NITISHASTRA KI DIVIDHA in Hindi Motivational Stories by Anand M Mishra books and stories PDF | नीतिशास्त्र की दुविधा

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नीतिशास्त्र की दुविधा

नीतिशास्त्र की दुविधा

मानव कभी-कभी दुविधा वाली स्थिति में फंस जाता है। मन कुछ सोच नहीं सकता है। नीतिशास्त्र सामने आ जाता है। ऐसे ही एक घटना का जिक्र करना आवश्यक है।

विद्यालय में स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिवस काफी धूमधाम से मनाया जाता है। ध्यान रहे कि स्वामी विवेकानंदजी के जन्मदिन को भारत सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में भी घोषित किया गया है। आवासीय विद्यालय होने के कारण छात्रावास में रहनेवाले बच्चे काफी पहले से अपने माता-पिता के आने का इन्तजार करते हैं। साथ ही विद्यालय विभिन्न प्रकार की गतिविधियों से गुलजार रहता है। छात्रों के लिए अनेक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। गायन, नृत्य, चित्रकारी आदि की प्रतियोगिताएं होती हैं। बच्चों का उत्साह चरम पर रहता है।

उसी कड़ी में विद्यालय की सुझाव-पेटिका में बच्चों द्वारा फोटोग्राफी की प्रतियोगिता आयोजित कराने की बात कही गयी थी। फोटोग्राफी की प्रतियोगिता विद्यालय में आयोजित नहीं की जा सकती है- इसे विद्यालय की प्रार्थना-सभा में बच्चों को बता दिया गया था। इसका कारण यह बताया गया कि फोटोग्राफी की प्रतियोगिता आयोजित कराने के लिए सभी बच्चों को कैमरा रखने की अनुमति देनी होगी।

वार्षिकोत्सव के एक दिन पहले दोपहर लगातार बारिश हुई। एक नन्ही बच्ची बारिश के रुकने का इंतजार कर रही थी। उसे मौसम के साफ़ होने का इंतजार था। उसे खेलने के लिए बाहर जाना था। ध्यान रहे कि बच्चों को खेल की घंटी बहुत अच्छी लगती है। अचानक बादलों ने बरसना बंद कर दिया और सूरज भगवान गगन में चमकने लगे। सूर्य की किरणों का आकाश में लटकी हुई वर्षा की बूंदों पर प्रिज्मीय प्रभाव पड़ा तथा आसमान में एक इंद्रधनुष उभरा! उस बच्ची ने पहले कभी इंद्रधनुष नहीं देखा था। वह छात्रावास में रखे अपने कैमरे को पकड़ने के लिए अंदर भागी और एक झटके में बाहर निकल आयी। उसकी राहत के लिए, आकाश में इन्द्रधनुष-रूपी चमत्कार अभी तक गायब नहीं हुआ था। इन्द्रधनुष उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा था। उसने ध्यान से इसकी एक तस्वीर क्लिक की।

बस वह बच्ची यहीं पर मात खा गयी। उस बच्ची के पास कैमरा है - यह बात बिजली की तरह पूरे छात्रावास में फ़ैल गयी। कैमरा रखे प्रकृति के उस भव्य-दिव्य रूप को अपने कैमरे में कैद करने वाली बच्ची की शिकायत प्राचार्य के पास पहुँच गयी।

उसी वक्त प्राथमिक कक्षा में पढने वाली उस नन्ही बच्ची को प्राचार्य द्वारा विद्यालय के कार्यालय में बुलाया गया। बच्ची काफी डरी-सहमी प्राचार्य-कक्ष में उपस्थित थी। शायद उस बच्ची को फोटोग्राफी का शौक था। बच्ची की उम्र सात-आठ साल रही होगी। बच्ची को उसके पिता ने उसके शौक से प्रभावित होकर एक डिजिटल कैमरा उपहार में दिया था।

छात्रावास के नियम के अनुसार डिजिटल कैमरा को रखना वर्जित था। हो सकता है कि सामान के साथ वह कैमरा उस बच्ची के साथ आ गया हो। कैमरे को देखने के बाद पाया गया कि उसमे प्रकृति की तस्वीर ली गयी थी। पहाड़ों, फूलों, तितलियों, झरनों तथा प्रकृति से ही संबंधित छायाचित्रों से कैमरा भरा पड़ा था। बच्ची से पूछा तो उसने बताया कि इन सब चित्रों की छायाकारी उसने की थी। उसकी कल्पनाशीलता से प्राचार्य महोदय चकित थे। इतनी छोटी बच्ची प्रकृति के रहस्यों को कितनी बारीकी से समझ रही थी। ढलते हुए बादलों की तस्वीर, सूर्योदय-सूर्यास्त की तस्वीर, वर्षा की बूंदों की तस्वीर, इन्द्रधनुष आदि की तस्वीर उस कैमरे में कैद थी। इन्द्रधनुष की तस्वीर तो एकदम मनमोहक थी। कितनी ही तत्परता के साथ उस बच्ची ने फोटो को लेने के लिए मेहनत की होगी। साथ ही कैमरे के बैग में एक पत्र मिला जो उसने अपनी माँ को लिखा था। पत्र में उसने माँ को विद्यालय में फोटोग्राफी प्रतियोगिता आयोजित करवाने के लिए प्राचार्य महोदय से अनुरोध कराने की बात कही थी।

सबसे बड़ी बात यह थी कि अब नीतिशास्त्र या विद्यालय के नियम के अनुसार कैमरा रखने की अनुमति नहीं दे सकते थे। एक बच्चे को यदि कैमरा रखने की अनुमति देते हैं तो छात्रावास के नियमों का अनुपालन कराने में परेशानी होती।

काफी बुझे मन से प्राचार्य महोदय ने बच्ची के माता-पिता के बुलाने का आदेश जारी कर दिया। बच्ची के माता-पिता ने नियमानुसार क्षमा-याचना की। उस डिजिटल कैमरे को लेकर बच्ची के माता-पिता चले गए। प्राचार्य को ऐसा लगा जैसे किसी छायाकार की ह्त्या असमय कर दी गयी हो।