संतानेच्छा
(१)
नवीन को स्कूल पहुँचने में देरी हो रही है। वह असहज दिखाई दे रहा है। नवीन: -"राशि तुमको कितनी बार बोल चुका हूँ,यार टिफिन जल्दी बना लिया करो। बेकार में आज फिर से प्रिंसिपल साहब की डांट सुननी पड़ेगी। "राशि: -"तो ले लो ना एक स्कूटी। कब से बोल रही हूँ। क्यों इतनी कंजूसी करते हो! "नवीन: -"तुम्हें पता है, फिर भी बार बार एक ही सवाल करती रहती हो। "राशि: -"हूँ पता है। क्या बोला डॉक्टर ने? "नवीन: -"तुम्हें तो पता है कि डॉक्टर ने क्या बोला है, फिर क्यों बार बार एक ही प्रश्न दोहराती हो? "राशि: -"रहा नहीं जाता। दस साल शादी को हो गए। अब बिल्कुल सहा नहीं जाता। " आँखों से आँसू के दो बूँद टपक पड़ते हैं। नवीन पत्नी की आँखों से बह रहे आँसुओं को पोछता है। नवीन: -" क्यों रोती हो। नसीब में होगा तो ...आएगा!ऊपर वाले पर और डॉक्टर पर भरोसा रखो। "राशि: -"हूँ। अब आप स्कूल के लिए निकलिए, नहीं तो लेट हो जाएंगे। "नवीन: -"शाम को डॉक्टर के पास चलना है। तैयार रहना। "राशि: -"ठीक है। ओम् साईं। संभलकर जाइएगा। "नवीन: -"ओम् साईं। "नवीन तेज कदमों से स्कूल की तरफ भागता है। राशि दरवाजे से नवीन को तब तक देखती रही जब तक कि वह उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गया।
(२)
प्रिंसिपल साहब ऑफिस में बैठे हैं। तभी वहाँ नवीन पहुुँचता है। नवीन: -"सर! आज मुझे जल्दी जाना है। "प्रिंसिपल: -"ऐसा क्या जरूरी है। मास्टर जी जरा विद्यार्थियों पर भी ध्यान दीजिये। परीक्षा सिर पर है और आप जल्दी जाने की बात कर रहे हैं। "नवीन: -"सर मेरा सिलेबस खत्म हो चुका है। अभी रिवीजन चल रहा है। बहुत जरूरी था इसलिए आया सर। डॉक्टर के पास जाना है। "प्रिंसिपल: -"क्या हुआ,आपकी पत्नी बीमार तो नहीं है ं?"नवीन: -"जी, बीमार तो नहीं। बस शादी को दस साल हो गए...... "प्रिंसिपल: -"ओह! समझ गया, समझ गया। वो ज्यादा जरूरी है। आप विद्यार्थियों की चिंता मत करो,मैं हूँ न। आप जाओ, अपनी पत्नी का अच्छे से इलाज कराओ। दो चार दिन की छुट्टी चाहिए तो ले लेना, हाँ। डांट वोरी, डांट वोरी। "नवीन: -"बहुत बहुत धन्यवाद सर"नवीन विनम्रता से अपना सिर हिलाता है और तेज कदमों के साथ बाहर निकल जाता है।
(३)
राशि बेसब्री से नवीन का राह देख रही है। वह कोरिडोर में एक चेयर पर बैठी है, पर बेचैनी इतनी कि वह कुर्सी छोड़कर इधरउधर टहलने लगती है। पता नहीं डॉक्टर क्या बोलेगा ! कहीं ये न बोल दे कि मेरी कोख से बच्चा संभव ही नहीं है। नहीं नहीं, डॉक्टर साहब मुझे निराश नहीं करेंगे, कोई खाली हाथ नहीं लौटता उनके हॉस्पिटल से,बड़ा नाम है उनका, लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते। मैं माँ बनूंगी, अवश्य बनूंगी। देर है पर अंधेर नहीं, मैंने हमेशा दान पून्य ही किए हैं, लोगों का भला किया है, पांच साल लगातार नवरात्रि ब्रत रही हूँ- निर्जला,अन्न का एक दाना नहीं ली हूँ, बस दूध और केला। घोर तपस्या की हूँ माँ तेरे दरबार में, मुझे निराश मत करना माँ........ सोचते सोचते राशि की आँखें डबडबा जाती हैं। तभी वहाँ हूर्र हूर्र की आवाज करता एक ऑटो आता है। राशि आँसू पोछती हुई ऑटो की पिछली सीट पर नवीन के बगल में बैठ जाती है। ऑटो झटका मारता हुआ आगे बढ़ जाता है।
(४)
नवीन व राशि के तमाम शारीरिक टेस्ट होते हैं। सारे रीपोर्ट्स फाइल होकर डॉक्टर किशोर काले के पास आते हैं। डॉक्टर साहब विस्तार से समझाते हैं-"राशि पूरी तरह से स्वस्थ है, कमी नवीन में है। उसके विर्ज में शुक्राणुओं की संख्या नगण्य है, जो हैं भी वे निष्क्रिय हैं- नॉन मोटाइल। बच्चा चाहिए तो बस एक ही तरीका है-IVF, टेस्ट ट्यूब बेबी। कुल दो से ढाई लाख तक का खर्च आएगा। सोच विचार लीजिए। पैसे का इंतजाम कर लीजिए। ऊपर वाला चाहा तो आप पिता बन जाएंगे। मगर जल्दी करना। देरी से दिक्कतें बढ़ सकती हैं, फिर मेरे लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी। "नवीन के चेहरे पर गंभीरता की चादर पड़ी है, तो वहीं राशि भी चिंतित नजर आ रही है।
(५)
नवीन व राशि बड़े ही धीर गंभीर और उदास हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि ढ़ाई लाख कहाँ से लाएं। भाई इतने सक्षम नहीं हैं कि वे नवीन की मदद कर सकें। ससुराल की भी कुछ ऐसी ही दसा है। सोचा बैंक से लोन ले लेता हूँ। मगर कैसे, अभी जो फ्लैट की EMI पंद्रह हजार भरता हूँ,वही मेरेे लिए भारी है। काफी विचार मंथन के बाद नवीन ने ट्यूशन शुरू कर दिया। सुबह नौ बजे से शाम चार बजे तक स्कूल में क्लास, तो शाम पाँच बजे से दस बजे रात तक ट्यूशन। बारिश की फिक्र नहीं,ठंड की परवाह नहीं, बस एक ही मकसद- ट्यूशन, जी तोड़ मेहनत, जिससे अति शीघ्र ढ़ाई लाख रूपये एकत्र कर सके। डॉक्टर के कहे एक एक शब्द उसके कानों में गूंजते रहते हैं-"मगर जल्दी करना। देरी से दिक्कतें बढ़ सकती हैं, फिर मेरे लिए बड़ी मुश्किल हो जाएगी। "
(६)
ढ़ाई लाख रूपये इकट्ठा करना, वो भी एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर के लिए, आसान नहीं है। छह महीने लग गए। बीच में बूढ़ी माँ की बीमारी में पचास हजार रूपये खर्च हो गए। इंतजार दो महीने आगे खिसक गया। कुछ जद्दोजहद और संघर्ष के उपरांत वह समय आ ही गया जब उन्हें डॉक्टर किशोर काले से एप्वायमेंट मिला। राशि बड़ी खुश है आज। चेहरे की चमक बयां कर रही है कि उसके दिल में कैसे आरमान हिलोरे मार रहे हैं। मातृत्व की सुषुप्त आकांक्षा ने आज अपनी आँखें खोल दी हैं। आलमारी में खिलौने सजाकर रखे हैं-गुड्डे और गुड़ियों के झुंड देखकर नवीन मुसकुराने लगता है। वह समझ जाता है कि राशि की माँ बनने की उम्मीद चरम पर है। वह स्वयं को संयमित नहीं रख पा रही है। आखिर रखे भी तो कैसे,शादी के दस वर्षों के पश्चात आज वह शुभ समय आया है जब वह माँ बनने के लिए इतना आशान्वित है। घर के दोनों कमरे फूलों से सजे हुए हैं,चारों ओर खुशनुमा सुगंध फैल रहा है। राशि की चहकती नजरें पिछले दो दिनों से अस्थिर नहीं हैं। बेडरूम में विवेकानंद और सुभाषचंद्र बोस की तस्वीरें लटक रही हैं। नवीन:-"राशि अब देर मत करो, फटाफट रेडी हो जाओ, डॉक्टर के यहाँ दस बजे का एप्वायमेंट है। "राशि आइने के सामने खड़ी है, मेकअप से खुद को सजाने और सवारने में लगी है। उधर नवीन बारबार अपनी कलाई पर लगी घड़ी की तरफ देख रहा है। ठीक इसी समय नवीन की मोबाइल की रिंग बजने लगती है, मोबाइल की स्क्रीन पर देखकर नवीन बुदबुदाता है-" गांव से राधेश्याम भैया का फोन आ रहा है " नवीन कॉल को रिसीव करता है। कान से लगाकर कुछ देर बातें करता है, मगर क्षण भर बाद ही उसके चेहरे का रंग उड़ जाता है। मोबाइल टेबल पर रख देता है। वह बेचैन नजर आ रहा है। किंकर्तव्यविमूढ़, बदहवास, संज्ञा शून्य..... इसी समय राशि उसके सामने आकर खड़ी हो जाती है। राशि:-"हाँ जी, मैं कैसी लग रही हूँ ? "नवीन कोई जवाब नहीं देता। पथराई आँखे दीवार को टकटकी लगाए देख रही हैं। राशि:-"अरे क्या हुआ ? इतने परेशान क्यों हो? आखिर बात क्या है? इतना चुप-चुप क्यों हो? "नवीन-"राशि बहुत बुरा हुआ है। " राशि:-"बुरा, बात क्या है! साफ साफ बताओ जी। "नवीन:-" भतीजे राघव का ऐक्सीडेंट हो गया है, वह कोमा में है, पैसे की सख्त जरूरत है, अभी अर्जेंट में पचास हजार रूपये भेजना होगा। बाद में जरूरत पड़ी तो शायद ज्यादा भेजना पड़े। "राशि:-" तुम होश में तो हो, पैसे उधर भेज दोगे तो अपना क्या होगा, आज डॉक्टर ने बुलाया है, फ्री में तो इलाज करेगा नहीं। चलो टाइम हो गया। " नवीन:-" तुम कैसी औरत हो, उधर मेरा सगा भतीजा कोमा में है, जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहा है, तुम बोल रही हो कि मैं डॉक्टर के पास चलूँ। "
राशि:-"तो तुम क्या चाहते हो, कि मैं तुम्हारे भतीजे की खातिर अपने अरमानों का गला घोंट दूँ। क्या तुम ये चाहते हो। "नवीन:-"राशि क्या बक रही हो, अरे हमें तो दूबारा मौका मिल जाएगा, मगर भतीजा हाथ से निकल गया, तो वो दूबारा हमें नहीं मिलेगा। जरा सोचो। जो अभी इस दुनिया में आया ही नहीं, उसके लिये इतना क्यों सोचना!ईश्वर ने चाहा तो हम दूबारा प्लानिंग कर लेंगे। बस तुम शांत हो जाओ, तुम्हें दुखी देखता हूँ तो मेरा हौसला टूट जाता है। आखिर तुम्हारे सिवा यहाँ मेरा कौन है, तुम्हीं तो मेरे जीवन का सहारा हो, जीने का बहाना हो, जीने की वजह हो। मुझे भी एक औलाद की चाहत है, लड़की या लड़का, कोई भी। मगर भतीजे राघव को खोने की शर्तों पर नहीं। "नवीन चुप हो जाता है। दीवार पर पड़ रही पंखे की परछाई को देखने लगता है। राशि की आँखों से आँसुओं की कुछ बूंदें टपकती हैं जिन्हें वह रूमाल से पोछ लेती है। घड़ी में दस बजे चुके हैं। नवीन की मोबाइल पर हॉस्पिटल से फोन आ रहा है, मगर नवीन कॉल रिसीव नहीं करता। राशि मोबाइल की स्क्रीन पर एकटक देख रही है।
(७)
दो लाख रूपये खर्च होते हैं, मगर राघव को उसकी जिंदगी वापस मिल जाती है। नवीन काफी खुश है, पैसा खर्च हुआ सो हुआ पर भतीजे की जान तो बच गयी। अब नवीन अपनी जिंदगी में वापस आ जाता है- दिन भर स्कूल की नौकरी, और शाम होते ही ट्यूशन, फिर कोचिंग क्लासेस। पैसे कमाने की सनक। एक लक्ष्य-ढ़ाई लाख रूपये। संतान की तीव्र इच्छा। न खाने की सुध, न घुमने की और न ही आलस्य के लिए किंचित स्थान। एकाग्रचित्त-निशाना मछली की आँख पर।
(८)
अंततः उस दिन का उदय हुआ, जिस दिन नवीन की जेब में ढ़ाई लाख रूपये थे। अगले दिन वह अपनी पत्नी राशि के साथ डॉक्टर किशोर काले के हॉस्पिटल में दाखिल होता है। पुनः सारे टेस्ट होते हैं। टेस्ट रीपोर्ट पढ़ते ही डॉक्टर काले के माथे पर बल पड़ जाते हैं। नवीन का गला सूख रहा है। वह असमंजस के झंझावात में उलझा हुआ डॉक्टर काले की तरफ नजरे गड़ाया है। डॉक्टर काले एक गहरी साँस छोड़ते हुए बोलते हैं-"नवीन जी आपने देर कर दी। दो चार शुक्राणु जो बनते थे वे अब मौजूद नहीं हैं। बाकी सब नानमोटाइल हैं, दूसरे शब्दों में निष्क्रिय, निरर्थक, बेकार। "डॉक्टर एक महीने के लिए दवा देता है। एक महीने बाद पुनः टेस्ट होता है, पर यथास्थिति-निष्क्रिय, निरर्थक, बेकार। हारकर डॉक्टर एक परामर्श देता है-"शुक्राणु किसी गैर मर्द की लेनी होगी, जिसे आय वी एफ टेक्निक से राशि के अंडे के साथ निषेचित किया जाएगा, तत्पश्चात लैब में तैयार भ्रूण को राशि के गर्भाशय में प्रविष्ट करा दिया जाएगा। "नवीन के मन:मष्तिष्क में भूचाल मचा है। वह निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। हलांकि राशि एक संतान की खातिर डॉक्टर काले की बातों से काफी हद तक सहमत है, पर उसे नवीन की सहमति की सख्त जरूरत है। नवीन इसकेे लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। उसे किसी गैर मर्द का शुक्राणु स्वीकार्य नहीं। वह साफ मना कर देता है। राशि भी चुप हो जाती है। आखिर पति की असहमति के खिलाफ जाकर वह आगे कोई कदम भी तो नहीं बढ़ा सकती।
(९)
वक्त के साथ परिस्थितियां बदलती चली गईं। नवीन अपने छोटे भतीजे राघव को अपने पास बुला लिया। भतीजे को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाया। स्कूल से कॉलेज और फिर यूनिवर्सिटी। यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएशन के साथ पी एच डी करके निकला। नवीन का मेहनत और राघव का भाग्य दोनों ने एक साथ काम किया-राघव सरकारी कॉलेज में लेक्चरर बन गया। खुशी का एक अदभुत खजाना मिल गया था नवीन और राशि को। दोनों बेहद खुश थे। राघव को पढ़ाने लिखाने से लेकर उसे एक इंसान बनाने तक के सफर में नवीन ने बहुत मेहनत किये। राशि ने राघव को सगी माँ से भी ज्यादा प्यार, तरजीह और सहूलियतें दीं। स्वयं को तकलीफ में रखा,पर राघव को लेशमात्र कष्ट नहीं होने दिया। रहने, खाने, आने-जाने, अच्छे स्कूल-कॉलेज, ट्यूशन सभी सुविधाएं दीं। तब जाकर गांव से निकला हुआ एक देहाती बालक पढ़ लिखकर एक कॉलेज में लेक्चरर बन सका।
(१०)
राघव की शादी तय कर दी गई है। शादी गाँव से होनी है इसलिए सभी लोग गाँव चले जाते हैं। शादी की तैयारी जाेर शोर से चल रही है। राघव की शादी से अगर कोई सबसे ज्यादा खुश है तो वह है राशि। राशि के चेहरे की खुशी देखते ही बनती है। घर में बहू आने वाली है- अरसा बाद दिल की आरजू पूरी होने वाली है। बैंड बाजे के साथ बारात जाती है और अगले दिन बहू को लेकर वापस आ जाती है। दुल्हा दुल्हन गाड़ी से नीचे उतरते हैं। गाँव की तमाम औरतें आगे बढ़ती हैं। नई नवेली दुल्हन के स्वागत में राशि चावल व फूलों की बारिश कर रही है। अन्य औरतें गीत गा रही हैं- "आईं सीता रानी आईं सज धज के पधारीं मोरे घर में, आओ द्वारे पधारो बहू खुशियाँ बिखेरो मोरे घर में........."
राशि का चेहरा देखते ही बनता है, सूरज की रोशनी में चेहरा सोने की तरह दमक रहा है। आंखों में चमक, होठों पर मुस्कान, क्या कहने हैं-आज राशि को मानों दुनियाँ की सबसे बड़ी खुशी मिल गई हो। बहू के स्वागत में मूसल लेकर आ जाती है। मूसल से बहू को परछना यानि स्वागत करना एक शुभ परम्परा है। राशि अभी आगे बढ़ी ही थी कि राघव की माँ उसके सामने तन कर खड़ी हो जाती हैं-" खबरदार जो मेरी बहू के सामने पड़ी तो, तू बांझ है बांझ। तेरी परछाई मेरी बहू को लग गई तो वो भी तेरी तरह बिना संतान की होके रह जाएगी। चल मूसल मुझे दे और तू परे हो जा। "
राशि को मानों सांप सूंघ जाता है। वह हतप्रभ, किंकर्तव्यविमूढ़ किसी पत्थर की मूर्ति की भांति जहाँ है वहीं जड़ हो जाती है। उसे देख कर लगता है जैसे धीरे धीरे उसकी ह्रदय गति मंद पड़ती जा रही है। वहीं तमाम औरतें बहू के लिए ऊंचे सुर में स्वागत गीत गाए जा रही हैं जबकि राघव की माँ बहू को परछने के बाद दही गुड़ खिला रही हैं।
क्षण भर में ही राशि का संपूर्ण उत्साह शिथिल पड़ चुका है। अचानक उसकी आंखों से आंसुओं का सैलाब निकल पड़ता है। वह स्वयं को रोक नहीं पाती- लगभग दौड़ती हुई अपने कमरे में पहुंचती है और वहाँ पहुंचते ही हिचक हिचककर रोने लगती है।
घर के बाहर गाँव की औरतें ढोल नगाड़े के ऊपर नाच गा रही हैं, लोग हलवा जलेबी खाने में लगे हैं, पर नवीन की आँखें राशि को तलाश रही हैं। नवीन राशि को इधर उधर ढूंढ़ने लगता है और आखिर में उसे राशि मिलती तो है पर इस बदहवासी की हालत में-जिसकी नवीन ने कल्पना भी नहीं की थी।
नवीन:-"राशि तुम रो रही हो, क्या हुआ? "
राशि चुप रहती है बस लगातार रोए जा रही है, आँखों से झर झर आँसू बहते जा रहे हैं।
नवीन:-"राशि कुछ तो बोलो, किसी ने अपशब्द बोले, प्लीज राशि मुझसे मत छुपाओ अपने दिल की बात, आखिर तुम्हारे सिवा कौन है मेरा इस दुनिया में। "
राशि हिचकते हुए बड़ी मुश्किल से बोलती है:-"राघव की माँ ने मुझे बांझ बोला। मुझे बहू के सामने से ये कहते हुए हटा दिया कि मेरी परछाई बहू को लग जाएगी तो उसे भी मेरी तरह संतान नहीं होंगे..... "
राघव को मानों लकवा मार गया हो। वह बस जमीन की तरफ टकटकी लगाए बैठा है।
राशि हिचकी लेती हुई आगे बोलती है:-"क्या मिला हमें राघव को पढ़ा लिखाकर - कटाक्ष, अपमान और तिरस्कार। आज हमारा अपना बेटा होता तो कम से कम इस तरह से अपमानित तो नहीं होना पड़ता। हमारे सारे त्याग और तपस्या एक क्षण में मिट्टी में मिल गए। "
राशि की आँखों से बह रहे आँसुओं के सैलाब रूकने का नाम नहीं ले रहे। वहीं नवीन काठ की किसी मुर्ति की तरह निढाल सा पड़ा है- न कोई हलचल, न कोई शब्द, न ही कोई प्रतिक्रिया।
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