"आप कानपुर क्यो गयी थी?'
"मेरी सहेली रहती है।उससे मिलने गयी थी।"
अंधेरे को चीरती हुई ट्रेन आगे बढ़ी जा रही थी।।कुछ यात्री बातो में लगे थे तो कुछ सो रहे थे।माया के बदन से उठती भीनी भीनी खुश्बू उसे मदहोश कर रही थी।
"कल सन्डे है।कल तो आपकी छुट्टी होगी।'
"हा"
"कल मैं भी दिल्ली में रहूंगा।होटल नटराज।आप वहाँ आ जाये।कल का दिन साथ गुज़ारेंगे।"
",क्या कोई विशेष प्रोग्राम है?"
"आप साथ होगी तो प्रोग्राम तो विशेष ही होगा।"उसने अपनी नज़र माया के चेहरे पर जमा दी थी।अब भी वह उदास लग रही थी।उसकी उदासी में भी कशिश थी।उसे उस पर प्यार आ रहा था।कोई और जगह होती तो वह उसे बाहों में भर लेता।उसकी बात सुनकर माया के चेहरे पर अचानक चमक आ गयी थी।आंखों से ऐसा लग रहा था मानो दीप जल उठे हो।माया उसकी तरफ देखते हुए बोली,"मैं भी तो सुनु आखिर प्रोग्राम क्या है?"
"तुम सुबह आ जाओ।ब्रेक फ़ास्ट करके होटल से चलेंगे।मैं टेक्सी बुक कर लूंगा।कुतुब मीनार,इंडिया गेट,बिड़ला मन्दिर,चिड़ियाघर घूमेंगे।'
"दिल्ली आते रहते हो।ये चीजें तो आपने देखी होगी?"
"अकेले घूमने का मन नही करता।इसलिए कभी नही गया।"उसने माया से झूँठ बोला था।न जाने कितनी लड़कियों से वह झूँठ बोल चुका था।न जाने कितनी बार वह नई नई लड़कियों के साथ इन जगहों को देख चुका था
"।
"मतलब पूरे दिन बिजी रखोगे।फिर घर कब लौटूंगी?"
"लौटने की क्या जल्दी है?"
वह अब तक न जाने कितनी लड़कियों को अपने जाल में फंसा चुका था।उसके दोस्तों ने उसे लेडी किलर का नाम दे रखा था।सच था।आज तक जितनी भी औरते उसे पसंद आयी उनके दिल से तन तक जा पहुँचा था।वह इस सफाई से दाना डालता था कि औरत खुद ही उसकी तरफ खिंची हुई चली आती और खुद को समर्पित कर देती।
उसने औरत को कभी ज्यादा महत्व नही दिया था।वह औरत को गले मे घण्टी की तरह नही बांधना चाहता था।इसलिए अभी तक कुंवारा था।वह उन लोगो मे से था जो औरत को पोशाक की तरह बदलते है।माया को अपनी तरफ आकर्षित होते देखकर उसने उसे जाल में फंसाने के लिए दाना फेंका था,"शाम को कनाट प्लेस से कोई सुंदर सा गिफ्ट आपके लिए खरीदेंगे।अच्छी सी पिक्चर देखेंगे और रात को---
"रात को क्या?"उसकी बात सुनकर वह बोली।
"होटल के कमरे में एक बिस्ततर पर हम तुम---उसने माया की प्रतिक्रिया जानने के लिए बात को अधूरा ही छोड़ दिया था।
उसकी बात सुनकर माया नाराज नही हुई बल्कि उसकी तरफ देखकर मुस्करायी थी।मुस्कराहट ने उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा दिया था।उसकी मुस्कराहट माया की मौन स्वीकृति भी थी।
ट्रेन पटरियों पर दौड़ी चली जा रही थी।एक के बाद एक स्टेशन पीछे छूटते जा रहे थे।
और। आखिर ट्रेन। दिल्ली पहुंच गयी थी।यह ट्रेन का अंतिम पड़ाव था।यात्री अपना अपना सामान उठाकर ट्रेन से नीचे उतरने लगे।उसने अपना सामान उठाने के बाद माया का भी सुटकेश उठाया तो वह बोली,"आप रहने दीजिए"।आप थक जाएंगे।"
"आप जैसी हसीना साथ हो तो थकान कैसी?"
और उसने माया को सुटकेश नही उठाने दिया।वे दोनों स्टेशन के बाहर आ गए थे।
"आप कहे तो आपको पहुंचा दू '
"नो थैंक्स।मैं चली जाऊंगी।"
"ठीक है लेकिन कल आ रही हो न होटल।"उसने माया से जुदा होने से पहले फिर पूछा था
"