भाग -43
अगले दिन हमारी कोशिश फिर बेकार हुई। बहनों की बातों से हमें और भी पक्का यकीन हो गया कि वो हमें बरबाद करने की ही ठाने हुई हैं। हम-दोनों का हाथ-पैर जोड़ना भी उनके मन को बदल नहीं सका। वो एक पैसा देने को तैयार नहीं हुईं। उल्टे खिल्ली उड़ाई। तब मैं बर्दाश्त नहीं कर सका। बिगड़ गया।
साफ कह दिया कि, 'आप-दोनों ने हमें बरबाद करने के लिए यह सब किया। आप लोग नहीं चाहती थीं, तो पहले ही मना कर देंती। हमारे पैसे क्यों बरबाद कराए। हम-दोनों अब यहां काम नहीं करेंगे। हमारा हिसाब अभी कर दीजिए। पगार का भी और सारे माल का भी।'
मैं इसके आगे बोल ही नहीं पाया। तुम बीच में ही कूद पड़ी।
मुझे पीछे करती हुई बोली, 'नहीं-नहीं, हम-दोनों जैसे काम करते आए हैं, वैसे ही आगे भी करेंगे। इसकी तबियत कई दिन से खराब चल रही है। इसीलिए चिड़चिड़ा हो गया है। कुछ ज़्यादा नहीं बस रोज इतना पैसा दे दीजिए कि काम चलता रहे बस, और कुछ नहीं कह रहे हम।'
तुम्हारी इस कोशिश पर उन्होंने ना सिर्फ़ हम-दोनों को डांटा, बल्कि पुलिस के हवाले कर देने की धमकी भी लगे हाथ दे दी। तमाम अपमानजनक बातें कहीं वो अलग। हम विवश होकर हाथ मलते रहे। अपनी बेबसी पर कुढ़ते रहे। मैंने कई बार सोचा कि, न जाने कैसे लोग कहते हैं कि, आँख उठा कर देख लेने भर से ही मालिक नौकरों को धक्के मार कर भगा देते हैं, इसने तो निकालने का नाम तक नहीं लिया।
रात को जब मैं काम-धाम करके कमरे में पहुंचा तो तुम वहां बैठी मिली। तुम भी दस मिनट पहले ही पहुंची थी। मैंने तुम पर एक नजर डाली और बगल में ही बैठ गया। तुम एकदम शांत ऐसे बैठे थी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। कुछ देर चुप रहने के बाद मैंने ही पूछा, 'क्या हुआ ? इतना चुप क्यों हो? बेवजह चिंता करने से कुछ मिलने वाला नहीं। मिलेगी तो सिर्फ़ बीमारी और कुछ नहीं, समझी। चल कुछ बोल ना।'
'क्या बोलूं, चुप रहने से कुछ मिलेगा नहीं, तो कुछ जाएगा भी नहीं, समझे।'
'जाएगा कैसे नहीं? अरे जाता है भाई। आदमी चुप है, इसका सीधा मतलब है कि या तो वह चिंता में है या चिंतन में । चिंतन में है तो ठीक है, चिंता में नहीं। घर पर अम्मा जब घरेलू समस्याओं को लेकर चिंता में दिखतीं तो बाबू जी कहते थे कि, ''चिंता चिता है। चिता से ज़्यादा तेज है चिंता की आग। चिता मृत शरीर को जलाती है। चिंता तो जिंदा ही जला देती है। इसलिए चिंता मत कर, जो होगा देख जाएगा।''
'सुन अभी बहुत दम है इस शरीर है। चिंता की आग में इतनी गर्मी नहीं, कि मेरा शरीर जला दे। वैसे मैं चिंता नहीं, सोच रही थी कि, तू जब नहीं बोलना होता है, तभी क्यों बोल देता है। अरे उस समय मैं बोल रही थी, मैं कुछ और ढंग से बात कहती। शायद बात कुछ बन जाती। मगर तू बीच में ही कूद पड़ा कच्छा-बनियान पहिन कर। ये भी नहीं देखा कि, पूल में पानी है भी कि नहीं, पानी में कूद रहा है या पत्थर पर। हाथ-पैर टूटेंगे या कि बचेंगे।'
'अरे, तू तो अजीब बात कर रही है। वहां मैं कब-तक ना बोलता। दोनों साली अंड-बंड बोले जा रही थीं। हमारे धंधे में आग लगा कर मजाक उड़ा रही थीं, फिर भी मैं कुछ ना बोलता। अरे मेरे बोलने का ही नतीजा है, कि पैसा भले नहीं दिया लेकिन घर से निकालने की भी हिम्मत नहीं कर पाईं। नहीं अब-तक धक्के मारकर बाहर फिंकवा दिया होता।'
'यही, यही अकल है, जो वो वहां हैं, और हम यहां उनके दिए दड़बे में। तुमको नहीं निकाला लेकिन हमें निकाल दिया है, समझे।'
'क्या! अरे ये क्या कह रही हो। तुम्हें कैसे निकाल दिया ? उन्हें निकालना है तो मुझे निकालें, बात मैंने की थी। तू यहां नौकरी नहीं करेगी, तो मैं भी नहीं करूँगा, दोनों यहां से साथ ही निकलेंगे।'
'पहले पूरी बात सुन लिया कर तब चिल्लाया कर, उन्होंने नौकरी से नहीं, मुझे मेरे कमरे से निकाला है। छोटी वाली ने आज शाम को ही कहा कि, ''ऐसा है तुम बासू के साथ ही रहती हो । उसी के साथ सोती हो, तो दोनों उसी कमरे में रहो। अपना वाला कमरा खाली कर दो। किसी और काम में आएगा।''
मैंने कहा, ''ठीक है।'' सच्ची बताऊँ, मुझे जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ। जरा भी दुख नहीं हुआ। मैं जानती थी कि, जिस तरह हमने काम-धंधा शुरू किया, तुम जिस तरह से बहस किये हो तो कुछ ना कुछ तो होगा ही। मगर मुझे घर से निकाल देंगी ये नहीं सोचा था।'
तुम्हारी बात सुन कर मैं दांत पीसते हुए बोला, ''इस छोटकी की तो...।'' मैंने उसे कई भद्दी-भद्दी गालियां दीं, तुमसे कहा कि, ''तूने कहा नहीं कि, तू मेरे कमरे मैं कैसे रहेगी?''
'कहा था। लेकिन वो बोली, ''तुम दोनों एक कपल्स की तरह एक जगह रहते हो, सोते हो, तो एक ही कमरे में रहो। दो जगह रहने कर क्या मतलब? उतने स्पेस का कुछ और यूज होगा।'' मैंने सोचा कहूं कि, एक सर्वेंट रूम का, सर्वेंट रखने के अलावा और क्या यूज होगा। लेकिन चुप रही कि, गुस्से में कहीं हमको यहां से भी ना निकाल दे। मैं समझ ही नहीं पा रही हूँ कि क्या करूं।'
'कोई बात नहीं तू यहीं रह। उन्होंने हमें पति-पत्नी मान लिया है तो अच्छा ही है। लेकिन ये बता, हम-दोनों की सारी बातें उनको कैसे मालूम हो गईं? यहां तो तुम तभी आई या मैं तुम्हारे कमरे में तभी पहुंचा, जब यह दोनों रात में सो जाती थीं। सवेरे इनके उठने से पहले हम-दोनों अपनी-अपनी जगह होते हैं ।'
'क्या बताऊँ। ये छोटकी रमानी हर चीज पर बड़ी नजर रखती है। हम-दोनों को ही नौकरी पर रखने, हमारी ड्रेस बदलने का काम इसी ने किया। नाम भी इसी ने बदला। पार्टी से एक दिन पहले इसने मुझे बुला कर, बदन उघाड़ साड़ी पहनवाई, और एक नज़र देखने के बाद कहा, ''यू डू नॉट सीन टू बी ए मैड इन ए सारी।''
उसकी अंग्रेजी ठीक से नहीं समझ पाई तो, मैंने कह दिया मैं समझ नहीं पाई तो वह बोली, ''ओह, मतलब कि, तुम साड़ी में नौकरानी लगती ही नहीं।'' उसकी इस बात पर मैं मुस्कुरा कर रह गई। आंचल से अपना नीचे तक खुला पेट छिपाने लगी। तो उसने तुरंत मेरा हाथ पकड़ कर आंचल को पीछे की ओर खुला छोड़ते हुए कहा, ''साड़ी पहनने का एक तरीका होता है। उसे पट्टी की तरह लपेटा नहीं जाता।''
यह कहते हुए उसने सामने से पकड़ कर साड़ी को और नीचे खींच दिया। फिर नाभि पर दो बार पट-पट मारते हुए कहा, ''इसे खुला ही रखना है, समझी। इतने बच्चे पैदा कर दिये, फिर भी खूबसूरत है। छिपाने की जरूरत नहीं। नहीं तो लोग लेबर समझ लेंगे। मेहमानों के सामने रमानी फैमिली की नाक नहीं कटा देना समझी।'' फिर दुनिया-भर की और बकवास की। आगे कहा, ''लेकिन तुम्हारी ड्रेस से तुम्हारा नाम मैच नहीं कर रहा।'' कुछ देर सोच कर बोली ''समीना...समीना नहीं, इस नाम का ‘ना’ हटा दो। समी... हूं...'सैमी' कर दो। अब से हम तुमको हमेशा 'सैमी' कहेंगे।''
मैं भीतर-भीतर गुस्सा होती हुई बोली, 'नाम ना बदलिए। मुझे यही अच्छा लगता है। मुझे अम्मी ने यह नाम दिया था।' तो बोली, ''मैंने नाम नहीं बदला है। समीना में से ''ना'' हटाया है तो स पर ''ऐ'' जोड़ दिया है। तो अब समीना से सैमी हो गया बस। तुम्हारी अम्मी का दिया नाम तो बना ही है।'' मेरी सारी कोशिश बेकार गई। समीना से सैमी बनाकर ही छोड़ा।'
उस समय ऊपर वाले से माफी मांगते हुए मैंने खूब शिकायत की, कि हम गरीबों को इतना बदनसीब क्यों बना देते हो कि, तुम्हारे बंदे ही हम पर ज़ुल्म करते हैं। हमें इतना गुलाम क्यों बना देते हो कि, हम अपने नाम तक की हिफाजत नहीं कर पाते। हमारे अब्बू-अम्मी का दिया नाम भी हमारा नहीं रह पाता। ये अमीरजादे जो कहते हैं, मानना पड़ता है। हमारा तो कोई वजूद ही नहीं है।'
समीना मैंने देखा कि तुम बात करते हुए बहुत टूटती जा रही थी। मैं भी बहुत हताश हो रहा था। हम एक-दूसरे का कंधा बनते जा रहे थे। मैंने देखा तुम उस समय कमरे से निकाले जाने से ज्यादा, नाम बदले जाने से दुखी हो, तो तुम्हें समझाते हुए कहा, 'तुमसे तो इतनी बात कहकर नाम बदला। मुझसे तो सीधे कहा, '' विशे.. विशेश्वर तुम्हारा नाम बहुत टिपिकल है। हम इतने दिनों बाद भी ठीक से नहीं ले पा रहे हैं, तो आने वाले गेस्ट कहां से ले पाएंगे। हम सभी अब तुम्हें बासू कहेंगे। ठीक है, जाओ।''
मुझे तो एक शब्द बोलने का भी मौका नहीं दिया। ये रमानी नहीं कमीनी बहनें है। पहले वाले साहब और उनकी सुन्दर हिडिम्बा तो सीधे मारते थे। ये दोनों तो सीधे भी मारती हैं, गुड़ में भी जहर देती हैं। उसी दिन से बासू, सैमी, बासू, सैमी चिल्ला रही हैं। यही हाल रहा तो कुछ दिन में हम-लोग अपना असली नाम ही भूल जाएंगे। यही भूल जाएंगे कि, हम-लोग कौन हैं? कहां के हैं? पता नहीं आगे क्या करेंगी।'
'सुन, ज़्यादा खोपड़ी पर मूतेंगी ना, तो वो हाल कर दूंगी कि ज़िंदगी जेल में ही बीतेगी।'
'चल बस कर, पहले भी तूने बड़ी-बड़ी बातें कही थीं, कि ये दोनों तेरी बात मना ही नहीं कर सकतीं। तूने बड़े राज दबा रखे हैं। जब राज को ऊपर लाने की जरूरत पड़ी तो डर गई, कि ये हो जाएगा, वो जाएगा। अब कौन सा तोप मार दोगी ? बताओगी।'
'देख जब सांस लेना मुश्किल हो जाएगा, पानी नाक से भी ऊपर हो जाएगा तो सीधे थाने पहुंचूंगी। साफ कहूंगी कि ये दोनों अपना काम कराने के लिए गैर मर्दों के सामने मुझे डाल देती हैं। मेरा शोषण कराती हैं। ये भी कहूँगी कि जब मन होता है, तब ये दोनों खुद भी मुझे शराब पिलाकर, मेरा शारीरिक शोषण करती हैं। तेरा भी नाम लूंगी।'
'क्या..क्या, मैंने कब तेरा शोषण किया? क्या बके जा रही है तू।'
'बीच में कूदेगा तो यही होगा। मैं कहूँगी, कि तेरा भी मेरी तरह शोषण किया जा रहा है। तू मेरी और मैं तेरी गवाही दूंगी। इस तरह इनकी कंपनियों पर ताला ना लटकवा दिया, तो सैमी मेरा...अरे समीना मेरा नाम नहीं। ये सैमी-सैमी कह कर, सही में हमारा वजूद खतम किये दे रही हैं।'
'तो कल सवेरे ही इन दोनों से कहा जाए, कि हमारा सारा पैसा दो, नहीं तो हम सीधे थाने जा रहे हैं, और फिर यहां से निकल कर सीधे थाने पहुंचते हैं। बोल चलेगी कल ?'
'नहीं।'