दूसरे दिन सुबह सुबह मीरा को अस्पताल से फोन आया। मीरा जब अस्पताल पहुंची उसने देखा उसके पिता अब बिना ऑक्सीजन के सांस ले रहे थे। वह रोते हुए अपने पिता के पास गई और उनके गले लग गई। मिस्टर पटेल मीरा के जज़्बात समझ रहे थे। अब उनका गुस्सा भी कल से काफी कम हो चुका था।
लेकिन ऐसा क्या हुआ जो मिस्टर पटेल ने अपना नाटक एक दिन में ख़त्म कर दिया।
कुछ घंटों पहले.........
जैसे ही स्वप्निल ने मिस्टर पटेल को उठकर खाना खाते हुए देखा। उसे यह बात समझने में देर नहीं लगी कि मिस्टर पटेल सिर्फ नाटक कर रहे थे। ताकि मीरा उनके पास रहे। उनके फैसले के खिलाफ ना जाए। अगर यह नाटक यूं ही जारी रहा, तो उसका तलाक होने में देर नहीं लगेगी।
मीरा से मिलने के बाद स्वप्निल की जिंदगी काफी हद तक एक डेली सीरियल बनकर रह गई थी। और अब तो उसे किसी एक्शन फिल्म में होने वाला एहसास हो रहा था। एक तरफ उसे अपना रिश्ता संभालना था। और दूसरी तरफ उसे अपने बीवी के रिश्ते को बचाना था। अगर नाटक जारी रहा तो उसका रिश्ता खत्म होगा। यह पत्थर पर लिखी हुई वह बात थी जिसे कोई मिटा नहीं सकता। लेकिन अगर उस ने मिस्टर पटेल का सच मीरा के सामने रख दिया। तो उसका रिश्ता तो बच जाएगा लेकिन मीरा ???? मीरा बिखर के रह जाएगी। वह मिरा को ऐसी हालत में भी नहीं देख सकता। ऐसे वक्त में आखिर क्या किया जाए। उसने काफी सोचा और आखिरकार अपना मोबाइल लेकर अपने पिता को फोन लगाया।
" हेलो पा क्या आप यहां आ सकते हैं ?" स्वप्निल ने फोन पर कहा।
" हम आधे रास्ते में हैं। आपके चाचा भी साथ आ रहे हैं। फिक्र मत कीजिए।" मिस्टर पाटिल अपने बेटे के प्रति कुछ ज्यादा ही सीरियस थे।
बस कुछ ही घंटों की देर थी और जल्द मिस्टर पाटिल वहां पर पहुंचे। पूरा अस्पताल किसी वीआईपी गेस्ट के लिए खाली करवाया गया था। स्वप्निल अपने पिता को लेने नीचे पहुंचा। जाते ही उसने सबसे पहले उन्हें गले लगाया।
" मेरा बेटा। कैसे हैं आप ?" मिस्टर पाटिल ने स्वप्निल को गले लगाते हुए पूछा।
" मैं बिल्कुल ठीक हूं और आप मुझे पहले से ज्यादा अच्छे लग रहे हैं। मां कैसी है ?" स्वप्निल ने अपने पिता के पैर छूते हुए पूछा।
" हम ? हम तो पहले से कई कई कई ज्यादा अच्छे हैं। आप के पहले फोन के बाद ही हो गए थे। आप की मां भी बिल्कुल ठीक है।" मिस्टर पाटिल ने स्वप्निल से कहा। स्वप्निल अपने चाचा के भी गले लगा और पैर छुए।
हॉस्पिटल में ऊपर जाते जाते उसने अपने पिता और चाचा को सारी बातें समझा दी। अब बात ही ऐसी थी कि बात को निकाला कैसे जाए।
" मैंने कहा ना। आप फिक्र मत कीजिए। मैं संभाल लूंगा तो मैं संभाल लूंगा। बाप हूं तुम्हारा भरोसा रखो।" स्वप्निल के पिता ने उसे निश्चित रहने के लिए कहा।
" बात भरोसे की नहीं है पा । सामने वाली पार्टी काफी तेढी है। इसलिए हमें भी तेढ़ा होकर ही सब सीधा करना पड़ेगा।" स्वप्निल ने कहा।
" पिल्लू भैया ने कहा ना वह संभाल लेंगे तुम फिकर मत करो।" उसके चाचा ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
दोनों जैसे ही मिस्टर पटेल के कमरे के पास पहुंचे उन्होंने स्वप्निल को बाहर ही रोक दिया। स्वप्निल के वजह पूछने पर उसके चाचा ने एक काफी आसान जवाब दे उसे समझा दिया।
" यहां से आगे की बातें बड़ों के बीच में हो तो ही अच्छा है। तुम्हें यहां इन बातों से दूर रहना चाहिए।" चाचा के मुंह से यह जवाब सुन स्वप्निल समझ गया था कि वह दोनों मीरा के पिता को संभाल लेंगे। भला ऐसे ही कोई दिल्ली में कुर्सी पर बैठ सत्ता थोड़ी चलाएगा।
सही समझे स्वप्निल के चाचा इस देश के जाने-माने मंत्रियों में से एक थे। जो दिल्ली में रहते थे। किसी काम के चलते महाराष्ट्र आए थे। ऐसे में अपने बड़े भाई से मिलने गए। अपने भतीजे की जानकारी ली। जब स्वप्निल ने कहा था कि वह किसी छोटे खानदान से नहीं है। उसने सच कहा था। स्वप्निल के पिता को दो छोटे भाई थे। जिसमें से दूसरे नंबर का भाई अभी देश में मंत्री पद चला रहा था। तो वहीं तीसरे नंबर का भाई जिसके बेटे की शादी मीरा की दोस्त से हुई थी। मुंबई का एक जाना माना बिजनेसमैन है।
स्वप्निल के पिता ?
स्वप्निल के पिता उन सब में सबसे बड़े थे। वह गांव में रहकर खेती-बाड़ी करते थे। उसी खेती-बाड़ी के चलते उन्होंने अपने भाइयों को पढ़ाया लिखाया। सिर्फ इतना ही नहीं आज पूरे देश में स्वप्निल के पिता की कई फैक्ट्रियां चल रही है। लेकिन फिर भी उन्हें अपना गांव छोड़ना जरूरी नहीं लगता। स्वप्निल ने एक उम्र तक गांव में पढ़ाई की उसके बाद वो आगे पढ़ने शहर चला गया। गांव से उसका आना जाना लगा रहता था लेकिन कुछ मनमुटाव के बाद उसने अपने माता-पिता से बात करना छोड़ दिया। बच्चे मां बाप को छोड़ सकते हैं। लेकिन मां-बाप वह जड़ है जो अपने पेड़ से कभी दूर नहीं रह सकती। उसके पिता ने स्वप्निल पर हर तरीके से नजर रखी। नजर रखी कहां जाने से अच्छा है कि हर तरीके से उसकी फिक्र की। स्वप्निल जानता था कि उसके पिता उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे। वह सही था। आज भी बिन बुलाए स्वप्निल का कॉल जाने से पहले ही वह उसके पास आने निकल चुके थे।
जैसे ही वह दोनों मिस्टर पटेल के रूम में पहुंचे उन्होंने देखा। मिस्टर पटेल हल्की नींद में थे। दरवाजे की आहट सुन उनकी नींद तो टूटी। लेकिन वह आंखें खोल देख नहीं सकते थे। इससे उनके नाटक पर असर पड़ सकता था। इसलिए उन्होंने अपनी निद्रा जारी रखी। कुछ ही देर में उन्हें कमरे की लाइट जलने का एहसास हुआ।
" अब उठ भी जाइए मिस्टर पटेल। मेरे बड़े भैया ज्यादा देर इंतजार नहीं कर सकते।" मंत्री महोदय ने आवाज लगाई।
जानी पहचानी आवाज सुन मिस्टर पटेल चौक गए। यह आवाज ? हां वह जानते थे लेकिन यह इंसान इस वक्त यहां क्या कर रहा है ? उनकी समझ में नहीं आ रहा था। ना चाहते हुए भी उन्होंने आंखें खोली। " आप ? आप यहां कैसे ?" उन्होंने मंत्री महोदय से पूछा।
" इनसे मिलिए यह मेरे बड़े भाई है। भैया मैंने कहा था ना मिस्टर पटेल समझदार इंसानो में से है। बस कुछ वक्त के लिए जज्बाती हुए जा रहे हैं। होना भी चाहिए आखिर उनकी इकलौती बेटी जो है मीरा। मैं जब इन से पहली बार एक मीटिंग में मिला था। तभी हमारे अच्छे संबंध बन गए थे। लेकिन आज मैं आप से काफी नाराज हूं मिस्टर पटेल ?" मंत्री महोदय ने कहा।
" मैं आपकी बात समझ नहीं पा रहा हूं मंत्री जी। और इतनी रात इस तरीके से अपने भाई के साथ मेरे कमरे में आना ? क्या मैं वजह जान सकता हूं ?" मिस्टर पटेल ने अचंभित होते हुए पूछा।
" हां हां क्यों नहीं आपको पूरा हक है वजह जानने का। वजह काफी आसान है।" मंत्री महोदय रुक गए और उन्होंने स्वप्निल के पिता को देखा।
" आपकी बेटी हमारे घर की बहू है और हम उसे लेने आए हैं आप चाहे या ना चाहे।" स्वप्निल के पिता ने एक शांत लिहाज में जवाब दिया।
" तो आप स्वप्निल के पिता है।" मिस्टर पटेल की आवाज में एक अनचाहा गुस्सा था।
" और मैं उसका चाचा। इकलौता ना सही लेकिन बड़ा चाचा हूं।" मंत्री महोदय फिर से बीच में बोल पड़े।
" यहां क्या लेने आए हैं आप ?" मिस्टर पटेल ने उसी अंदाज में पूछा।
" देखिए मैं समझता हूं कि आपकी एक बेटी है मेरा बेटा भी इकलौता है और यह हमारे घर का रिवाज़ नहीं है कि हम बच्चों की जिंदगी में अपनी दखलअंदाजी करें। हालांकि आपके परिवार के बारे में मुझे ज्यादा पता नहीं है। लेकिन अगर मेरा भाई आपको पसंद करता है। तो इसका मतलब आप यकीनन अच्छे इंसान होंगे। अच्छा इंसान अपनी बेटी को रोता हुआ कभी देखना पसंद नहीं करेगा।" स्वप्निल के पिता ने उन्हें समझाने की कोशिश की।
" मेरी बेटी शादी के बाद उम्र भर रोए। उससे अच्छा मैं उसे अपने लिए कुछ दिन रूलाना ज्यादा पसंद करूंगा।" मिस्टर पटेल ने जवाब दिया।
" आपको क्यों लगता है की आपकी बेटी मेरे बेटे के साथ रोएगी ? ऐसा भी तो हो सकता है और अब तक तो यही हुआ है। हर मुश्किल में दोनों एक दूसरे का सहारा बन हमेशा खड़े रहे हैं।" स्वप्निल के पिता ने पूछा।
" आपके लिए कहना आसान है। क्योंकि आपके घर में एक नया मेहमान आएगा। वही मेरा घर ? मेरी बेटी के जाने के बाद सुना पड़ जाएगा।" मिस्टर पटेल की आवाज में दर्द महसूस किया जा सकता था।
" ऐसा क्यों सोच रहे हैं आप। इस बात को इस तरीके से भी समझए कि एक बेटी के बदले आपको एक बेटा मिलेगा। और सिर्फ एक बेटा नहीं उसके साथ-साथ उसका पूरा परिवार। मैं जानता हूं कि आपके परिवार में ज्यादा लोग नहीं है। हम दोनों की जिंदगी पूरी तरीके से अलग है। लेकिन फिर भी मैं और मेरा पूरा परिवार हमेशा आपके लिए तैयार बैठे रहेंगे। आपको बस एक आवाज लगानी है। हमारे परिवार में आज तक यही कानून है और हमेशा रहेगा कोई भी सदस्य किसी भी हालत में कभी भी अकेला नहीं होता।" स्वप्निल के पिता ने कहा।
" मिस्टर पटेल मुझे पता है आप जज्बाती आदमी है। लेकिन यह बात मैं आपको यकीन से कह सकता हूं कि मीरा बेटी हमारे परिवार में सबसे ज्यादा खुश रहेगी। स्वप्निल हमारे खानदान का बड़ा बेटा है सब में जिम्मेदार। हां कुछ बचपना है उस में। लेकिन आप भी कुछ कम नहीं है। मतलब सच में ? हार्ड अटैक कि एक्टिंग। मैं आपकी बेटी होता तो आप पर कभी भरोसा नहीं करता। पुअर मीरा। न जाने कब से रोए जा रही थी। " मंत्री महोदय ने माहौल की गंभीरता को कम करने के लिए कहा।
" अपना गुस्सा थूक दीजिए। मेरे भाई खुद आपसे मिलने आए हैं। जल्दी से ठीक हो जाइए और बच्चों को आशीर्वाद दीजिए। अगर आपको हमारा वेल्थ सर्टिफिकेट चाहिए तो मैं पूरी प्रॉपर्टी के डाक्यूमेंट्स जल्दी आपके पास भिजवा दूंगा। ताकि आप को तसल्ली हो कि आपकी बेटी सही हाथों में है।" मंत्री महोदय ने कहा।
" इसकी कोई जरूरत नहीं है। आपसे इतने सालों का याराना है मेरा। आप के जरिए आपके परिवार को भी पहचानता हूं। लेकिन मुझे फिर भी इस बात को मानने के लिए थोड़े वक्त की जरूरत है। तो क्यों ना...." मिस्टर पटेल ने हिचकीचाते हुए कहा।
" बेफिक्र रहिए। आप पर कोई किसी तरह की जबरदस्ती नहीं करेगा। हम बस यहां आपको यह समझाने आए थे कि अगर आप खुद से मीरा को नहीं भेजेंगे। तो हमारा इतना बड़ा परिवार एक एक कर उसे अपनी तरफ खींच ही लेगा। वह गुस्से में आपसे रूठ कर हमारे पास आए इस से अच्छा है कि आप खुद अपनी बेटी का कन्यादान करिए।" स्वप्निल के पिता ने मिस्टर पटेल को समझाते हुए कहा।
" और हां आपका यह लीटल सीक्रेट अब हमारा सीक्रेट है। बस अगर कल सुबह तक आपके ठीक होने की खबर मिल जाती। तो हमें काफी अच्छा लगता।" मंत्री महोदय की बात सुन कमरे में सबके चेहरे पर एक हंसी खिल गई।
" हम दुआ करेंगे कि आप जल्दी ठीक हो जाए।" स्वप्निल के पिता ने कुर्सी पर से खड़े होते हुए कहा।
" मिलने आने का शुक्रिया। यकीनन आपकी दुआ रंग लाएगी।" यह वह आखिरी बात थी जो मिस्टर पटेल ने स्वप्निल के पिता से कहीं।
सुबह का वक्त,
" मीरा मेरी बेटी।" मीरा को रोता देख उन्होंने तुरंत मीरा को गले लगा लिया।
" मुझे माफ कर दीजिए डैड। अब आप जो चाहेंगे मैं वह करूंगी लेकिन ..." मीरा ने रोते-रोते उनसे कहा ।
स्वप्निल कमरे में एक कोने में खड़ा रह यह सब देख रहा था। भले ही उसने अपने पिता को वचन दिया हो कि वह इस बात को अपने तक रखेगा। लेकिन अगर इस बार मिस्टर पटेल ने उसके रिश्ते में कोई परेशानी खड़ी की तो वह मीरा को सब सच बता देगा। मीरा उसके पास ना होने से टूटी हुई मीरा का उसके पास होना ज्यादा अच्छा है।