हाँ, बातों में तो बड़े-बड़ों के कान कुतरने लगी है। .... भतीजे को देखने कब आ रही हो?’

‘श्यामल को छुट्टी मिल गई तो पाँच-सात दिन में आती हूँ। डॉ. वर्मा को भी मेरी ओर से बधाई देना। रेनु की मम्मी को बुला लो, कुछ दिन रेनु को सँभाल लेंगी।’

‘वे तो मेरे फ़ोन का ही इंतज़ार कर रही होंगी! अभी उनको भी सूचित करता हूँ।’

डॉ. वर्मा ने यहाँ से जाते ही अपने अटेंडेंट को बाज़ार से मिठाई लाने के लिए भेज दिया। एक-दो जगह फ़ोन करने के बाद मनमोहन डॉ. वर्मा के केबिन में पहुँचा।

‘वृंदा, किन शब्दों में तुम्हारा और परमात्मा का धन्यवाद करूँ, समझ नहीं पा रहा!’

‘मनु, परमात्मा का तो पता नहीं, मेरे लिए तुम्हें शब्दों की ज़रूरत नहीं, यदि तुम्हें अपना कहा हुआ याद हो!’

मनमोहन केबिन की चिटकनी लगाने लगा तो डॉ. वर्मा के हृदय की धड़कनें तेज हो गईं। मनमोहन - ‘वृंदा, चाहे उस समय मैंने मज़ाक़ में कहा था, किन्तु आज तुम्हारी इच्छा ज़रूर पूर्ण करूँगा’, कहने के साथ ही उसने उसे आलिंगन में लेकर उसके अधरों की तपिश शान्त कर दी। क्षण भर की मदहोशी से उबरते हुए डॉ. वर्मा ने स्वयं को अलग किया और कहा - ‘मनु, अपने मन के एक कोने में मुझे आबाद रखना, कभी बिसराना नहीं।’

‘वृंदा, यह आज तुम कैसी बातें कर रही हो? बिसराना और तुम्हें, कम-से-कम इस जीवन में तो सम्भव नहीं।’

डॉ. वर्मा ने विषयान्तर करते हुए कहा - ‘आओ, तुम्हें बेटे और रेनु के पास ले चलूँ। वे भी तो अपने आई.ए.एस. पिता और पति से मिलने को बेताब होंगे!’

रेनु ने मनमोहन को बधाई दी और उठने लगी। मनमोहन ने उसे हाथ से रोका और डॉ. वर्मा के सामने ही पहले उसे और फिर बेटे को चूमा। मनमोहन के इस प्रकार चुम्बन लेने से रेनु शरमा गई, उसके कपोल रक्ताभ हो उठे। उसी समय वासु स्पन्दन को वहाँ ले आया। मनमोहन ने उसे गोद में उठाया और चूमा और पूछा - ‘गुड्डू, छोटा भइया कैसा है?’

‘बहुत प्यारा’, कहकर गोद से नीचे उतरने के लिए कसमसाने लगी। मनमोहन ने उसे नीचे उतार दिया। उसने बेड के पास जाकर पंजों पर खड़े होकर छोटे से भइया को प्यार किया, फिर मम्मी की तरफ़ हो ली। रेनु ने उसके सिर पर हाथ फेरा और अपने पास बेड पर बिठाने के लिए मनमोहन को कहा।

जैसे ही मनमोहन के आई.ए.एस. में चयन का समाचार उसके ऑफिस वालों को मिला, बधाई देने वालों की लाइन लग गई । उसका बॉस भी आया बधाई देने। उसने बधाई देने के साथ ही कहा - ‘मनमोहन जी, योर सन इज वैरी लक्की फ़ॉर यू। देखो, उसने इस दुनिया में आते ही आपके जीवन में ख़ुशियों का अम्बार लगा दिया है। … आप कल ही रेजिगनेशन लेटर भिजवा देना। मैं हेड ऑफिस को फ़ॉरवर्ड कर दूँगा। आप अपनी सुविधा के अनुसार इन्फ़ॉर्म कर देना, हम आपकी सेलेक्शन को सेलिब्रेट करना चाहते हैं।’

‘श्योर सर। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।’

अनिता ने विमल को सूचित कर दिया था। वह भी अपनी मम्मी को लेकर अस्पताल पहुँचा। उसकी मम्मी रेनु के लिए घर से प्रसूता को दिए जाने वाला व्यंजन बनाकर लाई। दो घंटे में रेनु का सारा परिवार ही अस्पताल में पहुँच गया। आते ही रेनु की भाभी ने मंगल गीत की जो तान छेड़ी तो ऐसा लगा, उसकी प्रतिध्वनि से कमरा ही नहीं, जैसे सारा ब्रह्माण्ड ही गुंजायमान हो उठा हो। फिर तो बधाइयों का जो दौर चला, देर शाम तक चलता ही रहा। डॉ. वर्मा ने मनमोहन को कह दिया था कि मेहमानों के लिए चाय-नाश्ता जो भी मँगवाना हो, वासु को कह देना। इस प्रकार अस्पताल के कमरे और डॉ. वर्मा के क्वार्टर के बीच सारा दिन आना-जाना लगा रहा।

रात को बिस्तर पर लेटे हुए डॉ. वर्मा सोचने लगी, मनमोहन जैसा भाग्य कितनी प्रतिभाओं का होता होगा! असंख्य प्रतिभाएँ तो अनुकूल परिस्थितियों के अभाव में रोज़ी-रोटी के जुगाड़ में ही मर-खप लेती हैं। समाज उनकी योग्यता से लाभान्वित होने से वंचित रह जाता है। व्यक्ति के अपने भाग्य के अतिरिक्त दूसरे व्यक्तियों का भाग्य भी उस व्यक्ति की सफलता-असफलता को प्रभावित करता है जो उसके साथ जुड़ते हैं। मनमोहन की सफलता के पीछे उसकी अपनी योग्यता के साथ-साथ हमारा प्रेम, रेनु का समर्पण और स्पन्दन का आगमन भी बहुत हद तक सहायक रहा है, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता। ..... प्रेम की भौतिक अनुभूति का सही अहसास तभी होता है, जब प्रेमी और प्रेमिका की मन:स्थिति एक-सी हो। ‘कौन बनेगा अरबपति’ के बाद होटल में आवेश में मैंने मनमोहन को आलिंगन में लेकर ‘किस’ किया, उस समय मेरा आलिंगन करना उसके लिए अप्रत्याशित था। मैंने चाहे क्षणिक तृप्ति अनुभव की, किन्तु मनमोहन की प्रतिक्रिया ने उसे ग्लानि में बदल दिया। आज जो सन्तुष्टि और आनन्द की अनुभूति हुई है, अन्तस् के भीतर तक रम गई है। इस सुखद अनुभूति के साथ ही उसकी पलकें मुँदने लगीं और शीघ्र ही वह सो गई।

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