Vat savitri ka vrat in Hindi Short Stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | वट सावित्री का व्रत

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वट सावित्री का व्रत

तमिल कहानी लेखिका आर. चूडामणी

अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा

(तमिलनाडु में वट सावित्री का व्रत सुहागिनें व कन्यायें सभी रखती हैं। इसे नोम्बू के नाम से मनाते हैं व इस दिन उपवास रख कर एक विशेष प्रकार का व्यंजन बना कर, कहानी सुना कर गले में पीला धागा जिसमें कच्ची हल्दी की छोटी सी टुकडी पिरो कर पहना जाता हैं। यह कहानी उसी पर आधारित है।)

‘‘ अरी यमुना ! जब देखो तब उस कंदन के साथ क्यों खेलती रहती है ? अन्दर आओ नोम्बू का चरडू ( धागा ) बाधंना है। ’’

यमुना का मन तो खेल में ही रम गया था। उसको अम्मा की बात बिल्कुल पंसद नहीं आई।

‘‘क्यों अम्मा अभी बुला रही हो ? आधे खेल में कैसे आऊं ? मुझे कुछ नहीं बाधंना। ‘‘ ’’कंधा, अब तुम्हें ख्ेलना है। अम्मा के अचानक बोलने के कारण मैं आॅउट हो गई। अब तुमने कितने बनाये ? ’’

उसके इस तरह बातें करते समय ही उसकी अम्मा बाहर आकर, ‘‘क्यों री! दीदी दोनों अंदर इंतजार कर रही हैं। अभी इस लगंडी टांग के खेल की क्या जरूरत है ? कंदा, तुम थोडी देर के बाद खेलने आना। तब तक यमुना चरडू बांधकर खेलने के लिए तैयार होकर आ जाएगी।’’ कह कर यमुना को खीचं कर अन्दर लेकर चली गई।

वट सावित्री के पीले धागे को पहनने को बडें लोगों का खेल समझने वाली यमुना को अपने समान उम्र के नौकर के बच्चें के साथ खेलना इन कर्मकाडों से ज्यादा पसंद था। अम्मा के हाथ से अपने को छुडाने का प्रयत्न करते हुए ‘‘ मुझे यह सब पसंद नही है अम्मा। कुछ जिद्द से, कुछ बिनती करती बोली।

‘‘चरडू को पहन कर फिर खेलना। ’’

‘‘ क्यों धागें को बांधना है ? ‘‘

’’ आज वट सावित्री का व्रत है इसीलिए ही। ‘‘

‘‘ इसका मतलब ’’

’’सत्यवान के लिए सावित्री ने इसी तिथि को चरडू बांधा था। अतः अपने पति की कुषलता के लिए सब औरतों को इस दिन चरडू को धारण करना चाहिए।’’

यमुना अपने को मां की पकड़ से छुडाने की कोषिष करते हुए बोली ‘‘अभी मुझे छोंड़ दो ना अम्मा। अभी मैं सिफ्र्र आठ साल की ही तो हूं ! दीदी की ही तो षादी हुई है। उनको ही तो चरडू पहनना है। मुझे तो लगंडी टागं ख्ेालना है अम्मा। ’’कह कर जिद्द करने लगी।

‘‘ क्यांे री, जबान लडाती है ? शादी जिनकी नहीं हुई है वे भी चरडू पहने तो अच्छा पति मिलेगा। फिर वह कुषलता से भी रहेगा।’’

’’ ये सब बातें मुझे पता नहीं है अम्मा! मुझे छोड़ दे ; मैं जाती हूं। कंदन बेचारा , मेरे लिए इन्तजार कर रहा होगा। ‘‘

‘‘बको मत। बिना कुछ बोले अंदर आ। चरडू बधंवा ले, तभी तेरा आने वाला पति ठीक ठाक रहेगा। अम्मा का कहना न मानने पर मार खाओगीं।’’

यमुना बडबडाती हुई अंदर जाकर सबके साथ बैठी। बडी दीदी के पति आसाम में थे। उस दीदी ने चिंता करते हुए व डरते हुए भक्ति भाव से चरडू को बांध लिया। दूसरी दीदी की तो कुछ समय पहले ही शादी हुई थी।उसके पति बहुत अच्छे हैं ही उसने तो बडी खुषी खुषी मुसकराते हुए चरडू बांध ली।यमुना मन ही मन अपने खेल के बीच में छूटने का सोच कर दुखी हो रही थीं। खेल को जारी रखते तो कंदन आॅउट हो जाता क्या ? फिर उसकी बारी आती तो वह कहां तक पहुंची होती ? शायद मैं जीत जाती! यदि ऐसा होता तो कंदन को वह हिम्मत देकर आती। बेचारा ! कंदन हारने पर किसको रोना नहीं आता ? मुझे पता नहीं है क्या ?

पूजा खत्म होने पर जब सबने चरडू पहन लिया तब ही उसे छुटकारा मिला यह सोचते हुए उत्साह के साथ कूदती हुई बाहर की तरफ आई। थोडंी ही देर में बाहर बच्चों की खेलने की आवाजें आने लगी।

‘‘यमुना पढती ही नहीं है। हमेंषा खेलती रहती है।’’छोटे जीजा जी कार से उतरते हुए बोले। उसे सुन यमुना, ‘‘कंदन के साथ खेलने से क्या खराब हो जाएगा ? ’’ उसने जवाब दिया। थोडी देर बाद कंदन को देख कर बोली ’’क्यों रे तू बारबार हार जाता है! एक बार फिर खेले। क्या ?’’ बडी दयनीयता से पूछा ’’मुझे ऐसा कुछ नहीं करना। हारने से क्या होता है ? कंदन बोला।

‘‘ठीक है रे, आज का खेल बस ! मुझे जाकर चोटी करवानी है। ’’ झूठा बहाना बना कर कंदन की हार को वहीं खतम कर यमुना अंदर को भागी। झूले में बडी दीदी बैंठ कर एक पत्र को पढ़ रही थीं। यमुना उससे कंदन की हारने की बात और उससे स्वंय को हुए दुख के बारे में कहना चाहती थीं।

‘‘अरी ! ठहर जा! आसाम से तुम्हारे जीजा जी का पत्र आया है। पहले उसे पढं लूं फिर तेरी कहानी सुनूगीं। ’’ ऐसा कह कर पत्र पढने लगी दीदी।

........... .......... ..........

‘‘ कंदा! कंदा ! यमुना ने इधर-उधर देखा कहां चला गया ? कब से बुला रहीं हूं। जवाब नहीं दे रहा है। ’’अरे कंदा ! कहां है रे तू ? बेहरा हो गया क्या?

‘‘ उसं ! यहां आकर क्यों चिल्ला रही है ? इधर आ। कंदन आज नहीं आयेगा।’’

अंदर से उसकी अम्मा बोली।

यमुना का चेहरा बदल गया। धीरे से अंदर आकर, ‘‘क्यों अम्मा कंदन क्यों नहीं आएगा ? ’’ डर व फिकर दोनों मिले झुले आवाज में पूछा।

‘‘उसकी तबियत ठीक नहीं है। उसके अप्पा ने आकर बताया। ’’

यमुना की बोलती एकदम बंद हो गई। फिर थोडी देर बाद ‘‘ उसे क्या बीमारी है ? ’’ उसने पूछा।

’’उसे कोई बुखार आ गया। उसे फिर से ठीक होने में कुछ दिन लगेगे। तू जाकर पढ़। ’’

यमुना पढ़ नहीं पाई। कंदन को कौन सा बुखार होगा ? उसे कभी बुखार आते उसने कभी नहीं देखा! उससे खेले बिना कैसे रहूं ? वह बहुत तकलीफ पा रहा होगा शायद ? बेचारा कंदन कंदन...कंदन ! डाक्टर ने उसे कडंवी दवाई दी होगी। वह कैसे सहन करेगा ? क्या वह रोएगा ?

ये बात उसके मन में आते ही उसे भी रोना आएगा ऐसा लगने लगा। कंदन की तबियत जल्दी ठीक होनी चाहिए! दो तीन दिन में ठीक होकर वापस आ जाए तो अच्छा रहेगा। फिर हमेंषा वह लंगडी टांग में उसे ही जीतने देगी।उसे य्ाह अच्छा लगेगा ।

उस रात कंदन के अप्पा वहां आए। ‘‘ उसकी हालत बहुत ही खराब है। पता नहीं ,अम्मा वह जिएगा या नहीं ? ’’ कहकर रोने लगा। यमुना की अम्मा ने उसे सांत्वना देकर चुप करा कर घर भेजा। उसके जाते समय यमुना ने उसे थोडी सी शक्कर लाकर दी व बोली ’’ डाक्टर कडवी दवाई दे ंतो उसमें ये डाल कर देना। उसको कहना ये जल्दी तबियत को ठीक कर देगा। वह जल्दी ठीक हो जाएगा। ’’

कई दिन बीत गए। कंदन की हालत ज्यादा ही खराब हो गई। ‘‘अय्यों बेचारा! कंदन बहुत दुख पा रहा है ! ’’यमुना का मन यह सोच कर बहुत दुखी हुआ।

कंदन के पिता से यमुना के दादा जी ने कहा, ‘‘ अरे, भाई कंदा की फिकर मत कर। मेरे पास एक दवाई है। पुराने जमाने में सभी बीमारियों में इसे ही काम में लेते थे। आजकल की दवाईयों का क्या उपयोग है ? इसे ले जाकर उसे दे देना। ’’ विष्वास के साथ बोले।

यमुना के पिता जी बोले, ‘‘मैं एक अच्छे अंग्रेज डाक्टर को जानता हूं। वे आकर दवाई दे तो बीमारी अपनी जगह छोड़ कर भाग जाएगी। उन्हें मैं कंदन को आकर देखने को कहता हूं। ’’

उसकी अम्मा बोली ‘‘ ये सब रहने दो। पडोस के घर की मामी की तबियत जब खराब हुई थी तब एक आयुर्वेधिक वैद्य कृष्णन मेनन ने ही ठीक किया था। वे आकर देखेगें क्या, मैं पूछती हूं। ’’कह कर विष्वास दिलाया।

उसकी दादी बोली ‘‘ये क्या पागलपन है ! तिरूपति बालाजी की मनौती करो। व उसे पूरा करो भैया। सब ठीक हो जाएगा। ’’ वे पूर्ण विष्वास के साथ बोली।

यमुना ने सब की बातें सुनीं। उसको इन बातो पर विष्वास नहीं हुआ।ये सभी लोग बातें ही कर रहे हैं।तुरन्त कुछ कर नहीं रहे ! कहीं कंदन मर जाए तो क्या करें ? उसका मन बहुत ही घबराया। ’’अय्यों ! कंदन को मरना नहीं चाहिए। हे भगवान कंदन को तुम नहीं बचाओगे क्या ? वह कितना अच्छा है।लंगडी टांग खेलते समय कभी धोखा नहीं देता। हार जाए तो भी रोता नहीं ! ये बड़े लोग जब मेरे समझ में नहीं आए ऐसी बातें करते हैं ,तब कंदन ही तो मेरे साथ खेलता था। वह मर जायेगा ऐसा लग रहा है।ये लेांग बोल रहें हैं ना! हे भगवान तुम उसे मत मारना ! तुम अच्छे भगवान हो ना ? मेरे पास जो है उसमें से आपको जो चाहिए वह आप ले लो। उस दिन अप्पा जो सुन्दर तस्वीर वाली किताब मेरे लिए लाए वह भी मैं तुम्हें दे दूंगीं। मेरी नई सोने की जंजीर वह भी मैं तुम्हें दे दूंगीं। हे भगवान ! थोडा बडा मन कर कंदन को जिंदा रहने दो। ’’

इस तरह उसका चंचल मन दो दिन बहुत परेषान रहा। उसका मन बिना रूके भगवान से प्रार्थना करता रहा।

उस दिन षाम माथे पर बिंदी लगाने आयने के सामने खड़ी हुई। उसने देखा, वट सावित्री के व्रत के दिन पहना चरडू रंगहीन होकर धागे जैसे हो गया था। उसे देखते हुए कुछ देर खड़ी रही।

उसका मन कुछ सोचने लगा। वह दस मिनिट तक वैसे ही खड़ी रही।

अचानक उसे उस दिन अम्मा के बोले गए शब्द याद आए ‘‘जसकी शादी नहीं हुई वे चरडू को पहने तो आने वाला पति कुषलता से रहेगा। ’’

यमुना थोड़ी देर वैसे ही खड़ी रहीं। आयने को देख रही अंाखे अचानक चमकी।

’’ऐसा होगा ? ’’

यमुना ने तीव्रता से सोचा। अम्मा ने कहा क्या वह सच है ? सच होगा क्या ? वट सावित्री के व्रत के बारे में उन्होंनें जो कहा वह सच है ?

उसका मन कुछ महीने पीछे को भागा। उस दिन जो बात हुई ........

ठीक है !

उस दिन व्रत खतम होते ही छोटे जीजा जी आए कि नहीं ? वह छोटी दीदी के चरडू बांधने से ही तो हुआ ? उनके प्रत्यक्ष आने से ही तो वे ठीक हैं सब लोगों को पता चला। इसीलिए तो भगवान ने उन्हें यहां भेजा होगा ?

बड़ी दीदी को उस दिन आसाम से पत्र आया ! जीजा जी कुषलता से है तुरन्त पता चल गया ना ?

उन लोगों के मामले में चरडू की बात सही निकली तो शादी न होने वालों पर भी तो सही होगा ना ?

कंदन मेरे होने वाले पति हो जाए तो वह भी कुषलता से रहेगा ; मरेगा नहीं। उसने भी तो पूजा कर चरडू पहना था।

कंदन के प्राणों पर विपक्ति आई है सब कह रहें हैं। सब चाहते है िकवह मरे नहीं। ये कैसे सम्भव होगा उसे पता है। कंदन को वह ही बचा सकती है। वह ही उसे ठीक कर फिर से लंगडी़ टांग खेलने लायक कर सकती है।

यमुना कुछ क्षण वहां रूकी। फिर भाग कर पूजा के कमरे में गई। वहां जाकर बैठ गई व हाथ जोड़ कर आंखो को बंद कर लिया।

‘‘ हे भगवान ! कंदन को बचाने का रास्ता मुझे मालुम हो गया। उससे ही मैं शादी कर लूंगी। अब वह मेरा होने वाला पति बन गया। है ना ? उसकी बीमारी को ठीक कर दें। उसकी जिंदगी बचा दें। कंदन को मरना नहीं चाहिए। मैंने तो चरडू पहना था। हे भगवान ! तू ही उसे सम्भाल ले। अभी तक वह मेरे गले मे ही है। इसे पहनने वाले को उसका होने वाला पति तो अच्छा रहना चाहिए।अब तो तुम्हें कंदन को बचाना ही होगा। ’’

यमुना जोरजोर से हंसने लगी।

’’ तुम कितने अच्छे भगवान हो ! तुमने मुझे ये सही रास्ता दिखाया। तुमको भी लंगड़ी टांग खेलना पसंद है ? तुम खेलने आओ तो पहले तुम्हें ही हमेंषा पहला चान्स दूंगी। तुम्हें मैं क्या नहीं दे सकती ? अब तो कंदन ठीक हो जाएगा। वह उठ कर खेलेगा। उसके मां-बाप बहुत खुष होंगे। हमारे घर में सभी बडे़ं लोग क्या क्या बोलते रहे ; मुझे ही तुमने सही योजना बताई ! जाने दो। मैं उन लोगों को नहीं बताऊँगी। अब कंदन नहीं मरेगा। अब उसे कडवी दवाई पीने की जरूरत नहीं। उसके अप्पा बेचारे, अब नहीं रोएगें। कंदन को भी बिना रोये रहने के लिए मैं देख लूंगी, भगवान ! वह अच्छा लड़का है। उसे कुछ नहीं होगा उसे तुमने बचाया है ना ; मैं तुम्हें कभी भी नहीं भूलूंगी ;भगवान कभी नहीं भूलूंगी। ’’

कंदन ठीक होकर खेलने आ गया।

‘‘हमारी दवाई की बराबरी कुछ है क्या ?’’ दादा जी बोले।

’’मेरा दोस्त डाक्टर हाथ लगाए तो सोना ही है। ’’ अप्पा अपने स्वंय की सफलता पर खुष हो रहे थे।

‘‘कुछ भी कहो, अंग्रेजी डाक्टर से ज्यादा आयुर्वेधिक वैद्य की ही ज्यादा सही होते है ’’अम्मा बोली।

’’तिरूपति बालाजी सचमुच के महान देवता है ’’ दादी संक्षित में बोली।

यमुना कुछ नही बोली। परन्तु फिर भी सच्चाई तो मुझे ही पता है ये सोच गर्व की मुस्कराहट उसके चेहरे पर फैल गई।

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तमिल कहानी लेखिका आर. चूड़ामणी 

अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा