दुर्लभ देह पाय मानव की, जो उन्नति पथ नहीं बनाते ।
वह कृतघ्न हैं मंद बुद्धि हैं, अपना जीवन व्यर्थ गंवाते ।।
अमृत पात्र दिया परमेश्वर, उसमें भरते गंदा पानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।
ब्रह्मज्ञानयुत सद्गुरु शरणम्, होकर जीवन विधा विचारो।
जीवन वीणा के तारों को,खींचो,कसो और झंकारो ।।
अहो भाग्य सौभाग्य मनुज तन,भरो पात्र में अमृत पानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
विकसित हो आनंद तत्व तो,सुख सौरभ वयार आएगी।
बन्धन नहीं रहेगा कोई, मुक्ति गीत सन्मति गाएगी ।।
राह बता सकता वह सद्गुरु, ब्रह्म ज्ञान का जो विज्ञानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
मानव तन ईश्वर को प्यारा, ऐसा ग्रंथों ने गाया है ।
ईश्वर का साकार रूप भी,मानव तन को बतलाया है ।।
मानव तन सत्पंथ चलाओ, परमेश्वर का प्रतिनिधि जानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
दुर्लभ मानवदेह अगर,आलस प्रमाद में व्यर्थ गंवाई ।
भोगों में यदि लिप्त रहे तो, नहीं हानि की हो भरपाई ।।
अजर अमर यह नहीं,करो उपयोग सुहावन अवसर जानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
अविनाशी हैं आप,अंश हैं, परमेश्वर के खुद को जानो ।
उसी रूप के तुम स्वरूप हो,समझो अपने को पहचानो।।
शाश्वत सुखके परम स्रोत तुम,अब उससे ही लगन लगानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
मानव जीवन सर्वश्रेष्ठ है, अगर श्रेष्ठ कर्तव्य निभाओ ।
अस्थिर और अनित्य देह से,नित्य शाश्वत को अपनाओ।।
लिखो आत्मकल्याण प्राप्ति हित, जीवनकी हरएक कहानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
देह मानकर अगर जियोगे, बने रहोगे देह दास तुम ।
साज संवार करोगे उसकी,इन्द्रिय सुखको समझ खास तुम।
जीवन देह हेतु बीतेगा, आत्म प्रगति की होगी हानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
खुद को सिर्फ शरीर मानते,आत्म तत्व को नहिं पहचाने ।
जिए सिर्फ इन्द्रिय सुख खातिर,अंत समय वह सब पछताने
इन्द्रियजन्य विषय सुखको ही,सच्चा माने जन अज्ञानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
ऐन्द्रिक जीवन,दैहिक जीवन,भौतिक जीवन जो जीता है।
नहीं आत्म कल्याण चाहता, वह जग से जाता रीता है ।।
आत्मोद्धार राह सद्गुरु बिन,कहो यहां किसने पहचानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
शुभ या अशुभ कार्य करके जग,संस्कार बंधन उपजाए।
बार बार जन्मे फिर आए, लेकिन बंधन काट न पाए ।।
भौतिक,लौकिक,दैहिक जीवन,जीते हैं सहते हैं हानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
जन्म लिया भौतिक शरीर में,इसीलिए इसका महत्व है।
लेकिन यह अस्थाई घर है, पूर्ण रूप तो आत्म तत्व है ।।
आवश्यक है देह, किंतु कर, आत्म तत्व की भी निगरानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
क्षणभंगुर है और क्षणिक है,शाश्वत सुख भौतिकता नाहीं।
क्षणिक सुखों के लिए अनवरत,सब प्रयासरत हैं जग माहीं।
आत्मतत्व से जो सुख निस्सृत,उसकी जगमें अमर कहानी।
वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।
परमानंद उसे कहते हैं, आत्म तत्व से जो निस्सृत है ।
इसमें नहीं कर्म का बंधन, और न ये माया आवृत है ।।
ब्रह्मानंद कराने वाला, ब्रह्म तत्व ढूंढे नर ज्ञानी ।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।
ब्रह्मानंद कर्म बंधन से, मुक्ति दिलाता,मोक्ष सजाता ।
भौतिक जीवन साथ आत्मिक, जीवन जीना है सुखदाता।।
भौतिक और आत्मिक जीवन में संतुलन रखो शुभ जानी।
वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।५।।
लगातार..........