Pyar ke Indradhanush - 28 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | प्यार के इन्द्रधुनष - 28

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प्यार के इन्द्रधुनष - 28

- 28-

तीन-चार दिन बाद अनिता डॉ. वर्मा से बातचीत करने के लिए उसके केबिन में आई। नमस्ते के आदान-प्रदान के उपरान्त अनिता ने शुरुआत करते हुए कहा - ‘डॉ. साहब, मैंने आपकी सलाह पर शान्त मन से विचार किया है। मेरी पहली शंका तो यह है कि क्या आपके मित्र के मित्र मुझ ईसाई धर्म की अनुयायी के साथ विवाह के लिये सहमत होंगे? दूसरे, क्या वह एक तलाकशुदा स्त्री को स्वीकार कर पाएँगे, क्योंकि प्राय: तलाकशुदा आदमी भी दूसरी पत्नी के रूप में कुँवारी लड़की की चाह रखता है?’

‘अनिता, तुम्हारी दोनों शंकाएँ निर्मूल नहीं हैं। मैंने अपने मित्र से चर्चा की थी। उन्हें तो मैंने हर बात बता दी है। उनका मत था कि तुम्हारी स्वीकृति के बाद ही विमल यानी मेरे मित्र के मित्र, से बात करना उचित होगा। वैसे उन्हें भी यक़ीन है कि विमल अपने मित्र और मेरे समझाने पर इस सम्बन्ध के लिए तैयार हो सकता है। विमल के माता-पिता तो कब से चाह रहे हैं कि उसका घर बस जाए।’

‘यदि आपका ऐसा विश्वास है तो आप उनसे बात कर लें।’

‘अनिता, मुझे थोड़ा-बहुत अपने परिवार के विषय में बताओ, क्योंकि विमल या उसके माता-पिता को कुछ तो बताना होगा।’

‘डॉ. साहब, मुझे मेरे जन्म देने वाले माता-पिता के बारे में कुछ मालूम नहीं। जब से होश सँभाला है, मुझे तो इतना ही पता है कि मेरी परवरिश एक अनाथालय में हुई है, जिसे ईसाई मिशनरी चलाते हैं। इसलिए यह भी नहीं कह सकती कि मेरी जन्मदात्री किस धर्म को मानने वाली थी। ईसाई मिशनरियों की देखरेख में पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा होने के कारण मैं मन से ईसाई ही हूँ। लेकिन, खुले विचारों के किसी भी योग्य जीवनसाथी के साथ मैं आराम से अडजस्ट कर सकती हूँ।’

‘तुम्हारी बैकग्राउंड जानकर जहाँ दु:ख हुआ, वहीं तुम्हारे स्पष्ट विचार जानकर प्रसन्नता भी हुई। मैं कामना करती हूँ, तुम्हारा भविष्य सुखमय व ख़ुशियों से भरपूर हो। ....... मैं विमल से बात करती हूँ। जैसा भी उसका रिस्पाँस होगा, तुम्हें बताऊँगी।’

उसने शाम को पहले मनमोहन से बात की, फिर विमल को कॉल की - ‘विमल, मै अंकल-आंटी से मिलना चाहती हूँ।’

‘डॉ. साहब, इतने सालों बाद इस गरीब को कैसे याद किया?’ मनमोहन ने विमल को डॉ. वर्मा से हुई सारी बात बताई हुई थी, फिर भी उसके मुँह से यह बात निकल गई।

विमल के उलाहने को दरकिनार करके डॉ. वर्मा ने कहा - ‘घर आना चाहती हूँ। यह बताओ, कब आऊँ।’

‘अभी तो दुकान पर हूँ। आठ-एक बजे दुकान बन्द करते हैं। उसके बाद किसी समय भी आ सकती हैं।’

विमल ने अपने माता-पिता को डॉ. वर्मा का संक्षिप्त परिचय उसके पहुँचने से पहले ही दे दिया था। अत: वे लोग प्रतीक्षारत थे। रात के घटे हुए तापमान को देखते हुए डॉ. वर्मा ने नौ बजे के लगभग घर से निकलने से पहले कार्डिगन पहन लिया था। उसने सभी को नमस्ते की। विमल को देखकर उसके मुख से निकला - ‘यह मैं क्या देख रही हूँ विमल? यदि कहीं रास्ते में इस हाल में मिल जाते तो मैं पहचान भी ना पाती। .... जीवन में एक दाँव उलटा पड़ने से ही हार थोड़े ना मान लेनी चाहिए। अभी तुम्हारे जीवन की शुरुआत है, हिम्मत मत हारो। विगत को भूलकर आगे की सोचो।’

डॉ. वर्मा की ऐसी उत्साहजनक बातें सुनकर विमल के पिता शामलाल बोले - ‘बेटे, हमने इसे बहुत समझाने की कोशिश की है, लेकिन इसका तो कुछ भी करने को मन नहीं करता। अब तुम आई हो तो शायद तुम्हारी बातों का कुछ असर हो।’

शामलाल के कथन से डॉ. वर्मा को लगा कि जिस काम के लिए वह आई हूँ, उसके सिरे चढ़ने के पूरे आसार हैं। तब उसने विस्तार से सारी बातें विमल तथा शामलाल के सामने रखीं। सब कुछ सुनने के पश्चात् शामलाल ने कहा - ‘वृंदा बेटे, मुझे उस लड़की की दु:खद दास्तान सुनकर बहुत कष्ट हो रहा है। ..... मुझे उसके ईसाई धर्म को मानने से कोई एतराज़ नहीं बशर्ते कि, यदि यह रिश्ता सिरे चढ़ता है, वह शादी के बाद विमल को ईसाई धर्म को अपनाने के लिये विवश न करे और हमारे सामाजिक व धार्मिक रीति-रिवाजों को स्वेच्छा से अपना ले।’

‘अंकल जी, आपकी बातें बिल्कुल जायज़ हैं। मैं अनिता से इन मसलों पर बात करूँगी। यदि वह हमारी बातें मान लेती है तो भी मैं चाहती हूँ कि विमल दो-चार बार उससे मिले, उसे समझे ताकि भविष्य में किसी तरह की दिक़्क़त न आए। .... विमल, तुम्हारा क्या विचार है?’

विमल ने उदासीनता से कहा - ‘डॉ. साहब, आप और पापा जो भी निर्णय लोगे, ठीक ही लोगे।’

‘अच्छा अंकल जी, अब मैं चलती हूँ, आपने भी आराम करना होगा। अनिता से बात करके जैसा भी होगा, आपको बताती हूँ’, कहकर वह उठ खड़ी हुई।

‘सदा ख़ुश रहो बेटे’, शामलाल ने आशीर्वाद दिया और विमल उसे बाहर तक छोड़ने आया तो डॉ. वर्मा ने कहा - ‘विमल, कल दिन में एक बार अस्पताल आ जाना। अनिता की कल डे ड्यूटी है। एक बार मेरे केबिन में उसे देख लेना। फिर जैसा तुम चाहोगे, अकेले में मिलने का प्रोग्राम बना लेंगे। आओगे ना?’

‘डॉ. साहब, आपका अनुरोध मैं ना मानूँ, ऐसा हो सकता है?’

‘वैरी गुड। कल मिलते हैं। गुड नाइट।’

दूसरे दिन सुबह अस्पताल पहुँचते ही डॉ. वर्मा ने अनिता को बुलाकर उससे विमल के पिता द्वारा कही बातों पर विचार-विमर्श किया और उसको यह भी बता दिया कि विमल आज उससे मिलने आने वाला है। तब अनिता ने पूछा - ‘डॉ. साहब, क्या मैं यूनिफ़ॉर्म में ही विमल से मिलूँ या ड्रेस चेंज करके मिलूँ?’

डॉ. वर्मा ने उसे यूनिफ़ॉर्म में ही रहने को कहा, क्योंकि यदि वह ड्रेस चेंज करके आएगी तो स्टाफ़ में कानाफूसी होगी, जिससे अभी बचना ज़रूरी था।

जब विमल अस्पताल पहुँचा तो डॉ. वर्मा को कल रात की अपेक्षा उसमें काफ़ी सकारात्मक ऊर्जा दिखाई दी। उसने अटेंडेंट को अनिता सिस्टर को बुलाने के लिए कहा। अनिता के आने से पूर्व डॉ. वर्मा ने विमल को बताया कि अंकल जी ने जो शंका व्यक्त की थी, उसपर मैंने अनिता के साथ सुबह ही चर्चा कर ली थी। उसके मन में किसी तरह का कोई पूर्वाग्रह नहीं है। वह एक सहज, सरल जीवन जीने की इच्छुक है। बाक़ी तुम लोग आपस में मिलोगे, एक-दूसरे से विचार साझा करोगे तो और अच्छी तरह जाँच-परख हो जाएगी।

अनिता के आने के बाद डॉ. वर्मा ने कॉफी लाने के लिए अटेंडेंट को कहा और अनिता और विमल को एक-दूसरे का औपचारिक परिचय दिया। विमल ने कुछ विशेष नहीं पूछा। वह बस अनिता को निहारता भर रहा। अनिता ने ज़रूर विमल के परिवार के विषय में कुछ प्रश्न किए, विमल ने संक्षिप्त किन्तु उचित उत्तर देकर उसकी जिज्ञासा शान्त की। अन्ततः अनिता ने कहा - ‘विमल जी, परसों मेरा ऑफ डे है, आपकी दुकान बन्द रहेगी, यदि आपकी कोई और एन्गेजमेंट न हो तो आप मेरे घर आ जाइए, लंच इकट्ठे कर लेंगे।’

विमल ने अनिता के निमन्त्रण पर डॉ. वर्मा को सम्बोधित करते हुए कहा - ‘डॉ. साहब, परसों आप भी आ जाना।’

‘विमल, मैंने तुम दोनों को मिला दिया है। अब एकान्त में एक-दूसरे को जानने-समझने की कोशिश करो। मैं तुम दोनों के बीच क्या करूँगी?’

‘चलो ठीक है। अब मैं निकलता हूँ। अनिता जी, घर से निकलने से पहले मैं आपको फ़ोन कर दूँगा।’

विमल के जाने के पश्चात् अनिता भी अपनी ड्यूटी पर चली गई। डॉ. वर्मा दोनों के रुख़ से आश्वस्त एवं प्रसन्न थी कि अपने-अपने जीवन से निराश दो प्राणी नई पारी का आरम्भ करने की कगार पर हैं।

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