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क्रिसमस की पूर्व-रात्रि को अनिता ने बड़े संकोच से विमल से पूछा - ‘कल क्रिसमस है। आप चर्च चलेंगे?’
‘मुझे चर्च जाने में कोई एतराज़ नहीं अनिता। तुम्हारा मन है तो ज़रूर चले चलेंगे, लेकिन चलेंगे दुकान से आने के बाद।’
‘हाँ, ठीक है। रात को अच्छी रौनक़ भी होती है। … मैं सोचती हूँ कि डॉ. दीदी और मनमोहन भाई साहब को भी पूछ लें। यदि वे साथ होंगे तो बहुत अच्छा लगेगा।’
‘फिर एक काम करते हैं, कल तुम इन लोगों को डिनर के लिए इन्वाइट कर लो। कहीं बाहर इकट्ठे डिनर करने के बाद चर्च चले चलेंगे।’
‘गुड आइडिया! मैं सुबह ही डॉक्टर दीदी और रेनु भाभी को फ़ोन कर दूँगी। भाई साहब को आप कह देना।’
‘अरे, रेनु को फ़ोन करोगी तो मनमोहन को भी तुम्हीं कह देना।’
‘भाई साहब को तो आप ही कह देना। मैंने कभी उनसे फ़ोन पर बात नहीं की।’
‘पहले नहीं की तो कल कर लेना। इन्विटेशन तुम्हारी ओर से होगा, बात भी तुम ही करना।’
‘आप भी ना, अपनी बात मनवाने में माहिर हो।’
‘तो इसी बात पर कुछ हो जाय?’
‘क्या...?’
‘अब यह भी मुझे ही बताना पड़ेगा?’
अनिता ने चहकते हुए कहा - ‘बताना तो उसे ही पड़ता है जो कुछ पाना चाहता है।’
इस वार्तालाप की परिणति वही हुई जो प्रेम में डूबे दम्पत्ति की होती है।
........
डॉ. वर्मा ने सोचा, आज क्रिसमस की वजह से होटल-रेस्तराँ में भीड़ हो सकती है, सो उसने चर्च के पास वाले रेस्तराँ में पाँच लोगों के लिए टेबल रिज़र्व करवा लिया। सातेक बजे जब वह घर से निकली तो कोहरा छाने लगा था। वह पहले मनमोहन के घर गई। उनको साथ लेकर विमल के घर पहुँची। अनिता का रंग चाहे गोरा नहीं था, फिर भी साड़ी पहने, माथे पर बिन्दी और सिन्दूर लगाए उसकी समूची देह सुन्दर-सलोनी लग रही थी। नव-विवाहिता तथा मेज़बान होने की प्रसन्नता उसके स्वस्थ और जवान व्यक्तित्व का हिस्सा बनी हुई थी। शॉल उसने तह करके बाएँ कंधे पर रखा हुआ था।
डॉ. वर्मा - ‘अनिता, इतनी ठंड है और शॉल तुमने खोला नहीं और न ही कार्डिगन पहना है?’
‘दीदी, अभी इसकी ज़रूरत नहीं। बाद में जब ठंड लगेगी, खोल लूँगी।’
रेणु ने मज़ाक़ में कहा - ‘जवानी की गर्मी में ठंड क्यों लगेगी अनिता को! दीदी, आपने वो कहावत तो अवश्य सुनी होगी - बच्चों को मैं कुछ कहती ना, जवान मेरे संगी-साथी, बूढ़ों को मैं छोड़ती ना।’
अनिता थोड़ा सकुचा गई। इसे देखकर विमल ने बातों का रुख़ मोड़ते हुए कहा - ‘भाभी, आप भी मौक़े पर छक्का लगाने से चूकती नहीं। .... अब हमें चलना चाहिए।’
कार में बैठते ही सभी ने ठंड से राहत महसूस की।
रेस्तराँ में खाना खाने के पश्चात् डॉ. वर्मा बिल देने लगी तो विमल ने कहा - ‘दीदी, आज आप आमेर के क़िले वाली बात नहीं कह सकती कि जब तक मैं साथ हूँ, तुम जेब में हाथ नहीं डालोगे। आज तो अनिता होस्ट है और हम उसके गेस्ट। लेकिन उसने अपना पर्स मुझे बना रखा है।’
‘विमल, कमाल है कि इतने सालों बाद भी तुम्हें यह बात बात याद है!’
‘दीदी, आपके साथ बिताए जीवन के वो कुछ पल अनमोल हैं, उन्हें कैसे भूल सकता हूँ।’
अनिता इस बातचीत में शरीक न हो सकी, क्योंकि वह इन बातों के सन्दर्भ से अनभिज्ञ थी।
रेस्तराँ से बाहर निकले तो कोहरा पहले से अधिक घना था। चर्च पास में ही होने के कारण वहाँ हाट-बाज़ार की गहमागहमी तथा लोगों की भीड़ के कारण ठंड ने दूरी बना ली थी। यहाँ आकर्षक परिधानों में सजी और उनका प्रदर्शन करने वाली महिलाओं की कमी न थी। चर्च कम्पाऊँड में प्रवेश द्वार से लेकर चर्च के गेट से कुछ गज पहले तक रास्ते के दोनों ओर सजी स्टॉलों पर बच्चों, किशोरों तथा स्त्रियों के काम की तथा उनके मन को आकर्षित करने वाली विभिन्न वस्तुएँ अपनी सार्थकता सिद्ध कर रही थीं, क्योंकि प्रत्येक स्टॉल पर खूब भीड़ थी। यह अलग बात है कि उनमें दर्शक अधिक थे और ख़रीदार कम। अनिता ने स्पन्दन के लिए दो-एक खिलौने, रिबन तथा छोटी-छोटी चूड़ियाँ लीं। जब चूड़ियाँ उसके हाथों में पहनाईं तो उसने हाथ हिला-हिलाकर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की।
चर्च के अन्दर बिजली वाली मोमबत्तियाँ जलाई हुई थीं। लोगों की अच्छी-खासी भीड़ थी। सामने स्टेज पर एक तरफ़ सैंटा क्लॉज़ की वेशभूषा में बैंड वाला सैक्सोफ़ोन पर बड़ी ही मधुर धुन बजा रहा था तो दूसरी ओर क्रिसमस ट्री की जगमगाहट प्रत्येक आगन्तुक का ध्यान आकर्षित कर रही थी। लोग प्रार्थना कर रहे थे। अनिता के साथ आए सभी लोगों ने उसका अनुसरण करते हुए प्रार्थना की। प्रार्थना की समाप्ति पर फादर की नज़र अनिता पर पड़ी तो उसने उसे संकेत से अपने पास बुलाया। अनिता ने थोड़ा-सा सिर झुकाते हुए ‘गुड ईवनिंग फादर’ कहा।
फादर - ‘अनिता, ऑय एम प्लीज्ड टू सी यू हैप्पी। गॉड ब्लैस यू। ... थॉमस रिपेंट्स अ लॉट फ़ॉर हिज फ़ॉलीज।’
‘लेकिन अब मैं क्या कर सकती हूँ फादर! .... वो मेरे हस्बैंड हैं ...’, अनिता ने थोड़ी दूरी पर खड़े विमल की ओर इशारा किया।
‘अनिता, डोंट स्टॉप कमिंग टू चर्च। बरिंग योर हस्बैंड ऑलसो फ़ॉर संडे प्रेयर।’
‘फादर, उनके माता-पिता को यह पसन्द नहीं है, किन्तु मुझे वे नहीं रोकते। मैं आया करूँगी,’ कहकर अनिता अपने साथियों के पास आ गई। हॉल में कर्णप्रिय मधुर धुनों से वातावरण संगीतमय बना हुआ था, जिससे आनन्द और सुकून सृजित हो रहा था। इसी अनुभूति को सँजोने के लिए सभी कुर्सियों पर बैठ गए। स्पन्दन को जब साथ वाली कुर्सी पर बिठाया तो वह नीचे उतरकर क्रिसमस ट्री की ओर भागी। अनिता ने उठकर उसे पकड़ा और क्रिसमस ट्री के पास ले गई। सैंटा क्लॉज़ ने दो-तीन टॉफ़ियाँ स्पन्दन के हाथ में रखकर उसकी मुट्ठी बन्द की और एक टोपी उसके सिर पर ओढ़ा दी। स्पन्दन ख़ुश हो गई। अनिता उसे वापस ले आई और रेनु के साथ वाली कुर्सी पर उसे बिठा दिया। जब स्पन्दन सोने लगी तो रेनु ने कहा कि अब हमें चलना चाहिए और सभी उठकर बाहर आ गए। चर्च से बाहर कोहरा इतना घना छाया हुआ था कि हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता था। ऐसे मौसम में कार चलाना बड़ा कठिन था, फिर भी डॉ. वर्मा ने हिम्मत दिखाई और जैसे-तैसे विमल और मनमोहन को उनके घर छोड़कर अपने घर की राह पकड़ी।
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