‘मेटावर्स’ का ज़माना
मनुष्य पहले सोचता है-फिर उसी सोच को करने में जुट जाता है। इससे आविष्कार होने लगते हैं। इसी कड़ी में फेसबुक के मुखिया मार्क जुकरबर्ग ने ‘मेटावर्स’ बनाने की बात की है। है न कमाल की बात! ऐसा लगता है कि ‘कल्पना’ आज के समय में ‘ज्ञान’ से अधिक महत्वपूर्ण है। पहले हमारे देश में भी महर्षि धौम्य आदि गुरूजी आरुणि जैसे शिष्यों को उसकी कर्मठता देखकर योग्यता का प्रमाणपत्र दे देते थे। बाद में इसमें गिरावट का दौर चला। आज के समय में हमारे इस महान देश में किसी-किसी परीक्षा के परिणाम को बताने के लिए पांच वर्ष लग जाते हैं। वहीँ पश्चिम के वैज्ञानिक अभी एक आभासी दुनिया में लग गए हैं। इस दुनिया के निर्माण के लिए करीब-करीब दस हजार लोगों की नियुक्ति की जायेगी। इन दस हजार लोगों के योगक्षेम की व्यवस्था भी हो गयी। ये सारे कर्मी अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल एक आभासी दुनिया ‘मेटावर्स’ बनाने के लिए करेंगे। बात ऐसी है कि ‘फेसबुक’ से सामाजिक मुद्दों को काफी करीब से जानने और उससे जूझने के बाद मार्क जुकरबर्ग ने बहुत कुछ सीखा। अतः उसी सीखे हुए विचारों से अब एक नया अध्याय ‘मेटावर्स’ के रूप में बनाने की सोच रहे हैं। वैसे यह विचार ‘एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति’ वैदिक है – ऐसा लगता है। लेकिन खबर यह आ रही है कि यह विचार नील स्टीफेंसन के उपन्यास ‘स्नो क्रैश’ से लिया गया है। यह एक आभासी वातावरण है। महज स्क्रीन देखकर एक अलग दुनिया में हम चले जायेंगे। जहां हम लोगों से वर्चुअल रियलिटी हेडसेट, आग्युमेंट रियलिटी चश्में, स्मार्टफोन एप आदि के जरिए जुड़ सकेंगे, गेम खेल सकेंगे, शॉपिंग कर सकेंगे और सोशल मीडिया आदि का इस्तेमाल कर सकेंगे। मेटावर्स में आभासी रूप से वो सारे काम कर सकेंगे जो आमतौर पर हमलोग करते हैं। बात ऐसी है कि हमलोग धर्मों के झगडे से आगे बढ़ ही नहीं पाते हैं। अपने बीते पराक्रम को याद करते रहते हैं। ‘हम क्या थे’ – इसी दुनिया में अभी भी हैं। इससे आगे नहीं बढ़ पाए है। मेटावर्स भले ही आज अचानक से चर्चा में आया है लेकिन यह काफी पुराना शब्द है। भारतीय धर्म-दर्शन ही आभासी विज्ञान पर है। नारदजी पलक झपकते ही प्रकट हो जाते थे। यह तकनीक ही ‘मेटावर्स’ थी। हमलोग नारदजी के ‘मनोगति’ के बारे में बताते हैं। लेकिन नारदजी ने यह ‘मनोगति’ कैसे पायी होगी – इसके लिए हमारे वैज्ञानिक कार्य नहीं करते हैं। अब चीन के वैज्ञानिक इसी ‘मेटावर्स’ के चीनी संस्करण पर कार्य करने लग जायेंगे। हमारे वैज्ञानिक इस परियोजना पर काम करने के लिए ‘पारिश्रमिक’ के मोलभाव में लग जायेंगे। हमारे देश की सरकार विदेशी मुद्रा के आगमन से प्रसन्न हो जायेगी। आज मुद्रा भी आभासी हो गयी। बाजार आभासी हो गया। प्रमाणपत्र भी आभासी हो गए। नेतागण भी आभासी भाषण देते हैं। कोरोना महामारी के समय हमलोगों ने बैठकें भी आभासी आयोजित की तथा बैठकों में शामिल हुए। दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है और हमलोगों को इसके अनुकूल कार्य करना होगा। अब इस मेटावर्स के खतरे भी होंगे। इसे उठाने के लिए भी मनुष्य जाति को तैयार रहना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि इंटरनेट को चलाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा प्राकृतिक संसाधनों से ही प्राप्त होती है। प्रकृति ने प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा में दिए हैं। अतः इन प्राकृतिक संसाधनों की समाप्ति के बाद सार्वजानिक रूप से गंभीर नैतिक, पर्यावरणीय, वित्तीय एवं ऊर्जा की समस्या उत्पन्न होगी। मनोरोगियों की संख्या में वृद्धि अवश्य होगी। साथ ही हो सकता है कि आने वाले समय मे इसी तकनीक की वजह से अपराध बहुत अधिक बढ़ जाए तथा उस पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाए। अपराध के हद से अधिक बढ़ जाने से यही तकनीक कहीं मानव सभ्यता के पतन का कारण न बन जाए।