सत्या झोला लेकर बगीचें में पहुँचा,कुछ देर उसने पेड़ के नीचे बैठकर कजरी का इन्तज़ार किया लेकिन कजरी नहीं आई,जब कजरी नहीं आई तो उसने बड़े खराब मन से नींबू तोड़े और सोचा चलो कुछ देर और कजरी का इन्तज़ार कर लेता हूँ,सत्या इन्तज़ार करते करते थक गया लेकिन फिर भी उस दिन कजरी बगीचें में नहीं आई,तब निराश होकर सत्यसुन्दर फार्महाउस वापस आ गया,सत्या को देखकर काशी ने पूछा...
आ गए छोटे मालिक!
हाँ!काका! सत्या ने बड़े बोझिल मन से जवाब दिया।।
का हुआ छोटे मालिक! इत्ता उदास काहें दिख रहो हो,ज्यादा थक गए क्या? काशी ने पूछा।।
नहीं काका! ऐसी कोई बात नहीं है,सत्या बोला।।
ऐसा करो तुम तनिक आराम कर लो,हम तुम्हारे लिए छाछ लाते हैं,तुम्हें छाछ पीकर अच्छा लगेगा और इतना कहकर काशी छाछ लेने चला गया।।
इधर सत्या मन ही मन कुछ बड़बड़ाया...
ऐसा क्या हो सकता है जो वो ना आ सकीँ?कहीं उसकी तबियत तो खराब नहीं,लेकिन अभी तो गाँव के भीतर जाकर उसके बारें में पूछना ठीक नहीं रहेगा क्योंकि शाम होने की आई है,ऐसा करता हूँ कल गाँव जाकर उसके बारें में पूछता हूँ,
सत्या ये सब सोच ही रहा था कि काशी काका छाछ लेकर आ गए और सत्या से कहा....
छोटे मालिक! लीजिए छाछ पी लीजिए।।
ठीक है काका! इतना कहकर सत्या ने छाछ पी ली और काशी से बोला...
अच्छा! काका! अब मैं चलता हूँ,माँ इन्तज़ार कर रहीं होंगीं..
ठीक है छोटे मालिक! अब कब आना होगा? काशी ने पूछा।।
अब तो आना जाना लगा ही रहेगा,जमीन का सौदा पक्का होते ही अस्पताल बनने लगेगा तो मुझे फार्महाउस में ही आकर रहना पड़ेगा,सत्यसुन्दर बोला।।
ये तो बहुत अच्छी बात है,काशी बोला।।
और काकी कब तक आएगी ? सत्या ने पूछा।।
कल आ जाएगी शायद,काशी बोला।।
ठीक है तो कल मैं फिर से आऊँगा और जब भी आया करूँगा तो कुछ कुछ किताबें भी लाता रहूँगा,अस्पताल बनना शुरू हो जाएगा तो उसकी निगरानी के लिए मुझे यहाँ आकर रहना पड़ेगा तो यहीं रहकर पढ़ाई भी करनी होगी,सत्या बोला।।
ठीक है छोटे मालिक! तो कल हम आपका इन्तज़ार करेंगें,दोपहर के खाने पर,काशी बोला।।।
ठीक है और इतना कहकर सत्या अपनी मोटर में बैठ गया।।
शाम का वक्त....
सत्यसुन्दर ने अपनी मोटर बंगले के आगें रोकी और नींबू का झोला लेकर भीतर पहुँचा.....
क्यों रे? बड़ी देर कर दी,कल्याणी ने पूछा।।
हाँ,माँ! बगीचा घूमने में अच्छा लग रहा था इसलिए वहीं बैठा रहा थोड़ी देर और ये रहे आपके नींबू,सत्यसुन्दर ने कल्याणी से कहा।।
ठीक है जाकर रसोईघर में रख दें,कल इनका अचार बनाऊँगी,कल्याणी बोली।।
ठीक है माँ! इतना कहकर सत्यसुन्दर ने रसोई में नींबू रखें और अपने कमरें में जाने लगा तभी कल्याणी बोली....
जा जल्दी से हाथ मुँह धोकर आ,तेरे लिए चाय और मूँग दाल का चीला बनाती हूँ।।
ठीक है माँ! चाय थोड़ी कड़क बनाना,अदरक डालकर ,सिर में दर्द है,सत्या बोला।।
इसलिए तो कहती हूँ कि ज्यादा धूप में मत घूमाकर कर,धूप में घूमने से ही सिरदर्द हो गया होगा,कल्याणी बोली।।
नहीं माँ! धूप में घूमने से नहीं,ऐसे ही दर्द हो रहा है,सत्या बोला।।
अच्छा! तू हाथ मुँह धोकर आ ,चाय पीने के बाद तेरे सिर में तेल से मालिश कर देती हूँ,कल्याणी बोली।।
ठीक है माँ! और सत्या अपने कमरें में चला गया,
शाम का समय ऐसे ही ब्यतीत हो गया रात का खाना खाकर सत्या बिस्तर में गया लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी,वो कजरी के बारें में सोच रहा था ......
कजरी का बगीचें में ना आना उसकी नींद उड़ने का कारण था ,जब काफी देर तक सत्या को नींद नहीं आई तो वो एक उपन्यास उठाकर पढ़ने लगा,उपन्यास पढ़ते पढ़ते उसे नींद आ गई।।
सुबह हुई सत्या जागा लेकिन आज उसका मन सैर पर जाने का नहीं था,रात को देर से सोया था इसलिए शरीर में सुस्ती सी छाई थी,वो बिस्तर से नहीं उठा कुछ देर लेटा रहा.....
फिर उसे चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दी तो वो लाँन में आकर टहलने लगा,ओस की पारदर्शी बूँदें अभी पत्तियों पर लुढ़क लुढ़क कर खिलवाड़ कर रहीं थीं,गुलाब और चमेली के फूलों की महक ने उसके मन में एक अजब ताज़गी भर दी थी,अब उसे कुछ अच्छा महसूस हो रहा था,वहीं लाँन में टमाटर,हरी मिर्च ,धनिया और मूली के पौधें लगें थे,सत्या ने कुछ मूलियाँ उखाड़ी ,कुछ ताज़ा टमाटर भी तोड़े,कुछ धनिया के पत्ते और हरी मिर्च लेकर रसोई में गया और इन सब को अच्छी तरह साफ करके अच्छा सा सलाद बनाया,तब तक कल्याणी भी जाग कर रसोई में खटपट की आवाज सुनकर आ चुकी थी और सुबह सुबह सत्या को रसोई में देखकर बोली....
ये क्या कर रहा रे? आज सैर करने नहीं गया...
नहीं माँ! आज दिल नहीं किया,लाँन में टहलने चला गया था,वहाँ ताजी मूलियाँ और टमाटर देखें तो सोचा आप लोगों के लिए सलाद बना दूँ,सत्या बोला।।
और हाँ! सलाद में हरी धनिया के पत्ते,एक दो हरी मिर्च और नींबू का रस भी डाल देना तेरे बाबूजी को ऐसे ही पसन्द है,कल्याणी बोली।।
मैने ये सब डाल दिया है,बस नींबू का रस बाकी है वो भी डाले देता हूँ,सत्या बोला।।
तेरे बाबू जी आज खुश हों जाऐगें,कल्याणी बोली।।
चलो माँ! तुम चाय बना लो और नाश्ता मैं बनाता हूँ,देखना कितना जायकेदार और सेहदमंद नाश्ता बनाता हूँ,बाबूजी अपनी उँगलियाँ चाटते रह जाऐगे,सत्या बोला।।
कहीं गुस्सा हो गए तो,कल्याणी बोली।।
अरे,गुस्सा नहीं होंगें,बस तुम देखती जाओ,सत्या बोला।।
ठीक है तो मैं नहाने जा रही हूँ और तू भी तब तक नहाकर आजा,फिर साथ में नाश्ता करते हैं,कल्याणी बोली।।
ठीक है माँ और इतना कहकर सत्या भी चला गया,कुछ देर में सब नाश्ते की टेबल पर इकट्ठा हुए.....
आज तुम रसोई में नहीं ,टेबल पर हो तो नाश्ता कौन बना रहा है?सेठ जानकीदास जी ने कल्याणी से पूछा।।
जी आज तो आपके साहबजादे रसोई में हैं,आज का नाश्ता तो वही खिलाऐगें आपको,कल्याणी बोली।।
तब तो आज के नाश्ते का सत्यानाश! ना जाने क्या उबालकर लाने वाला है?सेठ जानकीदास जी बोले।।
कुछ तो भरोसा कीजिए उस पर,हो सकता है कुछ स्वादिष्ट बनाकर ले आए,कल्याणी बोली।।
अरे,खाने के मामलें में और उस पर भरोसा,वो तो मैं नाश्ता आने के बाद ही भरोसा करूँगा,जानकीदास जी बोले।।
और नाश्ता ना भी पसंद आए तो चुप करके खा लीजिएगा,ज्यादा मीनमेख मत निकालिएगा,कल्याणी बोली....
ठीक है और इतना कहकर सेठ जी ने सत्या को आवाज दी...
साहबजादे! अभी क्या देर हैं नाश्ते में?
बस,बाबूजी ! हो गया,लाता हूँ,सत्या ने रसोई से आवाज़ दी।।
कुछ ही देर में सत्या ने टेबल पर नाश्ता लगा दिया,आज सत्या ने नाश्ते में साबूदानें की खिचड़ी ,कार्न कटलेट्स ,सन्तरे का जूस साथ में मूली और टमाटर का सलाद बनाया था।।
चलो भाई ,परोसो तो जल्दी,जरा खा कर देखूँ कि साहबजादे के हाथों में कितना हुनर है,सेठ जानकीदास जी बोले।।
और कल्याणी ने फौरन सबको नाश्ता परोस दिया,सेठ जी ने साबूदाने की खिचड़ी का पहला निवाला मुँह में डालते ही कहा,सच ये तो वाकई बहुत अच्छी है और इसमें ज्यादा मसाले भी नहीं हैं,मुझे पसंद आई ,उन्होंने कटलेट्स भी खाए उन्हें वो भी पसंद आए।।
सच!कहिए ! कहीं झूठ तो नहीं कह रहे आप,कल्याणी ने पूछा।।
नहीं,ऐसी बात नहीं है,तुम भी कभी कभी ऐसा सादा नाश्ता भी बना सकती हो,सेठ जानकीदास जी बोले।।
मैने कहा था ना! माँ! कि बाबू जी को नाश्ता पसंद आएगा,सत्या बोला।।
इस तरह सबने बाते करते करते नाश्ता किया,सेठ जी अपने दफ्तर चले गए और सत्या अपने कमरें में आकर कुछ पढ़ने लगा ,पढ़ते-पढ़ते सत्या की आँख लग गई और वो सो गया,करीब ग्यारह बजे उसकी आँख खुली और उसे याद आया कि उसे तो फार्महाउस जाना था,वो फटाफट तैयार हुआ कुछ किताबें लीं, मोटर की चाबी उठाई और चलते चलते कल्याणी से बोला....
माँ ! मैं जा रहा हूँ।।
लेकिन इतनी जल्दी में कहाँ चला? कल्याणी ने पूछा।।
माँ! फार्महाउस जा रहा हूँ,सत्या बोला।।
लेकिन आज फिर से,वो भी भला क्यों? कल्याणी ने पूछा।।
माँ! कुछ दिनों में तो मुझे वहीं जाकर रहना पड़ेगा तो सोचा कि थोड़ी थोड़ी किताबें फार्महाउस में रखकर आऊँ,सत्या जाते हुए बोला।।
ठीक है लेकिन ज्यादा धूप में मत घूमना,कल्याणी ने हिदायत देते हुए कहा।।
ठीक है माँ! और इतना कहकर सत्या बाहर आकर मोटर मे बैठा और फार्महाउस की ओर चल पड़ा।।
फार्महाउस पहुँचकर सत्या ने मोटर खड़ी की ही थी कि काशी आकर बोला.....
छोटे मालिक आप आ गए ! हम आपका ही इन्तज़ार कर रहे थे,आपकी काकी सिमकी की तबियत खराब है इसलिए हमें कुछ देर के लिए गाँव जाना होगा,आज दोपहर का खाना हम आपके लिए नहीं बना सकेगें।।
कोई बात नहीं काका! आप काकी को देखने जाओ,सत्या बोला।।
ठीक है छोटे मालिक !तो हम जाते हैं, इतना कहकर काशी जाने लगा तभी सत्या को याद आया कि कजरी भी तो उसी गाँव में रहती है क्यों ना मैं काका के संग ही गाँव चला जाऊँ? ये सोचकर उसने काशी को रोकर कहा.....
ठहरिए काका! क्या मै भी आपके संग गाँव चल सकता हूँ?
हाँ,चलो! लेकिन धूलभरा रास्ता और छोटी छोटी झोपड़ियों में जाकर क्या करेंगें ? छोटे मालिक!काशी बोला।।
काशी काका ! आप कह रहे थे कि कोई रामाधीर माली है,उसके घर जाना है,बाबू जी कह रहे थे कि उससे मिलकर पूछ लेना कि क्या वो अस्पताल में पेड़ पौधे लगाने का काम करेगा? सत्या ने झूठ बोलते हुए कहा।।
अच्छा! रामाधीर! वो तो हमारे घर के ही पास रहता है,हमारे साथ चलिए,हम आपको उसका घर बता देगें,काशी बोला।।
ठीक है और इतना कहकर सत्या,काशी के संग चला आया,आधा घंटा पैदल चलने के बाद गाँव आ गया,दोनों गाँव के भीतर घुसें और कुछ ही देर में काशी ने कहा कि वो जहाँ कुआँ है ना वही रामाधीर का घर है.....
ठीक है काका! और इतना कहकर सत्या ,कजरी के घर जा पहुंँचा,उसने बाहर से कजरी को आवाज़ दी.....
कौन है? भीतर से कजरी की आवाज़ आई....
मै हूँ कजरी! परसो बगीचें में तुम से मुलाकात हुई थी,सत्या बोला।।
अरे,सुन्दर! तुम हो,आओ भीतर आओ,कजरी बोली।।
सत्या भीतर गया तो देखा कजरी चूल्हे पर रोटियाँ सेंक रही है और पास की खाट पर उसके पिता रामाधीर लेटे हैं.....
सत्या की भीतर पहुँचने की आहट पाकर कजरी उठी और खाट बिछाते हुए बोली...
सुन्दर! लो इस खाट पर बैठो,कहो कैसे आना हुआ?
तुम कल बगीचे में नहीं आई तो मैने सोचा कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम बीमार हो,सत्या बोला।।
मैं तो नहीं लेकिन बापू बीमार हो गए थे इसलिए कल फूल तोड़ने ना आ सकी,कजरी बोली।।
अच्छा तो ये बात है,सत्या बोला।।
बाबू! ये सुन्दर है,मैने बताया था ना कि बगीचे में मिला था,कजरी ने रामाधीर से कहा।।
बैठो बाबू! बैठो,अच्छा किया जो तुम आएं,रामाधीर बोला।।
कल बापू की तबियत ज्यादा खराब थी और फिर गाँव के आस पास कोई अस्पताल भी तो नहीं और ना कोई डाक्टर हैं जो तबियत दिखा लें,कजरी बोली।।
इसलिए तो नया अस्पताल बनाने की सोच रहा हूँ,सत्या बोला।।
लेकिन तुम्हारे पास इतना पैसे कहाँ से आएगा? कजरी ने पूछा।।
अरे! मैं नहीं वो तुम्हारे बगीचे के मालिक हैं ना !वो ही सेठ जी अस्पताल बनवा रहे हैं और वहाँ गरीबों का इलाज मुफ्त होगा,सत्या बोला।।
सच कहते हो बाबू! भगवान सेठ जी का भला करें,उनके बाल बच्चे खूब जिएं,रामाधीर बोला।।
अच्छा! बापू! बातें बाद में कर लेना,पहले खाना खा लो,कजरी बोली।।
ठीक है मै तो खा लूँगा,पहले तू बाबू को खाना परोस,रामाधीर बोला।।
और कजरी ने दो थालियों में खाना परोस दिया,खाना देखकर सत्या को लगा कि वो कैसे ये खाना खा पाएगा? क्योंकि खाने में बाजरे की रोटी,प्याज की चटनी और छाछ थी,लेकिन कजरी को बुरा ना लगे इसलिए वो खाना खाने लगा वैसे उसे भूख भी लग रही थी और जब उसने एक निवाला मुँह में रखा तो उसे खाना पसंद आया,फिर उसने सारा खाना खतम करके ही दम लिया।।
खाना खाकर उसने रामाधीर और कजरी से कुछ देर बातें कीं और फिर बोला....
अच्छा तो मैं चलूँ....
कजरी बोली....
ठीक है सुन्दर ! आज तो बापू कुछ ठीक हैं कल जरूर फूल तोड़ने बगीचे में आऊँगी,क्या तुम भी कल आओगे बगीचे में?
हाँ...कोशिश करूँगा,आने की और इतना कहकर सत्या वहाँ से चला आया.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....