"ओए.. तुमने तो बताया भी नहीं, की तुम आते ही बड़े कांड कर के आई हो।", निया की नई टीम वाली सहेली ने उनके कॉफी के लिए जाते टाइम पूछा।
"कांड.. मुझे तो सच में समझ ही नहीं आ रहा की ऐसा भी क्या कर दिया है मैंने।"
"कोई ना.. कोई ना.. थोड़े दिन रुक जाओ तुम, फिर सब पता लग जाएगा।"
"ऐसा भी क्या ही है?"
"वो क्या है ना.. ओह.. ध्रुव..तुम.. बड़े दिन बाद दिखे हो, कैसे हो?" वो सहेली वहाँ आए ध्रुव को देखते हुए बोली।
"मैं ठीक, आप सुनाओ कैसे हो? काम ठीक चल रहा है?" ध्रुव ने उससे पूछा।
"हम्म.." ध्रुव की तरफ़ बड़ी सी मुस्कराहट से देखते हुए वो बोली। ध्रुव ने भी अपनी बॉटल में पानी भरा, और मुस्कराता हुआ वहाँ से चला गया।
"मुझे तो इन लोगो से बात करने के लिए सख्त मना किया है, और तुम यहाँ गप्पे मार रही हो", निया अपनी टीम मेट को गुस्से से देखते हुए बोली।
"जब बात ध्रुव की हो, तो कोई कुछ नहीं कहेगा, उल्टा चंचल का तो पसंदीदा है ध्रुव।"
"चंचल का?"
"हां..और पता है, उन्हें ना पसंद कौन है?"
"कौन?"
"सुनील, जिनके साथ तुम जी. टी चली गई थी।"
"अच्छा.. पर ऐसा क्यों? लगते तो भले मानस है वो।"
"मैं तुम्हे बता रही हूं ये बात, किसी को बताना मत.. बात ये है, की चंचल ने पहले जी. टी में जॉब के लिए अप्लाई किया था, पर उसी टाइम सुनील ने भी वहां इंटरव्यू दिया था, आखिरी राउंड में केवल ये दोनो ही बचे थे, और सुनील ने चालकी से चंचल से वो जॉब हथया ली। और फिर क़िस्मत की बात हुई, की पहले चंचल यहां आई, और फिर सुनील, और अब चंचल अपना बदला पूरा कर रही है।"
"पर ऐसा क्या किया था सुनील ने इंटरव्यू के टाइम?"
"ये तो नहीं पता मुझे, पर कुछ बड़ा तो किया ही होगा, जो ये हुआ।... अच्छा छोड़ो अब उन लोगो को.. काम शुरू करे?"
"हां चलो।" निया ने आह भरते हुए कॉफी का आखिरी गुट पिया और चल दी।
"क्या हुआ?"
"कुछ नहीं।" निया मन ही मन सोच रही थी की आज के दिन के लिए बहुत हो गया, वो किसी और चीज़ में नहीं पड़ना चाहती।
वो दोनो अभी राइट विंग वाले उस कॉफी शॉप से अपने डेस्क की और जा ही रहे थे, की इतने एक तेज़ अवाज़ आई,
"तुम खुद को समझते क्या हो?", चंचल, सुनील की ओर देख कर चिल्ला रही थी।
"जो तुम खुद को समझती हो, इस तरह से बात करने की वजह पूछ सकता हूं?" सुनील ने आराम से जवाब दिया।
"वजह.. वजह.. तुमने पागल समझा हुआ है क्या हमे, ऐसे कैसे तुम ये फैसला ले सकते हो।"
"मैंने फैसला नहीं लिया, मुझ से पूछा गया, तो मैंने अपनी राय बता दी। और वैसे भी तुक भी इसी बात का बनता है।"
"तुक.. हां यही बोल कर मनाया होगा तुमने नीतू को।"
"यही नहीं सही.. अब एक्सक्यूज मी.. हमे काम करना है।"
"हहह।" ये बोल कर चंचल गुस्से में पीछे मुड़ी और देखा की निया और उसकी टीम मेट वहीं थी। "क्या कर रहे हो, तुम दोनो यहां? जाओ और सब अपना सामान लेकर यहां आओ।"
"मै’म वो.. "
"सामान लेकर यहां आओ, हमारे पास सारा दिन नहीं है इस काम के लिए", चंचल अपना सिर पकड़ते हुए बोली।
"ओके मै’म।" निया और उसकी टीम मेट एक स्वर में जवाब देकर भागे भागे अपने सीट पे जाते है।
कुछ देर बाद जब निया और बाकी के लोग सामान लेकर वहां पहुंचते है, तो चंचल निया को अपने पास बुलाती है, "निया तुम यहां बैठोगी", खिड़की के पास की कोने की सीट पे इशारा करके चंचल बोली। "सुनील मुझे ये सीट खाली चाहिए।"
"पर चंचल यहां कोई बैठता है।"
"मुझ इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, निया मेरी लीड डेवलपर होने वाली है, तो मैं नहीं चाहती की उसे किसी भी तरह की कोई दिक्कत हो।"
"ध्रुव, तुम यहां आ जाओ", निया के सीट की पीछे वाली सीट पे हाथ रख के सुनील बोला, "मैं भी नहीं चाहता की मेरे लीड डेवलपर को कोई दिक्कत हो।"
"पर सुनील, मैं यहां ठीक हूं", उस सीट के तीन सीट आगे बैठा ध्रुव बोला।
"नहीं, अब तुम्हे भी परेशान करने वाले बहुत लोग आ गए है। मैं नहीं चाहता की तुम्हे कोई फालतू परेशान करे, तो जैसा कहा है वैसा करो।"
"बुरी नज़र ही लगाने आई होगी ये सुबह, इसके आते ही मुझे यहां से उठना पड़ गया।" ध्रुव दबी आवाज़ में ये बोलता हुआ अपना सामान नए डेस्क से उठता है।
"परेशान ना करे.. करता ही क्या होगा ये, सारा दिन बैठ कर बस वेदर फोरकास्ट ही देखता होगा, अजीब इंसान।"
निया भी ध्रुव के पीछे और खिड़की के साइड वाले अपने डेस्क पे समान रखते हुए खुद से बोली।
"अब दोनो खिड़की वाली सीट हो गई है, तो बाकी भी देख लेते है, की कौन कहां बैठेगा," चंचल बोली। और चंचल और सुनील दोनो लग गए, सब को इधर उधर करने के काम में। सब की सीट तय करने के बाद, हमेशा लड़ने वाले सुनील और चंचल के लिए बस एक दूसरे के साथ वाली सीट बची थी।
"मैं यहां बैठना तो नहीं चाहता, पर तुमसे और बहस करने की हिम्मत नहीं है मेरी" सुनील बोला।
"मेरा भी कुछ यही हाल है बस।" चंचल ये बोलते हुए, सुनील की साथ वाली सीट पे बैठते है।