Pyar ke Indradhanush - 27 in Hindi Fiction Stories by Lajpat Rai Garg books and stories PDF | प्यार के इन्द्रधुनष - 27

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प्यार के इन्द्रधुनष - 27

- 27 -

प्रसूति विभाग में एक नर्स थी मिसेज़ अनीता थॉमस। काम के प्रति पूर्णतः समर्पित। डॉ. वर्मा देख रही थी कि मिसेज़ थॉमस पिछले कुछ दिनों से खोई-खोई रहती है। एक दिन शाम की ड्यूटी देने के पश्चात् घर जाने से पूर्व अपने केबिन में फ़ुर्सत में बैठी डॉ. वर्मा ने मिसेज़ थॉमस को बुलाने के लिए अटेंडेंट को कहा। मिसेज़ थॉमस ने आकर ‘गुड इवनिंग डॉक्टर साहब’ कहा और पूछा - ‘आपने मुझे याद किया?’

‘हाँ, मिसेज़ थॉमस। मैं कई दिनों से देख रही हूँ कि तुम स्वाभाविक व्यवहार नहीं कर रही हो। मैं जान सकती हूँ कि ऐसा क्यों है, जबकि पहले तो तुम बहुत चुस्ती से हर काम को अंजाम देती थी?’

मिसेज़ थॉमस ठीक से अनुमान नहीं लगा पाई कि डॉ. वर्मा उससे ड्यूटी में कोताही के लिए स्पष्टीकरण माँग रही है या उसके अस्त-व्यस्त जीवन के बारे में जानने को उत्सुक हैं । इसलिए उसने इतना ही कहा - ‘डॉ. साहब, मैं तो अपनी ड्यूटी पहले की तरह ही कर रही हूँ। मेरी कोई गलती आपके ध्यान में आई है तो कृपया बता दें, मैं आगे से ध्यान रखूँगी।’

‘मिसेज़ थॉमस, मेरा यह मतलब नहीं था। मुझे लगता है, यू आर नॉट नॉर्मल दीज डेज़, यू लुक समव्हॉट अपसेट।’

अब उसे महसूस हुआ कि डॉ. वर्मा ने उसके भीतर की हलचल को भाँप लिया है। अत: उसने कुर्सी के पीछे की ओर सिर टिकाकर आँखें मींच लीं। उसे इस अवस्था में देखकर डॉ. वर्मा समझ गई कि वह किसी बड़ी उलझन में है। इसलिए उसने भी चुप्पी साध ली।

दो-एक मिनट बाद मिसेज़ थॉमस ने सीधी होते हुए कहा - ‘डॉ. साहब, थैंक्स फ़ॉर योर कन्सर्न। इन फैक्ट, मैं कुछ अर्से से अपने पति से परेशान हूँ...।’

‘तुम्हारी तो शायद लव मैरिज हुई थी! …. साल-एक ही तो हुआ है तुम्हारी मैरिज को?’

सहानुभूति पाकर मिसेज़ थॉमस की दुःख की अनुभूति आँखों के जल की राह शब्दों की माला गूँथकर बह निकली - ‘डॉ. साहब, लव में मैं अंधी हो गई थी। थॉमस के अन्दर छिपी हुई क्रूर मनोवृत्ति का पता ही नहीं चला। वैसे तो कोर्टशिप के दौरान भी वह हमेशा डोमिनेट करता था, लेकिन मुझे लगता था, यह उसका प्यार जताने का अंदाज़ है। विवाह के दो-तीन महीने बाद ही उसने मुझे फ़िज़िकली टार्चर करना शुरू कर दिया था। अब तो बर्दाश्त से बाहर हो गया है’, कहने के साथ ही उसने शर्ट के ऊपरी दो बटन खोलकर दिखाए।

उसके शरीर पर जलने के दाग अभी ताज़ा थे। देखकर डॉ. वर्मा के रोंगटे खड़े हो गए। सोचने लगी, आदमी इतना क्रूर और निर्दयी भी हो सकता है! उसने पूछा - ‘ये जलने के दाग ...?’

‘परसों थॉमस को सेलरी मिली थी। रात को दस बजे के क़रीब घर आया, नशे में धुत्त। मैंने खाने के लिए पूछा। कहने लगा - ‘आज तू मेरी दूसरी भूख मिटा पहले। मैंने मिन्नतें की कि खाना खा ले और सो जा, क्योंकि मैं जानती थी कि नशे में वो जानवर बन जाता है। लेकिन वह न माना। मुझे ज़बरदस्ती रसोई से खींचकर बेडरूम में ले गया। मैंने ख़ुद को छुड़ाने की बहुत कोशिश की। पता नहीं, कहाँ से उसमें इतनी शक्ति आ गई थी, मैं ख़ुद को उसके चँगुल से छुड़ा नहीं पाई। उसने मेरे साथ ज़बरदस्ती सम्बन्ध बनाया। मैं तड़पती रही। फिर वह उठा। सिगरेट सुलगाई। कुछ कश खींचे। हर बार धुआँ मेरे मुँह पर छोड़ा। मेरे लिए साँस लेना भी मुश्किल हो गया। और फिर .... फिर उसने जलती हुई सिगरेट मेरे बदन पर लगाई और आख़िर में बदन पर रगड़कर ही बुझाई’, इतना बताते हुए उसकी आँखों से सैलाब बह निकला। डॉ. वर्मा ने कुर्सी से उठकर उसके नज़दीक जाकर उसके आँसू पोंछे और कहा - ‘अनिता, तुम्हारा पति तो आदमी की खाल में जानवर है।’

डॉ. वर्मा की सहानुभूति पाकर उसे कुछ हौसला हुआ। उसने आगे बताया - ‘डॉ. साहब, यह तो झलक दिखाई है मैंने। ऐसी-ऐसी जगहों पर इससे कहीं घातक घाव हैं जो मैं इस समय आपको दिखा भी नहीं सकती।’

डॉ. वर्मा का चेहरा तमतमाने लगा। उसने भरसक शान्त रहने की कोशिश करते हुए पूछा - ‘इतना कुछ सहने के बाद भी तुम उसके साथ रह रही हो?’

‘रात को जब मैं सँभली, मेरी बर्दाश्त का प्याला भर चुका था। मैंने फ़ैसला लिया कि अब और नहीं। तब मैंने देखा, वह पस्त हो चुका था। मैंने उसे झिंझोड़कर उठाया और बाँह पकड़कर घर से निकाल दिया, क्योंकि अब उसमें मुझे रोकने की ताक़त नहीं रही थी। कुछ देर उसने दरवाज़ा पीटा, लेकिन मैंने नहीं खोला। मैंने अन्दर से ही कहा - मैं पुलिस स्टेशन फ़ोन कर रही हूँ। शायद पुलिस के नाम से वह डर गया। दरवाज़े पर हाथों की दस्तक थम गई। कुछ देर बाद मैंने दरवाज़ा खोलकर देखा, वह नहीं था। बाहर का गेट खुला पड़ा था। मैंने गेट को ताला लगाया और आकर ज़ख़्म पर मरहम लगाई और सोने की कोशिश करने लगी।’

समाचारपत्रों में तो ऐसी क्रूरता और बर्बरता की कहानियाँ आजकल प्रतिदिन पढ़ने को मिल जाती हैं, लेकिन आज तो ऐसी बर्बरता की भुक्तभोगी पीड़िता स्वयं डॉ. वर्मा के सामने बैठी थी। वह अन्दर तक सिहर उठी। उसने पूछा - ‘थॉमस क्या करता है?’

‘डॉ. साहब, मैरिज से पहले तो बड़ी-बड़ी डींगें हाँका करता था, लेकिन वे सब शेखचिली वाली बातें थीं। मैं समझ न सकी। बहकावे में आकर मैरिज कर ली।..... वह तो चर्च में मामूली-सी नौकरी करता है।’

‘तो अब तुम्हारी आगे की क्या प्लानिंग है?’

‘आज सुबह फादर आए थे। कहने लगे कि थॉमस ने कन्फेस और प्रॉमिस किया है कि वह फ्यूचर में कोई ग़लत काम नहीं करेगा। और कि मुझे उसको सुधरने का एक चाँस देना चाहिए।’

‘तो तुमने क्या जवाब दिया? क्या थॉमस को एक चाँस दोगी?’

‘डॉ. साहब, मैं अभी दुविधा में हूँ। इस तरह के इंसान कभी सुधरते नहीं। थॉमस मेरे सामने कई बार पहले भी माफ़ी माँग चुका है। लेकिन इस बार फादर बीच में हैं, इसलिए दुविधा है वरना तो मैंने पुलिस में शिकायत करने का मन बना लिया था। आपके विचार में मुझे क्या करना चाहिए?’

‘मैं तुम्हारी बात - इस तरह के इंसान कभी सुधरते नहीं - से सहमत हूँ। कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती है। कहते तो यह भी है कि कुत्ते की दुम लोहे की नली में बारह साल तक रखी, नली टेढ़ी हो गई, दुम टेढ़ी की टेढ़ी ही रही। यदि मेरी मानो तो जिस तरह भी सम्भव हो, इस आदमी से छुटकारा पा लो। इससे यह मत समझ लेना कि मैं तुम्हारे धर्म-प्रचारक फादर की बात की अवहेलना कर रही हूँ। उन्होंने आदर्श की बात कही है। मैं यथार्थ और व्यावहारिकता की बात कर रही हूँ।’

‘डॉ. साहब, मैं समझती हूँ, आप मेरे भले की बात कर रही हैं। देखती हूँ, किस तरह इस जंजाल से छुटकारा मिलता है। आपकी सहानुभूति तथा सलाह के लिए धन्यवाद।’

........

चर्च में साप्ताहिक प्रार्थना-सभा के पश्चात् फादर ने थॉमस और अनिता को रोक लिया था। दोनों को बिठाकर समझाया कि गृहस्थ जीवन में पति और पत्नी का समान स्थान है, एक-दूसरे की भावनाओं की कद्र करना उनका दायित्व है। दोनों में से कोई एक यदि अपना दायित्व निभाने में चूक करता है तो जीवन की गाड़ी का मंज़िल तक पहुँचना असम्भव है। इसलिए तुम दोनों यीशु मसीह के समक्ष अपनी विगत भूलों के लिए क्षमायाचना करो और भविष्य में प्रेमपूर्वक आचरण करने की शपथ लो।

थॉमस ने तत्काल फादर के कहे अनुसार क्षमायाचना की और शपथ ले ली। लेकिन अनिता को पता था कि थॉमस केवल दिखावा कर रहा था। इसलिए उसने डॉ. वर्मा से प्राप्त आत्मविश्वास की पूँजी के आधार पर दृढ़ता से कहा - ‘फादर, मैं आपका हृदय से सम्मान करती हूँ। लेकिन मैं आम स्त्रियों की तरह नहीं हूँ कि गले पर छुरी चलाने वाले से भी प्रेम कर सकूँ। .... यदि कोई अन्य विकल्प आपके पास हो तो कृपया बताने का कष्ट करें।’

फादर का थॉमस के प्रति अधिक झुकाव था। इसलिए उसने विकल्प के रूप में सुझाव रखा - ‘अनिता, मॉय चाइल्ड! तुम एक अच्छी नौकरी कर रही हो। नौकरी भी ऐसी कि उसके द्वारा तुम बीमार तथा असहाय लोगों की सेवा कर रही हो। तुम्हें सरकार की तरफ़ से रहने के लिए क्वार्टर भी मिला हुआ है। लेकिन, थॉमस बड़ी मुश्किल से दो वक़्त की रोटी जुटा पाता है। यदि तुम सहमति दो कि तुम इससे तलाक़ लेने को तैयार हो और बदले में इससे किसी प्रकार के मुआवज़े की माँग नहीं करोगी तो मैं थॉमस की ओर से तुम्हें आश्वासन दे सकता हूँ।’

‘फादर, मैं आपकी हृदय से आभारी होऊँगी यदि आप मुझे इस नारकीय जीवन से मुक्ति दिला देते हैं!’

तदुपरान्त फादर ने आपसी सहमति से विवाह सम्बन्ध-विच्छेद का मसौदा तैयार किया, उसपर उन दोनों के हस्ताक्षर करवाए और साक्षी के रूप में अपने हस्ताक्षर किए। उसकी फ़ोटोकॉपी करवाई। मूल प्रति अनिता को दी और उसे सुखद भविष्य का आशीर्वाद दिया।

सोमवार को अनिता डॉ. वर्मा से मिली और रविवार की कार्रवाई से उसे अवगत कराया। डॉ. वर्मा ने सारी बात सुनकर पूछा - ‘अनिता, क्या तुम पुनः विवाह के बारे में अभी विचार कर सकती हो?’

‘डॉ. साहब, विवाह तो मैं करूँगी, लेकिन इस बार सोच-विचार करके कोई कदम उठाऊँगी।’

‘अनिता, मेरे मित्र के एक मित्र हैं। उसके साथ तुमसे उल्टा हुआ हैं। उसकी अरेंज्ड मैरिज थी। कुछ समय बाद ही उसकी पत्नी के बदचलन होने के सबूत मिलने पर उनमें आपसी सहमति से सम्बन्ध-विच्छेद हो गया। फिर भी उस लड़की ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। अन्ततः लड़के के परिवार को काफ़ी मोटी रक़म देनी पड़ी, तब कहीं बेचारा सुख की साँस ले पाया। लेकिन इतनी मोटी रक़म देने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति काफ़ी डगमगाई हुई है। लड़का अभी भी सदमे से पूरी तरह उबर नहीं पाया है। मैं उसे अच्छी तरह जानती हूँ। बड़ा ही भला तथा चरित्रवान लड़का है। उनका कपड़े का कारोबार है। अपनी दुकान तथा मकान है। उम्र भी कोई अधिक नहीं, तुमसे चार-पाँच साल बड़ा होगा। यदि तुम कहो तो तुम्हारे लिये उससे बात करके देखूँ। मुझे विश्वास है कि तुम उसके साथ अच्छा जीवन बिता सकोगी।..... जल्दी बिल्कुल नहीं है। आराम से दो-चार दिन में सोचकर बता देना। तुम्हारी ‘हाँ’ के पश्चात् ही मैं उससे बात करूँगी।’

‘धन्यवाद डॉ. साहब। आप मेरी शुभचिंतक हैं। मैं विचार करके आपको बताऊँगी’, कहकर अनिता उठकर चली गई।

डॉ. वर्मा सोचने लगी कि सीधे विमल से बात करूँ या पहले मनु से पूछूँ? अन्ततः उसने शाम को मनमोहन से बात करने का मन बनाया।

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