Pyar ke Indradhanush - 32 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | प्यार के इन्द्रधुनष - 32

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प्यार के इन्द्रधुनष - 32

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आरम्भिक गर्भावस्था के कारण रेनु की तबीयत कुछ ठीक नहीं रहती थी। दूसरे ठंड पड़ने लगी थी। सुबह-शाम की तो अच्छी-खासी ठंड होने लगी थी। रेनु स्पन्दन का ख़्याल तो पूरा रखती थी, फिर भी कई बार जब वह आराम कर रही होती तो स्पन्दन रज़ाई में से निकलकर नंगे पाँव ठंडे फ़र्श पर खेलने लग जाती। इस प्रकार वह ठंड की पकड़ में आ गई। मनमोहन ने डॉ. वर्मा को बताया तो उसने कहा - ‘मनु, तुम्हें स्पन्दन को स्कूटर पर लेकर आने की आवश्यकता नहीं। मैं लंच के समय देख आऊँगी। लगे हाथ रेणु की जाँच भी कर लूँगी।’

डॉ. वर्मा ने जब स्पन्दन को देखा तो उसे निमोनिया का संदेह हुआ। उसने चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. सुशील कुमार को फ़ोन किया तो उसने कहा - ‘डॉ. साहब, आपको पूछने की क्या ज़रूरत थी, आप तो किसी समय भी आ सकती हैं।’

‘वह तो ठीक है। फ़ोन तो इसलिए किया था कि कहीं आप बाहर न हों। बस पाँच मिनट में मैं आ रही हूँ,’ कहकर डॉ. वर्मा ने मोबाइल बन्द किया और स्पन्दन को लेकर डॉ. सुशील कुमार के घर पर पहुँच गई। डॉ. सुशील कुमार ने क्लीनिक घर पर ही बनाया हुआ था। दोपहर का समय होने के कारण अटेंडेंट वग़ैरा कोई भी नहीं था।

डॉ. सुशील कुमार - ‘डॉ. साहब, आप स्वयं ही बच्ची को ले आईं, इसकी मम्मी नहीं आई?’

‘दरअसल, इसकी मम्मी की तबीयत ठीक नहीं थी। शी इज अगेन ऑन द फ़ैमिली वे। शायद आपसे बात नहीं हुई, मैंने स्पन्दन को अडप्ट करने का मन बनाया हुआ है। इस प्रकार मैं इसकी मम्मी ही हूँ। प्लीज़ चेक करके देखो, कहीं इसे निमोनिया तो नहीं?’

‘डॉ. साहब, आपको बहुत-बहुत बधाई। बहुत ही प्यारी बच्ची है,’ कहकर उसने स्पन्दन का चेकअप किया। डॉ. वर्मा का संदेह सही था। डॉ. सुशील कुमार ने अपने पास से ही आवश्यक दवाई दी और कहा कि बच्ची को नीचे फ़र्श पर बिल्कुल भी न उतरने दें, क्योंकि बदलते मौसम में अधिक सावधानी की आवश्यकता रहती है।

घर आकर डॉ. वर्मा ने रेनु को स्पन्दन का विशेष ध्यान रखने तथा समय पर दवाई देते रहने के लिए कहा। रेनु चाय बनाने चली गई तो डॉ. वर्मा ने मनमोहन को स्पन्दन के बारे में सूचित किया और कहा कि मैं शाम को भी आऊँगी। निमोनिया की बात सुनकर मनमोहन को चिंता तो हुई, किन्तु उसे तसल्ली थी कि डॉ. वर्मा सब सँभाल लेगी।

शाम को जब डॉ. वर्मा मनमोहन के घर आई तो उसने कहा - ‘मनु, तुम लोग दो-चार दिन मेरे साथ रहो। स्पन्दन जब ठीक हो जाएगी तो तुम इधर आ जाना।’

मनमोहन सोचने लगा, डॉ. वर्मा ने यह बात तो अपनेपन में कही है, किन्तु रेनु का मन टटोलना भी ज़रूरी है। सो उसने रेनु को सम्बोधित करते हुए पूछा - ‘रेनु, तुम क्या कहती हो, क्या गुड्डू के ठीक होने तक हमें वृंदा के यहाँ चलकर रहना चाहिए?’

‘गुड्डू तो हमारे पास दीदी की अमानत है। उसके भले के लिए जो दीदी कह रही हैं, हमें मान लेना चाहिए।’

डॉ. वर्मा ने हँसते हुए कहा - ‘मनु, अब तो होम मिनिस्टर ने भी मोहर लगा दी, चलने की तैयारी करो।’

रेनु - ‘दीदी, आपका कहा सिर-माथे। लेकिन खाना खाकर चलेंगे।’

‘रेनु, तुमने खाने की तैयारी कर रखी है या करनी है?’

‘खाना बनाने में क्या देर लगनी है, मैं अभी तैयार कर लेती हूँ।’

‘रेनु, तुम्हारी तबीयत कोई बहुत अच्छी नहीं है। तुम चलने की तैयारी करो, मैं खाने के लिए वासु को फ़ोन कर देती हूँ।’

इसके बाद रेनु ने कुछ कहना उचित नहीं समझा।

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