Muje tum yaad aaye - 5 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | मुझे तुम याद आएं--भाग(५)

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मुझे तुम याद आएं--भाग(५)

कजरी और सत्यसुन्दर ने मिलकर फूल तोड़े,फूल तोड़ने के बाद कजरी बोली....
अच्छा! तो बाबू ! मैं चलती हूँ...
कल आओगी ना! सत्या ने कजरी से पूछा।।
कह नहीं सकती,कजरी बोली।।
लेकिन क्यों? सत्या ने पूछा।।
अच्छा,कोशिश करूँगी आने की,कजरी बोली।।
और दोनों साथ साथ बगीचें से बाहर निकले और अपने अपने रास्तों पर चल पड़े....
सत्या फार्महाउस आया और मोटर में बैठकर घर की ओर रवाना हो गया और इधर कजरी भी धीरे धीरे चलकर घर के करीब पहुँची ही थी कि उसे रास्ते में बाँकें मिल गया....
कहाँ गईं थी कजरी रानी? बाँकें ने पूछा।।
तुझसे मतलब,कजरी बोली।।
तो किसे मतलब होगा?बाँके बोला।।
चल हट मेरे रास्ते से ज्यादा दिमाग मत खा नहीं तो पत्थर चलाकर मारूँगी,कजरी बोली।।
ऐसा जुलुम ना करो कजरी रानी!काहे इत्ता चिढ़ती हो मुझसे,बाँके बोला।।
तेरी हरकतों से नफरत है मुझे,तू गाँव की सभी लड़कियों को छेड़ता फिरता है,कजरी बोली।।
सुन्दर लड़कियों का ख्याल रखना ही तो मेरा काम है,बाँके बोला।।
मेरे मुँह मत लग ,चला जा यहाँ से नहीं तो मुझसे बुरा कोई और ना होगा,कजरी बोली।।
मैं तुमसे प्यार भरी बातें करने तुम्हारे पास आता हूँ और तुम हो कि इतना भड़कती रहती हो,बाँके बोला।।
तू किसी के प्यार के काबिल नहीं है तेरी हरकतें देखकर ही तो मेरा जी जलने लगता है,कजरी बोली।।
तभी वहाँ से काशी काका की पत्नी सिमकी गुजरी ,उसने देखा कि बाँके ,कजरी को छेड़ रहा है तो बाँके से बोली....
क्यों रें! घर नहीं जाता क्यों शरीफ़ लड़कियों के पीछे पड़ा रहता है।।
तो क्या करूँ? सिमकी काकी! कबसे कजरी से कह रहा हूँ कि मुझसे ब्याह कर लें,रानी बनाकर रखूँगा लेकिन मानती ही नहीं,बाँके बोला।।
भला !तुझ जैसे लफंगे से कौन ब्याह करना चाहेगा? कजरी बोली।।
लेकिन मैं तो करना चाहता हूँ ना तुझसे ब्याह,बाँके बोला।।
ओ...बाँकें! तुझे और कोई काम धन्धा नहीं है क्या ? चुपचाप जाकर अपना काम कर,सिमकी काकी बोली।।
हाँ! जाता हूँ.....जाता हूँ...,मुझे भी ऐसी घमंडी लड़कियों से बात करने का कोई शौक नहीं है,बाँके अपनी साइकिल पर सवार होकर जाते हुए बोला।।
तो फिर क्यों बात करता है मुझसे,कजरी बोली।।
रहने दे कजरी! इस लफंगे के मुँह मत लग,कहाँ से आ रही है?ये बता,सिमकी काकी ने पूछा।।
बस,बगीचें में गई थी फूल लानें,कजरी बोली।।
अच्छा! चल मैं घर छोड़ दूँ,सिमकी बोली।।
नहीं , मैं चली जाऊँगी,काकी तुम चिन्ता मत करो,कजरी बोली।।
ठीक है तो चली जा! लेकिन ध्यान से जाना,सिमकी बोली।।
हाँ!काकी ये तो बताओ ,अब तबियत कैसी है तुम्हारी? काका आए थे तो बता रहे थे,कजरी बोली।।
अब ठीक हूँ,इसलिए तो कुएँ पर पानी लेने जा रही थी,सिमकी बोली।।
अच्छा, ये तो अच्छी बात है काकी कि तुम्हारी तबियत ठीक हो गई, मैं अब जाती हूँ और इतना कहकर कजरी अपने घर चली आई...
उधर सत्या भी घर पहुँच गया लेकिन आज उसके चेहरे पर मुस्कुराहट ही थी,उसने खुशी खुशी रात का खाना खाया ,माँ बाबूजी से बातें की और अपने कमरें में सोने के लिए आ गया,आँखों में कजरी के सपनें सजाते सजाते उसे कब नींद आ गई उसे पता ही नहीं चला।।
सत्या का बगीचें जाने का सिलसिला यूँ ही बरकरार रहा,जमीन का सौदा भी जल्द हो गया,सेठ जी ने भूमिपूजन का दिन भी मुकर्रर करवा लिया,भूमिपूजन का दिन था,सेठ जानकीदास ने भूमिपूजन वाली जगह पर बहुत बड़े भोज का आयोजन किया और उस गाँव के सभी लोगों को आमंत्रित किया,शहर से भी उन्होंने कुछ अपने जान पहचान वालों को बुलाया,सेठ बद्रीनाथ भी अपनी बेटी अन्जना के साथ पधारें,
गाँव वालों को वहाँ देखकर उनकी बेटी मुँह बनाने लगी और कल्याणी से बोली....
ये सब क्या है आण्टी? इन गँवार लोगों को यहाँ क्यों बुलाया है?
बेटी! ये अस्पताल भी तो इन्हीं लोगों के लिए बनवाया जा रहा है तो इनको तो इस शुभ कार्य में शामिल करना ही पड़ेगा,कल्याणी बोली।।
आण्टी! ये हाँस्पिटल शहर में भी तो बनाया जा सकता था,ये भिखारी इलाज का पैसा कैसें दे पाएगें? अन्जना बोली।।
बेटी!इस अस्पताल में इलाज मुफ्त में होगा,कल्याणी बोली।।
मुझे तो ना ये लोंग पसंद आए और ना ये जगह ,अन्जना बोली।।
तभी पीछे खड़े सत्यसुन्दर ने कहा.....
मोहतरमा ! अगर आपको ये जगह और लोंग पसंद नहीं आए तो फिर यहाँ क्यों खड़ी हैं,आप जा सकतीं हैं।।
ये आप किस तरह से बात कर रहे हैं,मिस्टर सत्यसुन्दर! अन्जना बोली।।
और आप! क्या आपका तरीका बिल्कुल सही है? सत्यसुन्दर बोला।।
गो टू हेल! मैं अभी यहाँ से जाती हूँ,अन्जना बोली।।
तो जाइए,किसने रोका है आपको,सत्या बोला।।
दोनों की बात सुनकर कल्याणी बोली.....
रहने दे बेटा! क्यों बहस करता है? बेटी अन्जना ! ये तो नादान है,इसकी बातों को दिल से मत लगाओ,ये तो ऐसा ही है,कल्याणी बोली।।
ठीक है आण्टी ! अगर आप कहतीं हैं तो मैं रूक जाती हूँ,अन्जना बोली।।
उन दोनों की बहस पीछे साथ में खड़ी सिमकी और कजरी भी सुन रहीं थीं,सत्या के विचार सुनकर कजरी बोली....
सच में काकी! सुन्दर बाबू! बहुत अच्छे इंसान हैं।।
अगर अच्छे ना होते तो गाँव में अस्पताल क्यों खोलते?सिमकी बोली।।
और ऐसी ही बातों के साथ,भूमि पूजन का भोज शाम तक समाप्त हो गया,थके हारे सेठ जानकीदास,कल्याणी और सत्या घर लौट आए....
तो कैसी लगी सेठ बद्रीनाथ की बेटी अन्जना? सेठ जानकी दास जी ने पूछा।।
बहुत ही बतमीज़,सत्या बोला।।
ये क्या कहते हो? जानकीदास चौंक कर बोले।।
सही तो कहता है,मैने ऐसी बदजुबान लड़की नहीं देखी,बात करने का ना तो उसे कोई सलीका है और ना ही लोगों की वो इज्ज़त करना जानती है,कल्याणी बोली।।
सच! ऐसा व्यवहार किया क्या उसने? सेठ जी ने कल्याणी से पूछा।।
हाँ! इससे अच्छी तो वो अन्धी कजरी है जो सिमकी के साथ आई थी,उस गैर पढ़ी लिखी लड़की में इतनी अकल तो है कि किससे कैसे बात करनी है?कल्याणी बोली।।
ये कजरी वही है ना ! रामाधीर की बिटिया,सेठ जानकीदास जी ने पूछा।।
हाँ,वही तो है,कल्याणी बोली।।
सत्या को ये सुनकर तसल्ली हुई कि कजरी की सादगी माँ को पसंद आई,क्योंकि कजरी के लिए जो भावनाएं उसके मन में थीं अब उसकी उन भावनाओं ने प्यार का रूप ले लिया लेकिन वो कजरी से ये बात कहने से डरता था कि कहीं कजरी मना ना कर दे क्योंकि वो बहुत स्वाभिमानी थी।।
कुछ ही दिनों के भीतर अस्पताल की नींव भी डल गई,गाँव के कई बेरोजगार लोगों को रोजगार मिल गया,वे अस्पताल में काम करते और उन्हें अच्छी और समय पर मजदूरी मिल जाती,चूँकि उन्हें पता था कि यहाँ उन लोगों का इलाज मुफ्त होगा तो वें अस्पताल के काम में मन लगाकर सहयोग भी करते थे,अब फार्महाउस ही पूरी तरह से सत्या का घर हो गया था,सिमकी काकी उसके लिए खाना बनाती थी,कभी कभी कल्याणी भी खाना लेकर अपने बेटे से मिलने आ जाती,अब सत्या अस्पताल की वजह से कजरी से भी कम मिलने जा पाता,तो कजरी अस्पताल ही जाती उससे मिलने और सत्या से कजरी का ज्यादा मेलजोल देखकर बाँके के मन में साँप लोटने लगते।।
अब सत्या किसी भी गाँववाले का खाना खाने से परहेज़ नहीं करता,गाँव वालों का उसके प्रति स्नेह देखकर वो मना नहीं कर पाता,अगर वो उसके लिए कुछ भी खाने के लिए लाते तो सत्या प्यार से खा लेता और सबसे ज्यादा तो उसे कजरी के हाथों की बाजरे की रोटी और प्याज की चटनी अच्छी लगती,कभी कभी सत्या भी सभी मजदूरों के लिए ढ़ेर सी मिठाई शहर से लेकर आता और उन सबमें बँटवा देता।।
सत्या और कजरी एक दूसरे को पाकर बेहद खुश थे,दोनों ही एक दूसरे को दिलोजान से चाहने लगें थे लेकिन कहने की हिम्मत दोनों में से किसी ने ना दिखाई।।
उधर सेठ बद्रीनाथ ने जानकीदास जी अपनी बेटी अन्जना के लिए रिश्ते की बात कही लेकिन सेठ जानकीदास जी बहाना बनाते हुए बोले....
वो तो अभी अस्पताल के काम में लगा हुआ है,एक बार अस्पताल का काम हो जाए तो फिर देखते हैं लेकिन सेठ बद्रीनाथ को लगा कि अच्छा लड़का कहीं हाथ से ना निकल जाएं तो उन्होंने अपनी बेटी अन्जना से कहा कि वो भी जरा अस्पताल का काम देख आया करें,इसी बहाने तुम्हारी करीबियाँ सत्यसुन्दर से बढ़ेगीं....
लेकिन अन्जना बोली.....
डैडी! मुझे डाक्टर सत्यसुन्दर में कोई इन्ट्रेस्ट नहीं है,मैं वहाँ धूल मिट्टी में जाकर क्या करूँगी? और जो इन्सान रात दिन मजदूरों से घिरा रहता हो,वो मेरे काबिल बिल्कुल नहीं है।।
ये कैसीं बातें करती है तू? तुझे पता है करोड़ो अरबो का वो इकलौता वारिस है,बेवकूफी मत कर ,उससे शादी करके तू राज करेगी....राज,सेठ बद्रीनाथ जी बोले।।
लेकिन वो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है,मैं उसके जैसी बिल्कुल भी नहीं बन सकती,अन्जना बोली।।
उसके जैसी नहीं बन सकतीं लेकिन उसके जैसी बनने का दिखावा तो कर ही सकती है,एक बार वो तेरी मुट्ठी में आ जाएं फिर वही करना जो तेरा मन करें,बद्रीनाथ बोले।।
आप कहते हैं तो कोशिश करके देखती हूँ शायद बात बन जाएं,अन्जना बोली।।
ये हुई ना बात,बद्रीनाथ बोले।।
और उस दिन के बाद अन्जना ने अस्पताल का रूख़ करना शुरू कर दिया....
एक दिन इसी तरह दोपहर के समय अस्पताल में खाने की छुट्टी हो चुकी थी,कजरी भी रामाधीर के लिए खाना लेकर पहुँची,तभी सभी मजदूरों ने सत्या से कहा कि.....
आइए...छोटे मालिक ! आप भी भोजन कर लीजिए,
सत्या बोला....
हाँ...हाँ...क्यों नहीं? मुझे भी आप लोगों के साथ खाना पसंद है,आखिर अब हम सब एक परिवार जैसे हो गए हैं।।
कजरी भी बोली....
जी ! सुन्दर बाबू! मैं भी आपकी पसंद की बाजरे की रोटी और प्याज की चटनी लेकर आई हूँ...
ये तो बहुत ही अच्छा हुआ,आज मेरा बाजरे की रोटी खाने का मन भी था....
तभी काशी बोला....
और ये खाना जो हम लाएं हैं,वो कौन खाएगा? सिमकी ने इतने प्यार से आपके लिए बनाया था....
अरे,ये भी खाऊँगा,मैं सबकुछ थोड़ा थोड़ा खाऊँगा,लेकिन किसी का दिल टूटने नहीं दूँगा,सत्या बोला।।
और सब ये सुनकर हँसने लगें....
वहीं उसी समय अन्जना पहुँची थी और अन्जना को देखकर सत्या बोला....
अरे,अन्जना ! तुम कब आईं? और बताओ कैसे आना हुआ?
बस अभी आई!ऐसे ही तुमसे मिलने चली आई थी लेकिन तुम यहाँ ये क्या कर रहे हो? अन्जना ने सत्या से पूछा।।
सबके साथ मिलकर खाना खा रहा हूँ,सत्या बोला।।
सत्या की बात सुन कर अन्जना बोली....
तुम इन लोगों के साथ ऐसा खाना खाते हो...
अरे,तो क्या हो गया?ये भी तो हमारी तरह इन्सान हैं,सत्या बोला।।
तुम इन मजदूरों को इन्सान कहते हों,अन्जना बोली।।
अन्जना ! तुम हद से आगें बढ़ रही हो,सत्या बोला।।
तुम इन लोगों के लिए मुझे आँखें दिखाते हो,अन्जना बोली।।
शुकर करो कि मैने तुम्हें थप्पड़ नहीं मारा,तुम्हारी इस गुस्ताखी के लिए,सत्या बोला।।
इतनी बेइज्जती! मैं अब एक पल भी यहाँ नहीं रूकूँगीं,अन्जना बोली।।
तो किसने रोका है? तुम जा सकती हो,सत्या बोला...
सत्या की बात सुनकर अन्जना आगबबूला होकर वहाँ से चली गई......

क्रमशः.....
सरोज वर्मा......