रंजीत की यह सोच बिलकुल सही थी की उसने दुश्मनों को पूरी तरह नष्ट कर दिया है, लेकिन उसके साथ आगे क्या होना है उसे जरा भी भान नहीं था। सच भी था, आगे जो होने वाला था उनसे रंजीत की कोई दुश्मनी नहीं थी लेकिन फिर भी रंजीत ने ख़ुद उनसे दुश्मनी मोल ले ली।
अब आगे....
रंजीत जंगल के रास्ते चलता जाता है बिना रास्ते के पता हुए, इस घने जंगल में और वो भी अँधेरी रात में रास्ता बुझना भी बड़ा कठिन काम है। रंजीत अब तक काफ़ी आगे आ चूका था फिर भी ना तो उसे कहीं कोई गाँव नज़र आया था ना कोई मिलिट्री कैंप। रंजीत निरंतर चलते ही जा रहा था और इस वजह से अब उसे प्यास भी लगने लगी थी।
कुछ दूर चलने पर इसके कानों में पानी की आवाज़ आयी, शायद आस पास कोई जलाशय था और ये आवाज़ किसी जानवर के पानी पीने की थी। रंजीत के पैर ठिठक गए, जलाशय पे पानी पीने वाला जानवर कोई भी हो सकता था यहाँ तक की शेर भी ऐसे में जल्दबाज़ी का मतलब अपनी मौत को ख़ुद दावत देने जैसा था।
रंजीत ने हाथ में खंजर निकाल लिया और दबे पाँव जलाशय की तरफ बढ़ने लगा। कुछ पास जाने पर रंजीत को अहसास हुआ की पानी पीने आया जानवर एक हिरन है और कुछ नहीं। रंजीत ने राहत की साँस ली और जलाशय के पास गया।
जलाशय काफ़ी बड़ा था और उसका पानी बहुत ही साफ था। रंजीत ने झुक कर पानी को अपने हाथ में ले कर देखा, पानी बहुत ही साफ था। उसने पानी को होंठों से लगा कर ग्रहण किया, पानी साफ होने के साथ साथ मीठा भी था। रंजीत ने अपनी अंजुलियों से पानी ले कर अपनी प्यास बुझाई। अब रंजीत में नई ऊर्जा का संचार हो चूका था और वो आगे बढ़ने के लिए तैयार था।
अभी जलाशय से कुछ ही आगे बढ़ा था रंजीत कि उसे कुछ दूर एक हल्की सी रौशनी दिखी। रंजीत के दिल में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और मन में एक आस जगी की शायद वो किसी गाँव ने समीप पहुँच रहा है। कुछ पल के बाद वो रौशनी ओझल हो गयी, रंजीत असमंजस में पड़ गया कि आखिर वो रौशनी ही थी या उसका कोई भ्रम। कुछ देर में फिर वही रौशनी दिखी और कुछ पल रहने के बाद फिर से आँखों से ओझल हो गयी।
रंजीत अपनी जगह पर जड़ हो गया और सोचने को विवश हो गया। आँखों को दिख रहीं एक हल्की दूधिया रौशनी किसी गाँव से नही आ रहीं क्यूंकि बार बार रौशनी का दिखना और ओझल होना किसी प्रकार का संकेत हो सकता है जो कि अक्सर आर्मी वाले या कई बार नक्सली भी किया करते थे।
"तो क्या संदीपन के आदमी बाहर भी फैले हुए है? कहीं ये वो तो नहीं है जिन्होंने संदीपन को नागमणि देखें जाने कि सूचना दी थी।" रंजीत ने अकेले से ही बातें की
अब रंजीत पूरी तरह सतर्क हो चूका था और सधे क़दमों के साथ आगे बढ़ने लगा था। उसने हाथ में खंजर पकड़ रखा था और धीरे धीरे अँधेरे को चिरते हुए आगे बढ़ रहा था। वो रौशनी अभी भी उसी तरह कुछ पल के लिए दिखती और फिर गायब हो जाती।
बढ़ते बढ़ते रंजीत जंगल से मैदान की तरफ पहुँचने लगा, रंजीत हैरान था कि इस घने जंगल के बीच में इतना बड़ा घास का मैदान भी है। जैसे जैसे रंजीत आगे बढ़ रहा था उसे वो रौशनी और साफ दिखना शुरू हो गयी थी। अचानक चलते चलते रंजीत के पाँव ठिठक गए, उसने महसूस किया कि जिस रौशनी का पीछा करते हुए वह यहाँ तक आ पहुँचा है वो न तो किसी गाँव से आ रहीं और न ही किसी प्रकार का कोई संकेत किया जा रहा है।
यह रौशनी तो कुछ और ही है, ध्यान से देखने पर रंजीत को ऐसा लगा जैसे कोई चमकती हुई चीज मैदान में पड़ी है और कोई चीज उसे बार बार ढक देती है जिससे उसकी रौशनी ओझल हो जाती है। रंजीत को यह अभी भी समझ नहीं आ रहा था कि वहाँ ऐसी कौन सी चीज हो सकती है। रंजीत ने आगे बढ़ कर उस चीज को देखने का निर्णय किया।
रंजीत अब उस चमकती चीज से तक़रीबन 200 मीटर दूर रहा होगा लेकिन काफ़ी देर से रौशनी ओझल ही थी। रंजीत अपनी जगह पर खड़ा हो गया और पुनः रौशनी के दिखने का इंतजार करने लगा। कुछ समय में फिर से रौशनी हुई लेकिन इस बार रौशनी सिर्फ उस चमकती चीज से ही नहीं बल्कि रंजीत की आँखों में भी हुई थी।
सामने चमकती हुई चीज कुछ और नहीं बल्कि नागमणि ही थी।
रंजीत ने देखा एक स्याह काला भुजंग जिसकी लम्बाई तकरीबन 2 हाथ के बराबर थी उस मणि के आस पास मंडरा रहा था। वो कुछ देर के लिए मणि को खुला छोड़ता जिससे आस पास कीट पतंगे एकत्र हो जाते और वो उन कीट पतंगों को खाने की कोशिश करता और फिर कुछ देर के लिए मणि को होने फन से ढक लेता।
रंजीत को अब रौशनी के बार बार दिखने और ओझल होने का भेद समझ आ चूका था। रंजीत को अपनी आँखों पर अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि जिस के बारे में उसने आजतक सिर्फ किससे कहानियों में सुना था आज वो सच में उसके आँखों के सामने मौजूद है।
रंजीत ने ऐसा अद्भुत नज़ारा पहले कभी नहीं देखा था, कुछ पल वहाँ रुकने के बाद रंजीत वापस मुड़ कर जंगल कि तरफ चलने लगा। अब रंजीत के मन में खयालतों का सैलाब आने लगा और उसके दिल में एक छोटी सी लालच नाम की चिंगारी ने जन्म ले लिया। रंजीत सोचने लगा कि इतना कुछ होने के बाद अगर संदीपन इस मणि के पीछे पड़ा था तो इसका मतलब यह हुआ कि इस मणि को हासिल करने के बाद उसे इतने पैसे मिल सकते है कि उसे सारी उम्र काम करने कि जरुरत नहीं रहेगी। इस मणि से हासिल पैसे से वो न सिर्फ अपने लिए बहुत कुछ कर सकता है बल्कि अपने समुदाय के लिए भी बहुत कुछ कर सकता है।
जो रंजीत कुछ समय तक संदीपन के दिए अथाह पैसे, गहने सब अपनी मातृभूमि कि रक्षा और अपने साथियों कि मौत का बदला लेने के लिए ठुकरा कर चला आया था अब वही रंजीत मणि सामने देख कर लालच की अग्नि में जलना शुरू हो गया था। रंजीत के कदम आगे नहीं बढ़ पा रहे थे वो इन्ही सब उलझनों में घिरा जा रहा था। अचानक रंजीत रुक जाता है और मुड़ कर वापस मणि की तरफ चलना शुरू कर देता है।
सधे हुए क़दमों से चलते हुए रंजीत नागमणि से 100 मीटर कि दूरी पर रुक जाता है, अब रंजीत यह सोचना शुरू करता है कि कैसे इस मणि को नाग से बचते हुए उठाया जाये। उसके मन में सबसे पहले ख्याल अपने खंजर का आया, अगर वो सांप को खंजर से किसी तरह मारना चाहता है तो उसके लिए उसे नाग के पास जाना पड़ेगा ऐसे में यह भी सकता था वाह अपनी मणि वापस अंदर निगल जाये और फिर उसे कुछ भी ना प्राप्त हो। वह नाग अपनी मणि से ज्यादा दूर नहीं जाता था ऐसे में नागमणि उठाना मौत को दावत देना था।
अचानक रंजीत को कुछ ख्याल आया और उसके चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी, रंजीत ने कांधे पर टंगा बैग उतारा और उसमें से एक जार निकाला। अब रंजीत ने अगली बार रौशनी की चमक का इंतजार किया और जैसे ही नाग ने मणि पर से अपना फन हटाया रंजीत ने उस जार का मुँह खोल दिया।
जार का मुँह खुलते ही उसमें से कई संख्या में दादूर निकल कर रौशनी की ओर आकर्षित हो चले। नाग ने मणि को पुनः ढक लिया और फिर से अंधेरा हो गया। एक बार पुनः मणि का प्रकाश फैला तो दादूर मणि के आस पास पहुँच चुके थे, अब तो मानो नाग की मुराद पूरी हो गयी हो। उसे खाने के लिए छोटे मोटे कीट पतंगे नहीं बल्कि उसका पसंदीदा भोजन दादूर प्रकट हो चुके थे।
नाग ने एक एक करके दादूरों को दौड़ना और पकड़ना शुरू कर दिया, लेकिन अभी भी वो मणि से ज्यादा दूर नहीं जा रहा था। उसने कई दादूरों को अब तक अपना भोजन बना लिया था पर शायद वाह कई दिनों से भूखा था इस वजह से उसकी भूख अभी भी शांत नहीं हुई थी।
इसने एक बार फिर मणि से अपना फन हटाया और इस बार उसे एक थोड़ा बड़ा दादूर ख़ुद से दूर जाता हुआ दिखा, संभवतः यह बचा हुआ आखिरी दादूर था इसलिए नाग ने उस दादूर से अपनी भूख शांत करने का निर्णय लिया। नाग ने उस दादूर का पीछा किया लेकिन दादूर भी बड़ा और ज्यादा फुर्तीला होने की वजह से वो नाग से ज्यादा दूर भागता हा रहा था। नाग ने शिकार को दूर जाता देख नाग ने भी पूरी शक्ति झोक दी और दादूर का पीछा करते हुए मणि से काफ़ी दूर निकल गया।
रंजीत को अपनी योजना सफल होती दिखी और वो झट से मणि की तरफ लपका, उसने मणि को हाथ में उठा लिया। जैसे ही रंजीत ने मणि हाथ में उठाई उसकी रौशनी बंद हो गयी, नाग को रौशनी के ओझल होते ही अपनी गलती का अहसास हो गया था। पलक झपकते ही नाग ने शिकार का पीछा छोड़ दिया और पलट कर मणि की तरफ रफ़्तार भर दी।
रंजीत ने भी नाग को अपनी तरफ आते देख लिया था। उसने मणि को अपने सामने की जेब में डाला और वापस जंगल की तरफ दौड़ लगा दी। नाग भी उसके पीछे बहुत फुर्ती से चला आ रहा था, रंजीत ने ऐसी स्तिथि के बारे में विचार ही नहीं किया था। उसने तो सुना था की मणि खोने के बाद भुजंग अपनी जान दे देते है, लेकिन यह बिलकुल नहीं पता था की कितनी देर में।
रंजीत बस उस घने जंगल में बेतहाशा भाग रहा था और नाग उसका पीछा छोड़ने को बिलकुल तैयार नहीं था। रंजीत को ऐसा लगने लगा की शायद उसने अपने जीवन का सबसे बड़ा गुनाह कर दिया है और उस गुनाह की सज़ा देने स्वम् काल उसके पीछे पड़ गए हों।
क्या करेगा रंजीत ख़ुद की जान बचाने के लिए?
क्या मणि वापस करके बचाएगा अपनी जान?
क्या मणि वापस मिलने से नाग उसे ऐसे ही जाने देगा?
या लालच रंजीत को ऐसा करने से रोकेगा?
To be continued....
-"अदम्य"❤