रात का सन्नाटा छाया हुआ था ।
अमावस के बाद वाली रात्रि थी तो अंधेरा ज्यादा भयावह लग रहा था । ओर उसमे झींगुरो की आवाज उस माहौल को तंग कर रही थी।
शारदा अपने घर के वरंडे के पास बंधे जूले के पास बैठी हुई थी ।
वो अनिमेष झूले को देखे जा रही थी।
वहा
जब मनोहर ने करवट ली तो देखा शारदे नही थी वो घबराकर अपने बेड से उठ कर बाहर आ गया।
उस ने आवाज लगाई शारदा ओ सारदा पर कोई उत्तर नही आया।
तभी उसकी नजर झूले के पास बैठी शारदा पे गई। वो दौड़कर वहा गया देखा वो रो रही थी।
मनोहर ने कहा क्या हुआ क्यु रो रही हो।
शारदा ने कहा क्या आपको तकलीफ नही उसके जाने से?
मनोहर वो हमारा था ही नही तो तकलीफ कैसी। ओर तुम किस के लिए अपना जी जला रही हो चलो देर हो गई है । मुझे कल नोकरी करने भी जाना है।
हम दोनो का पेट जो भरना है।
शारदा ने अपने आंसुओ को पोछा वो अपने पति की ओर देख ने लगी फिर एक लंबी आह भरी ओर अपने कमरे मै आके सो गई।
पर मनोहर की नींद हराम हो गई थी उसे छे महीने पहेले की सारी बाते याद आ गई।
छे साल पहेले
मनोहर का बेटा हर्षित आज जलदी घर आ गया था क्यु की वो अपने पापा ओर मा से कुछ बातचीत करना चाहता था
मनोहर क्या हुआ बेटा आप आज जल्दी घर आ गए।
हर्षित ने कहा मा कहा है?
अरे आ रही हु तेरी पसंद की आलू पूरी बना रही थी शारदा ने कहा ।
हर्षित ने कहा मे शादी कर रहा हु।
मनोहर और शारदा एक साथ चौंके ।
मनोहर जेसे टूट गया था उसने खूद को संभाला ओर फिर पूछा क्या कहा तुम ने ?
जो आपने सुना पापा हर्षित ने जवाब दिया।
मनोहर ने कहा बेटा तेरी शादी रजनी के साथ तय हुई है दो महीने बाद शादी है ।
मे समधी जी को क्या जवाब दुंगा ओर समाज मे हमारी नाक कट जायेंगी हुक्का पानी बंध कर देगें सब हमारा ।
हर्षित वाह पापा आपको मेरी नही समाज की पडी है। क्या बात है, ओर वो जोर जोर से ताली बजाने लगा ।
शारदा ने कहा पर बेटा सब कुछ तय होने के बाद ।
उस लड़की से शादी कोन करेगा हाय लगे गी हमे उसने उदास होतेहुए कहा ।
देखो मा आप हा कहो या ना पर ये शादी होकर रहेगी अब आप अपने बेटे के लिए क्या करते हो वो मे देख ना चाहता हुं ।
दोनो ने अपने बेटे को बोहोत मनाने की कोशिश की पर वो टस से मस नही हुआ।
मनोहर ने ने अपने समधी जी को कोल कीया सारी बात बताई ।
वो भी बेटी के बाप थे सबकुछ तय होने के बाद कोई शादी को फोक करे वो केसे चलाते।
बोहोत कहा सुनी हुई मनोहर ने अपनी पघडी उतार कर सबके साम ने रखी माफी मांग कर मुआवजा भरा।
पर सारे समाज मे थु थु हो गई थी
पर उन्हो ने अपना मन मनालीया की
जो कीया वो अपने बेटे की खुशी के लीये कीया।
बेटा शादी कर के बहु लाया शुरुआत मे सब कुछ अच्छा रहा पर एक दीन हर्षित आया ओर मनोहर को कहा पापा मे शहर जा रहा हु नीती के साथ ।
पर बेटा यहा तेरी जोब तो अच्छी मनोहर ने कहा।
हर्षित ने कहा पापा वहा जाके मे बिज़नेस कर ना चाहता हु।
सब सेट होने के बाद आप लोगो को बुला लुंगा ।
शारदा ओर मनोहर ने भारी मन से उन्हे विदा कीया।
शुरुआत मे रोज फोन आता था फीर दो दीन फीर वीक मे एक बार फिर महीने मे एक बार ओर अब फोन आना ही बंध हो गए थे आज छे साल हो गए थे ।
धक्का तो तब लगा जब पता चला गांव की सारी जमीन हर्षित ने खुद के नाम करवा ली थी।
जीस बेटे की खातिर ईतना कुछ कीया वो उन्हे बुढापे मे अकेला छोड़कर चला गया था।
मनोहर ने अपने आंसुओ को रोका नही बहे ने दीये।
तभी शारदा ने अपने पल्लु से मनोहर के आंसुओ को पोछा ।
मनोहर ने कहा तुम सोई नही।
आप भी कहा सोए।
मनोहर हमारी परवरिश मे सायद कोई कमी रही होगी वरना ये........ वो बोलते बोलते रुक गया।
शारदा ने कहा ओलादे एसी होती है ये पता होता तो मे कभी माँ ही ना बनती।
मनोहर ने उसे संभालते हुए कहा ;कोई बात नही जो हुआ वो हम बदल नही सकते ।
ओर हमे किसी की जरूरत नही हम दोनो एक दूसरे के लिए काफी है।
ओर दोनो आसमान की तरफ देख ने लगे।
ओर तब ही रेडियो मे गाना बज रहा था जो जेसे मनोहर और शारदा के लिए बना था।
ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
फूल खिलते हैं, लोग मिलते हैं
फूल खिलते हैं, लोग मिलते हैं मगर
पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं
कुछ लोग जो सफ़र में बिछड़ जाते हैं
वो हज़ारों के आने से मिलते नहीं
उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
ज़िन्दगी के सफ़र में ...
आँख धोखा है, क्या भरोसा है
आँख धोख है, क्या भरोसा है सुनो
दोस्तों शक़ दोस्ती का दुश्मन है
अपने दिल में इसे घर बनाने न दो
कल तड़पना पड़े याद में जिनकी
रोक लो रूठ कर उनको जाने न दो
बाद में प्यार के चाहे भेजो हज़ारों सलाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
ज़िन्दगी के सफ़र में ...
पूर्ण (समाप्त)