Swarn mudra aur Businessman in Hindi Fiction Stories by Shakti Singh Negi books and stories PDF | स्वर्ण मुद्रा और बिजनेसमैन - भाग 7

Featured Books
  • ડાન્સિંગ ઓન ધ ગ્રેવ - 2

    સ્વામી શ્રદ્ધાનંદની ખલીલી પરિવારમાં અવર જવરના સમયે ઇરાનની રા...

  • horror story

    હવે હું તમને એક નાની ભયાવહ વાર્તા સાંપડું છું:એક ગામમાં, રાત...

  • ઢીંગલી

    શિખા ને ઉનાળાનું વેકેશન પડ્યું હતું, તે હવે ચોથા ધોરણમાં આવવ...

  • હમસફર - 18

    વીર : ( શોકડ થઈ ને પીયુ ને જોવે છે) ઓય... શું મુસીબત છે ( એ...

  • ફરે તે ફરફરે - 12

    ફરે તે ફરફરે - ૧૨   એકતો ત્રણ ચાર હજાર ફુટ ઉપર ગાડી ગોળ...

Categories
Share

स्वर्ण मुद्रा और बिजनेसमैन - भाग 7

राजेश एक हट्टा -कट्टा, लंबा-चौड़ा, गोरा -चिट्टा सुंदर सा युवक है. राजेश एक स्पर्म डोनर है. राजेश के स्पर्म डोनेशन से लगभग डेढ़ सौ बच्चे पैदा हुए हैं. राजेश ने अभी शादी नहीं की है. उसे शादी की जरूरत भी नहीं है. स्पर्म डोनेशन से वह काफी कमा लेता है. वह ठाट बाट से रहता है.


एक दिन एक 18 बरस का लड़का उसके पास आया. उसने राजेश को अपना जैविक पिता बताया. राजेश ने डीएनए जांच करवाई तो पता चला कि उसके स्पर्म डोनेशन से यह लड़का भी पैदा हुआ था. राजेश को उस लड़के से लगाव हो गया और वह उसी के साथ रहने लग गया.



फेरी वाली



वह फेरी वाली थी. मैंने उससे उसका नाम पूछा तो उसने बताया कि पूनम. उसके बाद सुंदर-सुंदर कपड़े थे. वह फेरी वाली मुझे बहुत पसंद थी.


लंबा कद, सुगठित शरीर, गोरा रंग और सुंदर चेहरा उसकी सुतवां नाक, लंबे - लंबे बाल, बड़ी - बड़ी आंखें, सुंदर ओंठ मुझे बहुत अच्छे लगते थे. मैं मन ही मन उससे प्यार करता था. लेकिन कभी भी डर के कारण मेरे मुंह से आई लव यू उसके लिए नहीं निकल पाया.


आज वो फिर नये - नये सुंदर कपड़े लेकर मेरे आंगन में बैठी है. उससे मैंने भी कुछ शॉर्टस, कुछ पर्दे और कुछ बेडशीट व कंबल - रजाई आदि खरीदे. मैंने उसे पेमेंट कर दिया. वह बहुत खुश हुई. उसकी खुशी देखकर मेरा मन भी अंदर से बहुत खुश हुआ. असल में सच्चा प्यार वह है जो अपने प्यार की खुशी को देखकर खुश हो; अपने स्वार्थ के लिए नहीं.


अगली बार वो आएगी तो मैं अपने मोहल्ले के गरीबों के लिए भी कुछ कपड़े उससे खरीद लूंगा. इससे वह भी खुश हो जाएगी और गरीब भी खुश हो जाएंगे. और इन दोनों की खुशी देखकर अंदर ही अंदर मेरा मन भी प्रसन्न हो जाएगा.


जय महादेव.








अंडमान का खतरनाक द्वीप

मैं अपने छोटे से जहाज में अकेले बैठकर अंडमान निकोबार की तरफ चल पड़ा. कुछ दिन के सफर के बाद में अंडमान निकोबार पहुंच गया. मैंने एक निर्जन द्वीप में अपना जहाज रोक दिया. उस निर्जन द्वीप में मैंने अपने जहाज की रिपेयरिंग आदि की और कुछ आवश्यक वस्तुएं उसमें भरी.


इसके बाद मैं उस खतरनाक द्वीप की ओर चल पड़ा. जहां पर एक जंगली कबीला 60000 सालों से आबाद है. यह कबीला बाहर की दुनिया से कटा हुआ है. यहां के स्त्री-पुरुष लगभग नग्न ही रहते हैं. यह आधुनिक सभ्यता से बहुत दूर है. इनकी संख्या लगभग 300 के करीब थी.


मेरे वहां पहुंचते ही उन खतरनाक लोगों ने मुझ पर तीरों से हमला बोल दिया. लेकिन मैं फाइबर का मजबूत कवच पहना हुआ था. ये कवच मैंने खुद अपनी लैब में तैयार किया था. इस कवच के कारण उनके तीरों का मुझ पर कुछ भी असर ना हुआ. मैं आगे बढ़ता ही गया.


अब वह मुझसे मल्ल युद्ध करने लगे. लेकिन मैंने अपनी दोनों बाहों पर आधुनिक स्टील के बाजू चढ़ा रखे थे. जिसके कारण वे सभी मल्ल युद्ध में भी मुझ से पराजित हो गये.


उन्होंने मुझे अपना सरदार घोषित कर दिया. अब मैं उनके बीच ही रहने लगा. मैंने उन्हें खेती-बाड़ी करनी सिखाई. उन्नत तरीके से शिकार करना सिखाया. आधुनिक ज्ञान-विज्ञान सिखाया. नये शहर बनाने सिखाए. देखते-देखते कुछ ही वर्षों में वह सब आधुनिक हो गए.